सिंगुर में दीदी के बोये सरसों के फूल खिलखिलायेंगे,लेकिन दसों दिशाओं में कमल खिलने लगे हैं!
दीदी जिसे अपनी ताकत मनने लगी है जो दरअसल उनके तख्ता पलट की भारी तैयारी है।
अधिग्रहित जमीन वापस ,लेकिन जमीन के मालिक दो सौ किसानों का अता पता नहीं!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप संवाददाता
सिंगुर में दीदी के बोये सरसों के फूल खिलखिलायेंगे,लेकिन दसों दिशाओं में कमल खिलने लगे हैं।दीदी जिसे अपनी ताकत मनने लगी है जो दरअसल उनके तख्ता पलट की भारी तैयारी है।जब खिलेंगे सरसों के फूल ,तब खिलेंगे।सरसों पंजाब में सबसे ज्यादा खिलते रहे हैं लेकिन अकाली हिंदुत्व की दुधारी तलवार पर पंजाब किस तरह लहूलुहान होता रहा है,बंगाल उससे कोई सबक सीख लें तो बेहतर।
सरसों जब खिलेंगे तब खिलेंगे।फिलहाल पूरे बंगाल में असम की तर्ज पर कमल की फसल खूब लहलहा रही है और कमल के नाभि नाल में तमाम विषैले नाग फन काढ़े बैढे हैं।कब किसे डंस लें,कौन जाने कब! कहां कैसी दुर्घटना हो जाये!
कल सिंगुर पहुंचकर सुरक्षा कवच किनारे रखकर अफसरों,मंत्रियों ,नेताओं के कारवां को पीछे छोड़कर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिंगुर की अधिग्रहित जमीन पर किसानों के बीच पहुंच कर खेत पर जो सरसों के बीज छिड़के हैं,वे जल्द ही अंकुरित हो जायेंगे और दस साल से ज्यादा समय तक बंजर पड़ी जमीन पर सरसों के फूल खिलखिलायेंगे और तब तक सिंगुर पर अवैध अधिग्रहण के फैसले के तहत जारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत समयसीमा के भीतर सारी अधिग्रहित जमीन किसानों को वापस दिलाने का वादा किया है ममता दीदी ने।
खेतों को कृषि योग्य बनाने का काम तेजी से हो रहा है।जिसे सुप्रीम कोर्ट की मोहलत के भीतर पूरा कर लेने का दावा है।गौरतलब है कि सीमेंट, पत्थर,ईंट और आधे अधूरे निर्माण,खर पतवार आदि को साफ करके यह काम पूरा करना भी बहुत बड़ी चुनौती है।जमीन का चरित्र बदल जाने के बाद बेदखल जमीन किसानों को सौंपकर वहां फिर खेती शुरु करना कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।लेकिन इस उपलब्धि के साथ ही ममता बनर्जी के तख्ता पलट की तैयारी भी जोरों पर है और इसका अचूक हथियार हिंदुत्व है,जिसका इस्तेमाल दीदी भी खूब कर रही हैं।
बहरहाल किसानों को नये सिरे से खेती के लिए बीज और कर्ज देने का बंदोबस्त भी हो गया है।सिंगुर के 298 किसानों को सौंपी गई उनकी 103 एकड़ जमीन। कृषि से आंदोलन भूमि में तब्दील हुए सिंगुर में गुरुवार को नई उम्मीदों का बीजारोपण हो गया। एक दशक बाद फिर सिंगुर में खेती शुरू हुई, जिसका आगाज खुद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सरसों के बीज छिड़ककर किया। उन्होंने किसानों में जैविक खाद भी बांटे।
ममता बनर्जी ने गुरुवार को सिंगुर के बाजेमेलिया मौजे में किसानों के बीच जाकर उन्हें उनकी जमीनें सौंपी और कड़ी धूप में खुद सरसों के बीज छिड़ककर फिर से खेती की शुिरुआत कर दी।
फिरभी सारी जमीन लौटाना मुश्किल दीख रहा है क्योंकि अधिग्रहित जमीन जिन किसानों के नाम हैं,उनमें से दो सौ किसानों का अता पता नहीं है।इन दो सौ किसानों ने न मुआवजा के लिए और जमीन के लिए कोई अर्जी दी है।
इसके साथ ही जमीन की मिल्कियत वापस पाने के बाद बड़ी संख्या में किसान अपनी जमीन बेचने की जुगत रहे हैं क्योंकि इस लंबी लड़ाई में निर्णायक जीत हासिल करने की अवधि में रोजमर्रे की जिंदगी गुजर बसर करने के लिए वे दूसरा पेशा अपना चुके हैं और खेती करना नही चाहते।जो किसान खेती नहीं करना चाहते ,वे अभी भी सिंगुर में कारखाना लगाने की मांग कर रहे हैं।उनका क्या होगा,राम जाने।
फिक्र यह है कि अभी सिंगुर में पहुंचकर दीदी के किसानों के बीच जाकर सरसों बोने से पहले सिंगुर के पास दिल्ली एक्सप्रेस वे पर उनके भतीजे सांसद अभिषेक बंदोपाद्याय की बुलेट प्रूफ कार वहा पहले से खड़ी एक मिल्क वैन से टकरा जाने के वजह से अभिषेक बुरी तरह जख्मी हो गये और कारवां में होने की वजह से तत्काल अस्पताल पहुंचाये जाने पर वे बाल बाल बच गये हैं।यह महज संजोग है,ऐसा समझना खतरों को नजरअंदाज करना होगा।खासकर तब जबकि अभिषेक ही दीदी के राजनीतिक उत्तराधिकारी है।अगर ऐसा वैसा उसके साथ कुछ भी हो जाये तो पार्टीबद्ध अराजकता के कीड़ कोड़े विषैले जीव जंतु बंगाल में क्या कहर बरपा देगें,इसका नजारा अभी बंगाल के हर जिले में अखंड दुर्गोत्सव के साथ जारी है।
गनीूमत है कि दीदी नजरअंदाज नहीं कर रही हैं और इस वारदात की सीआईडी जांच का आदेश दिया है दीदी ने,जो इसे भीतरघात मान रही हैं।सही मायने में दीदी अस्पताल से सीधे सिंगुर पहुंचकर सिंगुर को जमीन आंदोलन का माडल बनाने का ऐलान कर दिया है।
जाहिर है कि दीदी के एकाधिकार के बावजूद बंगाल में हालात बेहद संगीन है।वोटबैंक पर दीदी का दखल है और निकट भविष्य में उन्हें किसी चुनाव में पराजित करने के लिए विपक्षी दलों के लिए किसी भी तरह की कवायद कर पाना सिरे से असंभव है।लेकिन बंगाल में जिस तेजी से सांप्रदायिक ध्रूवीकरण होने लगा है,उससे सत्ता दल का रंग भी केसरिया होने लगा है और हाल में राजकीय दुर्गोत्सव कार्निवाल शुरु करके दीदी ने विपक्ष के सफाये के लिए बंगाली हिंदुत्व राष्ट्रवाद का जो सहारा लिया है,वह उनके लिए भारी सरदर्द का सबब बन सकता है।यही गलती वाम शासकों ने की थी विचारधारा को तिलांजलि देकर,वर्गीय ध्रूवीकरणके बजायवोटबैंद साधने के तहत अपने राजनीतिक जनाधार को तिलांजलि देकर।वाम जमाने की नकल वाम से बेहतर करने के चक्कार में दीदी उनकी वे ही गलतियां दुहराने लगी हैं औरतेजी से हालात उनके नियंत्रण से बाहर होते जा रहे हैं।राजनीति तो सध रही है लेकिन समाज का जो विचित्र हैरतअंगेज केसरियाकरण हो रहा है,उसमें दीदी का हाथ बहुत ज्यादा है।
हालात बेहद संगीवन है।मसलन बहुत संभव है कि अभिषेक दुर्घटना का ही शिकार हुआ है क्योंकि एक्सप्रेस हाईवे पर ऐसी दुर्घटनाएं आम है।फिरभी सिंगुर में जमीन वापसी से ठीक पहले उसी सिंगुर के पास अभिषेक के कारवां के रास्ते बत्ती बुझाये मिल्क वैन का अवरोध बन जाना और उस वजह से हुई दुर्घटना में अभिषेक का बाल बाल बचजाना बेहद रहस्यपूर्ण है।
अगर दीदी की आशंका सही है तो यह समझ लीजिये कि बंगाल में भीतर ही भीतर बारुदी सुरंगों का जाल बिछ गया है।
विपक्ष का सफाया कर देने की वजह से राजनीतिक तौर इस संकट का मुकाबला बेहद मुश्किल है और कानून व्यवस्था पर प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है।
गौरतलब है कि सिंगुर में बलात्कार के बाद तापसी मल्लिक को जिंदा जला दिया गया था।यह भी जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के तेजी से भड़कने की खास वजह रही है।दीदी ने सिंगुर में उसी तापसी मल्लिक का सङीद स्मारक बनाने का ऐलान कर दिया है।दूसरी ओर,विडंबना यह है कि दीदी के राज में महिला तस्करी और स्त्री उत्पीड़न के मामले में बंगाल टाप पर है।हिंदुत्व और पितृसत्ता के इस गठजोड़ की शिकार स्त्री रोज रोज हो रही है।एसिड हमला,दहेज उत्पीड़न, बलात्कार और हत्या की वारदातें रोज रोज हो रही है।रोज तापसी मलिक के साथ बलात्कार हो रहै हैं।
विडबंना है कि रोज तापसी मल्लिक को जिंदा जलाया जा रहा है और राजनीतिक समीकरण साधने की राजनीति के तहत दीदी सांप्रदायिक ध्रूवीकरण और स्त्री उत्पीड़न की तमाम वारदातों को नजरअंदाज कर रही हैं।
सिंगुर में लापता दो सौ किसानों को जमीन वापस नहीं दी जा सकी तो उस जमीन का दीदी क्या करेंगी ,यह दीदी को तय करना है या सुप्रीम कोर्ट से इस सिलसिले में नया आदेश हो सकता है।
बहरहाल अधिगृहित जमीन पर दस साल बाद सरसों बोकर जो नई शुरुआत बंगाल की मुख्यमंत्री ने कर दी है.उससे बंगाल और देश भर में जमीन आंदोलन के माडल सिंगुर का क्या असर होना है,यह हम अभी से बता नहीं सकते।
जमीन आंदोलन की नेता बतौर ममता बनर्जी को बाजार का कितना साथ उनके अखंड जनाधार के बावजूद मिलता रहेगा,यह बताना भी मुश्किल है।
जिस तेजी से बंगाल का केसरियाकरण हो रहा है और हिंदुत्वकी राजनीति सत्ता की राजनीति बनती जा रही है,उससे दीदी के लिए आगे बहुत कड़ी चुनौती है।इसे दीदी के तख्ता पलट का उपक्रम हम कह सकते हैं जिसे दीदी अपने अखंड जनाधार का आधार मानने लगी हैं।जमीन उनका यह तेवर कब तक बाजार हजम कर सकेगा,यह हम अंदाजा लगा नहीं सकते।दीदी को सीधे चुनौती देने की स्थिति में कोई नहीं है और दीदी खुद ही खुद के लिए चुनौतियां पैदा कर रही हैं।
मसलन एकतरफ तो जमीन के अधिग्रहण न होने देने की जिद पर दीदी अडिग हैं तो दूसरी तरफ बंगाल में देश में सबसे पहले कानूनी तरीके से ठेके पर खेती लागू हो रही है और मजे की बात यह है कि वाम किसान आंदोलन के बड़े नेता और लंबे समय तक वाम सरकार के मंत्री रहे रेज्जाक मोल्ला ने दीदी के मंत्रिमंडल में शामिल होकर यह करिश्मा कर दिखाया है,जिसके तहत कारपोरेट कंपिनियों के बंधुआ मजदूर होंगे किसान।खेती की उपज कारपोरेट कंपनियों की होगी।बीज भी जीएम होंगे।
सिंगुर जमीन आंदोलन का यह माडल बेशक बाकी देश में देर सवेर लागू होने वाला है।जमीन से बेदखली तो शुरु से जारी है और अब किसानों को बंधुआ मजदूर बनाया जा रहा है और इसकी शुरुआत बंगाल से हो रही है दीदी के राजकाज में।
बहरहाल मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने गुरुवार को को हुगली जिला स्थित सिंगुर के समीप गोपालनगर में किसानों को वास्तविक रूप से जमीन सौंपते हुए कहा कि उन्होंने 2006 में जो वादा किया था, उसे निभाया है।
दीदी ने कहा कि किसानों से किए गए वादे को पूरा करने के लिए लंबी राजनीतिक व कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। मुख्यमंत्री ने कहा कि अधिकार मांगने से नहीं मिलता, मौजूदा स्थिति में उसे छीनना पड़ता है। ममता ने कहा कि 997 एकड़ में से 65 एकड़ को छोड़ कर शेष जमीन किसानों को सौंपे जाने के लिए तैयार है।गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिंगूर आंदोलन के दौरान शहीद हुए राज कुमार भूल और तापसी मल्लिक के नाम पर सिंगुर में एक शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की। उन्होंने जिलाधिकारी को इसके लिए जमीन तलाशने को निर्देश भी जारी कर दिया है। उस स्मारक पर उनकी तस्वीर मौजूद होगी।
मुख्यमंत्री ने इस मौके पर यह भी कहा कि किसी भी आंदोलन में पीछे नहीं मुड़ना चाहिए। गौरतलब है किकि 2006 में राज्य के वाम मोरचा की सरकार में तात्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने टाटा के नैनो कारखाना के लिए 997.11 एकड़ जमीन किसानों से जबरन अधिग्रहण किया था।
जाहिर है कि बहुचर्चित सिंगुर आंदोलन का दौर गुरुवार को पूरा हो गया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से खेतों में सरसों का बीज छिड़कने के साथ ही करीब एक दशक बाद गिराए गए नैनो कार प्लांट की जगह पर फिर से खेती की शुरुआत हो गई। सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने 31 अगस्त को 12 हफ्तों की समयसीमा तय की थी और उसके अंदर ही पांच मौजों में फैली 103 एकड़ जमीन का कब्जा 298 किसानों को सौंप दिया गया। पीठ ने यह भी कहा था कि कार परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया गलत थी और यह लोगों के उद्देश्य के लिए नहीं थी।
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