पूर्वोत्तर का एक केंद्रीय विश्वविद्यालय... राज्य के Tribal Research Centre-TRC की तरफ से छह लाख रुपए के एक प्रोजेक्ट के लिए विवि के आदिवासी वर्ग के प्राध्यापकों से आवेदन माँगे गए। TRC की औपचारिक सूचना विवि के असिस्टेंट रजिस्ट्रार, जो कि खुद आदिवासी हैं, के पास आई। विवि के हिंदी विभाग के एक ''चंट'' प्रोफेसर, बोले तो मिश्र जी ने विवि के उस आदिवासी (हिंदु गुलाम) असिस्टेंट रजिस्ट्रार के माध्यम से TRC को लिखवा भेजा कि इस प्रोजेक्ट के लिए विवि का कोई आदिवासी प्रोफेसर 'दिलचस्पी' नहीं ले रहा है। इसके बाद मिश्र जी खुद के लिए 'जुगाड़' में लग गए। इसकी भनक जब एक बंगाली सवर्ण प्रोफेसर, बोले तो ''भद्र पुरुष'' को लगी, तो वे अपना 'टांका' भिड़ाने में लग गए। इसके बाद एक सवर्ण मुस्लिम प्रोफेसर खुद के लिए जुगत लगाने में जुट गए। 'भद्र पुरुष' के 'मच्छी माइंड' के आगे मिश्र जी की एक न चली और मुस्लिम प्रोफेसर के साथ बाबू मोशाय को संयुक्त रूप से (दोनों को तीन-तीन लाख रुपये ) प्रोजेक्ट मिल गया। सबसे अंत में विवि के आदिवासी प्रोफेसरों को पता चला, तब तक सारा काम हो चुका था... इस प्रकार भारत देश से जातिवाद का अंत होता है... !!!
Let me speak human!All about humanity,Green and rights to sustain the Nature.It is live.
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