ग्राउण्ड दलित रिपोर्ट-10
गांव-इकरन (भरतपुर)
ठाकुरों के डर से दलितो ने छोडा गांव !
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ठाकुर का लडका दलित लडकी को ले भागे, उसके साथ दुर्व्यवहार करे, उसके साथ छेडछाड करे, तो कोई बात नहीं लेकिन दलित लडके से ठाकुर की लडकी प्यार करे तो आसमान फट पडता है। कुछ ऐसा ही हुआ भरतपुर जिले के सेवर पंचायत समिति के चिकसाना थानान्तर्गत गांव इकरन में। इस गांव में सभी जाति के लगभग 1100 परिवार हैं। जिनमें 950 परिवार ठाकुर, 100 परिवार बधेला, 12 परिवार जाटव (अनुसूवित जाति) 20 परिवार नाई, 10 परिवार फकीर, 12 परिवार वैष्य, 2 परिवार वाल्मीकि, 2 परिवार तेली तथा 1-1 परिवार ब्राह्मण व खटीक समाज के हैं। गांव में ठाकुर जाति का बाहुल्य है इसलिए यह कहा जा सकता है कि यहां इनकी तूंती बोलती है।
गत पंचायतराज चुनावों में यहां से रनवीर सिंह जाटव सेवर पंचायत समिति के पंचायत समिति सदस्य निर्वाचित हुए क्योंकि यह वार्ड अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। इन्हीं रनवीर सिंह के पुत्र मनोज (24) और ठाकुर की लडकी (20) के प्रेम संबंध एक वर्ष से बताये जाते हैं। वैसे दोनों की शादी नहीं हुई है और कानूनी रूप से बालिग व कुआंरे हैं। लडका बी.ए. तक पढा है और एमुनेशन डिपो में नौकरी करता है तथा लडकी 8वीं पास है और घर पर ही रहती थी। दोनों में प्रेम संबंध कैसे बने यह तो पता नहीं लेकिन इनके प्रेम को शायद समाज स्वीकृति नहीं दे पाता यही विचार कर दोनों ने ही घर छोडने का फैसला लिया।
जब दोनों को लगा कि अलग-अलग जाति का होने के कारण खासकर लडका दलित समाज का और लडकी राजपूत समाज की तो ठाकुरों को यह बात पच नहीं पाएगी और बेरहम जमाना हमारे पवित्र संबंधों को स्वीकार नहीं करेगा, इससे अच्छा है कि कहीं दूर जाकर अपनी जिन्दगी जियेंगे, जहां कोई जाति बंधन नहीं हो और हमारा प्यार जिन्दा रह सके। ऐसा सोच कर दोनों ने ही घर छोडने का निर्णय ले लिया। ठाकुर की लडकी ने दलित लडके से रात में आकर उसे घर से ले जाने का वादा कर दिया। 22 मई 2016 की रात को लडकी द्वारा पूर्व निर्धारित समय पर दलित युवक मनोज जाटव लडकी का इशारा पाकर पहुंच गया और दोनों उनकी मंजिल को रवाना हो गये।
परिवार के लोगों को उसी दिन पता चल चुका था इसलिए सभी घरवालों ने बैठकर निर्णय लिया कि बात आगे नहीं बढे और इज्जत भी बच जाये, इसलिए दलित परिवार के लोगों को कहा कि हमारी लडकी को कहीं से भी ढूंढ कर ले आओ हम कुछ नहीं करेंगे। इस पर दलित परिवार के लोगों ने काफी कोशिश की परन्तु दानों का कोई सुराग नहीं लगा। पांच दिन बाद दिनांक 27 मई 2016 को लडकी के भाई ने पुलिस थाना चिकसाना में मनोज पुत्र रनवीर, वीरेन्द्र पुत्र चिम्मन, गौरव पुत्र तेजसिंह व अक्षय पुत्र दीपचन्द के खिलाफ एक एफ.आई.आर. अन्तर्गत धारा 363, 366व 34 आई.पी.सी. दर्ज कराई।
इस घटना के बाद ठाकुरों के डर से दलित परिवार गांव छोडकर चले गये हैं। दलित परिवारों में केवल महिलाएं व बच्चे ही हैं। दूसरी तरफ पुलिस ने दलित परिवारों पर दवाब बनाना शुरू कर दिया क्योंकि पुलिस महकमे में बैठे लोगों को भी यह हजम नहीं हो रहा है कि दलित लडका ठाकुरों की लडकी के साथ संबंध रखे। सरकार ने अन्तर्जातीय विवाह करने पर 5 लाख रूपये की योजना बना कर इसे कानूनी जामा पहनाने की कोशिश तो कर दी लेकिन ऐसे दंपत्तियों को सुरक्षा मुहैया करवाने का भी तो उपाय करे।
घटना के बाद से ही दलित अपने-अपने घरों को छोडकर पलायन कर गये तो ठाकुरों द्वारा पीडित दलितों के खाली घरों में जमकर लूटपाट की गई। जब भय कम हुआ तो महिलाएं लौटने लगी लेकिन 29 मई 2016 की रात को दलित मौहल्ले में 7-8 नकाबपोश युवक आए और श्रीमती सुनीता पत्नी गिर्राज जाटव के सिर पर देशी पिस्तौल (कट्टा) रख दिया और कहा कि हल्ला मचाया तो खत्म कर देंगे। डर के कारण दलित महिला ने चुप रहना ही बेहतर समझा। उन युवकों ने दलित के घर से गैस सिलेण्डर, चांदी-सोने के जेवरात आदि लूट लिए और बेबस दलित महिला कुछ नहीं कर पायी। इसकी सूचना दलित पीडिता ने पुलिस को भी दी लेकिन शायद पुलिस ने इस पर कोई कार्यवाही करना उचित नहीं समझा। वैसे भी पुलिस दलितों के 70 फीसदी मामलों में जो रवैया अपनाती है वही उसने यहां भी कर दिखाया। इसके बाद जिला कलेक्टर से भी दलितों ने महजरनामा देकर सुरक्षा की गुहार लगाई लेकिन प्रशासन की ओर से भी दलितों को कोई सहारा नहीं मिला।
अब डर यह भी है कि यदि लडके-लडकी वापिस आ भी गये तो क्या वे जिन्दा बच पायेंगे? ठकुराई के आगे लडकी कहीं ऑनर किलिंग की भेंट नहीं चढ जाए या लडके और लडकी या दलित परिवार को खाप पंचायत का अजीब फरमान सुनकर हमेशा के लिए गांव छोडना ना पड जाए? पुलिस और प्रशासन की बेरूखी के कारण दलितों को कहीं ठाकुरों का कोप भाजन बनना नहीं पड जाए? प्रश्न बहुत सारे मुंह बाए खडे हैं, आखिर जाति की दीवार कब तक आडे आती रहेगी? संविधान के मूल अधिकार कब तक किताबों के पन्नों तक सिमटकर रह जायेंगे? ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उस समाज से जहां इंसानियत है, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उन लोगों से जो बुद्धिजीवी हैं, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उन राजनेताओं से जो संविधान के तहत शपथ लेते हैं, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उन लोगों से जो समाज के ठेकेदार बने फिरते हैं? ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उस पुलिस से जो मानवाधिकारों की रक्षा के लिए है, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं आप से और हमसे, जवाबों की इसी प्रतीक्षा में...
गोपाल राम वर्मा ( लेखक सामाजिक न्याय एवं विकास समिति के सचिव हैं इनसे मो. नां. 9414427200 तथा snvsbharatpur@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।)
ठाकुरों के डर से दलितो ने छोडा गांव !
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ठाकुर का लडका दलित लडकी को ले भागे, उसके साथ दुर्व्यवहार करे, उसके साथ छेडछाड करे, तो कोई बात नहीं लेकिन दलित लडके से ठाकुर की लडकी प्यार करे तो आसमान फट पडता है। कुछ ऐसा ही हुआ भरतपुर जिले के सेवर पंचायत समिति के चिकसाना थानान्तर्गत गांव इकरन में। इस गांव में सभी जाति के लगभग 1100 परिवार हैं। जिनमें 950 परिवार ठाकुर, 100 परिवार बधेला, 12 परिवार जाटव (अनुसूवित जाति) 20 परिवार नाई, 10 परिवार फकीर, 12 परिवार वैष्य, 2 परिवार वाल्मीकि, 2 परिवार तेली तथा 1-1 परिवार ब्राह्मण व खटीक समाज के हैं। गांव में ठाकुर जाति का बाहुल्य है इसलिए यह कहा जा सकता है कि यहां इनकी तूंती बोलती है।
गत पंचायतराज चुनावों में यहां से रनवीर सिंह जाटव सेवर पंचायत समिति के पंचायत समिति सदस्य निर्वाचित हुए क्योंकि यह वार्ड अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। इन्हीं रनवीर सिंह के पुत्र मनोज (24) और ठाकुर की लडकी (20) के प्रेम संबंध एक वर्ष से बताये जाते हैं। वैसे दोनों की शादी नहीं हुई है और कानूनी रूप से बालिग व कुआंरे हैं। लडका बी.ए. तक पढा है और एमुनेशन डिपो में नौकरी करता है तथा लडकी 8वीं पास है और घर पर ही रहती थी। दोनों में प्रेम संबंध कैसे बने यह तो पता नहीं लेकिन इनके प्रेम को शायद समाज स्वीकृति नहीं दे पाता यही विचार कर दोनों ने ही घर छोडने का फैसला लिया।
जब दोनों को लगा कि अलग-अलग जाति का होने के कारण खासकर लडका दलित समाज का और लडकी राजपूत समाज की तो ठाकुरों को यह बात पच नहीं पाएगी और बेरहम जमाना हमारे पवित्र संबंधों को स्वीकार नहीं करेगा, इससे अच्छा है कि कहीं दूर जाकर अपनी जिन्दगी जियेंगे, जहां कोई जाति बंधन नहीं हो और हमारा प्यार जिन्दा रह सके। ऐसा सोच कर दोनों ने ही घर छोडने का निर्णय ले लिया। ठाकुर की लडकी ने दलित लडके से रात में आकर उसे घर से ले जाने का वादा कर दिया। 22 मई 2016 की रात को लडकी द्वारा पूर्व निर्धारित समय पर दलित युवक मनोज जाटव लडकी का इशारा पाकर पहुंच गया और दोनों उनकी मंजिल को रवाना हो गये।
परिवार के लोगों को उसी दिन पता चल चुका था इसलिए सभी घरवालों ने बैठकर निर्णय लिया कि बात आगे नहीं बढे और इज्जत भी बच जाये, इसलिए दलित परिवार के लोगों को कहा कि हमारी लडकी को कहीं से भी ढूंढ कर ले आओ हम कुछ नहीं करेंगे। इस पर दलित परिवार के लोगों ने काफी कोशिश की परन्तु दानों का कोई सुराग नहीं लगा। पांच दिन बाद दिनांक 27 मई 2016 को लडकी के भाई ने पुलिस थाना चिकसाना में मनोज पुत्र रनवीर, वीरेन्द्र पुत्र चिम्मन, गौरव पुत्र तेजसिंह व अक्षय पुत्र दीपचन्द के खिलाफ एक एफ.आई.आर. अन्तर्गत धारा 363, 366व 34 आई.पी.सी. दर्ज कराई।
इस घटना के बाद ठाकुरों के डर से दलित परिवार गांव छोडकर चले गये हैं। दलित परिवारों में केवल महिलाएं व बच्चे ही हैं। दूसरी तरफ पुलिस ने दलित परिवारों पर दवाब बनाना शुरू कर दिया क्योंकि पुलिस महकमे में बैठे लोगों को भी यह हजम नहीं हो रहा है कि दलित लडका ठाकुरों की लडकी के साथ संबंध रखे। सरकार ने अन्तर्जातीय विवाह करने पर 5 लाख रूपये की योजना बना कर इसे कानूनी जामा पहनाने की कोशिश तो कर दी लेकिन ऐसे दंपत्तियों को सुरक्षा मुहैया करवाने का भी तो उपाय करे।
घटना के बाद से ही दलित अपने-अपने घरों को छोडकर पलायन कर गये तो ठाकुरों द्वारा पीडित दलितों के खाली घरों में जमकर लूटपाट की गई। जब भय कम हुआ तो महिलाएं लौटने लगी लेकिन 29 मई 2016 की रात को दलित मौहल्ले में 7-8 नकाबपोश युवक आए और श्रीमती सुनीता पत्नी गिर्राज जाटव के सिर पर देशी पिस्तौल (कट्टा) रख दिया और कहा कि हल्ला मचाया तो खत्म कर देंगे। डर के कारण दलित महिला ने चुप रहना ही बेहतर समझा। उन युवकों ने दलित के घर से गैस सिलेण्डर, चांदी-सोने के जेवरात आदि लूट लिए और बेबस दलित महिला कुछ नहीं कर पायी। इसकी सूचना दलित पीडिता ने पुलिस को भी दी लेकिन शायद पुलिस ने इस पर कोई कार्यवाही करना उचित नहीं समझा। वैसे भी पुलिस दलितों के 70 फीसदी मामलों में जो रवैया अपनाती है वही उसने यहां भी कर दिखाया। इसके बाद जिला कलेक्टर से भी दलितों ने महजरनामा देकर सुरक्षा की गुहार लगाई लेकिन प्रशासन की ओर से भी दलितों को कोई सहारा नहीं मिला।
अब डर यह भी है कि यदि लडके-लडकी वापिस आ भी गये तो क्या वे जिन्दा बच पायेंगे? ठकुराई के आगे लडकी कहीं ऑनर किलिंग की भेंट नहीं चढ जाए या लडके और लडकी या दलित परिवार को खाप पंचायत का अजीब फरमान सुनकर हमेशा के लिए गांव छोडना ना पड जाए? पुलिस और प्रशासन की बेरूखी के कारण दलितों को कहीं ठाकुरों का कोप भाजन बनना नहीं पड जाए? प्रश्न बहुत सारे मुंह बाए खडे हैं, आखिर जाति की दीवार कब तक आडे आती रहेगी? संविधान के मूल अधिकार कब तक किताबों के पन्नों तक सिमटकर रह जायेंगे? ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उस समाज से जहां इंसानियत है, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उन लोगों से जो बुद्धिजीवी हैं, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उन राजनेताओं से जो संविधान के तहत शपथ लेते हैं, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उन लोगों से जो समाज के ठेकेदार बने फिरते हैं? ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उस पुलिस से जो मानवाधिकारों की रक्षा के लिए है, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं आप से और हमसे, जवाबों की इसी प्रतीक्षा में...
गोपाल राम वर्मा ( लेखक सामाजिक न्याय एवं विकास समिति के सचिव हैं इनसे मो. नां. 9414427200 तथा snvsbharatpur@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।)

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