Friday, June 30, 2017

ढाई युद्ध लड़ने की तैयारी राष्ट्रहित में या कारपोरेट हित में? क्या हम युद्धविरोधी आंदोलन के लिए कभी तैयार होंगे ? रक्षा क्षेत्र के विनिवेश के बाद युद्ध से किन कंपनियों को फायदा कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की जगह वित्तमंत्री चीन को करार जबाव देने लगे? गोरखालैंड मसला को सुलझाये बिना पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की तैयारी का दावा और चीन की मोर्चाबंदी बेहद खतरनाक हालात। कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग और पूर्वोत्तर में भारत में जहां आंतरिक सुरक्षा भारी खतरे में है,वहीं तिब्बत में हालात पूरी तरह चीन के नियंत्रण में है। पलाश विश्वास

ढाई युद्ध लड़ने की तैयारी राष्ट्रहित में या कारपोरेट हित में?
क्या हम युद्धविरोधी आंदोलन के लिए कभी तैयार होंगे ?
रक्षा क्षेत्र के विनिवेश के बाद युद्ध से किन कंपनियों को फायदा कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की जगह वित्तमंत्री चीन को करार जबाव देने लगे?
गोरखालैंड मसला को सुलझाये बिना पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की तैयारी का दावा और चीन की मोर्चाबंदी बेहद खतरनाक हालात।
कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग और पूर्वोत्तर में भारत में जहां आंतरिक सुरक्षा भारी खतरे में है,वहीं तिब्बत में हालात पूरी तरह चीन के नियंत्रण में है।

पलाश विश्वास

सिक्किम में सीमा पर गहराते युद्ध के संकट के मध्य दार्जिलिंग के पहाड़ों में रातभर हिंसा का तांडव,आगजनी,संघर्ष में तृमणूल नेता जख्मी।गोरखालैंड मसला को सुलझाये बिना पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की तैयारी का दावा और चीन की मोर्चाबंदी बेहद खतरनाक हालात।

इसी बीच सेनाअध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने  कहा कि सेना एक समय में पाकिस्तान, चीन और आतंकियों के साथ ढाई युद्ध लड़ सकती है।

सेनाध्यक्ष के बयान का नेवी के चीफ एडमिरल सुनील लांबा ने भी समर्थन किया है। सुनील लांबा ने कहा कि भारतीय सशस्त्र सुरक्षा बल किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

बहरहाल  चीन ने भारत को चेतावनी दी है कि भारतीय सेना को इतिहास से मिले सबक यानी 1962 की लड़ाई में मिली हार से सीख लेनी चाहिए।

इस चेतावनी को बंदरघुड़की न समझें तो बेहतर है क्योंकि तिब्बत में सिक्किम से लेकर उत्तराखंड होकर तिब्बत और अक्साई चीन तक 1962 से लेकर अबतक चीन की सैन्य तैयारियां भारत के मुकाबले कम नहीं है।

कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग और पूर्वोत्तर में भारत में जहां आंतरिक सुरक्षा भारी खतरे में है,वहीं तिब्बत में हालात पूरी तरह चीन के नियंत्रण में है।

न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए जनरल रावत ने कहा कि सेना के पास इतनी क्षमता है कि वो आसानी से युद्ध करके जीत भी सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार के साथ सेना को मॉर्डन साजो सामान से लैस करने के लिए हमारी बातचीत चल रही है, जिससे सरकार भी पूरी तरह से राजी है। जल्दी ही सेना के पास कई तरह के आधुनिक हथियार लाने के प्रयास किए जाएंगे।

गौरतलब है कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की खामोशी के मध्य सेनाध्यक्ष के सुर में सुर मिलाते हुए सिक्किम में सड़क निर्माण को लेकर भारत और चीन के बीच चल रही तनातनी के बीच रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने चीन को करारा जवाब दिया है। उन्होंने एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि 1962 के हालात और अब के हालात में बहुत अंतर है।

संघ परिवार की विचारधारा और अंध हिंदुत्व राष्ट्रवाद के नजरिये से ही नहीं गोदी कारपोरेटमीडिया के मुताबिक यह चीन को करारा जबाव है।जबाव हो सकता है कि काफी करारा ही होगा लेकिन विदेश नीति या राजनय का क्या हुआ,यह हमें समझ में नहीं आ रहा है।

जेटली के इस कारपोरेट युद्धोन्मादी बयान के उलट गौरतलब है कि पिछले दिनों रूस में आयोजित एक कांफ्रेंस में बोलते हुए भारत के पीएम मोदी ने कहा था कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद होने के बावजूद पिछले 40-50  साल से बॉर्डर पर एक भी गोली नहीं चली है।

मोदी के इस बयान की चीन में भी काफी सराहना हुई थी। और दुनिया भर में माना जा रहा था कि भारत और चीन अपने सीमा विवाद को बातचीत से निपटाने में सक्षम हैं।
अब जो हो रहा है ,वह मोदी के बयान के मुताबिक है,ऐसा दावा भक्तजन ही कर सकते हैं।सचेत नागरिक नहीं।

गौरतलब है कि 40-50 साल पहले यानी सितंबर 1967 में भारत और चीन के बीच सीमा पर आखिरी बार जिस इलाके में जोरदार फायरिंग हुई थी, सिक्किम के बॉर्डर का वही इलाका इस वक्त दोनों देशों के की सेनाओं के बीच जोर आजमाइश का केंद्र बन गया है।

इस बीच बाकी देश से कटे हुए दार्जिलंग और सिक्किम के साथ गोरखालैंड आंदोलन के चपेट में सिलीगुड़ी,जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर के आ जाने के बाद सिक्किम ही नहीं समूचा पूर्वोत्तर बाकी भारत से अलग थलग हो रहा है और भारत की सुरक्षा के लिए यह गंभीर चुनौती है।

विडंबना यह है कि इस समस्या को सुलझाने की कोई कोशिश किये बिना  सत्ता की राजनीति की वजह से दार्जिलिंग में हिसा की आग में ईंधन देकर चीन को सबक सिखाने और पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाने को धर्मोन्माद राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए बहुत भारी खतरा है।

चीन भीड़ में फंसा कोई निहत्था भारतीय नागरिक नहीं है,जिसका वध कर दिया जाये।वह एक बड़ी सैन्यशक्ति है।भारत से बड़ी।

कृपया गौर करें कि 1962 के बाद छिटपुट विवादों के अलावा भारत चीन सीमा पर कोई खास हलचल नहीं होने से भारत को बांगद्लादेश युद्ध में अमेरिकी चुनौती को भी मात देने में मदद मिली थी।

यह भी गौरतलब है कि इससे पहले किसी भारत सरकार ने एक साथ पाकिस्तान और चीन में युद्ध छेड़ने की तैयारी नहीं की थी।की भी होगा तो राजनीतिक या सैन्यस्तर पर ऐसा कोई दावा नहीं किया था।

सचमुच युद्ध छिड़ा तो दुनिया की नजर में इस बयानबाजी को 1962 की तरह भारत की चीन के खिलाफ युद्धघोषणा मान लिया जाये,तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

अंध राष्ट्रवाद के नजरिये से हटकर इस युद्धोन्माद को हाल में भारत में रक्षा क्षेत्र को निजी क्षेत्र के हवाले करने के बाद युद्ध गृहयुद्ध की अमेरिकी अर्थव्यवस्था की जैसी मजबूरी के नजरिये से देखना जरुरी है।हमारा मुक्तबाजार युद्ध का सौदागर भी है।

सत्ता वर्गी की चहेती कंपनियां एफ 16 जैसे युद्धक विमान तैयार कर रही हैं।अमेरिका से प्रधान स्वयंसेवक ने बाकी तमाम मुद्दों पर सन्नाटा बुनते हुए पचहत्तर हजार करोड़ के ड्रोन का सौदा किया है तो सात परमाणु रिएक्टर भी खरीदे जा रहे हैं।

हथियारों के सौदे की लंबी चौड़ी लिस्ट है,जो सार्वजनिक नहीं हुई है।

इजराइल की यात्रा अभी बाकी है।

अमेरिका और इजराइल की युद्धक अर्थव्यवस्था से नत्थी होकर हम भी तेजी से युद्धक अर्थव्यवस्था में तब्दील हो रहे हैं और अब निजी कंपनियों के तैयार हथियारों और युद्ध सामग्री के बाजार के लिए धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की सुनामी में अभूतपूर्व कृषि संकट,कारोबार और उद्योग के सफाया के साथ देश और आम जनता पर युद्ध थोंपने का यह कारपोरेट उपक्रम है।

अमेरिका और दूसरे देशों में नागरिक युद्धविरोधी आंदोलन करते रहे हैं लेकिन बारत में वियतनाम युद्ध से लेकर इराक और सीरिया के युद्ध के खिलाफ साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन होते रहने के बाद आंतरिक साम्राज्यवाद के खिलाफ आजतक कोई युद्धविरोधी आंदोलन नहीं हुआ है।

जीएसटी के तहत हलवाई या किराने की दुकानों में बेरोजगार आईटी इंजीनियरों को खपाने से शायद तकनीक से अनजान कारोबरियों की मदद के वास्ते अनिवार्य डिजिटल लेनदेन से उनके तकनीक न जानने की वजह से कुछ समय के लिए युवाओं को थोड़ा बहुत रोजगार मिलेगा।लेकिन सारा समीकरण एकाधिकार कारपोरेट कंपनियों के हक में है।

बड़ी और कारपोरेट पूंजी के एकाधिकार हमलों के मुकाबले छोडे और मंझौले कारोबारियों और उद्यमियों के लिए बाजार में बने रहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

देश अभूतपूर्व आर्थिक संकट में है और ऐसे में पाकिस्तान और चीन के साथ एकमुश्त युद्ध की तैयारी किसके हित में है,इसकी पड़ताल होना राष्ट्रहित में जरुरी है।

1948 में हममें से ज्यादातर लोग पैदा ही नहीं हुए थे।1948 के बाद 1962 के भारत चीन युद्ध बेहद सीमित था,जिसका खास असर अर्थव्यवस्था पर नहीं हुआ।लेकिन 1965 से पहले मंहगाई और मुद्रास्फीति के आंकड़ों को देख लें या अपनी यादों को अगर तब आप समझने लायक रहे होंगे,को खंगालकर देख लें कि 1965 और 1971 के भारत पाक युद्धों के नतीजतन देश और जनता पर आर्थिक बोझ और क्रज कितना गुणा बढ़ा है।

1971 से लेकर कारगिल जैसे सीमित युद्ध के अलावा सीमाओं पर अमन चैन आमतौर पर कायम रहने की वजह से कश्मीर विवाद के बावजूद,अंधाधुंध सैन्यीकरण और हिथियारों की होड़ के बावजूद भारत को किसी व्यापक युद्ध का सामना नहीं करना पड़ा।

अस्सी के दशक में पंजाब और असम समेत विभिन्न हिस्सों में आंतरिक संकट के बावजूद भारत की एकता,सुरक्षा और अखंड़ता पर आंच नहीं आयी है क्यंकि भारत ने सीमा संघर्ष से भरसक परहेज किया है।

मुक्तबाजार और आर्थिक विकास के बारे में विवादों के बावजूद कहना ही होगा कि साठ और सत्तर ेक दशक के मुकाबले आज जो भारत लगभग विकसित देशों के बराबर आ गया है,वह विदेश नीति और अयुद्ध नीति की कामयाबी की वजह से है।

हम आपको आगाह करते हुए याद करते हैं कि पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान के दमन का रास्ता न अपनाया होता और भारत को जबरन युद्ध में न घसीटा होता तो पाकिस्तान का विभाजन नहीं होता।

सेनाध्यक्ष रावत सिक्किम से एकसाथ पाकिस्तान और
के साथ युद्ध की तैयारियों का जो दावा कर रहे हैं,दार्जिलिंग,असम और समूचे पूर्वोत्र के संवेदनशील हालात के मुताबिक सारे समीकरण भारत के खिलाफ हैं।
यूं तो भारत और चीन के बीच सीमा पर वक्त-वक्त पर अतिक्रमण की खबरें आती रहती हैं। लेकिन मीडिया की खबरों का विश्लेषण निरपेक्ष दृष्टि से करें तो इस बार यह घटना इतनी बड़ी है कि इसे साल 2013 दौलतबेग ओल्डी सेक्टर के मामले से भी ज्यादा गंभीर माना जा रहा है। गौरतलब है कि पिछले मामलों के उलट इस बार चीनी मीडिया भारत के प्रति बेहद सख्त भाषा का इस्तेमाल कर रहा है । और ग्लोबल टाइम्स ने तो भारत को सबक सिखाने की चुनौती भी दे डाली है।
चीन ने इस बार की घटना के विरोध में कूटनीतिक कदम उठाते हुए कैलाश मानसरोवर की तीर्थ यात्रा तक को रोक दिया है। यानी इस बार यह मामला चुमार, डेमचौक और चेपसांग के इलाकों में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की पिछली घटनाओं से अलग है और बेहद खतरनाक है।

मध्यएशिया में हुए हाल के युद्ध और भारत ,चीन,पाकिस्तान की परमाणु युद्ध तैयारियों के मद्देनजर जाहिर सी बात है कि अबकी दफा कोई पारंपारिक युद्ध नहीं होने वाला है।

परमाणु प्रक्षेपास्त्र के जमाने में सेनाध्यक्ष के इस युद्धोन्मादी बयान के बाद प्रधानस्वयंसेवक और देश की विदेश मंत्री की चुप्पी और राजनीतिक बौद्धिक गलियारे में सन्नाटा बेहद खतरनाक है।

मीडिया के मुताबिक चीन की सेना ने गुरुवार को भूटान के इस आरोप से इंकार किया कि उसके सैनिक भूटान की सीमा में घुसे और कहा कि उसके सैनिक 'चीन के क्षेत्र' में ही तैनात रहते हैं। साथ ही चीन ने भारत से उसकी 'गड़बड़ियों' को भी 'ठीक करने' को कहा।

चीन के रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने मीडिया से कहा, 'मुझे इस बात को ठीक करना है कि जब आप कहते हैं कि चीन के सैनिक भूटान की सीमा में घुसे. चीन के सैनिक चीन की सीमा में ही तैनात रहते हैं'। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के प्रवक्ता ने भारतीय सैनिकों पर सिक्किम सेक्टर के डोंगलोंग क्षेत्र में चीन की सीमा में घुसने का आरोप भी लगाया।

प्रवक्ता ने कहा, 'उन्होंने सामान्य क्रियाकलापों को रोकने का प्रयास किया. चीन ने संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए इन क्रियाकलापों पर उचित प्रतिक्रिया दी'.।उन्होंने कहा, 'हमने भारतीय पक्ष को साफ कर दिया है कि वह अपनी गड़बड़ियां ठीक करे और चीन की सीमा से अपने सभी जवानों को वापस बुलाएं'।

भूटान ने बुधवार को कहा था कि उसने डोकलाम के जोमपलरी क्षेत्र में उसके सेना शिविर की तरफ एक सड़क के निर्माण पर चीन को 'डिमार्शे' (शिकायती पत्र) जारी किया है और बीजिंग से काम तत्काल रोककर यथास्थिति बहाल करने को कहा।

दरअसल  चीन का दावा है कि भारत ने डोकलाम सेक्टर के जोम्पलरी इलाके में 4 जून को सड़क निर्माण कर रहे उसके सैनिकों को रोक दिया। और उनके साथ हाथापाई भी की। इसके बाद अगले दिन चीनी सैनिकों ने भूटान की सीमा में स्थित भारत के दो अस्थाई बंकर गिरा दिए।
गौरतलब है कि 269 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल का यह इलाका भारत,चीन और भूटान की सीमाओं के पास है। यही वह इलाका है जहां तीनों देशों की सीमाएं मिलती हैं।
1914 की मैकमोहन रेखा के मुताबिक यह इलाका भूटान के अधिकार में है। जबकि चीन इस लाइन को मानने से ही इनकार करता है। और वक्त-वक्त पर उसके सैनिक भूटान की सीमा का अतिक्रमण करते रहते हैं।
गौरतलब है चीन के 1914 की मैकमोहन रेखा न मानने की वजह से 1962 में भारत चीन युद्ध हुआ था।तब भी इस युद्ध को टालने के बजाय भारत की तरफ से संसद में ही युद्ध घोषमा कर देने की भयंकर ऐतिहासिक भूल हो गयी थी और उस युद्ध में हार के बाद तमाम सेनापतियों के ब्यारे भारत की तत्कालीन सरकार को ही कटघरे में खड़ा करते हैं।लगता है कि इतिहास की पुनरावृत्ति बेहद खतरनाक तरीके से हो रही है।इस बार बी युद्ध टालने की भारत सरकारी की कोई मंशा अभी तक जाहिर नहीं हुई है।

डोकलाम के पठार की रणनीतिक रूप से इस इलाके में बेहद अहमियत है. चंबी घाटी से सटा हुआ होने के चलते चीन इस पठार पर अपनी सैन्य पोजीशन को मजबूत करना चाहता है.
चीन की कोशिश है कि इस इलाके में सड़कों का जाल बिछाया जाए ताकि भारत के साथ युद्ध की स्थिति में जल्द से जल्द इस इलाके में सैन्य मदद पहुंचाई जा सके. डोकलाम के पठार पर चीन की इसी मंशा ने भारत को सख्त रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है.



Thursday, June 29, 2017

छोटे मोटे कुलीन सैलाब से संस्थागत रंगभेदी कारपोरेट फासिज्म को कोई फर्क नहीं पड़ता, प्रिय अभिषेक! पलाश विश्वास

छोटे मोटे कुलीन सैलाब से संस्थागत रंगभेदी कारपोरेट फासिज्म को कोई फर्क नहीं पड़ता, प्रिय अभिषेक!
पलाश विश्वास
अभिषेक,तुम्हारी इस खूबसूरत टिप्पणी के लिए धन्यवाद।धर्मोन्मादी देश की मेला संस्कृति दरअसल हमारी सुविधाजनक राजनीति है।लेकिन भीड़ छंटते ही फिर वही सन्नाटा।
इसके उलट सत्ता की राजनीति का चरित्र कारपोरेट प्रबंधन जैसा निर्मम है।
सत्तावर्ग के माफिया वर्चस्व के सामने निहत्था निःशस्त्र लड़ाई का फैसला बेहद मुश्किल है और सेलिब्रिटी समाज अपनी हैसियत को दांव पर लगाता नहीं।
भद्रलोक की खाल बेहद नाजुक होती है।भद्रलोक को यथास्थिति ज्यादा सुरक्षित लगती है और वह कोई जोखिम उठाता नहीं है।
नाटइनमाई नेम सुविधाजनक शहरी विरोध का सैलाब है,जो कहीं ठहर ही नहीं सकता।
यह निरंकुश रंगभेदी संस्थागत कारपोरेट फासिज्म को रोकने के लिए असमर्थ है।
कारपोरेट फंडिंग की संसदीय राजनीति में नोटबंदी हो या जीएसटी या आधार या सलवा जुडुम  उसके खिलाफ,बुनियादी मुद्दों को लेकर कोई राजनीतिक प्रतिरोध अब असंभव है।
निर्भया मोमबत्ती जुलूस से कुछ बदलता नहीं है।
जमीन बंजर हो गयी है और नई पौध कहीं नहीं है।
हवाएं मौकापरस्त है।
रुपरसगंध फरेबी तिलिस्म है।
लड़ाई आखिर लड़ाई है,जो बिन मोर्चा बांधे सिनेमाई करिश्मे या करतब से लड़ी नहीं जा सकती।
बहरहाल यह सेल्फी समय है और मीडिया को दिलचस्प बाइट भी चाहिए होते हैं।
हम अभी विचारधारा पादने में ही बिजी है,जो पढ़े लिखे विद्वतजन का विशेषाधिकार भी है।
किसानों और मेहनतकशों,निनानब्वे फीसद आम जनता के हक हकूक के लिए हम अभी विकल्प राजनीति की जमीन ही तैयार नहीं कर पाये हैं।
सबकुछ राष्ट्रपति चुनाव ,भारत अमेरिका या भारत इजराइल गठबंधन की तरह अबाध पूंजी प्रवाह है।विनिवेश का मौसम है।
फिरभी मरी हुई ख्वाबों में जान फूंकने के लिए कुछ तो करना ही होगा क्योंकि हमारे हिस्से की जिंदगी बेहद तेजी से खत्म हो रही है।
बेहद प्रिय अभिषेक श्रीवास्तव ने फेसबुक दीवाल पर  लिखा हैः
उमस कुछ कम हुई है। कल सैलाब आया था। कहकर चला गया कि जो करना है करो लेकिन मेरे नाम पर मत करो क्‍योंकि तुम्‍हारे किए-धरे में मैं शामिल नहीं हूं। तीन साल पहले 16 मई, 2014 को जब जनादेश आया था, तो यही बात 69 फीसदी नागरिकों ने वोट के माध्‍यम से कही थी और संघराज में आने वाले भविष्‍य को 'डिसअप्रूव' किया था। वह कहीं ज्‍यादा ठोस तरीका था, कि महाभोज में जब हम शामिल ही नहीं हैं तो हाज़मा अपना क्‍यों खराब हो। यह बात कहने के वैसे कई और तरीके हैं। कल गिरीश कर्नाड की तस्‍वीर देखी तो याद आया।
कोई 2009 की बात रही होगी। इंडिया इंटरनेशनल की एक रंगीन शाम थी। रज़ा फाउंडेशन का प्रोग्राम था। मैं कुछ मित्रों के साथ एक परचा लेकर वहां पहुंचा था। एक हस्‍ताक्षर अभियान चल रहा था छत्‍तीसगढ के सलवा जुड़ुम के खिलाफ़। सोचा, सेलिब्रिटी लोग आए हैं, एकाध से दस्‍तखत ले लेंगे। प्रोग्राम भर ऊबते हुए बैठे रहे। गिरीश कर्नाड जब मंच से नीचे आए तो मैं परचा लेकर उनके पास गया। ब्रीफ किया। काग़ज़ आगे बढ़ाया। उन्‍होंने दस्‍तखत करने से इनकार कर दिया। क्‍या बोले, अब तक याद है- ''मैं समझता हूं लेकिन साइन नहीं करूंगा। मेरा इस सब राजनीति से कोई वास्‍ता नहीं।'' और वे अशोकजी वाजपेयी के साथ रसरंजन के लिए निकल पड़े।
इसी के छह साल पहले की बात रही होगी जब 2003 में एरियल शेरॉन भारत आए थे। जबरदस्‍त विरोध प्रदर्शनों की योजना बनी थी। इंडिया गेट की पांच किलोमीटर की परिधि सील कर दी गई थी। उससे पहले राजेंद्र भवन में एक साहित्यिक आयोजन था। मैं हमेशा की तरह परचा लेकर दस्‍तखत करवाने वहां भी पहुंचा हुआ था। प्रोग्राम खत्‍म हुआ। नामवरजी बाहर आए। मैंने परचा पकड़ाया, ब्रीफ किया, दस्‍तख़त के लिए काग़ज़ आगे बढ़ाया। उन्‍होंने दस्‍तख़त करने से इनकार कर दिया। मुंह में पान था, तो इनकार में सिर हिला दिया और सुब्रत रॉय की काली वाली गाड़ी में बैठकर निकल लिए।
इंडिविजुअल के साथ यही दिक्‍कत है। वह प्रोटेस्‍ट में सेलेक्टिव होता है। मूडी होता है। दूसरे इंडिविजुअल पर जल्‍दी भरोसा नहीं करता, जब तक कि भीड़ न जुट जाए। अच्‍छी बात है कि अलग-अलग फ्लेवर के लिबरल लोग प्‍लेकार्ड लेकर साथ आ रहे हैं, लेकिन ऐसा तो होता ही रहा है। निर्भया को भूल गए या अन्‍ना को? भारत जैसे धार्मिक देश में मेला एक स्‍थायी भाव है। उसका राजनीतिक मूल्‍य कितना है, पता नहीं। वैसे, आप अगर फोकट के वामपंथी प्रचारक रहे हों तो चमकदार लिबरलों को आज मेले में देखकर पुराने किस्‍से याद आ ही जाते हैं। एक सूक्ष्‍म शिकायत है मन में गहरे दबी हुई जो कभी जाती नहीं। पार्टी के बीचोबीच ''किसी बात पर मैं किसी से ख़फ़ा हूं...'' टाइप बच्‍चनिया फीलिंग आने लगती है। खैर, सर्वे भवन्‍तु सुखिन:... !

-- 

Wednesday, June 28, 2017

प्रधान स्वयंसेवक और महाबलि ट्रंप के मिलन से भारत को क्या मिला और अमेरिका को क्या? भारत में रोजगार संकट और छंटनी बहार के सिलसिले में ट्रंप की नीतियों में बदलाव के लिए क्या बात हुई? तीन साल के सात हजार सुधारों के बावजूद संविधान कितना बचा है,लोकतंत्र कितना बचा है और कानून का राज कितना बचा है? आधार और नोटबंदी से बंटाधार , आगे जीएसटी है,संसदीट सहमति की कारपोरेट फंडिंग सबसे बड़ा सुधार! जनता के खिलाफ अब लामबंद राजनीति के अलावा मीडिया और न्याय पालिका भी! बजरंगियों के अलावा अब किसी को कोई मौका नहीं, बजरंगियों के अलावा अब किसी को जीने का हक भी नहीं! सबसे बड़ी सुधार क्रांति नोटबंदी की हुई है तो उससे भी बड़ी क्रांति गोरक्षा क्रांति अभी शुरु ही हुई है,जो दुनियाभर की क्रांतियों के मुकाबले ज्यादा क्रांतिकारी है क्योंकि इससे भारत में मनुस्मृति विधान लागू होगा जिससे सहिष्णुता ,विविधता, बहुलता,लोकतंत्र, मनुष्यता,सभ्यता,प्रकृति पर्यावरण सबकुछ गेरुआ रंग में समाहित हो जायेगा और जाति वर्ण रंंगभेदी नस्ली निरंकुश सत्ता से विदेशी पूंजीपतियों और कंपनियों के लिए भारत आखेटगाह बन जायेगा। पलाश विश्वास

प्रधान स्वयंसेवक और महाबलि ट्रंप के मिलन से भारत को क्या मिला और अमेरिका को क्या?
भारत में रोजगार संकट और छंटनी बहार के सिलसिले में ट्रंप की नीतियों में बदलाव के लिए क्या बात हुई?
तीन साल के सात हजार सुधारों के बावजूद संविधान कितना बचा है,लोकतंत्र कितना बचा है और कानून का राज कितना बचा है?
आधार और नोटबंदी से बंटाधार , आगे जीएसटी है,संसदीट सहमति की कारपोरेट फंडिंग सबसे बड़ा सुधार!
जनता के खिलाफ अब लामबंद राजनीति के अलावा मीडिया और न्याय पालिका भी!
बजरंगियों के अलावा अब किसी को कोई मौका नहीं, बजरंगियों के अलावा अब किसी को जीने का हक भी नहीं!
सबसे बड़ी सुधार क्रांति नोटबंदी की हुई है तो उससे भी बड़ी क्रांति गोरक्षा क्रांति अभी शुरु ही हुई है,जो दुनियाभर की क्रांतियों के मुकाबले ज्यादा क्रांतिकारी है क्योंकि इससे भारत में मनुस्मृति विधान लागू होगा जिससे सहिष्णुता ,विविधता, बहुलता,लोकतंत्र, मनुष्यता,सभ्यता,प्रकृति पर्यावरण  सबकुछ गेरुआ रंग में समाहित हो जायेगा और जाति वर्ण रंंगभेदी नस्ली निरंकुश सत्ता से विदेशी पूंजीपतियों और कंपनियों के लिए भारत आखेटगाह बन जायेगा।
पलाश विश्वास
अमेरिकी पूंजीपतियों,कारपोरेट कंपनियों और उद्योगपतियों के साथ अमेरिका में प्रधान स्वयंसेवक के गोलमेज सम्मेलन के ब्यौरे भारतीय गोदी मीडिया ने कुछ ज्यादा नहीं दिया है।गौरतलब है कि इस अभूतपूर्व गोलमेज सम्मेलन में प्रधान स्वयंसेवक ने दावा किया कि भारत में पूंजीनिवेश और कारोबार के बेहतरीन मौके उनकी गोभक्त हिंदुत्व की सरकार ने महज तीन साल में सात हजार सुधारों के मार्फत बना दिये हैं।
भारत की आजादी के सिलसिले में लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलनों के मुकाबले इस गोलमेज सम्मेलन का मतलब मीडिया ने आम जनता को अभीतक बताया नहीं है,जो आजादी की सारी लड़ाई और स्वराज के सपनों के साथ साथ भारतीय जनता के स्वतंत्रता संग्राम का समूचा इतिहास सिरे से धो डालने का सबसे असरदार डिटर्जेंट पाउडर है और जिससे केसरिया केसरिया रंग बहार है,जो असल में सुनहला है।ये ही सुनहले दिनों के ख्वाब और विचार हैं।यही हिंदुत्व का समरसता मिशन है।यही गोरक्षकों का लोकतंत्र,समता और न्याय,भारतीयता है।
अभीतक किसी विद्वतजन ने पलटकर प्रधान स्वयंसेवक से यह सवाल लेकिन पूछा नहीं है कि इस तीन साल के सात हजार सुधारों के बावजूद संविधान कितना बचा है,लोकतंत्र कितना बचा है और कानून का राज कितना बचा है।
सुधारों की दौड़ में फेल हो जाने की वजह से मनमोहन सिंह अमेरिकी नजरिये से नीतिगत विकलांगकता का शिकार हो गये थे। शायद इसके मद्देनजर व्हाइट हाउस के महाबलि को यह हिसाब लगाने के लिए छोड़ दिया गया है कि तीन साल में सात हजार सुधारों के हिसाब से सुधारों की कुल विकास दर कितनी है।क्रिकेट मैचों के स्कोरर साथ ले जाते तो शायद यह भी मालूम हो जाता कि इन धुंआधार सुधारों से कितने विश्वरिकार्ड बने हैं और टूटे हैं।
मुक्त बाजार के लिए तीन साल में इतने सुधारों के मुकाबले बाकी देश कहां है और सुधारों की रैंकिंग में भारत अब कितने नंबर पर है?
सुधारों में 1160 कानून खत्म करने की संसदीय सहमति और गिलोटिन की भी शायद बड़ी भूमिका होगी।
सबसे बड़ी सुधार क्रांति नोटबंदी की हुई है तो उससे भी बड़ी क्रांति गोरक्षा क्रांति अभी शुरु ही हुई है,जो दुनियाभर की क्रांतियों के मुकाबले ज्यादा क्रांतिकारी है क्योंकि इससे भारत में मनुस्मृति विधान लागू होगा जिससे सहिष्णुता ,विविधता, बहुलता,लोकतंत्र, मनुष्यता,सभ्यता,प्रकृति पर्यावरण  सबकुछ गेरुआ रंग में समाहित हो जायेगा और जाति वर्ण रंंगभेदी नस्ली निरंकुश सत्ता से विदेशी पूंजीपतियों और कंपनियों के लिए भारत आखेटगाह बन जायेगा।
आधार क्रांति तो लाजबवाब है जैसा दुनियाभर में कहीं हुआ ही नहीं कि निजता ,गोपनीयता,स्वतंत्रता को पल पल नागरिक बुनियादी जरुरतों और सेवाओं के लिए तिलांजलि दे दें।
भारत में मनुष्य आधार नंबर है वरना उसका कोई वजूद नहीं है।हाथों में हथकड़ी,पांवों में बेड़ियां अलग से डालने की जरुरत नहीं है।देश का चप्पा चप्पा कैदगाह है,कत्लगाह है।कातिलों और दहशतगर्दों को खुली छूट,आम माफी है।यही हिंदूराष्ट्र है।
मुश्किल यह है कि आधार नंबर से कानूनी खानापूरी होगी,लेकिन उससे जान माल की हिफाजत नहीं होगी।वहीं होगा जो कातिलों की मर्जी है।आधार हो न हो,फर्क नहीं पड़ता।
न कानून का राज है और न सात हजार सुधारों के बाद संविधान है।दलित राष्ट्रपति फिर हालांकि मिलना तय है।
आगे जीएसटी सबसे खतरनाक मोड़ है।फिर कत्लेआम बेलगाम जश्न है।खेती का काम तमाम है तो कारोबार भी मौत का सबब है।गजब है।
भारत के संघीय ढांचा् को तोड़कर एक देश एक कर के नाम राज्यों के राजस्व आय की खुली डकैती करके उन्हें गुलाम कालोनियों में तब्दील किया जा रहा है।
केंद्र के पैकेज ,सीबीआई,ईडी जैसी एजंसियों जैसी मेहरबानी पर क्षत्रपों की आत्मरति अब लोकतंत्र है।बाकी वोटबैंक है।
सारा तंत्र एकाधिकार कारपोरेट कंपनियों के लिए है जिसके तहत डिजिटल इंडिया में किसानों, मेहनतकशों और कर्मचारियों, छात्रों, युवाओं और स्त्रियों-बच्चों के साथ साथ खुदरा,छोटा और मंझौला कारोबारियों और वैसे ही उद्योगों का सफाया हो जाना है।
यह चूंचूं का मुरब्बा जीएसटी क्या बला है,कर छूट के गुब्बारों के फूटने के बाद ही पता चलेगा।
फिलहाल सहमति और विरोध का पाखंड संसदीय लोकतंत्र है।
भारत के सुधारों में सबसे बड़ा सुधार शायद राजनीतिक दलों की कारपोरेट फंडिग है।
सारी राजनीति कारपोरेट फंडिंग से होती है तो कारपोरेट हितों के मुताबिक ही राजनीति चलेगी चाहे वोटबैंक समीकरण के लिए किसी दलित को राष्ट्रपति चुनने की मजबूरी हो और आदिवासियों, दलितों,पिछड़ों,स्त्रियों और मुसलमानों को भी सत्ता में हिस्सेदारी का अहसास दिलाना जरुरी हो।
होगा वहीं जो कारपोरेट हित में हो।यही संसदीय सहमति है।
इसी के मुताबिक न्याय पालिका और मीडिया की भूमिका तय हो गयी है।दुनिया भर के सभ्य देशों में नागरिकों के लिए नागरिक और मानवाधिकार की रक्षा करने के माध्यम मीडिया और न्यायपालिका है,जिन पर  कानून का राज बहाल रखने के साथ साथ समानता और न्याय की जिम्मेदारी है,जिन्हें पीडितों की सुनवाई करनी है।इसका उलट सबकुछ हो रहा है।
मीडिया पूरी तरह कारपोरेट हैं और न्यायपालिका भी पूरीतरह सत्ता के साथ है।
नागरिक का उसके आधार नंबर के सिवाय कोई वजूद ही नहीं है।गुलामी से बदतर यह आजादी की खुशफहमी और सुनहले ख्वाबों का तिलिस्म है।हम सिर्फ किस्मत के हवाले हैंं।बाकी कत्ल हो जाने का इंतजार।
बहरहाल इन अभूतपूर्व सुधारों के साथ भारत में जारी आत्मघाती हिंसा और दंगाई माहौल की वजह से इस गोलमेज सम्मेलन का नतीजा यह निकला कि प्रधान स्वयंसेवक के न्यौते पर महाबलि ट्रंप की अखबारों की सुर्खियों में अपनी मुस्कान और कारनामों के लिए छायी रहने वाली बेटी इवंका के नेतृत्व में अमेरिकी उद्योगपतियों का एक दल भारत आने वाला है।सुनहले दिनों के सबसे सुनहले संकेत यही हैं।
बाकी सुनहला केसरिया है।हिंदुत्व का रंग केसरिया है,ऐसा वैदिकी साहित्य में कहीं लिखा नहीं है।
बहरहाल अंध हिंदुत्व राष्ट्रवाद के दृष्टि अंध नागरिकों को सावन के अंधों को हरा ही हरा दीखने की तर्ज पर सबकुछ गेरुआ ही गेरुआ नजर आता है।
गेरुआ ही भक्तों के लिए उनके नजरिये से सुनहला है।
महाबलि ट्रंप से हाथ मिलाकर पाकिस्तान का नामोनिशां मिटाने का प्रधान स्वयंसेवक ने मुकम्मल चाकचौबंद इंतजाम किया है और भारत और अमेरिका दोनों ने माना है कि इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका भारत के साथ है।
जाहिर है कि उनकी इस महान उपलब्धि से उनका ही नहीं भक्तजनों का सीना छप्पन इंच से बढ़कर सीधे दिल्ली वाशिंगटन हवाई मार्ग बनने वाला है।
वीसा चाहे मिले या नहीं मिले।
रेड कार्पेट पर अगवानी हो न हो।
जुबां पर दलील हो न हो तो मातहत सेवा में हाजिर हो।
हिंदुस्तान की सरजमीं पर बीफ के शक में दंगा,बेगुनाहों का कत्लेआम  तो क्या, विदेश में बीफ खाने वालों का आलिंगन गर्मजोशी है और मुस्कान को छू भर लें तो लाख टके का शूट बलिहारी।
बाकी पाकिस्तान और इस्लाम के खिलाफ युद्धोन्माद के सिवाय प्रधान स्वयंसेवक महाबलि से मिलकर क्या साथ लाये हैं,उसके लिए सात परमाणु रिएक्टर और हथियारों और तकनीक की शापिंग लिस्ट लाइव है।
गौरतलब है कि इस युद्धोन्मादी राष्ट्रवाद की सुनामी में रोज भारत में मजहबी पहचान की वजह से शक और आरोप के बिना बेगुनाह लोग भीड़ के हाथों मारे जा रहे हैं।इस पर मौन है तो किसानों की थोक खुदकशी पर उपवास है और घुंघट की सरकार एक तरफ,दूसरी तरफ बलात्कार सुनामी है और अखंड पितृसत्ता में रोमियो तांडव की बजरंगी बहार।
आईटी सेक्टर में  महाबलि ट्रंप की नीतियों के लिए गहराते संकट और लाखों करोडो़ं छात्रों युवाओं के भविष्य पर गहराते अंधेरे के लिए अमेरिका से आयातित परमाणु उर्जा संयंत्रों से कितनी रोशनी मिलेगी और कितनी तबाही,हमें नहीं मालूम।
महाबिल ट्रंप के इस्लामविरोधी जिहाद मौसम में अमेरिकी नीतियों में भारतीयों के लिए भारत और अमेरिका में रोजगार और आप्रवासी भारतीयों के रोजगार जानमाल की गारंटी के बारे में क्या बातचीत हुई, न मीडिया में इसका कोई ब्यौरा है और न संयुक्त घोषणापत्र में कोई उल्लेख।
वीसा समस्या पर क्या बात हुई,हुई भी या  नहीं,यह भी किसी को नहीं मालूम।
इससे बजरंगियों को खास परेशान होने की जरुरत नहीं है।
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए अपढ़,अधपढ़,पढ़े लिखे,योग्य अयोग्य हर तरह के स्वयंसेवकों की भरती हिंदू सेना के नानाविध बटालियनों में हो रही है।उन्हें रोजगार की चिंता नहीं होगी।हिंदू राष्ट्र के मकसद से ढोल गवांर पशु शूद्र नारी सारे ताड़न के अधिकारी किसी भी पद पर तैनात किये जा सकते हैं ताकि बकरी का गला रेंतने से पहले वैदिकी कर्मकांड की रस्म अदायगी हो जाये।
नरबलि भी वैदिकी कर्मकांड है और वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।
मुश्किल है उनके लिए जो बजरंगी नहीं हैं।
जो बजरंगी नहीं है,उनके लिए इस मुल्क में अब कोई मौके नहीं हैं।फिर दंगाई राजकाज के मुताबिक उन्हें जीने का कोई हक भी नहीं है।बजरंगी सेना उनका हिसाब किताब करने लगी है।
इतने लोग मारे जा रहे हैंं और आगे मारे जाते रहेंगे कि गिनती मुश्किल हो जायेगी।नाम धाम तक दर्ज नहीं होने वाला है।
जलवायु करार के प्रति प्रतिबद्धता का शोर मचाने वाले प्रधान स्वयंसेवक ने आतंकवाद के अलावा  जलवायु और पर्यावरण के साथ विश्वनेताओं के बीच  आम तौर पर जिन मसलों पर ऐसे मौकों पर चर्चा  होती है,उनमें से किस किस मुद्दे पर क्या क्या बातें की हैं,उसका अभी खुलासा नहीं हुआ है।
गौरतलब है कि अमेरिका के आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का नाम ट्रंप जमाने में अब इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ युद्ध है और भारत इस युद्ध में इस्लाम के खिलाफ अमेरिका के साथ।चूंकि भारत और अमेरिका, महाबलि ट्रंप और प्रधान स्वयंसेवक दोनों को लगता है कि आतंकवाद इस्लामी है और इस इस्लामी आतंकवाद को जड़ से समाप्त कर दिया जाये तो दुनिया भर में अमन चैन कायम हो जायेगा। मीडिया के मुताबिक महाबलि के साथप्राधान स्वयंसेवक  के बिताये अंतरंग पलों का सार यही है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने में अमेरिका भारत के साथ है।
भारत अमेरिका संयुक्त घोषणापत्र पर गौर करेंः
मीडिया के मुताबिक भारत और अमेरिका ने आतंकवाद को प्रश्रय देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकल्प लेने के साथ ही पाकिस्तान से मुंबई और पठानकोट आतंकी हमलों के दोषियों को कानून के शिकंजे में लाने की कार्रवाई तेज करने करने को कहा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच यहां हुई बैठक के बाद जारी संयुक्त घोषणा पत्र में  ट्रंप ने कहा, “भारत और अमेरिका दोनों आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित रहे हैं, हम कट्टर इस्लामिक आतंकवाद को जड़ से मिटाने का संकल्प लेते हैं।”
मीडिया के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति ने पड़ोसी देश पाकिस्तान से मुंबई और पठानकोट में हुए आतंकी हमलों के दोषियों को कानून के शिकंजे में लाने की कार्रवाई तेज करने काे कहा।

संयुक्त बयान के मुताबिक परमाणु अप्रसार के क्षेत्र में भारत के साथ वैश्विक साझेदार बने अमेरिका ने परमाणु आपूर्तिकता समूह (एनएसजी), वासेनार व्यवस्था और रासायनिक एवं जैविक हथियारों से संबंधित प्रौद्योगिकियों के निर्यात नियंत्रण पर लगाम लगाने के उद्देश्य से बनाये गये अनौपचारिक समूह ‘आस्ट्रेलिया ग्रुप’ में भारत की सदस्यता की दावेदारी का पुरजोर समर्थन भी किया।

Monday, June 26, 2017

GNLF opts for suicide squads as RSS openly supports Gorkhaland while Sikkim is cut off from rest of India and subjected to Chinese intervention! Palash Biswas

GNLF opts for suicide squads as RSS openly supports Gorkhaland while Sikkim is cut off from rest of India and subjected to Chinese intervention!
Palash Biswas
Bigger trouble in Darjeeling Hills as well as Sikkim.It rather seems very dangerous for the unity and integrity of India.GNLF opts for suicide squades as Ei Samay and Anand Bazar patrika reported this morning as 

`Will fight for Gorkha community’s revival till death, says GJM chief Bimal Gurung'

Gurung has called to intensify the protests for a 

separate Gorkhaland, saying the shutdown in 

Darjeeling will continue indefinitely.


As China stopped Kailash Mansarovar Yatra quoting border dispute and meanwhile Chinese army intruded in Sikkim and destroyed two bunkers.

The Prime minister of India claims seven thousand reforms within three years to boost the image of Indian economy so that US and US companies might be interested to purchase Jal Jangal Jameen in India and natural resources in the best interest of Class caste hegemony ruling India.

The Hindutva agenda is based on hatred and violence.To invoke blind nationalism of Hindutva,Modi joins Trump in his war against terror and both targets the heaven of terror,Pakistan.

It might be the diplomacy as well as politics of Dalit apeeasing OBC Hindutva or caste Hindu psyche but national security is seriously threatened as Sikkim is virtually cut off from rest of India thanks to RSS supported Gorkhaland Movement and the divide and rule policies of the centre and state governments as well.

Media reports that on Monday evening, miscreants set ablaze the house of Rajen Betiwal, chairman of the West Bengal Khas Cultural Development Board, at Paiyun Bustee in Kalimpong, police said. His three cars were also vandalised.
Worser for the livelihood,bread and butter of the people stranded in hills as they are the native people and has no place to go as  the tourism sector in Darjeeling is waiting for a shattered and frozen festive business, as the trade fears the political uncertainty and violent protests over the Gorkhaland statehood demand to hurt tourist arrivals during the September.Darjeeling hill has not recovered from the loss of eighties.Now,its absic economy of tea gardens have also shuttered down and no body is concrned with continuous death processions in tea gardens which employs the Gurkha majority.

Betiwal told  that his wife and son were inside the house when 12 to 13 persons set the house on fire.
Betiwal’s wife and son managed to flee.
The GJM has been alleging that 15 development boards were set up for various ethnic communities by the West Bengal chief minister Mamata Banerjee to weaken Morcha.
In an earlier incident of violence, three GJM supporters died on June 17 in Darjeeling after security forces opened fire as agitators clashed with them.
Bengal Bjp President Dilip Ghosh time and again,expressed his support to Gorkhaland separate state quoting BJP olicy for smaller states.Now BJP leadership meets in Delhi with its state leadership represented by hardcore RSS hatred campaign master Dilip Ghosh.

While bigger trouble waits in Darjeeling hills,BJP has already demanded that Bengla CM Mamata Banerjee should ask Gorkhaland people apology which means to invoke Gorkhas as well as Bengali nationalism for unprecedented civil war.However,Eid was a n instant relief as the Darjeeling hills on Monday remained incident-free and the GJM allowed a 12-hour bandh relaxation in view of the Eid-ul-Fitr, which was celebrated by Muslims on a low key amidst patrolling of the streets by the security forces.

The ultimate war begins from today with the entrance of Gurkha Suicide squads.ZThe symptoms are very grim .For instance,the Hills returned to violence on Monday, after a one-week lull, with suspected Gorkha Janmukti Morcha supporters setting on fire the house of a development board chairperson who had attended a meeting convened by the Bengal ...

A counter Anti Gorkha movement has been launched in Siliguri which should get wind to turn in Tsunami and it has become Bengali V/S Gorkha civil war thanks to governments of India and Bengal.

Now,GNLF has launched a hunger strike movement and declared to opt for suicide squads.

Throwing a challenge to the West Bengal government, the Gorkhaland Janmukti Morcha (GJM) chief Bimal Gurung on Friday said the ongoing protest in the north Bengal hills would intensify, and vowed to fight for the community’s “revival” till death,media reports.
BJP led by its MP from darjeeling, fails no opportunity to provoke tension.Look!
The BJP does not support GJM’s demand for creation of a separate state, the party’s national general secretary Kailash Vijayvargiya made it clear once again. However, Vijayvargiya said that West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee should apologise to the people of the Darjeeling hills for her failure to address their need for development.
“I do not support the creation of Gorkhaland, but I do support the development of the Gorkha people and their culture and heritage,” Vijayvargiya said yesterday participating in a Rathayatra programme.
“The state government has created Gorkha Territorial Administration (GTA) to address the need for development of the hill people. But, the state government did not meet their expectations,” he had said.
Vijayvargiya also alleged that the Mamata Banerjee government failed to give the hill people financial as well as administrative rights.
“This is why Gorkhas have grudge against the chief minister and as a result they resorted to organising protest movements,” Vijayvargiya had said. State BJP president Dilip Ghosh had said earlier that the creation of states on the basis of ethnicity and language would divide the country into pieces.
“We did not raise any objection when it came to the creation of states like Jharkhand, Chhattisgarh and Telangana. But we can never support the demand to turn a village or municipal corporation into a state,” he said.
“We do not support the demand for creation of a state on the basis on ethnicity or language of the people. If such things happen, then the country will be divided into pieces,” Ghosh had said.
Gurung, who resigned as the Gorkhaland Territorial Administration (GTA) chief executive along with other elected members of the body on Friday, said, “The agitation for Gorkhaland will continue. We have resigned from the GTA. Our one point demand is Gorkhaland.”
“I want to request everyone to participate in the movement for Gorkhaland from their heart. I will fight for the revival of our community till I have the last drop of blood in my body,” the GJM chief said amid loud cheers from his followers.
Appearing before media for the first time since a police raid at his residence on June 15, Gurung said, “I am not Kishenji (Maoist leader) who can be eliminated in a police encounter. I have not taken up arms against the country. I am fighting for the identity of the Gorkhas and in a democracy I have every right to do that.”
“The shutdown will continue indefinitely. No one knows when it will end. No relaxations will be given this time,” he added.
Alleging that the police had opened fire in the hills on June 17 in which three GJM activists were killed, Gurung said, “We (the GJM) have the video footage of the incident. I demand a CBI inquiry.”
Taking a swipe at chief minister Mamata Banerjee for claiming involvement of terrorists in the Darjeeling agitation, Gurung said the terrorists and bomb-making factories were in the plains of Bengal, not in the hills
“She should be asked where are terrorists and bomb factories found? In south Bengal or here in Darjeeling,” Gurung said.
“There have been incidents of riots in Howrah and Malda, but not a single incident in the hills. We are a peace-loving people,” he said.
Announcing en masse resignation of 43 GJM leaders from the GTA, Gurung said there would be no fresh GTA elections this time and vowed to disrupt the process, if initiated.
Now pl read Anand Bazar Patrika report:

আত্মহননের হুমকি মোর্চার

নিজস্ব সংবাদদাতা

একে তো চাপে পড়ে জিএনএলএফ আর জন আন্দোলন পার্টির সঙ্গে আন্দোলনের মঞ্চ ভাগ করতে হচ্ছে। তার উপরে অনির্দিষ্টকালের বন্‌ধ চালিয়ে গেলেও দিল্লির দিক থেকে কোনও ইতিবাচক ইঙ্গিত এখনও নেই। ক্রমেই খালি হচ্ছে পাহাড়ের ভাঁড়ার। এই অবস্থায় মরিয়া মোর্চার হুঁশিয়ারি, প্রয়োজনে তারা আমরণ অনশন বা আত্মঘাতী আন্দোলনে নামবে এ বার।
মোর্চা সূত্রে খবর, এই চাপ আসলে বাড়াচ্ছে দলের তরুণ প্রজন্ম। এ দিন তাদের চাপেই যুব সংগঠনের জেলা সভাপতি প্রকাশ গুরুঙ্গ দলীয় দফতরে সাংবাদিকদের বলেন, ‘‘আমাদের আলাদা রাজ্যের দাবি আদায়ের জন্য আন্দোলন তীব্র করা হবে। সে জন্য আমরণ অনশনের কথা ভাবা হয়েছে। প্রয়োজনে আমাদের সদস্যরা গায়ে আগুন দিয়ে জীবন বিসর্জন দিতেও তৈরি হচ্ছে।’’
পুলিশ-প্রশাসনের একটি অংশের আশঙ্কা, এই মরিয়া ভাব বজায় থাকলে গুন্ডামি বে়ড়ে যেতে পারে। এ দিনই খাস সম্প্রদায়ের প্রধান রাজেন্দ্র বেটোয়ালের বাড়িতে আগুন লাগিয়ে দেওয়া হয়। অভিযোগ, এর পিছনে রয়েছে মোর্চার সদস্যরাই। কালিম্পঙের আলগারায় রাজেন্দ্রর বাড়ি। প্রশাসনের একটি অংশ বলছে, এই প্রথম কোনও সম্প্রদায়ের প্রধানের বাড়িতে আগুন দেওয়া হল। এর থেকেই বোঝা যাচ্ছে, মোর্চার মধ্যে মরিয়া ভাব বাড়ছে। এই পরিস্থিতিতে মিরিকে তৃণমূলের কাউন্সিলাররা বিপদের মুখে। পাহাড়ের প্রথম সারির তৃণমূল নেতারাও আক্রান্ত হতে পারেন। কিছু ক্ষেত্রে পাহারা বাড়ানোও হয়েছে।
গায়ে আগুন দিয়ে আত্মঘাতী হওয়ার প্রবণতা ২০১৩ সালেও দেখা গিয়েছিল। পুলিশের এক কর্তা এ কথা জানিয়ে বলেন, তবে এই ঘটনা বেশি ছড়ায়নি। এর পরে আলোচনার মাধ্যমে আন্দোলনের তীব্রতা স্তিমিত হয়েছিল। এ বারও ভাবনাচিন্তা শুরু হয়েছে। সরকারি সূত্রের খবর, পাহাড়ের সাম্প্রতিক পরিস্থিতি নিয়ে পাহাড়ে সদ্য নিযুক্ত
পুলিশকর্তাদের পক্ষ থেকে একটি রিপোর্ট নবান্নে পৌঁছেছে। সেখানে মোর্চা-সহ পাহাড়ের দলগুলির সঙ্গে আলোচনার ক্ষেত্র তৈরির প্রসঙ্গ রয়েছে।
মোর্চার খবর, দিল্লিতে তেমন সাড়া না মেলায় তাঁদের একাংশও পাহাড়ের সব দলকে সামনে রেখে আলোচনার বাতাবরণ তৈরির কথা ভাবছেন। সব ঠিক থাকলে ২৯ জুন মোর্চার ডাকা সর্বদল বৈঠক থেকে ক’দিনের জন্য বন্‌ধ শিথিল করে আলোচনার ক্ষেত্র প্রস্তুত হতে পারে বলে আশা করছেন পাহাড়ের রাজনীতি সম্পর্কে অভিজ্ঞদের অনেকেই।
কারণ, সমতলেও যে চাপ বাড়ছে। মোর্চার এক নেতা একান্তে জানান, রবিবার শিলিগুড়িতে বাংলা ভাগের বিরুদ্ধে যে স্বতঃস্ফূর্ত মিছিল হয়েছে, তাতে বিমল গুরুঙ্গদের উপরে চাপ আরও বেড়ছে। তাঁরা বুঝতে পারছেন, এখনকার পরিস্থিতি অতীতের থেকে আলাদা। শিলিগুড়িতে আবার ৩০ তারিখ মিছিলের ডাক দেওয়া হয়েছে। এই অবস্থায় ২৯শে পাহাড় থেকে বন্‌ধ শিথিলের বার্তা দিলে উত্তেজনা কমতে পারে।
আর আলোচনা? মোর্চা এখনও বলছে, গোর্খাল্যান্ড ছাড়া আর কোনও বিষয়ে তারা কথা বলবে না। গোর্খাল্যান্ডের দাবি নিয়ে পথে নেমে পড়েছে জিএনএলএফ, জন আন্দোলন পার্টির মতো পাহাড়ের অন্য দলগুলিও। উল্টো দিকে, রাজ্যের পর্যটনমন্ত্রী গৌতম দেব বলেছেন, ‘‘আমরা বরাবরই বলছি, অশান্তির রাস্তা ছাড়তে হবে। তার পরে আলোচনায় বসে সমস্যা মেটাতে হবে। পাহাড়-সমতলের মধ্যে কোনও বিভেদ আমরা চাই না। কোনও মূল্যে তা হতেও দেব না।’’
http://www.anandabazar.com/state/gorkha-janmukti-morcha-leaders-started-an-indefinite-hunger-strike-across-the-hills-1.634379?ref=hm-ft-stry
দার্জিলিং ও শিলিগুড়ি ২৭ জুন, ২০১৭, ০৫:২৮:০৮