जनगणमन जलजंगलजमीन समुंदर और आसमान बेच देने की आजादी है और किसी को ऐतराज भी नहीं है तो किसी ने अगर तिरंगे पर दस्तखत कर दिये तो राष्ट्रवाद में उबाला क्यों है?
हम कब तक जीते रहेंगे मिथक,मिथ्या और प्रतीक?
कबतक हम सामना करेंगे सच का?
मसलन एक मिथक सतीत्व का भी है जिसके तहत पितृसत्ता का यह साम्राज्य है,जिसका उपनिवेश है आधी दुनिया।
हवा हवाई है हमारा यह अंध राष्ट्रवाद,जिसकी कोई हकीकत की जमीन है ही नहीं।
पलाश विश्वास
https://youtu.be/KhE0m5klGIw
पहले एक बात साफ कर दूं कि हमने प्रवचन शुरु क्यों किया है।मेरे पिता मुझसे बहुत जियादा मजबूत आदमी थे,जिनकी रीढ़ कैंसर में सड़ गल जाने के बावजूद मुझसे सीधी रही है।उन्हें दरअसल किसी चीज की कोई परवाह नहीं थी।उन्होंने अपनी झोपड़ी के बदले में महल सजाने का ख्वाब कभी नहीं देखा और बुनियादी जरुरतों के लिए भी कभी फिक्रमंद नहीं थे वे।
हमने कई दफा इस सिलसिले में उनसे कहा भी कि आप इस तरह दौड़ते हैं देशभर में,आपकी उम्र हो रही है और हम कभी नहीं जानते कि आप कब कहां होते हैं।आपको कुछ हो गया कभी तो हमें पता ही नहीं चलने वाला है कि कहां आपके साथ क्या हो गये।
हर बार पिताजी ने यही कहा कि नौकरी करते हो और तुम अपने को बेहद सुरक्षित महसूस करते हो उनके बीच जो तुम्हारे कोई नहीं होते,जिनके हित अलग अलग है और जिनकी राजनीति अलग अलग है।
फिर वे कहते,तनिको सड़क पर उतरकर देखो,यहां सब बराबर हैं।यहां जो लोग हैं,उनके पास कुछ भी नहीं है। लेकिन इत्मीनान है।यकीन है।मुहब्बत है।नफरत नहीं है।
उनने कहा कि जब आप जनता के बीच होते हैं,तब आपको किसी चीज की परवाह करने की जरुरत नहीं होती और जनता आपकी जरुरतों को पूरा करती है।न पैसों की कमी होती है और न संसाधनों की ।शर्त यह है कि आप जनता के लिए जिये मरे भी और जनता के बीच आपकी साख भी बनी रहे और उस साख को भुनाकर आपमहल कोई खड़ा न करें और अपने मतलब कोई साधे नहीं।
पिताजी हमेशा जनता के बीच रहे।जनता के लिए जीते मरते रहे।तो उन्हें कोई फिक्र थी नहीं।हम अपने पिता की तरह नहीं हैं।कुल मिलाकर हम पेशेवर हैं।
अपने पेशा में हमने कैद होकर जिंदगी जी ली और जनता के बीच होने का अहसास कभी जी ही नहीं सके।अब उस पेशे को अलविदा कहने के बाद जब जमीन पर खड़ा होने की घड़ी सामने है,तो सड़क पर आ जाने की भी नौबत नहीं है।
हमारे पास पिता की झोपड़ी भी नहीं है।
पिताजी की सीख पर अमल करना उतना ही मुश्किल है जितना गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी के सबक पर अमल करना मुश्किल है।
अब चूंकि इस देश में लिखने पढ़ने का माहौल सिरे से खत्म है और बाजार में खड़ा हर शख्स अपनी पसंद की जर जोरु जमीन के लिए हर दूसरे तीसरे की जान लेने पर आमादा है और हर किसी के दिल में सियासत मजहब हुकूमत का त्रिशुल गहराई तक बिंधा हुआ है,सच कहने की कोई विधा हमारे कब्जे में नहीं है और न कलाकौशल है हमारे पास कोई चामत्कारिक।
नागरिक कोई इस देश में हैं नहीं हैं।न नागरिक अधिकार हैं और मनुष्य के अधिकार हैं।हम अस्मिताओं में कैद अलग अलग जहां हैं,अलग अलग तन्हाई का सिलसिला हैं।हम असहिष्णु हैं नख से सशिक तक।मनुष्यता के लिए सामाजिकता बेहद जरुरी है और सामाजिकता के लिए सहिष्णुता अनिवार्य है।
सियासत,मजहब,हुकूमत के त्रिशुल बिंधे दिलोदिमाग में कोई सहिष्णुता इन दिनों बची नहीं है दरअसल।
हम लोग बिनचेहरे के ,बिन दिलोदिमाग के कबंध हैं और अस्मिताओं के रंग बिरंगे मुखौटे से हमारी पहचान है।
मनुष्य हम हैं या नहीं या हम सामाजिक हैं या नहीं,हम ईमानदार वफादार वगैरह वगैरह हैं या नहीं,हम सहिष्णु या असहिष्णु जो भी हों,किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
मुल्क अब फ्री मार्केट है।
केल अब खुल्ला फर्ऱूखाबादी हैं।
किसी की काबिलियत या ईमानदारी वगैरह वगैरह की किसी को परवाह नहीं है।बशर्ते कि आपके पास बाजार में रंगदारी के लिए बाहुबल धनबल और सत्ता की ताकत पर्याप्त हो।
यही समामााजिक यथार्थ है।
दरअसल हम मिथकों और मिथ्याओं में जीन के अभ्यस्त हैं।
हमें प्रतीकों की बहुत परवाह होती है।
हमें मुल्क की परवाह हो न हो,इस मुल्क के लोगों की परवाह हो न हो,हमें सरहद और देश के नक्शे की बहुत परवाह है।
हमें इस देश की जनता की रोजमर्रे की बुनियादी जरुरतों की,उनकी तकलीफों की,उनके रिसते हुए जख्मों की,उनपर रोजाना ढाये जा रहे जुल्मोसितम की परवाह हो या नहीं,जमीन और आसमान ,पहाड़ और समुंदर की परवाह हो या नहीं,देश के अंदर बाहर बहती खून की परवाह है या नहीं,तिरंगे और वंदेमातरम और जनगणमन की बहुत परवाह है।हवा हवाई है हमारा यह अंध राष्ट्रवाद,जिसकी कोई हकीकत की जमीन है ही नहीं।
हम परेशां परेशां हैं कि किसीने तिरंगे पर ठोंक कर दस्तखत दाग दिये और अमेरिका से लेकर हिंदुस्तान की सरजमीं पर हंगामा बुत बरपा है।हमें कोई फर्क भी नहीं पड़ा कि गुजरात में इंसानियत पर क्या कयामत बरपा दी गयी और कैसे मां के गर्भ से पेट चीरकर बच्चे के खून सा नहला हुआ हमारा यह अंध राष्ट्रवाद है।
हमारी आंखें देख नहीं रही हैं कि कैसे अमेरिका की सरजमीं पर हिंदुस्तान के चप्पे चप्पे का सौदा हो गया।
हमारी आंखें देख नहीं रही हैं कि कैसे विकास का एजंडा नये सिरे से बना है और किसका क्या कार्यक्रम आखेट का है,किसका क्या कार्यक्रम नरसंहार का है और कहां कहां नये सिरे से बेदखली या छंटनी का चाकचौबंद इंतजाम है।
क्योंकि सरहद की हिफाजत के लिए बोलना बहुत आसां है।
कश्मीर,या लहूलुहान हिमालय या पूर्वोत्तर या मध्यभारत में कारपोरेट शिकंजे में कसमसाती इंसानियत के खिलाफ जारी अनंत सलवाजुड़ुम और आफसा के खिलाफ बोलना उतना आसां भी नहीं है।अगवाडा़ पिछवाड़ा खुला,बेरीढ़ लोग हुए हमलोग।
किसी मजलूम के हक में खड़ा होना ताकतवर के खिलाफ बगावत की हिम्मत करना या सियासत मजहब हुकूमत के त्रिशुल को हवा में थाम देने की जुर्रत हम यकीनन कर ही नहीं सकते।
फिरभी हम देशभक्त हैं।
दरअसल हम उतने ही देश भक्त हैं जितने पठन मुगल और अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हमारे शासक राजे रजवाड़े,उनके तमाम सिपाहसालार और कारिंदे और फिर जमींदार देशभक्त रहे हैं।जिनके वंशज हमारे राष्ट्रीय नेता और हुक्मरान हैं।
जनगणमन या वंदेमतरम गाने में कोई खून बहाना होता नहीं है।बाबुलंद आवाज में गाते रहो वंदेमतरम या जनगणमन और आपके तमाम धंधे भी चलते रहे साथ साथ।
यही दुनिया का दस्तूर है कि मूतो कम और हिलाओ जियादा जियादा।न खुद हगो और न किसी को हगने दो,दस्तूर यही।
हम चूंकि आगे लिखने पढ़ने की हालत में न हों,तो प्रवचन बहुत मौजूं है।अनंत प्रवचन का सिलसिला जारी है और किसी को फर्क नहीं पड़ता कि बोले कौन हैं और कितनासही बोले हैं।
मानुष अमानुष सभी कुछ भी बोल सकत है।फतवा जारी कर सकते हैं बोल बोलकर और राष्ट्र और जनमानस बी बदल सकते हैं बोल बोलकर।कोई मंकी बात जब तब बोल सकत है तो हमउ बोलत ह।
जवाबी प्रवचन बेहद जरुरी है।
बहुत अच्छा होता कि पेशेवर प्रवचन की तरह हम या तो विशुद्ध देवभाषा में बोलते,लेकिन यह किसी अछूत को शोभा नहीं देता और विशुद्ध देवभाषा में प्रवचन देने की विशुद्धता हमारी है ही नहीं।
बहुत अच्छा होता कि हम कबीर सूर या तुलसी या मीराबाई या दादु या लालन फकीर की बोली बोल रहे होते।हम जड़ों से कट हुए लोग हैं और भोजपुरी मैथिली छत्तीसगढ़ी गोंड या संथली में बोलने की हमारी आदत नहीं है और न हम उर्दू कायदे से जानते हैं और न गुर्खाली,कुमायूंनी,गढ़वाली,डोगरी या राजस्थानी में बोल सकते हैं।
बहुत अच्छा होता कि हम सिर्फ हिंदी में या सिर्फ बांग्ला में बोलते या मराठी,गुजराती,पंजाबी असमिया या तमिल या मलयालम या कन्नड़ में बोलते।लेकिन हम खाली मुली हिंदुस्तानी है और हिंदुस्तानियों की भाषाओं और बोलियों से मुहब्बत नहीं है।
अब हालात इस महादेश का यह है कि कोई किसी और की बोली में न बात कुछ कर सकता है और न कोई किसी की कुछ सुन सकता है।अस्मिताओं में अलग अलग हर भारतीय भाषा और बोली एक दूसरे के खिलाफ लामबंद है।सारी भाषाएं इसीतरह खत्म हैं और सारी विधायेें और सारे माध्यम बेदखल है।हम उत्सव मना रहे हैं।
मजा और भी है कि एक ही भाषा और एक ही बोली में भी सत्ता की लड़ाई भी अजब गजब है।मसलन हमें हिंदी से प्यार है लेकिन हिंदी में लिखे जनपक्षधर साहित्य से हमें प्यार कतई नहीं है।
हमें हिंदी से इतना प्यार है कि छत्तीस इंच की छाती पीट पीटकर हम हिंदी की सत्ता कायम करके बाकी भाषाओं के खिलाफ और हिंदी में भी सियासत मजहब और हुकूमत तके कामकाज के लिए बोलने वालों की जुबान तुरंत फुरंत काट लेने पर आमादा हैं।
अगर बेपरवाह है कोई इतना और इंसानियत के हक में उसकी आजाज बुलंद है बहुत तो उसका काम तमाम करना हिंदी हिंदुस्तान और हिंदुत्व के त्रिशुली अंध राष्ट्रवाद के तहत देशभक्ति की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है।
मजा यह है कि बांग्ला वाले या जो तमिल हैं.वे हिंदी में कुछ भी सुनना नहीं चाहते।फिर कश्मीर तक हिंदुत्व की आग धक धक भले जल रही हो,लेकिन हिंदी वहां पहुंची ही नहीं है और पूर्वोत्तर में तो हिंदी सत्ता का पर्याय है और उनके लिए हिंदी राजधानी दिल्ली है।
मुक्त बाजार के शिकार तमाम लोगों के साथ हम खड़े हैं और हमारे लिए इंसानियन न किसी भाषा में कैद है और न किसी धर्म या जाति में और न किसी मिथ्या अस्मिता में कैद है इंसानियत और दरअसल इंसानियत के मुल्क का कोई सरहद कहीं होता नहीं है।
हम दरअसल इंसानियत को,इंसानियत के मुल्क को संबोधित कर रहे हैं और हम अपनी भाषाओं और बोलियों के मुकाबले अंग्रेजी को तरजीह कुछ जियादा ही देते हैं या अंग्रेजी में लिखे बोले शब्दों पर कुछ ज्यादा ही तरजीह देते हैं तो अपने प्रवचन की भाषा हमने फिलहाल अंग्रेजी चुनी है।
अगर जिंदगी थोड़ी औरखिंची और सड़क पर उतरने की हिम्मत मेरी भी हो गयी अपने पिता की तरह तो यकीन मानिये हम आपके मुखातिब आपकी भाषा और आपकी बोली की जमान पर ही होंगे।
कुल मिलाकर हकीकत यही है कि हवा हवाई है हमारा यह अंध राष्ट्रवाद,जिसकी कोई हकीकत की जमीन है ही नहीं।
मसलन एक मिथक सतीत्व का भी है जिसके तहत पितृसत्ता का यह साम्राज्य है,जिसका उपनिवेश है आधी दुनिया।
आज का प्रवचनः
https://youtu.be/KhE0m5klGIw
Retro Tax Holiday for foreign companies to kill Indian Business at the cost of Tax Payers as the head of RSS governance of blind racial nationalism bats on home pitch in America!
Let Me Speak Human!May we survive without Oxygen?May we survive taking in Methyl isocyanate?For me Bhopal Gas Tragedy is the original reform and it is being further pushed on.
One woman Gaura Devi from Chamoli taught the world that Mankind may not survive without forest and we are killing the Sunder Bans!We are killing the Himalayas!And now,it is raising the Nocobar which involves external and internal security of India have to be gifted away for so called development.Government readies a 15 year plan and budget of Rs.10.000 cr to develop shipping,port and tourism infrastructure on the Andaman and Nicobar Islands after assessing impact on Jarwas, habitat!
The agenda of development is reset and it is disaster!The politics in this geopolitics has been reduced to strategic marketing!
Religion is all about hatred and ISLAMOPHOBIA
makes in the free market economy.
Green Revolution has killed agriculture and the farmers have no option but to commit suicide.
Now we opt for MONSANTO and GM FOOD as gararian gowth zeroed down.
What about Industry and Business in India.For whom the business friendly governance works, we know very well.It is open secret.Industry and business lost the domestic market to make way for free market of foreign investors and foreign intersts.In return Indian Industry and Business get a Big BAJI Kaa THULLU!
We need no great wall of China as we have the original wall,the Himalayas to defend us which feeds us with rain and water.I have already demanded to apply article 370 all over the Himalayas beyond political borders to restrict external intervention to kill Nature and environment.
You am not walk in Gangtok and have to take a car to go up or down.Entire Sikkim has been raised as Cemented Jungle!
I may not walk on Mal Road,Nainital as I am afraid that there could be landslide anytime and the lake might explode.Entire lake region is overloaded with construction and external foces have to convert Uttarakhand into an energy province.
At the same time,Kolkata and entire Bengal could have been washed away if we had not the Sunderbans to protect us against tsunami and cyclones.Now we are making in Nuclear Sunder Bans!
For me Bhopal Gas Tragedy is the original reform and it is being further pushed on.
Please watch the video and think the impact!
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