Thursday, September 14, 2017

रवींद्र का दलित विमर्श-24 भारत के दलित विमर्श में रवींद्र नाथ नहीं है और आदिवासी किसानों मेहनतकशों के हकहकूक की विरासत की लोकसंस्कृति वह जमीन नहीं है,इसीलिए भारत में मनुस्मृति नस्ली वर्चस्व के खिलाफ कोई प्रतिरोध नहीं है। भानूसिंहेर पदावली सीधे तौर पर बंगाल के बाउल फकीर बहुजन किसान आदिवासी सामंतवाद विरोधी साम्रजाय्वाद विरोधी आंदोलन को बदनाम गायपट्टी के दैवी सत्ता राजसत्ता विरोधी मनुष्यता के धर्म संत सूफी आंदोलन से जोड़ती है और हम प्रतिरोध की इस जमीन पऱ खड़े होकर भी अपनी ही माटी की ताकत से अनजान खुदकशी का विकल्प चुन रहे हैं। पलाश विश्वास

रवींद्र का दलित विमर्श-24
भारत के दलित विमर्श में रवींद्र नाथ नहीं है और आदिवासी किसानों मेहनतकशों के हकहकूक की विरासत की लोकसंस्कृति वह जमीन नहीं है,इसीलिए भारत में मनुस्मृति नस्ली वर्चस्व के खिलाफ कोई प्रतिरोध नहीं है।
भानूसिंहेर पदावली सीधे तौर पर बंगाल के बाउल फकीर बहुजन किसान आदिवासी सामंतवाद विरोधी साम्रजाय्वाद विरोधी आंदोलन को बदनाम गायपट्टी के दैवी सत्ता राजसत्ता विरोधी मनुष्यता के धर्म संत सूफी आंदोलन से जोड़ती है और हम प्रतिरोध की इस जमीन पऱ खड़े होकर भी अपनी ही माटी की ताकत से अनजान खुदकशी का विकल्प चुन रहे हैं।
पलाश विश्वास
रवींद्र नाथ पर बचपन और किशोर वय में ही उत्तर भारत के कबीरदास और सूरदास के साहित्य का गहरा असर रहा है और संत सूफी साहित्यकारों के अनुकरण में ब्रजभाषा में उन्होंने भानुसिंह के छद्मनाम से बांग्ला लिपि में पदों की रचना की जो गीताजंलि से पहले की उनकी रचनाधर्मिता है  और ऐसा उन्होंने ब्रह्मसमाज और नवजागरण की विरासत के केंद्र बने जोड़ासांकू की ठाकुर बाड़ी में किया।उनकी यह पदावली 1884 में पुस्तकाकार में प्रकाशित हुई है।गाय पट्टी की इस संत सूफी जमीन की खुशब को महसूस करने के लिए भानुसिंह की पदावली पठनीय है लेकिन नेट फर हमें इसका अनुवाद नहीं मिला है।
हम रवींद्र की रचनाओं पर फिलहाल फोकस नहीं कर रहे हैं।ऐसा हम बाद में करेंगे।फिलहाल हम इस उपमहादेश की अखंड ऐतिहासिक सांस्कृतिक साहित्यिक विरासत में किसानों,मेहनतकशों के सामंतवाद साम्राज्यवाद और नस्ली वर्चस्व के राष्ट्रवाद के प्रतिरोध की जमीन खोज रहे है जो रवींद्र की रचनाधर्मिता का आधार है तो भारतीय बहुजनों, किसानों और मेहनतकशों के हकहकूक जल जंगल जमीन आजीविका ,मनुष्यता, सभ्यता और पर्यावरण की सरहदों के आरपार निरंतर जारी लड़ाई भी है।
यही लड़ाई रवींद्र का दलित विमर्श है।
हस्तक्षेप पर पूरा आलेख के प्रकाशन से पहले हम इसका एक खास अंश इसीलिए नेट पर शेयर करके हैं ताकि पूरा आलेख पढ़ने से पहले लगातार शेयर की जा रही संदर्भ सामग्री आप पढ़ और देख लें।
भानूसिंहेर पदावली के वीडियो हम शेयर कर रहे हैं तो रवींद्र साहित्य की ब्रजभाषा की जमीन की महक भी आप महसूस कर सकते हैं।
भानूसिंहेर पदावली सीधे तौर पर बंगाल के बाुल फकीर बहुजन किसान आदिवासी सामंतवाद विरोधी साम्रजाय्वाद विरोधी आंदोलन को बदनाम गायपट्टी के दैवी सत्ता राजसत्ता विरोधी मनुष्यता के धर्म संत सूफी आंदोलन से जोड़ती है और हम प्रतिरोध की इस जमीन पऱ खड़े होकर भी अपनी ही माटी की ताकत से अनजान खुदकशी का विकल्प चुन रहे हैं।
इस संवाद के दौरान हम अपने फेसबुक पेज और सोशल मीडिया पर संदर्भ सामग्री लगातार बांग्ला,हिंदी और अंग्रेजी में शेयर कर रहे हैं.जिनमें फिल्मों और लोकगीतों के वीडियो भी शामिल हैं।जो बांग्ला पढ़ सकते हैं,उनके लिए बांग्लादेश में किये गये शोध और अनुसंधान,बांग्लादेशी अखबारों में जारी संवाद मे साझेदार बनने का मौका है।जो बांग्ला पढ़ नहीं सकते तो वे गुगल बाबा की सेवा लेकर आनलाइन अनुवाद के माध्यम से बांग्ला और अंग्रेजी में उपलब्ध सारी सामग्री पढ़ समझ सकते हैं।सोशल मीडिया की सीमा के तहत पूरा आलेख,सारी संदर्भ सामग्री मूल या अनूदित साथ साथ दी नहीं जा सकती तो कृपया तकनीक का लाभ उठायें।
रवींद्र नाथ के दो हजार से ज्यादा गीत प्रचलित हैं।
नजरुल इस्लाम के गीत भी संख्या में बहुत ज्यादा हैं।
इन गीतों में बाउल फकीर संत वैष्णव बौद्ध परंपराओं की लोकसंस्कृति है।
बंगाल के जनपदों मे खेती और प्रकृति से जुड़े जन समुदायों के जीवनयापन और दिनचर्या के परत दर परत गीत हैं।
नदियों की लहरों के साथ,ज्वार भाटा के साथ सूरज की पहली किरण से लेकर आखिरी किरण तक आम जनता का जीवनयापन इन्हीं लोकगीतों के साथ हैं और इन्हीं लोकगीतों मे लोक दलित विमर्श और संवाद की विविधता,बहुलता,द्वंद और एकात्मकता का लोकतंत्र है।
इस महादेश ही नहीं,एशिया ही नहीं,दुनियाभर में किसानों और मेहनतकशों की बोलियों में यह लोकसंस्कृति रची बसी है जिससे उत्पादन संबंध और समाजिक संरचना के साथ साथ अर्थव्वस्था भी जुड़ी होती हैं।
कारपोरेट मुक्त बाजार ने लोक संस्कृति और बोलियों को बाजार की भाषा और बाजार की उपभोक्ता संस्कृति में समाहित कर दिया है तो जाति धर्म की पहचान में निष्णात आत्मध्वंस की राजनीति का यह मृत्यु कार्निवाल है।
बंगाल में लोकसंस्कृति की धारा रवींद्र संगीत और नजरुल संगीत के मार्फत पितृसत्ता के खिलाफ स्त्री अस्मिता की निरंतरता में तब्दील है जो दुर्गोत्सव की महिषासुर वध संस्कृति के विरुद्ध विविधता, बहुलता, सहिष्णुता और एकात्मता की साझा विरासत बांर्ला और भारतीय मनुस्मृति नस्ली वर्चस्व की पितृसत्ता के विरुद्ध है।
पश्चिम बंगाल में रवींद्र संगीत और नजरुल संगीत के स्त्री संसार के बाहर पितृसत्ता की बलात्कार सुनामी है तो पूर्वी बंगाल में लोकसंस्कृति जीवन के हर क्षेत्र में साहित्य,कला,भाषा,माध्यम,पत्रकारिता की मुख्यधारा है।
पश्चिम बंगाल में कंगाल हरिनाथ की चर्चा उस तरह नहीं होती जिस तरह बाकी भारत में चुआड़ विद्रोह,पाबना रंगपुर के किसान विद्रोह,नील विद्रोह और आदिवासी किसान आंदोलनों पर सन्नाटा है,लेकिन बांग्ला देश में फिकिरचांद बाउल घराने के प्रवर्तक लालन फकीर के सहयोगी कंगाल हरिनाथ के करीब एक हजार बाउल गीत प्रचलन में हैं और वहां रवींद्र और नजरुल के बराबर कंगाल हरिनाथ का स्थान है।
कंगाल हरिनाथ के बारे में पश्चिम बंगाल में अज्ञानता का आलम है कि विश्वप्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे ने अपनी मशहूर क्लासिक फिल्म पथेर पांचाली में दुर्गी की बुआ के भजन के लिए कंगाल हरिनाथ के पूर्वी बंगाल में बेहद लोकप्रिय हरि पार करो आमारे का फिल्मांकन किया और उस वक्त उन्हें मालूम भी नहीं था कि यह बाउल गीत कंगाल हरिनाथ का है और मालूम पड़ने पर उन्होंने कंगाल हरिनाथ के वंशजों से माफी मांग ली।
कंगाल हरिनाथ और उनकी पत्रिका ग्राम वार्ता का जमींदारों के खिलाफ किसान आदिवासी विद्रोहों,लील विद्रोह,पाबना और रंगपुर के किसानविद्रोहों में बड़ी भूमिका थी तो वे क्रूर महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर के अत्याचारों के खिलाफ भी प्रजाजनों के नेतृत्व का नेतृत्व कर रहे थे।जमींदारों की हिटलिस्ट में वे थे जबकि स्थानीय समस्याओं और विवादों के निपटारे के लिए ब्रिटिश प्रशासन ने उनकी पत्रिका की सारी सामग्री का लगातार अनुवाद का सिलसिला बनाये रखा और कंगाल हरिनाथ के सुझावों के मुताबिक किसानों की समस्याएं सुलझाने की कार्रवाई वे करते रहे।लेकिन जमींदार उन्हें अपना शत्रु मानते थे।
इसी सिलिसले में गौरतलब है कि पूर्वी बंगाल के कुष्टिया (अनिभाजित बंगाल के नदिया जिले के अंतर्गत) सिलाईदह में टैगोर जमींदारी के दायरे में कुमारखाली गांव में ग्राम वार्ता का प्रेस और उसके पास ही लालन फकीर का अखाडा़ और प्रजाजनों के हकहकूक की लड़ाई में लालन फकीर और कंगाल हरिनाथ की युगलबंदी के सारे परिदृ्श्य थे।इसी परिदृश्य में टैगोर जमींदारी के लठैतों ने कंगाल हरिनाथ पर हमला कर दिया तो लालन फकीर के अखाड़े के बाउलों और उनके समर्थकों ने उऩका बचाव किया।
टैगोर जमीदारी के सामंती शिकंजे को तोड़कर ही रवींद्र लालन फकीर और कंगाल हरिनाथ की विरासत से जुड़े।
इसी विरासत मे मतुआ और चंडाल आंदोलन है तो रवींद्र संगीत,नजरुल संगीत से लेकर शचिन देववर्मन सलिल चौधरी से लेकर भूपेन हजारिका तक भारत के सिनेमा और संगीत में लोकगीतों की मुख्यधारी की जड़ें भी यही है।
इसी तरह चित्तप्रसाद और सोमनाथ होड़ की चित्रकला से लेकर ऋत्विक घटक की फिल्मों तक फैली है मिट्टी की वह सोंधी महक जिसकी सबसे सशक्त अभिव्यक्ति भारतीय गण नाट्य आंदोलन के नेतृत्व में भारतीय रंगकर्म में लगातार होती रही है।
आज भी भारतीय रंग कर्म लोकसंस्कृति की इसी विरासत पर आधारित है और उसकी जनपक्षधरता की निरंतरता जारी है।
बांग्ला में महाश्वेता देवी ,नवारुण भट्टाटार्य, सत्तर दसख के तमाम कवि कथाकार से लेकर शंखो घोष की कविता में भी लोकसंस्कृति की वह जमीन है।
हिंदू शूद्र बाउल कंगाल हरिनाथ को लेकर बांग्लादेश मे कोई विवाद नहीं है। इस्लामी बांग्लादेशी राष्ट्रवाद के कट्टरपंथी तबका रवींद्र नाथ को इस्लामी राष्ट्रवाद के लिए सबसे बड़ा खतरा उसी तरह मानते हैं जैसे मनुसमृति नस्ली राष्ट्रवाद के कारपोरेट हिंदुत्ववादी भारत में।
बांग्लादेश में भी रवींद्र के खिलाफ भयंकर घृणा अभियान है और लालन फकीर और बाउल आंदोलन को भी बांग्लादेश में इस्लाम के खिलाफ मानते हैं इ्सलामी राष्ट्रवादी।फिरभी हिंदू मुसलमान प्रजाजनों की अंग्रेजी हुकूमत और देशी जमींदारों के खिलाफ नील विद्रोह,पावना और रंगपुर किसान विद्रोह में खुलना जिले के कुमारखाली गांव से ब्रहमसमाज नवजागरण काल में ग्रामवार्ता पत्रिका निकालकर किसानों  और मेहनतकशों के हकहकूक के लिए आवाज उठाने वाले कंगाल हरिनाथ को लेकर कोई राष्ट्रीयतावादी सांप्रदायिक विवाद बांग्लादेश में नहीं है क्योंकि बांग्लादेश की भाषा,विधाओं,बांग्लादेश के साहित्य,उसकी संस्कृति,माध्यमों और पत्रकारिता में भी लोकसंस्कृति का बोलबाला है और इन पर बाजार और पूंजी का दखल नहीं है।भारतीय मीडिया में साहित्य का प्रवेशाधिकार निषिद्ध है,लेकिन बंगालादेश में साहित्य और कला ,लोकसंस्कृति पर सारा विमर्श वहां के दैनिक अखबारों में रोजाना जारी है।
इसके विपरीत भारतीय साहित्य,विधाओं और माध्यमों में लोकसंस्कृति और बोलियों का वह ग्रामीण कृषि भारत सिरे से अनुपस्थित है।गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस अवधी में लिखा और वह समूचे भारत के लोगों का पवित्रतम ग्रंथ बन गया।सूरदास ने अपने पद ब्रजभाषा में लिखे तो ब्रजभाषा सामंतवाद विरोधी प्रतिरोध की भाषा बन गयी और रवींद्रनाथ ने भी ब्रजभाषा में भानुसिंहेर पदावली बाउल वैष्णव बौद्ध सूफी संत मनुष्यता के धर्म की अभिव्यक्ति के लिए लिख डाली।
गुरु नानक, नामदेव, तुकाराम, विद्यापति, दादु, बशेश्वर,गाडगे महाराज, मीराबाई,रसखान,रहीम दास जैसे लोगों ने क्षेत्रीय लोकभाषा में लिखा और वह भारतीय साहित्य और संस्कृति की साझा विरासत में तब्दील है।
बांग्लादेश की आम जनता भारत विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान में और बांग्लादेश बनने के बाद आजतक लगातार कट्टर इस्लामी राष्ट्रवाद का प्रतिरोध लोकसंस्कृति के जिस बहुजन आंदोलन और किसान आदिवासी जल जंगल जमीन आजीविका और मनुष्यता के दलित विमर्श की शक्ति से लड़ते हुए उसे बार बार हरा रहा है,वह दलित विमर्श काजी नजरुल इस्लाम,कंगाल हरिनाथ,लालन फकीर और रवींद्रनाथ का दलित विमर्श है।
भारत के दलित विमर्श में रवींद्र नाथ नहीं है और आदिवासी किसानों मेहनतकशों के हकहकूक की विरासत की लोकसंस्कृति वह जमीन नहीं है,इसीलिए भारत में मनुस्मृति नस्ली वर्चस्व के खिलाफ कोई प्रतिरोध नहीं है।
ईबांग्ला लाइब्रेरी से भानुसिंहेर पदावली के कु छ पदों का मुखड़ा हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।चूंकि रवींद्रनाथ ने ब्रजभाषा में लिखने की कोशिशी की है तो पूरे पद का अनुवाद किये बिना हम सिर्फ शीर्षक को देवनागरी लिपि में भी दे रहे हैं ताकि वैष्णव बाउल धारा के इन पदों के बारे में पाठकों की धारणा बने।

ভানুসিংহের পদাবলী

আজু, সখি, মুহু মুহু

आज सखी,मुहु मुहु

   আজু, সখি, মুহু মুহু গাহে পিক কুহু কুহু,     কুঞ্জবনে দুঁহু দুঁহু দোঁহারে পানে চায়।     যুবনমদবিলসিত পুলকে হিয়া উলসিত,     অবশ তনু অলসিত মুরছি জনু যায়।     আজু মধু চাঁদনী প্রাণ‐উনমাদনী,     শিথিল সব বাঁধনী, শিথিল ভৈ লাজ।     বচন মৃদু মরমর,...

কো তুঁহু বোলবি মোয়

को तुंहु बोलबि मोय

             কো তুঁহু বোলবি মোয়! হৃদয়‐মাহ মঝু জাগসি অনুখন,   আঁখ‐উপর তুঁহু রচলহি আসন             অরুণ নয়ন তব মরম‐সঙে মম   নিমিখ ন অন্তর হোয়।      কো তুঁহু বোলবি মোয়! হৃদয়কমল তব চরণে টলমল,    নয়নযুগল মম উছলে ছলছল             প্রেমপূর্ণ তনু পুলকে ঢলঢল...

গহন কুসুমকুঞ্জ-মাঝে

गहन कुसुमकुंज -माझे

গহন কুসুমকুঞ্জ‐মাঝে   মৃদুল মধুর বংশি বাজে, বিসরি ত্রাস লোকলাজে   সজনি, আও আও লো॥ পিনহ চারু নীল বাস,   হৃদয়ে প্রণয়কুসুমরাশ, হরিণনেত্রে বিমল হাস,   কুঞ্জবনমে আও লো॥ ঢালে কুসুম সুরভভার,   ঢালে বিহগসুরবসার, ঢালে ইন্দু অমৃতধার   বিমল রজতভাতি রে। মন্দ মন্দ ভৃঙ্গ গুঞ্জে,  ...

বঁধুয়া, হিয়া-পর আও রে

बंधुआ,हिया-पर आओ रे
     বঁধুয়া, হিয়া‐পর আও রে! মিঠি মিঠি হাসয়ি, মৃদু মৃদু ভাষয়ি,   হমার মুখ‐’পর চাও রে! যুগ‐যুগ‐সম কত দিবস ভেল গত,   শ্যাম, তু আওলি না— চন্দ‐উজর মধু‐মধুর কুঞ্জ‐’পর   মুরলি বজাওলি না! লয়ি গলি সাথ বয়ানক হাস রে,   লয়ি গলি নয়ন‐আনন্দ! শূন্য কুঞ্জবন, শূন্য হৃদয মন,   কঁহি...

বজাও রে মোহন বাঁশি

बजाओ रे मोहन वंशी

 

   বজাও রে মোহন বাঁশি। সার দিবসক         বিরহদহনদুখ     মরমক তিয়াষ নাশি॥ রিঝ‐মন‐ভেদন        বাঁশরিবাদন     কঁহা শিখলি রে কান!— হানে থিরথির       মরম‐অবশকর     লহু লহু মধুময় বাণ। ধসধস করতহ       উরহ বিয়াকুলু,     ঢুলু ঢুলু অবশ নয়ান। কত শত...

বসন্ত আওল রে

वसंत आवल रे

            বসন্ত আওল রে! মধুকর গুন গুন, অমুয়ামঞ্জরী কানন ছাওল রে। শুন শুন সজনী, হৃদয় প্রাণ মম হরখে আকুল ভেল, জর জর রিঝসে দুঃখদহন সব দূর দূর চলি গেল। মরমে বহৈ বসন্তসমীরণ, মরমে ফুটই ফুল, মরমকুঞ্জ‐’পর বোলই কুহুকুহু অহরহ কোকিলকুল। সখি রে, উচ্ছল...

বাদরবরখন, নীরদগরজন

बादरबरकऩ,नीरदगरजन
বাদরবরখন, নীরদগরজন,   বিজুলিচমকন ঘোর, উপেখই কৈছে আও তু কুঞ্জে   নিতিনিতি মাধব মোর। ঘন ঘন চপলা চমকয় যব পহু,   বজরপাত যব হোয়, তুঁহুক বাত তব সমরযি প্রিয়তম,   ডর অতি লাগত মোয়। অঙ্গবসন তব ভীঁখত মাধব,   ঘন ঘন বরখত মেহ, ক্ষুদ্র বালি হম, হমকো লাগয়   কাহ উপেখবি দেহ॥ বইস বইস,...

বার বার, সখি, বারণ করনু

बार बार सखी,वारण करनु

বার বার, সখি, বারণ করনু   ন যাও মথুরাধাম বিসরি প্রেমদুখ রাজভোগ যথি   করত হমারই শ্যাম। ধিক্ তুঁহু দাম্ভিক, ধিক্ রসনা ধিক্,   লইলি কাহারই নাম। বোল ত সজনি, মথুরা‐অধিপতি   সো কি হমারই শ্যাম। ধনকো শ্যাম সো, মথুরাপুরকো,   রাজ্যমানকো হোয়। নহ পীরিতিকো, ব্রজকামিনীকো,   নিচয়...
মরণ রে, তুঁহুঁ মম শ্যামসমান
मरण रे तुहुं मम श्यामसमान
     মরণ রে, তুঁহুঁ মম শ্যামসমান। মেঘবরণ তুঝ, মেঘজটাজূট, রক্তকমলকর, রক্ত‐অধরপুট, তাপবিমোচন করুণ কোর তব       মৃত্যু‐অমৃত করে দান॥            আকুল রাধা‐রিঝ অতি জরজর,            ঝরই নয়নদউ অনুখন ঝরঝর—            তুঁহুঁ মম মাধব, তুঁহুঁ মম দোসর,...

মাধব না কহ আদরবাণী

माधव ना कह आदरवाणी
মাধব না কহ আদরবাণী,   না কর প্রেমক নাম। জানয়ি মুঝকো অবলা সরলা   ছলনা না কর শ্যাম। কপট, কাহ তুঁহু ঝূট বোলসি,   পীরিত করসি তু মোয়। ভালে ভালে হম অলপে চিহ্ণনু,   না পতিয়াব রে তোয়। ছিদল‐তরী‐সম কপট প্রেম‐’পর   ডরনু যব মনপ্রাণ ডুবনু ডুবনু রে ঘোর সায়রে,   অব কুত নাহিক ত্রাণ।...

শুন লো শুন লো বালিকা

सुन लो सुन लो बालिका
শুন লো শুন লো বালিকা,           রাখ কুসুমমালিকা,     কুঞ্জ কুঞ্জ ফেরনু সখি, শ্যামচন্দ্র নাহি রে॥ দুলৈ কুসুমমুঞ্জরি,                  ভমর ফিরই গুঞ্জরি,     অলস যমুন বহয়ি যায় ললিত গীত গাহি রে॥ শশিসনাথ যামিনী,                   বিরহবিধুর কামিনী,       ...

শুন, সখি, বাজই বাঁশি

सुन, सखी, बाजई वंशी
    শুন, সখি, বাজই বাঁশি। শশিকরবিহ্বল নিখিল শূন্যতল   এক হরষরসরাশি। দক্ষিণপবনবিচঞ্চল তরুগণ,   চঞ্চল যমুনাবারি। কুসুমসুবাস উদাস ভৈল সখি   উদাস হৃদয় হমারি। বিগলিত মরম, চরণ খলিতগতি,   শরম ভরম গয়ি দূর। নয়ন বারিভর, গরগর অন্তর,   হৃদয় পুলকপরিপূর। কহ সখি, কহ সখি, মিনতি...
শ্যাম রে, নিপট কঠিন মন তোর!
श्याम रे, निपट कठिन मन तोर
       শ্যাম রে, নিপট কঠিন মন তোর! বিরহ সাথি করি দুঃখিনি রাধা   রজনী করত হি ভোর। একলি নিরল বিরল‐’পর বৈঠত,   নিরখত যমুনা‐পানে— বরখ্ত অশ্রু, বচন নহি নিকসত,   পরান থেহ ন মানে। গহনতিমির নিশি, ঝিল্লিমুখর দিশি’   শূন্য কদমতরুমূলে ভূমিশয়ন‐’পর আকুলকুন্তল   রোদৈ আপন ভূলে।...

শ্যাম, মুখে তব মধুর অধরমে

श्याम,मुखे तव मधुर अधरमे
শ্যাম, মুখে তব মধুর অধরমে  হাস বিকাশত কায়, কোন স্বপন অব দেখত মাধব,  কহবে কোন হমায়! নীদ‐মেঘ‐’পর স্বপন‐বিজলি‐সম  রাধা বিলসত হাসি। শ্যাম, শ্যাম মম, কৈসে শোধব  তূঁহুক প্রেমঋণরাশি বিহঙ্গ, কাহ তু বোলন লাগলি,  শ্যাম ঘুমায় হমারা। রহ রহ চন্দ্রম, ঢাল ঢাল তব  শীতল জোছনধারা...

সখি রে, পিরীত বুঝবে কে

सखी रे,पिरीत बूझबे के
                সখি রে, পিরীত বুঝবে কে!                   আঁধার হৃদয়ক দুঃখকাহিনী   বোলব, শুনবে কে।        রাধিকার অতি অন্তরবেদন   কে বুঝবে অযি সজনি।        কে বুঝবে, সখি, রোয়ত রাধা   কোন দুখে দিনরজনী।        কলঙ্ক রাটায়ব জনি, সখি, রটাও—   কলঙ্ক নাহিক...

সখি লো, সখি লো,

सखी लो, सखी लो,
সখি লো, সখি লো, নিকরুণ মাধব   মথুরাপুর যব যায় করল বিষম পণ মানিনী রাধা   রোয়বে না সো, না দিবে বাধা,   কঠিন‐হিয়া সই হাসয়ি হাসয়ি   শ্যামক করব বিদায়। মৃদু মৃদু গমনে আওল মাধা,   বয়ন‐পান তছু চাহল রাধা, চাহয়ি রহল স চাহয়ি রহল—  দণ্ড দণ্ড, সখি, চাহয়ি রহল—   মন্দ...

সজনি সজনি রাধিকা

सजनी ,सजनी  राधिका
সজনি সজনি রাধিকা লো,   দেখ অবহুঁ চাহিয়া মৃদুলগমন শ্যাম আওয়ে   মৃদুল গান গাহিয়া॥ পিনহ ঝটিত কুসুমহার,   পিনহ নীল আঙিয়া। সুন্দর সিন্দুর দেকে   সীঁথি করহ রাঙিয়া॥ সহচরি সব নাচ নাচ   মিলনগীত গাও রে, চঞ্চল মঞ্জরীরাব   কুঞ্জগগনে ছাও রে। সজনি, অব উজার’ মঁদির   কনকদীপ জ্বালিয়া,...

সতিমির রজনি, সচকিত সজনী

सतिमिर रजनी,सचकित सजनी
সতিমির রজনি, সচকিত সজনী, শূন্য নিকুঞ্জ‐অরণ্য। কলয়িত মলয়ে, সুবিজন নিলয়ে বালা বিরহবিষণ্ণ॥ নীল আকাশে তারক ভাসে, যমুনা গাওত গান। পাদপ‐মরমর, নির্ঝর‐ঝরঝর, কুসুমিত বল্লিবিতান। তৃষিত নয়ানে বনপথপানে নিরখে ব্যাকুল বালা— দেখ ন পাওয়ে, আঁখ ফিরাওয়ে, গাঁথে বনফুলমালা! সহসা রাধা চাহল...

হম যব না রব, সজনী

हम जब ना रब,सजनी

            হম যব না রব, সজনী, নিভৃত বসন্তনিকুঞ্জবিতানে   আসবে নির্মল রজনী— মিলনপিপাসিত আসবে যব, সখি,   শ্যাম হমারি আশে, ফুকারবে যব ‘রাধা রাধা’   মুরলি ঊরধ শ্বাসে, যব সব গোপিনী আসবে ছুটই   যব হম আওব না, যব সব গোপিনী জাগবে চমকই   যব হম জাগব না, তব কি কুঞ্জপথ হমারি...

হম, সখি, দারিদ নারী

हम, सखी, दारिद नारी
         হম, সখি, দারিদ নারী। জনম অবধি হম পীরিতি করনু,   মোচনু লোচনবারি। রূপ নাহি মম, কছুই নাহি গুণ,   দুখিনী আহির জাতি— নাহি জানি কছু বিলাস‐ভঙ্গিম   যৌবনগরবে মাতি— অবলা রমণী, ক্ষুদ্র হৃদয় ভরি   পীরিত করনে জানি। এক নিমিখ পল নিরখি শ্যাম জনি,   সোই বহুত করি মানি।...

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