नूतन यादव
किसी भी औरत की जबान या लेखनी से एक बार 'सेक्स' शब्द निकले तो 'तथाकथित मर्द' उसका पेशा तय करने में एक क्षण नहीं लगाते ...वही पेशा जो आदिम समाज से औरतों के लिए आदमी ने चुना है और जिसके बिना इनका अस्तित्व भी संभव नहीं ....
नोट : जो लोग सेक्स का 'एक ही मतलब' जानते हैं उनसे 'फ्री सेक्स' का अर्थ समझने की अपेक्षा करना बेमानी है ....विकासवाद का सिद्धांत इनपर आकर फेल हो जाता है ...जानवर भी सहमति पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते हैं ...यकीं न हो तो डिस्कवरी देख लो ....शायद जानवरों को देखकर ही इंसानियत आ जाये ....
मेरी गुरु Neelima Singh जी की कलम से ....
इतना ही नहीं नूतन, मादा जानवर केवल सर्वश्रेष्ठ नर को ही सेक्स की अनुमति देती हैं ताकि उनकी नस्ल में केवल सर्वश्रेष्ठ शावक उत्पन्न हों ।वहां नर को मादा की अनुमति पाने के लिये क्या क्या नहीं करना पड़ता ! मोर कमर मटका मटका कर नाचता है, कोयल कूक कूक कर कलेजा निकाल कर रख देती है, तितली अपने. पंखों पर हजारों रंग बिखेर देती है, शेर दूसरे कमजोर शेर को मार कर भगा देता है ।और एक हम स्त्रियां हैं कि जैसे भी अल्लल टप्पू के साथ ब्याह दी जायें उसी के साथ सेक्स और उसी की उल्टी सीधी सन्तान पैदा करने के लिये बाध्य है ।वहसमय दूर नहीं जब स्त्रियां IVF के द्वारा सर्वश्रेष्ठ पुरुषों की सन्तान पैदा करने का फ़ैसला करेंगी और श्रेष्ठतम मानव समाज की जननी बनेंगी ।उस युग के मानव बुद्धिमान, बलवान, कल्पनाशील, सहृदय, श्रेष्ठतम वैज्ञानिक, श्रेष्ठतम विचारक वगैरह हुआ करेंगे ।क्या ऐसा होना असंभव है ?
नौटंकी के चलते क्रिकेट छोड़ा .. (खेलना नहीं देखना। !!!! )...
ड्रामे की वजह से राजनीति छोड़ी ....( खेलनी नहीं समझनी। !!!! )..
अब ज़िन्दगी में मज्जा नहीं रहा ...
ड्रामे की वजह से राजनीति छोड़ी ....( खेलनी नहीं समझनी। !!!! )..
अब ज़िन्दगी में मज्जा नहीं रहा ...
नोट : हिन्दुस्तान छोड़ने का वक़्त आ गया या दुनिया छोड़ने का
मुनीर नियाज़ी
ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाए हम तो क्या
दुनिया में ख़ामोशी से गुज़र जाए हम तो क्या
ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाए हम तो क्या
दुनिया में ख़ामोशी से गुज़र जाए हम तो क्या
हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने,
एक ख़्वाब हैं जहां में बिखर जाए हम तो क्या
एक ख़्वाब हैं जहां में बिखर जाए हम तो क्या
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिये वहाँ,
शाम आ गई है लौट के घर जाए हम तो क्या
शाम आ गई है लौट के घर जाए हम तो क्या
दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र,
दरिया-ए-ग़म के पार उतर जाए हम तो क्या
दरिया-ए-ग़म के पार उतर जाए हम तो क्या

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