Friday, October 16, 2015

संस्थागत फासीवाद भारत को अंधकार और सर्वनाश की ओर ले जा रहा है! निजी विरोध से इसे रोकना मुश्किल है,जबकि संगठनात्म ढांचे में हम जनता को लामबंद करने की कोशिश नहीं कर लेते! https://youtu.be/mgbxKZ9nqVg उनका मिशन: The Economics of Making in! It is an eye witness account of Meerut Riots in eighties where I had been working as a professional journalist during 1984 to 1990 पलाश विश्वास

संस्थागत फासीवाद भारत को अंधकार और सर्वनाश की ओर ले जा रहा है!
निजी विरोध से इसे रोकना मुश्किल है,जबकि संगठनात्म ढांचे में हम जनता को लामबंद करने की कोशिश नहीं कर लेते!

उनका मिशन: The Economics of Making in!

It is an eye witness account of Meerut Riots in eighties where I had been working as a professional journalist during 1984 to 1990
पलाश विश्वास
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश लागू कभी होते नहीं हैं और सरकारें अदालती फैसलों की अवमानना में सबसे आगे हैं।संवैधानिक पदों का भयंकर दुरुपयोग हो रहा है और वहां से मौलिक,नागरिक और मानवाधिकारों पर निर्मम निर्लज्ज हमले हो रहे हैं।

ताजा उदाहरण बंगाल के राज्यपाल  और हरियाणा के मुख्यमंत्री के बयान हैं तो संस्कृति मंत्री,जो दादरी के सांसद भी हैं,की यह चुनौती की पहले लेखक लिखना छोड़ तो दें तो दूसरी ओर,विरोध में उतरे लेखकों,कवियों संस्कृतिकर्मियों का दानवीकरण अभियान व्यापक पैमाने पर संस्थागत तरीके से चालू आहे।

ये फासीवादी तंत्र और तिलिस्म के ज्वलंत उदाहरण हैं और बिना बुनियादी मुद्दों को संबोधित किये सिर्फ हवा हवाई विरोध से हम इस व्यवस्था की चूलें हिला देने की खुशफहमी में हैं तो गलत है।

फासीवाद संस्थागत है और बाजार का पूरा समर्थन उसे है।वैश्विक व्यवस्था में साम्राज्यवादी विकसित देशों की विश्वव्यवस्था के उपनिवेश में वह मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था,राजनीति और संस्कृति पर काबिज है जो लोकतंत्र,संविधान, कानून के राज,समता, न्याय विविधता,बहुलता,नागरिक संप्रभूता और निजता,मौलिक अधिकारों,नागरिक अधिकारों,मानव अधिकारों और प्रकृति व प्रयावरण के खिलाफ है और नरसंहार के वैश्विक एजंडे को वह डंके की चोट पर अंजाम दे रहा है और सारे किलों पर वे काबिज है।सारा तंत्र मंत्र यंत्र और तिलिस्म पर उसका कब्जा है।

उत्पादन प्रणाली और उत्पादक शक्तियों के सफाये के कार्यक्रम को अंजाम देजने के बाद वह अपराजेय रथयात्रा पर है,समाज के सारे ताकतवर तत्वों का  उसके समरस रसायन में विचित्र कायाकल्प हो गया है और वे या तो अश्वमेधी घोड़े हैं या फिर बाजार के खुल्ला सांढ़ और

के अंदर तक उसका चाकचौबंद नेटवर्किंग है और उत्पीड़ि जनता उसकी पैदल फौजें।धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के रथ पर सवार नंगी तलवारों से हर लोकतांत्रिक तत्व,व्यक्ति और संस्था का वह कत्लेाम कर रहा

विशिष्टजन अपनी हैसियत और खाल बचाने के लिए उसके सिपाहसालार हैं।

ऐसे में राजधानियों से निकले जुलूसोें और एकाकी कंठस्वर के हुजूम से भी कुछ बदलने वाला नहीं है,क्योंकि इनसे निपटना फासीवाद का कला कौशल है।

फासीवाद बेहतर जानता है कि जनसमर्थन और जनादेश कैसे हासिल हो और राजकाज के मुकाबले हर किसी को विकलांग और नपुंसक कैसे बनाया जाता है।

हम इस संस्थागत फासीवाद का मुकाबला कतई नहीं कर सकते जबतक कि जनता हमारे साथ नहीं होती और अकेले ही अकेले हम इस कयामत के मंजर को बदल नहीं सकते।

क्रांतिकारी को जनता के बीच जाकर ही क्रांति करनी होगी।

खंड खंड देश दुनिया को पहले जोड़ें और इसीके साथ जनता को फासीवाद के खिलाप लामबंद करें वरना आपकी शहादत किसी के काम नहीं आयेगी।

जड़ों पर फासीवाद काबिज है और यह लड़ाई पूरे देश में हो,जनता लड़ने को तैयार हो,ऐसे हालात बनाने की हम कोशिश कर नहीं पा रहे हैं।

हम लगातार अपने लाल नील दोस्तों से यही कहते रहे हैं कि सिंहद्वार पर दस्तक है भारी,जाग सको,तो जाग जाओ।हमारे कहे का कोई असर है नहीं के मूर्ति पूजा के देश में हमारी कोई हैसियत नहीं है और न कोई सुनवाई है।

हम अस्सी के दशक में जैसे साम्राजयवाद के खतरे को समझ रहे थे और नवउदारवाद की शुरुआत से ही लगातार अमेरिका से सावधान कह रहे थे,उसीतरह हम अपने रचनाक्रम में लगातार हिंदुत्व के पुनरूत्थान में फासीवाद के अपराजेय होते जाने की पूरी प्रक्रिया की जांच पड़ताल कर रहे थे।

अस्सी के दशक के अनुभवों और मेरठ के दंगों के आंखों देखा पर केंद्रित मेरा लघु उपन्यास उनका मिशन है जो मेकिंग इन के अर्थशास्त्र के साथ साथ धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के सामाजिक यथार्थ को संबोधित करने की कोशिश है।

मेरी कोई महात्वांकाक्षा कालजयी बनने की नहीं है।मौजूदा बहस में सामाजिक यथार्थ और सच के खुलासे के लिए आज हमने तीन वीडियो इस लघु उपन्यास के पाठ पर जारी किये हैं,जो अधूरा है।आपकी दिलचस्पी होगी तो बाकी पाठ भी पूरा कर दिया जायेगा।

हजार साल से लेकर अबतक गोमांस के बहाने धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था के बुनियादी अधिकार पर केंद्रित धर्मांध बहस और धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण से ऐन पहले भारत को यूनान बना देने का एजंडा संयुक्त राष्ट्र में पास हुआ है,जिसके तहत भारत में कृषि,व्यवसाय औरक उद्योगों के क्रिया कर्म अबाध विदेशी पूंजी और अबाध विदेशी हस्तक्षेप के चूंते हुए जगमग जगमग विकास के नाम कर देने का चाकचौबंद बंदोबस्त हो गया है और गोमांस को लेकर फिजां इसतरह कयामत बन गयी है कि इस सत्यानाश के नरसंहारी अश्वमेध के प्रतिरोध में कहीं कोई बयान तक जारी नहीं हुआ है।विरोध प्रतिरोध की तो छोड़िये।

सच का सामना करना बेहद जरुरी है।

हमारे राष्ट्रीय नेता कोई पवित्र गायें नहीं हैं और हमें उनकी खूबियों और खामियों की वस्तुनिष्ठ आलोचना भविष्य में भारत की विविधता और एकता को बनाये रखने के लिए करनी ही होगी।

इस सिलसिले में हम बाबासाहेब डा. अंबेडकर को ईश्वर मानने से इंकार कर चुके हैं और लगातार उनके बुनियादी मिशन जाति उन्मूलन के एजंडे के साथ साथ उनकी वजह से मिले तमाम हकहकूक की हिफाजत करने पर जोर दे रहे हैं।

हम बाबासाहेब को या किसी अन्य राष्ट्रनेता का अंध समर्थन या विरोध नहीं कर रहे हैं।

जिस रवींद्रनाथ को देशद्रोही बताया जा रहा है वे अछूत थे और अस्पृश्यता के खिलाफ उनका पूरा साहित्य है।

गीताजंलि भी,जिनके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला और इसी वजह से नस्ली भेदभाव के तहत उन्हें महिषासुर बनाकर वध कर देने का इंतजाम उनके खिलाफ जारी घृणा अभियान है।

हमने फिलाहाल उनके साहित्य और दलित विमर्श,और उनके संगीत में नारी मुक्ति पर केंद्रित दो वीडियो जारी किये हैं और यह सिलसिला जारी रहेगा।

हाल में केजरीवाल ने जब घूसखोरी के आरोप में मंत्री को निकाला तो हमने इसका स्वागत करते हुए सिर्फ इतना कहा है कि कारपोरेट और संस्थागत भ्रष्टाचार से निपटे बिना किसी व्यक्ति के खिलाफ सुविधाजनक कार्रवाई से कुछ भी बदलने वाला नहीं है।

इसीतरह हमने सच उजागर करने के लिए महत्वपूर्ण नेताजी के दस्तावेज सार्वजनिक करने की ममता बनर्जी की पहल के लिए उनका आभार भी माना है।यही काम अब देश के प्रधानमंत्री करने की ऐलान कर चुके हैं तो हम उसका भी स्वागत करते हैं।

हमारे पाठक भली भांति जानते हैं कि तीनों नेताओं के राजकाज के बारे में हमारी राय क्या है।

अब यह मान ही लेना चाहिए कि जेपी पर हम बहसन भी करें तो सच यह है कि भारत में अमेरिकापरस्त ताकतें दरअसल इंदिरा गाधी की तानाशाही के खिलाफ नहीं,समाजवादी विकास माडल और कल्याणकारी राज्य के विरुदध एकजुट हो गयी।

आपातकाल लागू करके जनता के सारे हकहकूक निलंबित करने की ऐतिहासिक भूल के जरिए इंदिरा गांधी ने ही भारत में फासिज्म का सिंह दरवाजा खोल दिया।1977 में जनता सरकार में संघी वर्चस्व और सभी बुनियादी संस्थाओं में मसलन मीडिया पर संघ की घुसपैठ का नतीजा यह केसरिया सुनामी है।

संघ परिवार के समर्थन से फिर सत्ता में वापसी के बाद इंदिरा गांधी ने देवरस जी के साथ मिलकर जो हिंदुत्व का अभियान चलाया,उसीका परिणाम सिखों का नरसंहार है।

अस्सी का दशक भारत के इतिहास को अंधकार युग में ले जाने का इतिहास है,जब मंडल कमंडल कुरुक्षेत्र में हिंदुत्व का पुनरूत्थान हो गया और भारत में स्वतंत्रता  के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस के साथ साथ भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन का भी अवसान हो गया।

सिखों के नरसंहार से लेकर गुजरात के नरसंहार तक धर्मोन्माद भारत देश के शास्त्रीय संगीत का स्थाई भाव हो गया और तदनुसार साहित्य,संस्कृति,कला,समाज,राजनीति और अर्थव्यवस्था, राजनय, राष्ट्रीयता,कानून व्यवस्था,न्यायप्रणाली और मीडिया का कायकल्प हो गया। ये हालात बदलने जरुरी हैं।



The phenomenon of vertical partition of India all on name of development and religion had began.

I landed in a peaceful city in UP,Bareilly in 1990.The Mandal v/s Kamandal broke in and religious nationalism overlapped inherent pluralism and diversity.Unity and integrity of the Nation India had been at stake.I saw the Babri mosque Demolition campaign shaping in Meerut and I saw the mission being accomplished.KARSEVA began and the climax was Gujarat Genocide followed by Babri Mosque demolition.

My short Novel in Hindi is all about the Economics of Making in!It is about the destruction of economy,small industries and strategic war against humanity and Nature.The Novel was written part by part in Meerut, Bareilly and Kolkata.It was published in a little magzine सामयिक परिदृश्य edited by Vimal Varma. Mr.varma wanted to publish it in book format.Eminent artist Ashok Bhowmik,then based in Kolkata created the cover page,an excellent work of art.The book was never published and Mr.Varma also lost the cover.I have not to say a word on that because Mr.Varma had not resources.But I am sorry for Ashokda and his creation which we lost.

The book has not to be published as I am already excluded from PRINT as well as literature.I have opted to continue the fight online.

I feel the novel should be relevant which was recreated in Bengali and the script is lying Bangla Akademy,Kolkata for almost ten years,unnoticed.

I have read most of the Novel in three videos which I publish today to explain the phenomenon of vertcal partition.Please see.

उनका मिशन:The institution of the religious partition and the Politics of religion

I have dealt with details the phenomenon of the institution of the religious partition and the Politics of religion in this part of the novel which exposes the rule of law and the role of media helping to destroy indigenous production system,the small scale industries
killed for monopolistic profit making which is all about the free flow of foreign capital and foreign interests and the agenda of economic reforms,all about the hindutva agenda.I have tried to expose the rumour mills and the headlines created every time and the truth underplayed,twisted or deleted.

उनका मिशन: the strategy and strategic marketing of blind nationalism based in religious identity!
I this part of the novel I have dealt with the phenomenon of Hashimpuara and Maliyana genocide episodes and the economic ethnic cleansing,the racist apartheid and the hatred campaign launched.How Indian media set the turnaround.I noted the details of the day to day life of journalist which is an eyewitness account.

It is a novel dealing social realism.I have read the most part of it and if I get your response I would read the rest yet another day!
हस्तक्षेप पर आपके हस्तक्षेप का इंतजार है।
कृपया देखते रहें हस्तक्षेप!
हस्तक्षेप करें!
Aesthetics of Social realism:

মন্ত্রহীণ,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্র,রবীন্দ্র সঙ্গীত!
We have to go back to roots as all the holy men and women in the past spoke love,which is the central theme of Tagore literature which is essentially the original dalit literature in India!
अरब का वसंत भारत में गोरक्षा आंदोलन बन गया है,फिर बंटवारे का सबब!
कब तक हम अंध राष्ट्रवाद, अस्मिता अंधकार और जाति युद्ध में अपना ही वध देखने को अभिशप्त हैं?

# BEEF GATEThanks Kejri!Hope not a Gimmick again!Kejriwal sacks minister on live TV for corruption

# BEEF GATE!Thanks Kejri!Hope not a Gimmick again!

अछूत रवींद्रनाथ का दलित विमर्श
Out caste Tagore Poetry is all about Universal Brotherhood which makes India the greatest ever Ocean which merges so many streams of Humanity!
आप हमारा गला भले काट दो,सर कलम कर दो लब आजाद रहेंगे! क्योंकि हिटलर के राजकाज में भी जर्मनी के संस्कृतिकर्मी भी प्रतिरोध के मोर्चे पर लामबंद सर कटवाने को तैयार थे।जो भी सर कटवाने को हमारे कारवां में शामिल होने को तैयार हैं,अपने मोर्चे पर उनका स्वागत है।स्वागत है।

https://youtu.be/OxH3xyFacco


Why do I quote Nabarun Bhattacharya so often?

এই মৃত্যু উপত্যকা আমার দেশ নয়!

এই মৃত্যু উপত্যকা আমার দেশ নয়!Nabarun Da declared it in seventies!

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