कभी ना कहना फासीवाद!
पलाश विश्वास
भक्तजनों के लिए खुशखबरी है कि भारत अमेरिकी उपनिवेश के मुक्तबाजार में तब्दील होने के बावजूद हिंदू राष्ट्र नहीं बन सका लेकिन अमेरिका में हिंदुत्व की जयजयकार है क्योंकि जैसे पाकिस्तान का मतलब हिंदुतस्तान के किलाफ फौजी इस्लामी हुकूंत की तर्ज पर हिंदुत्व का मतलब मुसलमानों,दलितों और बहुजनों, शरणार्थियों और मेहनतकशों का एकमुश्त सफाया है तो नागपुर मुख्यालय और तेलअबीब के जायनी हिंदुत्व गठजोड़ की वजह से 2020 और 2030 से पहले ही अमेरिका हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा है।
अमेरिका में अंतिम चरण के चुनाव प्रचार में डेमोक्रैट उम्मीदवार हिलरी क्लिंटन और रिपब्लिकन ट्रंप के बीच अब इकॉनमी अहम मसला बन गई है। वहीं, शनिवार को ट्रंप के बेटे के एक आरती में हिस्सा लेने से उनके कैंपेन में हिंदू प्रतीकों के इस्तेमाल का एक और घटक जुड़ गया है।ग्लोबल हिंदुत्व का यही हमारा राष्ट्रवाद है।जिसे सार्वभौम बनायेंगे महान धर्मयोध्दा डोनाल्ड ट्रंप।
अब इसकी कोई क्यों चिंता करें कि डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका इस वक्त नौकरियों की सबसे बड़ी चोरी से जूझ रहा है और ये नौकरियां भारत और चीन में जा रही हैं।दरअसल अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर वोटरों के वोट निर्णायक हैं,यह बातभी अर्थव्यवस्था से बेखबर हम भारतीयों की समझ में नहीं आने वाली है।
बहरहाल, हर हाल में बाजी नागपुर तेल अबीब गठबंधन के हक में है।क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप जीते तो अमेरिका में मुसलमानों का सफाया है और मैडम हिलेरिया जीतीं तो दुनियाभर में मुसलमानों का सफाया है।बहरहाल राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार विवादों के कारण डोनाल्ड ट्रंप को ज्यादा नुकसान हुआ है, हिलेरी को कम। अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा ये तो आठ नवंबर को होने वाले मतदान के नतीजे आने पर पता चलेगा। फिलहाल हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप उन निर्णायक मतदाताओं को आखिरी पलों में रिझाने की कोशिश कर रहे हैं जो आखिरी पलों में किसी पार्टी के पक्ष में वोट डालने का मन बनाते हैं।
हिलेरी अपनी मामूली चुनावी सर्वेक्षण बढ़त के साथ बियोंस और केरी पेरी की सप्ताहांत पॉप कार्यक्रमों की मेजबानी कर रही हैं वहीं ट्रंप ने लोवा, मिनेसोटा, मिशिगन, पेन्नसीलवानिया, वर्जीनिया, फ्लोरिडा, उत्तर कैरोलिना और न्यू हैम्पशायर होते हुए कई शहरों का तूफानी दौरा शुरू किया है। ताजा स्तित यही है कि रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन के मुकाबले अपनी स्थिति को लगातार मजबूत किया है। मतदान के लिए 48 घंटे से भी कम का समय रह जाने पर कहा नहीं जा सकता कि सेहरा किसके सिर पर बंधेगा।
मजा यह है कि ट्रंप लगातार भारतीय मूल के वोटरों का दिल जीतने में लगे हुए हैं। इसके लिए ट्रंप हिंदू संगठनों के कार्यक्रम में शामिल होने से लेकर मोदी सरकार की तारीफ करने तक, हसंभव कोशिश कर रहे हैं। पर हफिंगटन पोस्ट और सीवोटर का सर्वे ट्रंप की इस आकांक्षा को धूमिल कर रहा है। हालिया सर्वे के मुताबिक भारतीय मूल के वोटरों की पसंद हिलरी क्लिंटन हैं, न कि ट्रंप। सर्वे के मुताबिक भारत और अमेरिका, दोनों जगह रहने वाले ज्यादातर भारतीय हिलरी क्लिंटन के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं।
यही नहीं,ट्रंप लगातार भारतीय मूल के वोटरों का दिल जीतने में लगे हुए हैं। इसके लिए ट्रंप हिंदू संगठनों के कार्यक्रम में शामिल होने से लेकर मोदी सरकार की तारीफ करने तक, हसंभव कोशिश कर रहे हैं। पर हफिंगटन पोस्ट और सीवोटर का सर्वे ट्रंप की इस आकांक्षा को धूमिल कर रहा है। हालिया सर्वे के मुताबिक भारतीय मूल के वोटरों की पसंद हिलरी क्लिंटन हैं, न कि ट्रंप। सर्वे के मुताबिक भारत और अमेरिका, दोनों जगह रहने वाले ज्यादातर भारतीय हिलरी क्लिंटन के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं।
इस चुनाव नतीजे से कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है और हालाते जैसे बन रहे हैं,भारत हो या न हो,अमेरिका का हिंदू राष्ट्र बनना तय है।अमेरिका और रूस की मेहरबानी से हिंदू ग्लोब का एजंडा भी बहुत मुश्किल नहीं है।यही हमारा वाम दक्षिण राष्ट्रवाद है तो यही अब अंबेडकरी मिशन का बहुजन राष्ट्रवाद भी है।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता गूंगों बहरों का संवैधानिक अधिकार भले हों,हकीकत में जब हम अपने हक हकूक के लिए भी लड़ने के लिए तैयार नहीं है तो लिखने बोलने की आजादी हमें क्यों चाहिए!कभी ना कहना फासीवाद!
एकदम ताजा खबर यह है कि रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ''भारतीय संप्रभुता और परंपराओं के प्रति सम्मानजनक रुख रखेंगे लेकिन दुनिया भर में ऐसी सरकारों का समर्थन नहीं करेंगे जहां महिलाओं को दबाया जाता है और उनके प्रति सम्मानजनक नजरिया नहीं रखा जाता।'' यह पहेली बूझनेजैसी बात ट्रंप के चुनाव अभियान की प्रमुख केलीएन कोनवे ने NDTV से खास बातचीत में कही।वही एनडीटीवी जिसपर एकदिन का प्रतिबंद लगा है।लेकिन लगता है कि ट्रंप ने इस प्रतिबंध के बारे में अपने उच्च विचार प्रकट नहीं किये हैं।भारत में भी लोग कमोबेश खामोश हैं।
मुश्किल यह है कि भारत की संस्कृति कभी नरसंहार की संस्कृति नहीं रही है।विदेशी नस्लों ने मूलनिवासियों को बार बार पराजित किया है लेकिन उनका वह अश्वमेधी वैदिकी हिंसा उत्तर अमेरिका मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में काबिज श्वेत विदेशियों की अनंत रंगभेदी नरसंहार के मुकाबले निहायत शाकाहारी है।वैज्ञानिक तथ्यों से प्रामाणित है कि अटूट वर्ण व्यवस्था और वंशगत जन्मजात जाति व्यवस्था के बावजूद,लगातार विदेशी नस्लों की घुसपैठ के बावजूद तथागत गौतम बुद्ध की क्रांति से पहलसे कोई दो हजार साल पहले भारतीय जनता के खून में एकत दूसरे से कोई फर्क नहीं है।
गोरापन की अंधी दौड़ चाहे जितनी अश्लील और उत्कट है,दुनियाभर में सारे भारतीय अश्वेत हैं।अमेरिका की तरह भारत में श्वेत बिरादरी कोई नहीं है हांलांकि रक्त की शुद्धता हमारा धर्म कर्म है लेकिन हमारा लोकसंसार सहिष्णुता और बहुलता का निरंतर महोत्सव है जो अब भी मुक्त बाजार का कार्निवाल पर भारी है।
हमारी मातृभाषाएं और जनपदों की बोलियां अभी विलुप्त नहीं हुई है।जाहिर है कि इसीलिए हिंदू राष्ट्र या इस्लामी राष्ट्र भारत उसी तरह नहीं बन सकता जैसे महान सम्राट अशोक और सम्राट कनिष्क के बुद्धमय भारत भी कभी धर्मराष्ट्र नहीं रहा है।हमारा यह लोकसंसार ही हिंदू राष्ट्र के खिलाफ है।
मुश्किल यह है कि सिंधु सभ्यता की निरंतरता अभी जारी है।सालाना रावणवध और असुरवध के बावजूद उनके अनार्य वंशज अब भी भारत के बहुजन हैं जिनका आर्यों ने यथासंभव हिंदुत्वकरण कर दिया है और जो हिंदू हीं बने,वे आदिवासी भी हजारों साल से अपने वदूद,जल जंगल जमीन की लडा़ई जारी रखे हुए हैं।
वैदिकी काल में भारत हिंदू राष्ट्र नहीं बना।ब्राह्मण धर्म के वर्चस्व के बावजूद भारत हिंदू राष्ट्र नहीं बना।
मुहम्मद गोरी के भारत विजय के बाद पलाशी के युद्ध तक करीब सात सौ साल के इस्लामी निरंकुश राजकाज के दौरान भी भारत इस्लामी राष्ट्र नहीं बना और न हिंदुओं का सफाया हुआ।
दो सौ साल की ब्रिटिश हुकूमत के दौरान न हम अंग्रेज बने और न छिटपुट धर्मांतरण के बावजूद यूरोप और अमेरिका की तरह भारत ईसाई बना।
भारतीय लोकतंत्र में पद और गोपनीयता की शपथ किसी धर्मस्थल पर नहीं ली जाती और स्वतंत्र भारत का घोषित लक्ष्यभी न्याय और समता है तो पांच साल का चुनाव जीतकर कौन माई का लाल इसे धर्म राष्ट्र बना सकता है!
फिरभी धर्मराष्ट्र के नाम राम की सौगंध में जो देशभक्ति का जन्म हुआ है,उससे हजारों साल की सहिष्णुता और विविधता बहुलता निशाने पर है और यह हमलावर राष्ट्रवाद हिंदुत्व का एजंडा है।जिसे केंद्रित पक्ष विपक्ष की राजनीति है और उसी राजनीतिक समीकरण के मद्देनजर राष्ट्रवाद की नई परिभाषा है।देशभक्ति का यह अभूतपूर्व नरसंहारी सौदर्यबोध है जिसके शिकंजे में सारे माध्यम और विधायें हैं।
कभी ना कहना फासीवाद!मेहनतकश आम जनता के हाथ पांव सर काट लिये जायें,आदिवासी भूगोल में कत्लेआम हो जाये,देश के चप्पे चप्पे पर बेलगाम स्त्री आखेट जारी हो,जनता बुिनियादी जरुरतों और सेवाओं की क्या कहें गैस चैंबर में कैद अनाज और हवा पानी के भी मोहताज हो जाये और इंडिया गेट पर किसी लापता छात्र की मां और बहन को पुलिस घसीटें,पीटे,बेइज्जत करें,दलितों बहुजनों पर अत्याचारों की सुनामी जारी रहे,जल जंगल जमीन मानवाधिकार आजीविका रोजगार नागरिकता से अनंत बेदखली अश्वमेध के बावजूद कभी ना कहना फासीवाद!
क्योंकि बहुमत का राज है।क्योंकि बहुमत का धर्मराष्ट्र बनाने का पवित्र एजंडा का यह राजकाज है और रक्त की शुद्धता का रंगभेदी वर्चस्व का अनुशासन हमारा राष्ट्रवाद है।आम जनता के हकहकूक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक हैं।पीड़ित उत्पीड़ित दमन और नरसंहार के शिकार अल्पसंख्यक और बहुजनों की नागरिकता संदिग्ध हैं,इसलिए वे और उनके साथ खड़े तमाम लोग राष्ट्रद्रोही है।कभी ना कहना फासीवाद!
क्योंकि तुर्की जैसे आधुनिक राष्ट्र जहां धर्म इस्लाम है लेकिऩ आधुनिकता अमेरिका और यूरोप के टक्कर की है,जहां भाषा की लिपि रोमन,आटोमन,वैजंतिया और यूरोपीय साम्राज्यवाद के शिकंजे से आजाद होने के बाद रोमन लिपि में हैं और जहां स्त्री यूरोप और अमेरिका की तरह आजाद है लेकिन ग्रामीण समाज और जनपदों की संस्कृति कमोबेश शक आर्य अतीत की तरह सामाजिक और पारिवारिक तौर पर अटूट है।वहां भी फेसबुक,ट्वीटर और तमाम सोशल मीडिया प्रतिबंधित हो गया है राष्ट्र की सुरक्षा के बहाने और सैन्य अभ्युत्थान के बाद अखबार और टीवी पर सेंसरशिप है तो सैकडो़ं पत्रकार गिरफ्तार है।सबकुछ वहां भी राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हो रहा है।कभी ना कहना फासीवाद!
गौरतलब है कि तुर्की या तुर्किस्तान यूरेशिया में स्थित एक देश है। इसकी राजधानी अंकारा है। इसकी मुख्य- और राजभाषा तुर्की भाषा है। ये दुनिया का अकेला मुस्लिम बहुमत वाला देश है जो कि धर्मनिर्पेक्ष है। ये एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है।भारत की तरह लोकगणराज्य तुर्की में हालात ये हैं कि तुर्की की सरकार ने जुलाई में ताख्तापलट की कोशिश में शामिल होने के शक में 10 हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। इन सभी के खिलाफ अमेरिका में बसे धार्मिक नेता फतुल्लाह गुलेन के साथ रिश्तों के शक में कार्रवाई की गई है।
ताख्तापलट की कोशिश के पीछे तुर्की की सरकार गुलेन को ही जिम्मेदार मानती है। जिन लोगों को नौकरी से निकाला गया है उनमें ज्यादातर एकेडमिक्स, टीचर या हेल्थ वर्कर हैं। इतना ही नहीं, 15 मीडिया आउटलेट्स को भी बंद कर दिया गया है। तुर्की के विश्वविद्यालयों में रेक्टर पद के लिए चुनाव होते थे, लेकिन सरकार ने अब चुनाव को खत्म कर दिया गया है।तो क्या हम तुर्की की तरह भारत में भी हूबहू वहीं करें?गौरतलब है कि तुर्की सरकार ने अपनी जांच में ये पाया कि बर्खास्त अधिकारी और मीडिया संस्थान अमेरिका समर्थित धर्मगुरु फतुल्ला गुलेन को समर्थन देते थे।
इससे पहले तुर्की सरकार पहले भी एक लाख से ज्यादा कर्मचारियों को या तो निलंबित या बर्खास्त कर दिया है।यह सबकुछ राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हो रहा है।
गौरतलब है कि सीरिया के युद्ध में तुर्की भी बेहद उलझ गया है।सीरिया युद्ध की वजह से वहां आंतरिक सुरक्षा को लेकर सत्ता पक्ष और आम जनता के बीच टकराव को जो नतीजा है,हम उसी तरफ बढ़ रहे हैं।कभी ना कहना फासीवाद!
राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर मीसा लागू करके जिन देशभक्त संघियों को इंदिरा गांधी के आपातकाल में गिरफ्तार किया गया था,सत्तर के दशक के जेपी आंदोलन से लेकर सिखों के नरसंहार ,गुजरात नरसंहार के रामजन्मभूमि आंदोलनके मुक्तबाजार में वे ही अब राष्ट्र के कर्णधार हैं और वे भी इंदिरा के आपातकाल को लागू कर रहे हैं और उनका राष्ट्रवादी भी मैडम हिलेरी और डोनाल्ड ट्रंप ,राष्ट्रपति पुतिन के मुसलमान विरोधी तेलअबीब का राष्ट्रवाद है और यही 2020 तक हिंदू राष्ट्र और 2030 तक हिंदू ग्लोब बनाने का पवित्र एजंडा है तो आपातकाल और प्रेस सेंसरशिप का शुद्धिकरण हो गया है और हिंदुत्वकरण से लेकर जायनीकरण की वैदिकी रस्म अदायगी भी हो गयी है और यही राष्ट्र की सुरक्षा में है तो देशभक्तो,कभी ना कहना फासीवाद!
मनुस्मृति अनुशासन का हिंदुत्व लागू करने का यह आपातकाल है,जिसे कमारेड लोग फासीवाद मानने को तैयार नहीं हैं और मनुस्मृति दहनका उत्सव माने वाले दलित और बहुजन भी इस फासीवादी आपातकाल के किलाफ मोर्चाबंद लोगों की जाति और धरम की शिनाक्त करते हुए अपना बहुजन राष्ट्रवाद को उसीतरह भगवा राष्ट्रवाद में एकाकार करने में लगा है,जैसे बाबासाबहेब अंबेडकर और उनके एजंडा का भगवाकरण हुआ है।कभी ना कहना फासीवाद!
तुर्की जब सोशल मीडिया पर रोक लगा सकता है राष्ट्रहित में और सैकडो़ं पत्रकार को गिर्फतार कर सकता है तो किसी कारपोरेट टीवी चैनल के प्रसारण पर एक दिन के प्रतिबंध के खिलाफ मोर्चाबंदी बहुजन राष्ट्रवाद के खिलाफ भी है क्योंकि निशाने पर जो पत्रकार है वह न ओबीसी है और न दलित और नही आदिवासी।कभी ना कहना फासीवाद!
सारे अखबार और सारे टीवी चैनल और समूचे सोशल मीडिया पर जबतक सेंसर लागू नहीं हो जाता तबतक हम इंतजार करेंगे इस फैसले का कि यह राष्ट्रहित में माओवाद आतंकवाद दमन के लिए,मुसलमानों के सफाये के लिए अनिवार्य है या नहीं।हमारे मौलिक अधिकार हो या न हों,हमारे नागरिक और मानवाधिकार बहाल रहे या न रहे,लोक गणराज्यभारत का वजूद कायम रहे या न रहे,देशभक्त नागरिकों को चुप ही रहना है।सेना और पुलिस क्योंकि राष्ट्र के सेवक हैं और राष्ट्र के संसाधने से उनका रक्षाकवच है तो सरकार चाहे उसका जैसा इस्तेमाल करें,हमारे लिए खामोसी से बेहतर कुछ नहीं है क्योंकि गूंगे बहरे का कोई दुश्मन होता नहीं है,हम गूंगे बहरे बने रहे तो बेहतर।कभी ना कहना फासीवाद!
क्योंकि भारत 2020 तक हिंदू राष्ट्र बने या न बने,अमेरिका अखंड नस्ली श्वेत वर्चस्व का आयुर्वेदिक विशुद्ध हिंदू राष्ट्र में तब्दील होने जा रहा है चाहे मैडम हिलेरी जीते या फिर डोनाल्ड ट्रंप।अमेरिकी अखबार और मीडिया सत्तापक्ष के साथ है दस्तूर के मुताबिक इसलिए कागज पर अभी मैडम हिलेरी की बढ़त बनी हुई है।लेकिन मुसलमानों का काम तमाम करने के वायदे के साथ श्वेत वर्चस्व के कु क्लास क्लान गिरोह के शिकंजे में फंसा अमेरिकी बहुमत दक्षिणपंथी अति राष्ट्रवादी डोनाल्ड ट्रंप के साथ है और अच्छे दिन के सुनहले ख्वाब के साथ वे अमेरिका फतह कर रहे हैं। मुसलमानों के खिलाफ घृणा करने वाले तमाम धर्मांध लोग उनके साथ हैं।कभी ना कहना फासीवाद!
ट्रंप टैक्स घटाने की बात कर रहे हैं जैसे हमारे यहां टैक्स घटाने का जीएसटी समेत तमाम कर सुधार लागू है।वे आउटसोर्सिंग के खिलाफ हैं और अमेरिकी हाथों को भारत और चीन से छीनकर रोजगार देने का वायदा कर रहे हैं।उन्हें भी इजराइल का साथ मिला है और ग्लोबल हिंदुत्व सिर्फ उन्हीं के साथ है।कभी ना कहना फासीवाद!
जाहिर है कि अरबपति डोनाल्ड ट्रंप से बड़ा देशभक्त ओबामा या अमेरिका का कोई दूसरा राष्ट्रपति नहीं है।मध्ययुग के दौरान यूरोप के धर्मयुद्ध के वे महान नाइट हैं जो यूरोप की तर्ज पर अमेरिका को इस्लाम मुक्त करने के धर्मयोद्धा हैं और हिंदुत्व के एजंडे के मुताबिक इस्लाम का सफाया हिंदुत्व का एजंडा है तो वे हिंदुत्व के भी धर्म युद्ध है।कभी ना कहना फासीवाद!
दूसरी तरफ, ताजा ईमेल लीक के मुताबिक मैडम हिलेरी का इजराइल के लिए सीरिया के विनाश के एजंडा का खुलासा भी हो गया है।तेलयुद्ध के सच का खुलासा भी सामने है।ट्विन टावर का सच भी उजागर होने लगा है।आईसिस को अमेरिकी हथियार और पैसों के बारे में भी सारे सबूत समाने आ रहे हैं।फिरभी अमेरिकी माडिया और सत्ता वर्ग और दुनियाभर के धर्मनिरपेक्ष लोग डोनाल्ट ट्रंप जैसे राष्ट्रवादी के बजाय अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था की महानायिका के पक्ष में हैं।इसके बावजूद अंध राष्ट्रवाद के जीतने की प्रबल संभावना है।
गनीमत है कि अमेरिका में मुसलमानों के वोट भारत के निर्णायक मुसलमान वोट बैंक के आसपास नहीं है।अमेरिका के सारे मुसलमान एकमुशत ट्रंप के खिलाफ वोट करें तो भी उन्हें हराना मुश्किल है।
जिन शरणार्थियों के खिलाफ ट्रंप का जिहाद है,वे हालांकि अमेरिका में करोडो़ं की तादाद में हैं,लेकिन उनमें से ज्यादातर नागरिकता से वंचित हैं और नागरिक होंगे तो भी राष्ट्रपति चुनाव में उनके मताधिकार नहीं है।
शरणार्थी भी ट्रंप का कुछ बिगाड़ नहीं सकते।
अश्वेत मेहनतकश बिरादरी और पेशेवर नौकरीपेशा लोग जो ओबामा की जीत की जमीन बने रहे हैं,डोनाल्ड के अंध राष्ट्रवाद और सुनहले ख्वाबों के जाल में उलझ गये हैं।तो जाहिर है कि हिटलर के अवतार अमेरिका में कल्कि महाराज बनने को है।चूंक यह अखंड राष्ट्रवाद की जीत है।कभी ना कहना फासीवाद!
सोवियत संघ के पतन के बाद ऱूस और सोवियत के टूटे तमाम हिस्सों में इन्हीं राष्ट्रवादियों का वर्चस्व हैं।दक्षिणपंथी पराक्रम अब विश्वव्यापी है।रूस के राष्ट्रपति महामहिम पुतिन इस अंध राष्ट्रवाद के सबसे बड़े ईश्वर हैं इन दिनों जो सीरिया संकट के बहाने अरब दुनिया में अमेरिकी व्रचस्व तोड़ने के युद्ध को तीसरे विश्वयुद्ध में बदलने की तैयारी भी कर रहे हैं और उनका खुल्ला समर्थन डोनाल्ड ट्रंप को है।
कोनवे से जब ट्रंप के भारतीय-अमेरिकियों तक पहुंच के बारे में पूछा गया तो कोनवे ने कहा, ''हिंदू अमेरिकी उनके आंदोलन का हिस्सा बनने के इच्छुक हैं।''
पिछले महीने न्यू जर्सी में हिंदू रिपब्लिकन कोएलिशन के एक प्रोग्राम को संबोधित करते हुए ट्रंप ने NDTV से कहा, ''मैं हिंदुओं का बहुत सम्मान करता हूं।मेरे कई मित्र हिंदू हैं। वे बेहतरीन उद्यमी होते हैं। '' जब उनसे पूछा गया कि केवल हिंदू ही क्यों तो ट्रंप ने जवाब दिया, ''बेहद ईमानदारी से कहूं तो मैं भारत का बेहद सम्मान करता हूं। वास्तव में मेरा बिजनेस (रियल एस्टेट) भारत में रहा है जोकि बेहद सफल रहा है। वह अद्भुत देश है।''
हिलेरी क्लिंटन के कंवेंशन भाषण में रेडिकल इस्लामिक आतंकियों को ''निश्चित दुश्मन'' करार देने के बारे में कोनवे का कहना है, ''वे निश्चित दुश्मन ही नहीं बल्कि बर्बर हत्यारे हैं। पूरी दुनिया में आतंक का साम्राज्य बनाना चाहते हैं और हमारी भूमि ओरलैंडो और सैन बर्नारडिनो में भी ऐसा ही कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।''
डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति के बारे में कोनवे ने कहा, ''हम इन गलत व्यापार समझौते पर पुनर्विचार करेंगे और अपने देश में नौकरियों को फिर से लाएंगे। इस संबंध में हमारे ज़ेहन में मेक्सिको और चीन हैं।''
यह सारा खेल राष्ट्र और राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर बेरोकटोक जारी है।बहुमत को बाकी जनता को रौंदने का यह अखंड राष्ट्रवाद है।सत्तावर्ग के हितों का यह राष्ट्रवाद है।रंगभेदी वर्चस्व का यह राष्ट्रवाद है।लोकतंत्र के बहाने सैन्यराष्ट्र का यह राष्ट्रवाद अब भूमंडलीय और सार्वभौम है ,जिसमें अमेरिका रूस और भारत के साथ साथ तुर्की जैसे राष्ट्र भी एकाकार है।
किसे मालूम था कि हिटलर का यह राष्ट्रवाद भूमंलीय उदारवाद के दौर में इतना सार्वभौम,इतना सर्वशक्तिमान सर्वत्र हो जायेगा,कभी ना कहना फासीवाद!
मीडिया के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रचार के दौरान सभ्यता की हर हद, हर सीमा पार कर दी है और फिर भी उनके समर्थन में कम से कम 42 फीसदी अमेरिकी खड़े हैं। अश्वेत वोटर और महिलाएं हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में है। और पुरुषों का झुकाव ट्रंप के पक्ष में है। ट्रंप को मिडिल क्लास का जोरदार समर्थन मिल रहा है। पहली बार राष्ट्रपति चुनाव में इतनी गंदी जुबान का इस्तेमाल किया गया है। एक ओर व्यक्तिगत मुद्दे हावी, आर्थिक-सामाजिक मुद्दों पर चर्चा नहीं हो रही है।न्यूयॉर्क टाइम्स के सीबीएस न्यूज सर्वे के मुताबिक हिलेरी क्लिंटन को 47 फीसदी और डोनाल्ड ट्रंप को 45 फीसदी जनता की पसंद है। वहीं पाइवथट्रीएट के सर्वे के मुताबिक 67 फीसदी जनता की पसंद बन हिलेरी क्लिंटन आगे चल रही है और 32.3 फीसदी जनता की पसंद डोनाल्ड ट्रंप है।
हिलेरी क्लिंटन पर निजी सर्वर से सरकारी ईमेल भेजने का आरोप है और ये ईमेल हिलेरी ने अमेरिका की विदेश मंत्री रहते हुए किए थे। निजी सर्वर से सरकारी ईमेल भेजना सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक माना गया है। हिलेरी पर गोपनीयता की शपथ का उल्लंघन करने का आरोप है, लेकिन जुलाई में ईमेल मामले की जांच बंद कर दी गई थी। जुलाई में एफबीआई ने कहा था कि हिलेरी के खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है। इस दौरान, ट्रंप ने सरकार पर आरोप लगाया कि वो हिलेरी को बचा रही है।
ई-मेल मामले की दोबारा जांच शुरू होने से डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन की लोकप्रियता कम हुई है, और लोकप्रियता के मामले में ट्रंप, हिलेरी के काफी करीब आ गए हैं। हालांकि अब हिलेरी क्लिंटन ने ईमेल मामले को लेकर आक्रामक रूख अपना लिया है। उन्होंने एक प्रचार रैली के दौरान मामले की जांच कर रही एफबीआई और इसके डायरेक्टर जेम्स कॉमी के खिलाफ तीखी टिप्पणी की। हिलेरी क्लिंटन ने इस बात पर सवाल उठाया कि एफबीआई इस मामले को तब क्यों सामने ला रही है जब चुनाव में हफ्ते भर का ही समय बचा है।
उधर, रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप इस ईमेल विवाद को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने से चूक नहीं रहे हैं। ट्रंप का कहना है कि जब हिलेरी क्लिंटन अपने ईमेल नहीं संभाल सकतीं तो वो देश क्या संभालेंगी।
भारतीय मीडिया के मुताबिक अगर अमेरिकी चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप जीतते हैं तो भारत को कुछ फायदे होने की उम्मीद जानकार कर रहे है। जानकारों की माने तो ट्रंप आतंकवाद के मुद्दे पर सख्ती बरतेंगे। ट्रंप ने हाल ही में बयान जारी कर कहा था कि पाकिस्तान शायद सबसे खतरनाक देश है। और वह अगर चुनाव जीतते है तो पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक सहायता में कटौती करेंगे। भारत-अमेरिका संबंधों को घिसे-पिटे ढर्रे से बाहर निकालेंगे। एशिया में सत्ता संतुलन भारत के पक्ष में बढ़ेगा और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध छेड़ सकते हैं। जिसके चलते चीन के नुकसान से भारत को फायदा हो सकता है।
वहीं अगर ट्रंप की जीत से भारत को काफी नुकसान होने की भी उम्मीद बाजार लगा रहा है। कश्मीर मुद्दे पर राय नहीं होगी और कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश हो सकती है। आउटसोर्सिंग को लेकर सख्त हो सकते है। वहीं भारतीय आईटी कंपनियों को धक्का लग सकता है। इमिग्रेशन और आउटसोर्सिंग के पॉलिसी बदलने का भी डर हो सकता है। एच-1बी वीजा नियमों में बदलाव से कंपनियों के मुनाफे पर असर होने की पूरी उम्मीद है। ट्रंप के डर से पिछले 10 दिनों में आईटी इंडेक्स 5.5 फीसदी नीचे टूटे है।
अगर इस चुनाव में हिलेरी राष्ट्रपति बनती हैं तो भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है। क्योंकि जानकारों का कहना है कि हिलेरी भारत को लेकर काफी दोस्ताना है और अमेरिका- भारत के संबंध एक दायरे में ही रहने की उम्मीद है। भारत को हिलेरी के साथ काम करना आसान होगा।
कभी ना कहना फासीवाद!
मशहूर फिल्मकार आनंद पटवर्ध्धन ने अपने स्टेटस में प्रोफेसर शाह आलम खान का जो मंतव्य लगाया है,उसपर भी तनिक गौर करें तो बेहतर!
Uncanny Resemblance?
Adolf Hitler had worked as a “causal laborer” in Munich in 1913, a fact, which was repeated off, and on, many times during his rule in Germany. A fact, which he believed, helped him in “connecting” to the masses of Germany (uncanny?). Please note that they never had tea vendors in Germany, otherwise…..
Once established, which most historians believed happened by end of his second year (uncanny?), Hitler’s party workers protested against music by Gustav Mahler and Felix Mendelssohn, who were subsequently banned from performing in Germany (and yes, Gustav was from the neighboring Austria and a jew!).
The Nazi censorship slowly engulfed newspapers and the radio with the newspaper Straight Path and its editor Fritz Gerlich being the first to be banned. Fritz Gerlich had a doctorate and harbored a beard (Uncanny? ..Hmmm). It is even more uncanny to know that on December 5, 1930, Joseph Goebbels, the Propaganda Minister of Hitler had himself gone and disrupted the screening of the premier of the movie, All Quiet on the Western Front, a movie based on a novel which was very unpopular with the Nazis.
By 1935 Hitler had realized that to be fully controlling the German mind, it was essential to control the Universities. In this respect he suppressed universities with had significant communists in academic positions (uncanny?). The academicians and students at the Munich University particularly organized what was called The White Rose, a non-violent, intellectual group of anti-Nazis. One student of this group was twenty one year old Sophie Scholl, who was convicted of sedition and later killed by the Nazis (surely uncanny na?).
After coming to power in 1933, Hitler used radio to widely broadcast his speeches. What is uncanny is the fact that the Ministry of Propaganda ran his speeches on a weekly basis on radios throughout Germany! I am not sure what these weekly programs were called but were surely the voice from the Fuehrers heart!
We are told that Hitler was a vegetarian although the reasons for him turning vegetarian remain obscure. In 1934 the Nazi government issued a decree banning kosher meat in Germany (uncanny if you live in Haryana?). And even more uncanny is the fact that Hitler stressed on cleanliness of the nation as one of the first few drives the Nazi regimen took over after coming to power in 1933. It was aimed at increasing tourism in the Third Reich! He believed that the tourists should praise the Nazi Germany for its cleanliness, orderliness and cultural vitality!
And finally how can we talk of Hitler, Nazis and the Third Reich without mentioning mob lynching. Yes, mob lynching, as we know! The Russelsheim massacre involved the lynching of six American airmen by the people of Russelsheim, a town in the Gross-Gerau district of Central Germany. What is worth mentioning is the fact that the people of Russelsheim killed the six airmen with sticks, stones, hammers and shovels (uncanny na?); no guns were used!
So even as my indulgence in Nazi history grows, I can only hope that I discover less and less of the uncanny resemblances, of lesser and novel atrocities, of lesser suppression of expression and of course less of fascism!
We surely don’t want to tread that path!
There was once a nanny-goat who said,
In my cradle someone sang to me:
“A strong man is coming.
He will set you free!”
The ox looked at her askance.
Then turning to the pig
He said,
“That will be the butcher.”
Bertolt Brecht
Prof. Shah Alam Khan
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