Wednesday, November 4, 2015

नैनीझील की गहराई में अभी जिंदा हैं व्यवस्था बदलने के ख्वाब। फिर वही हुड़के की थाप है मालरोड पर,पहाड़ ने लौटाया पद्मश्री। पलाश विश्वास

नैनीझील की गहराई में अभी जिंदा हैं व्यवस्था बदलने के ख्वाब।
फिर वही हुड़के की थाप है मालरोड पर,पहाड़ ने लौटाया पद्मश्री।
पलाश विश्वास
उत्तराखंड के नामी इतिहासकार शेखर पाठक ने लौटाया पद्मश्री पुरस्कार
शेखर पाठक को वर्ष 2007 में पद्मश्री दिया गया था


मुझे मालूम है कि मेरे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी का सनेह और समर्थन मेरे साथ हैं तो नैनीताल में मरे लोग भी मेरे साथ खड़े हैं।यह अहसास मेरा वजूद है।जिसदिन यह अहसास खत्म,उसदिन समझो मैं मर गया।

हीरा भाभी और शेखर पाठक ने मुझे फिर ताकत दी है और हम जानते हैं कि देश दुनिया जोड़ने की इस मुहिम में मेरे अपने लोग बी हमेशा की तरह मेरे साथ है।

नैनीझील की गहराई में अभी जिंदा हैं व्यवस्था बदलने के ख्वाब।
फिर वही हुड़के की थाप है मालरोड पर,पहाड़ ने लौटाया पद्मश्री।

देहरादूनसे मीडिया की खबर है: उत्तराखंड के रहने वाले नामी इतिहासकार शेखर पाठक ने देश में 'बढ़ती असहिष्णुता' के चलते सोमवार को अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटा दिया।

पर्यटन नगरी नैनीताल में चल रहे चौथे नैनीताल फिल्म महोत्सव में अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटाने की घोषणा करते हुए पाठक ने कहा कि उन्होंने यह फैसला देश में बढ़ रहे 'असहिष्णुता' के वातावरण और हिमालयी क्षेत्र की उपेक्षा के विरोध में लिया है।

उन्होंने कहा कि हिमालय का पुत्र होने के नाते पुरस्कार लौटाकर यहां के संसाधनों की लूट का विरोध दर्ज कराने का उनका यह एक तरीका है। उत्तराखंड में रहने वाले जाने-माने इतिहासकार, लेखक और शिक्षाविद शेखर पाठक को वर्ष 2007 में पद्मश्री दिया गया था।

Shekhar Pathak - Wikipedia, the free encyclopedia

https://en.wikipedia.org/.../Shekhar_Pat...

Dr. Shekhar Pathak is an Indian historian, writer and academician from Uttarakhand. He is a founder of People's Association for Himalaya Area Research (PAHAR), established in 1983, former professor of History at Kumaun University, Nainital and a Nehru Fellow at the Centre for Contemporary Studies at Teen Murti in ...

PAHAR | People's Association for Himalaya Area Research

pahar.org/

This edition is devoted to the experiences of different participants of Askot – Arakot Abhiyaan's of 1974, 84, 94, 2004 and other study tours. This is special volume for knowing the journey of Himalayan region in last 3-4 decades from the lenses of Travellers. Limited prints of this book are available so you can order the print ...


मुझे बेहद खुशी है कि डीएसबी से एमए पास करने के बाद जिस नैनीताल को मैं पीछे छोड़ आया,सत्तर की दशक की तरह उसकी आवाज भले बाबुलंद न हो,भले ही नैनीताल समाचार की बहसें अब उतनी गरमागरम न हो,भले ही तमाम पुराने साथी बिछुड़ गये हों,भले ही गिरदा अब हमारे बीच नहीं हों,नैनीझील की गहराई में अभी जिंदा हैं व्यवस्था बदलने के ख्वाब।हमारी घाटी अब भी न केवल नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य की धरोहर है,बल्कि वह अब भी राष्ट्र के विवेक के सुर में सुर मिलाने के यथार्थबोध के साथ संगीतबद्ध है।

मुझे अब भी गिरदा के हुड़के की थाप सुनायी दे रही है।

मुझे मालूम नहीं है कि मेरे परिवार के लोग जो पूरे देश में बिखरे हुए हैं,मेरे कितने साथ हैं।

मेरी मामूली हैसियत से वे शर्मिंदा हो सकते हैं या फिर खुश भी हो सकते हैं कि मैं मरा नहीं हूं अभी कि फासिज्म के राजकाज और बजरंगी ब्रिगेड ने अभी मेरा नोटिस लिया नहीं है या मुझे नजरअंडाज कर दिया है  कि चींटी की आवाज से अश्वमेध के घोड़े थमते भी नहीं होंगे।

मैं आनलाइन ही लिखता हूं और मेरे गांव बसंतीपुर में यदा कदा जब नेट पर मेरा लिखा खुल जाता है तो पढ़ भी लेते हैं।लेकिन वे इतने व्यस्त हैं अपनी अपनी जिंदगी में,अपनी अपनी समस्याओं को सुलझाने में उलझे हुए हैं कि उनकी राय जानने की कोई सूरत नहीं है।

वैसे पहाड़ में केसरिया सुनामी पुरअसर है और तराई भाबर में पुरजोर।वे मेरे लोग हजार मील की दूरी के बावजूद जो मेरे वजूद से जुड़े हैं,मेरी जड़ों के लोग कितनी सूचनाएं सही सही पाते होंगे और चीजों को,मुद्दों को कितना कुछ देश के बाकी हिस्से की बहुसंख्य जनता कीतरह समझ रहे होंगे या नहीं समझ रहे होंगे,हम जान नहीं सकते।वे मेरे पक्ष में भी हो सकते हैं और विपक्ष में भी हो सकते हैं।

जब पूरे देश में नफरत की फिजां है और मुहब्बत के किस्से सिरे से गुमशुदा है,हम नही जानते कि हमारी मुहब्बत के क्या हाल हैं या केसरिया सुनामी के मध्य तराई,भाबर और पहाड़ में मेरे लिए मरे अपने लोगों का बेइंतहा प्यार का मूलधन कितना सुरक्षित है।रुद्रपुर अब सिडकुल है तो किछा सितारगंज से लेकर देहरादून तक सिडकुल का विस्तार है।

बंगाली विस्थापितों के इलाके दिनेशपुर और शक्तिफार्म असुरक्षाबोध के तहत जाहिरातौर पर सत्ता के खिलाफ नहीं ही होंगे।

तराई के शहरों कस्बों में अब जल जंगल जमीन नागरिकता से बेदखल विस्थापित भारतीय जनसमूहों का नया भारततीर्थ बन रहा है जो पहसे से ही लघु भारत का भूगोल रहा है।हर रंग के फूल वहीं खिलते हैं और हर खुशबू से गुलशन का कारोबार है।

फिरभी सिडकुल की छांव में,एकाधिकारवादी पूंजी के सर्वव्यापी वर्चस्व के मुक्तबाजार में अब भी मेरे अपने लोग,जिनके बीच में गोबर पानी कीचड़ में पला बढ़ा,अब वे मेरे कितने अपने रह गये,यह जान पाना मेरे लिए सचमुच मुश्किल है।अंधाधुंध बाजारीकरण और बेतरतीब शहरीकरण के सीमेंट के जंगल में कहां कितना घर बचा है,कितना बचा है साझा चूल्हा,ठीक ठीक अंदाजा भी नहीं है मुझे।

लेकिन मेरा शहर नैनीताल जिसने मुझे दृष्टि दी,जिसने मुझे आंधियों से लड़ने की हिम्मत दी,जिसने मुझे रोशनी के लिए अंधियारे के खिलाफ लड़ने के गुर सिखाये,वह हरगिज नहीं बदला है।मैं 1979 से नैनीताले से निकला और साल दो साल पांच साल में इस दरम्यान जाता रहा पहाड़ को छूने,नेनीझील की लहरों से बतियाने और एक एक करके हमारे तमाम साथी बिछुड़ गये।हमने गिरदा को भी खो दिया।विपिन चचा.निर्मल जोशी,भगत दाज्यू से लेकर पहाड़ के चप्पे चप्पे में हमारे साथी चलते बने आहिस्ते आहिस्ते, फिरभी पहाड़ पर लालटेन अभी जल रहा है।

हाल में हीरा भाभी ने कारपोरेट लिटरेचर फेस्टिवल में गिरदा को दिये  गये मरणोपरांत लाइफटाइम पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया है जबकि वह नैनीताल में अकेली और असहाय है।अब असहिष्णुता के खिलाफ हमारे शेखर पाठक ने भारत सरकार के दिये पद्मश्री सम्मान लौटा दिया है।

आज ही फेसबुक वाल पर इस बगावत की शुरुआत करने वाले कवि उदय प्रकाश ने लिखा हैः

मुग़ल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे अत्यंत लोकप्रिय हिंदी सूफ़ी कवि अब्दुल रहीम खानखाना। 'रहिमन' के नाम से उनके पद आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाक़े में उनका स्मारक संसार के बडे सूफ़ी कवियों के स्मारकों में गिना जाता है, जो संभवत: जहांगीर के शासनकाल में निर्मित हुआ। उन्हीं का एक पद याद आ गया, अचानक। " रहिमन आह गरीब की, कबहुँ न निसफल जाय, मरे मूस की चाम से, लौह भसम होइ जाय। " महात्मा गांधी ने इस देश के शासकों को कोई भी नीति अपनाने के पहले जिस ' अंतिम आदमी' के आँसू पोंछने की बात कही थी, उसी की 'आह' तख़्त-ओ-ताज पलटती है।


इसी बीच इंडियन एक्सप्रेस की खबर हैः

BJP leader compares SRK with Hafiz Saeed; Shiv Sena defends actor

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Politicians should stop talking rubbish about Shah Rukh Khan: Anupam Kher

Politicians should stop talking rubbish about Shah Rukh Khan: Anupam Kher

Anupam Kher has come out in support of Shah Rukh Khan after Yogi Adityanath compared SRK with Pakistani terrorist Hafiz Saeed for his comments over intolerance in India.
बाकी ,कातिलों का काम तमाम है
अगर हम कत्ल में शामिल न हों!

KADAM KADAM BADHAYE JA...




फिल्में फिर वही कोमलगांधार,
शाहरुख  भी बोले, बोली शबाना और शर्मिला भी,फिर भी फासिज्म की हुकूमत शर्मिंदा नहीं।

https://youtu.be/PVSAo0CXCQo

KOMAL GANDHAR!



गुलामों,फिर बोल कि लब आजाद हैं!

कदम कदम बढ़ाये जा,सर कटे तो कटाये जा
थाम ले हर तलवार जो कातिल है
फिक्र भी न कर,कारंवा चल पड़ा है!

उनेक फंदे में फंस मत
न उनके धंधे को मजबूत कर
जैसे वे उकसा रहे हैं जनता को
धर्म जाति के नाम!

जैसे वे बांट रहे हैं देश
धर्म जाति के नाम!

उस मजहबी सियासत
की साजिशों को ताकत चाहिए
हमारी हरकतों से
उनके इरादे नाकाम कर!
उनके इरादे नाकाम कर!

कोई हरकत ऐसी भी न कर
कि उन्हें आगजनी का मौका मिले!

कोई हरकत ऐसा न कर कि दंगाइयों
को फिर फिजां कयामत का मौका मिले!

फासिज्म के महातिलिस्म में फंस मत
न ही बन उनके मंसूबों के हथियार!

यकीनन हम देश जोड़ लेंगे!
यकीनन हम दुनिया जोड़ लेंगे!

यकीनन हम इंसानियत का फिर
मुकम्मल भूगोल बनायेंगे!

यकीनन हम इतिहास के खिलाफ
साजिश कर देंगे नाकाम!

हम फतह करेंगे यकीनन
अंधेरे के खिलाफ रोशनी की जंग!

गुलामों,फिर बोल कि लब आजाद हैं!
पलाश विश्वास
यही सही वक्त है सतह से फलक को छू लेने का।
जमीन पक रही है बहुत तेज
जैसे साजिशें भी उनकी हैं बहुत तेज

तलवार की धार पर चलने का
यही सही वक्त है,दोस्तों

भूमिगत आग के तमाम ज्वालामुखियों के
जागने का वक्त है यह सही सही,दोस्तों

गलती न कर
गलती न कर
मत चल गलत रास्ते पर

मंजिल बहुत पास है
और दुश्मन का हौसला भी पस्त है
अब फतह बहुत पास है ,पास है

कि जुड़ने लगा है देश फिर
कि दुनिया फिर जुड़ने लगी है
कि तानाशाह हारने लगा है

गलती न कर
गलती न कर
मत चल गलत रास्ते पर

कदम कदम उनके चक्रव्यूह
कदम कदम उनका रचा कुरुक्षेत्र
कदम कदम उनका ही महाभारत

जिंदगी नर्क है
जिंदगी जहर है
जिंदगी कयामत है

हाथ भी कटे हैं हमारे
पांव भी कटे हैं हमारे
चेहरा भी कटा कटा
दिल कटा हुआ हमारा
कटा हुआ है दिमाग हमारा

बेदखली के शिकार हैं हम
उनकी मजहबी सियासत
उनकी सियासती मजहब
कब तक सर रहेगा सलामत

कटता है तो सर कटने दे
दिलोदिमाग चाहिए फिर
कटे हुए हाथ भी चाहिए
कटे हुए पांव भी चाहिए
लुटी हुई आजादी भी चाहिए

गुलामों,फिर बोल कि लब आजाद हैं!

कदम कदम बढ़ाये जा,सर कटे तो कटाये जा
थाम ले हर तलवार जो कातिल है
फिक्र भी न कर,कारंवा चल पड़ा है!

उनेक फंदे में फंस मत
न उनके धंधे को मजबूत कर
जैसे वे उकसा रहे हैं जनता को
धर्म जाति के नाम!

जैसे वे बांट रहे हैं देश
धर्म जाति के नाम!

उस मजहबी सियासत
की साजिशों को ताकत चाहिए
हमारी हरकतों से
उनके इरादे नाकाम कर!
उनके इरादे नाकाम कर!

कोई हरकत ऐसी भी न कर
कि उन्हें आगजनी का मौका मिले!

कोई हरकत ऐसा न कर कि दंगाइयों
को फिर फिजां कयामत का मौका मिले!

फासिज्म के महातिलिस्म में फंस मत
न ही बन उनके मंसूबों के हथियार!

यकीनन हम देश जोड़ लेंगे!
यकीनन हम दुनिया जोड़ लेंगे!

यकीनन हम इंसानियत का फिर
मुकम्मल भूगोल बनायेंगे!

यकीनन हम इतिहास के खिलाफ
साजिश कर देंगे नाकाम!

हम फतह करेंगे यकीनन
अंधेरे के खिलाफ रोशनी की जंग!

गुलामों,फिर बोल कि लब आजाद हैं!
अंधियारे के खिलाफ जीत का तकादा है रोशनी के लिए तो अंधेरे के तार तार को रोशन करना चाहिए।अंधियारे के महातिलिस्म से बचना चाहिए।उनकी ताकत है कि हम बंटे हुए हैं।हम साथ हैं तो कोई तानाशाह,कोई महाजिन्न,कोई बिरंची बाबा फिर हमें बांट न सके हैं।लब आजाद हैं।

लोग बोल रहे हैं क्योंकि लब आजाद हैं।
जो खामोश है,उनका सन्नाटा भी होगा तार तार,जब सारे गुलाम उठ खड़े होंगे।हर तरफ जब गूंज उठेंगी चीखें तो जुल्मोसितम का यह कहर होगा हवा हवाई और थम जायेगी रंगारंग सुनामी तबाही की।

इस भारत तीर्थ में सरहदों के आरपार मुकम्मल मुल्क है इंसानियत का।कायनात की तमाम बरकतों,नियामतों,रहमतों से नवाजे गये हैं हम।उस इंसानियत की खातिर,उस कायनात की खातिर,जो हर शख्स,आदमी या औरत हमारे खून में शामिल हैं,हमरे वजूद में बहाल है जो साझा चुल्हा,जो हमारा लोक संसार है,जो हमारा संगीत है,जो कला है,जो सृजन और उत्पादन है,जो खेत खलिहान हैं,जो कल कारकाने हैं,जो उद्योग,कारोबार और काम धंधे हैं- उनमें जो मुहब्बत का दरिया लबालब है,उसे आवाज दो,दोस्तों।

फासिज्म अपनी कब्र खुद खोद लेता है।इतिहास गवाह है।
इतिहास गवाह है कि हर तानाशह मुंह की खाता है।
उनके सारे गढ़,किले और तिलिस्म तबाह होते हैं।
उनका वशीकरण,उनका तंत्र मंत्र यंत्र बेकार हैं।

हम सिर्फ पहल करेंगे मुहब्बत की तो जीत हमारी तय है।
हम सिर्फ पहल करेंगे अमन चैन की तो जीत हमारी है।
हम सिर्फ पहल करेंगे भाईचारे की तो जीत हमारी है।
हम तमाम साझा चूल्हा सुलगायेंगे और फिर देखेंगे कि कातिलों के बाजुओं में फिर कितना दम है।

सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है
वरनम वन चल पड़ा है
कारवां भी निकल पड़ा है

प्रतिक्रिया मत कर
मत कर कोई प्रतिक्रिया
फिर तमाशा देख

उनके फंदे होंगे बेकार
अगर हम न फंसे उस फंदे में

उनके धंधे होंगे बेकार
अगर हम न फंसे उनके धंधे में
उनकी साजिशें होंगी बेकार
अगर हम उनके हाथ मजबूत न करें

सियासती मजहब हो या मजहबी सियासत हो
या फिर हो वोट बैंक समीकरण
हर कातिल का चेहरा हम जाने हैं
हर कत्ल का किस्सा हम जाने हैं
हर कत्लेाम का किस्सा हम जाने हैं

कातिलों का साथ न दें कोई
तो कत्ल और कत्लेआम के
तमाम इंतजाम भी बेकार

प्रतिक्रिया मत कर
मत कर कोई प्रतिक्रिया
फिर तमाशा देख

बस, गोलबंदी का सिलसिला जारी रहे।
बस, लामबंदी का सिलसिला जारी रहे।
बस,चीखों का सिलसिला जारी रहे।

बाकी ,कातिलों का काम तमाम है
अगर हम कत्ल में शामिल न हों!

बस,चीखों का सिलसिला जारी रहे।

जेएनयू को जो देशद्रोह का अड्डा बता रहे हैं,उन्हें नहीं मालूम कि जनता जान गयी हैं कि देशद्रोहियों की जमात कहां कहां हैं और कहां कहां उनके किले,मठ,गढ़,मुक्यालय वगैरह वगैरह है।

वे दरअसल छात्रों और युवाओं के अस्मिताओं के दायरे से बाहर ,जाति धर्म के बाहर फिर गोलबंदी से बेहद घबड़ाये हुए हैं।

वे दरअसल मंडल कमंडल गृहयुद्ध की बारंबार पुनरावृत्ति की रणनीति के फेल होने से बेहद घबड़ाये हुए हैं।

वे बेहद घबड़ाये हुए हैं कि तानाशाही हारने लगी है बहुत जल्द।

वे बेहद घबड़ाये हुए हैं जो इतिहास बदलने चले हैं कि उन्हें मालूम हो गया है कि इतिहास के मुकबले तानाशाह की उम्र बस दो चार दिन।

वे बेहद घबड़ाये हुए हैं जो इतिहास बदलने चले हैं कि दिल्ली कोई मुक्मल देश नहीं है और देश जागने लगा है दिल्ली की सियासती मजहब के खिलाफ,मजहबी सियासत के खिलाफ।

वे बेहद घबड़ाये हुए हैं कि सिकरी बहुत दूर है दिल्ली से और अश्वमेधी घोड़े,बाजार के सांढ़ और भालू तमामो,तमामो अंधियारे के कारोबारी तेज बत्ती वाले, तमामो नफरत के औजार अब खेत होने लगे हैं।

वे बेहद घबड़ाये हुए हैं कि न वे बिहार जीत रहे हैं और न वे यूपी जीत रहे हैं।

राष्ट्र का विवेक बोलने लगा है।
फिर लोकधुनें गूंजने लगी हैं।
फिर कोमलगांधार हैं हमारा सिनेमा।
फिर दृश्यमुखर वास्तव घनघटा है।

फिर शब्द मुखर है फासिज्म के राजकाज के खिलाफ।
फिर कला भी खिलखिलाने लगी है आजाद।
फिर इतिहास ने अंगड़ाई ली है।
फिर मनुष्यता और सभ्यता,प्रकृति और पर्यावरण के पक्ष में है विज्ञान।
कि अर्थशास्त्र भी कसमसाने लगा है।
कि जमीन अब दहकने लगी है।
कि जमीन अब पकने लगी है।

कि ज्वालामुखी के मुहाने खुलने लगे हैं।
हार अपनी जानकर वे बेहद घबड़ाये हुए हैं और सिर्फ कारपोरेट वकील के झूठ पर झूठ उन्हें जितवा नहीं सकते।
न टाइटैनिक वे हाथ जनता के हुजूमोहुजूम को कैद कर सकते हैं अपने महातिलिस्म में।
बादशाह बोला तो खिलखिलाकर बोली कश्मीर की कली भी।संगीत भी ताल लय से समृद्ध बोला बरोबर।तो बंगाल में भी खलबली है।

बंगाल में भी हार मुंह बाएं इंतजार में है।
खौफजदा तानाशाह बेहद घबराये हैं।
बेहद घबराये हैं तमामो सिपाहसालार।
बेहद घबराये हैं हमारे वे तमामो राम जो अब हनुमान हैं,बजरंगी फौजें भी हमारी हैं।

देर सवेर जान लो,धर्म जाति का तिलिस्म हम तोड़ लें तो समझ लो,यकीनन वे फौजें फिर हमारी हैं।
इकलौता तानाशाह हारने लगा है।सिपाहसालार मदहोश आयं बायं बक रहे हैं।खिलखिलाकर हंसो।

खिलखिलाकर हंसो।
उनके जाल में हरगिज मत फंसो।
जीत हमारी तय है।

कदम कदम बढ़ाये जा,सर कटे तो कटाये जा
थाम ले हर तलवार जो कातिल है
फिक्र भी न कर,कारंवा चल पड़ा है!

कदम कदम बढाये जा

रचनाकार: राम सिंह ठाकुर  
कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा
ये जिन्दगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा

शेर-ए-हिन्द आगे बढ़, मरने से फिर कभी ना डर
उड़ाके दुश्मनों का सर, जोशे-वतन बढ़ाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा ...

हिम्मत तेरी बढ़ती रहे, खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे खड़े, तू ख़ाक मे मिलाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा ...

चलो दिल्ली पुकार के, क़ौमी निशां सम्भाल के
लाल किले पे गाड़ के, लहराये जा लहराये जा
कदम कदम बढ़ाये जा...
बाकी ,कातिलों का काम तमाम है
अगर हम कत्ल में शामिल न हों!

KADAM KADAM BADHAYE JA...




फिल्में फिर वही कोमलगांधार,
शाहरुख  भी बोले, बोली शबाना और शर्मिला भी,फिर भी फासिज्म की हुकूमत शर्मिंदा नहीं।

https://youtu.be/PVSAo0CXCQo

KOMAL GANDHAR!



गुलामों,फिर बोल कि लब आजाद हैं!

कदम कदम बढ़ाये जा,सर कटे तो कटाये जा
थाम ले हर तलवार जो कातिल है
फिक्र भी न कर,कारंवा चल पड़ा है!

उनेक फंदे में फंस मत
न उनके धंधे को मजबूत कर
जैसे वे उकसा रहे हैं जनता को
धर्म जाति के नाम!

जैसे वे बांट रहे हैं देश
धर्म जाति के नाम!

उस मजहबी सियासत
की साजिशों को ताकत चाहिए
हमारी हरकतों से
उनके इरादे नाकाम कर!
उनके इरादे नाकाम कर!

कोई हरकत ऐसी भी न कर
कि उन्हें आगजनी का मौका मिले!

कोई हरकत ऐसा न कर कि दंगाइयों
को फिर फिजां कयामत का मौका मिले!

फासिज्म के महातिलिस्म में फंस मत
न ही बन उनके मंसूबों के हथियार!

यकीनन हम देश जोड़ लेंगे!
यकीनन हम दुनिया जोड़ लेंगे!

यकीनन हम इंसानियत का फिर
मुकम्मल भूगोल बनायेंगे!

यकीनन हम इतिहास के खिलाफ
साजिश कर देंगे नाकाम!

हम फतह करेंगे यकीनन
अंधेरे के खिलाफ रोशनी की जंग!

गुलामों,फिर बोल कि लब आजाद हैं!
पलाश विश्वास

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