Sunday, October 11, 2015

थोक के भाव में लेखकों ने सरकार से लिए पुरस्‍कार वापस कर दिए। उदय प्रकाश से शुरू हुआ यह काम मंगलेश डबराल, राजेश जोशी, कृष्‍णा सोबती, अशोक वाजपेयी, सच्चिदानंदन, पंजाब, कश्‍मीर व कन्‍नड़ के लेखकों तक जा पहुंचा है। इससे भी सुखद यह है कि कल मंडी हाउस से निकली रैली में नीलाभजी, पंकज सिंह, सविता सिंह, रंजीत वर्मा, इरफान,अनिल चमडि़या, अनिल दुबे, राजेश वर्मा समेत तमाम लेखक-पत्रकार शामिल रहे। पत्रकार अमन सेठी ने भी साहित्‍य अकादमी का युवा पुरस्‍कार वापस कर दिया है। हिंदी के नौजवान कहां छुपे हैं? उमाशंकर चौधरी, कुमार अनुपम, कुणाल सिंह, खोह से बाहर निकलो। सेटिंग-गेटिंग से उबरो। अकादमी का युवा पुरस्‍कार तत्‍काल लौटाओ।

https://youtu.be/_iuLfQn2MxA
# Beef Gate!Let Me Speak Human!What is your Politics,Partner?Dare you to Stand for Humanity?
বাংলা দৈনিক এই সময়ঃকলবার্গি থেকে ইকলাখঃ ডানপন্থী চোখরাঙানির বিরুদ্ধে সোচ্চার কাশ্মীর থেকে কন্যাকুমারী!
অসহিষ্্নুতার শেষ চাইছে দেশ,বাংলা নিরুত্তাপ!

 Indian Intelligentsia resist the governance of Fascism and the Hindutva Agenda.Welcome!Very Welcome!

 Three eminent writers from Punjab return 

 Sahitya Akademi awards!Thanks Uday 

 Prakash for his initiative!

 Bengal,Maharashtra and Karnataka chose silence as the conscience of Gujarat is quite aloud!
http://letmespeakhuman.blogspot.in/2015/10/httpsyoutubeiulfqn2mxa-beef-gatelet-me.html

अब अच्‍छा लग रिया है। थोक के भाव में लेखकों ने सरकार से लिए पुरस्‍कार वापस कर दिए। उदय प्रकाश से शुरू हुआ यह काम मंगलेश डबराल, राजेश जोशी, कृष्‍णा सोबती, अशोक वाजपेयी, सच्चिदानंदन, पंजाब, कश्‍मीर व कन्‍नड़ के लेखकों तक जा पहुंचा है। इससे भी सुखद यह है कि कल मंडी हाउस से निकली रैली में नीलाभजी, पंकज सिंह, सविता सिंह, रंजीत वर्मा, इरफान,अनिल चमडि़या, अनिल दुबे, राजेश वर्मा समेत तमाम लेखक-पत्रकार शामिल रहे। पत्रकार अमन सेठी ने भी साहित्‍य अकादमी का युवा पुरस्‍कार वापस कर दिया है। हिंदी के नौजवान कहां छुपे हैं? उमाशंकर चौधरी, कुमार अनुपम, कुणाल सिंह, खोह से बाहर निकलो। सेटिंग-गेटिंग से उबरो। अकादमी का युवा पुरस्‍कार तत्‍काल लौटाओ।
माहौल तगड़ा बन रिया है। इतने बड़े-बड़े लोगों के विरोध में आने से साहेब का इकबाल दक्खिन लग गया है। जनता की निगाह में इकबाल गया, तो समझो सब गया। अब दो काम बाकी है। पहला, विनोद शुक्‍ल, जगूड़ी, अरुण कमल, अलका सरावगी, काशी बाबा, ज्ञानेंद्रपति, नामवरजी और केदारजी तत्‍काल अपने पुरस्‍कार लौटावें। रमेश चंद्र शाह या गिरिराज किशोर से कहने का कोई मतलब नहीं है... फिर भी यही आग्रह। दूसरा काम यह हो कि अगले कदम के तौर पर ये सारे लेखक एक साथ एक मंच पर आवें और नारा लगावें।
भारतीय भाषाओं और खासकर हिंदी के साहित्‍य के लिए यह ऐतिहासिक मौका है जनता से जुड़ने का। एक बार सब लोग सड़क पर उतरिए। साहस बटोर कर। गरियाइए दम भर साहेब को। हमारे जैसे कार्यकर्ता टाइप लोगों को आप अपने पीछे सदैव खड़ा पाएंगे, इसकी गारंटी कम से कम मैं दे सकता हूं। जिन लोगों को पढ़कर हम लोग बड़े हुए, उन्‍हें अपने जीवन में सड़क पर उतरते देखना हमें एक बार फिर से बैरिकेड तोड़ने वाला साहस दे पाएगा। हमारी भी उम्र बढ़ जाएगी और आपकी भी। बस एक धक्‍का ज़ोर से...।
राजेश जोशी ने भी साहित्य अकादमी सम्मान वापिस किया।
जन विजय's photo.
कवि मंगलेश डबराल ने भी साहित्य अकादमी सम्मान लौटाया।
अब अच्‍छा लग रिया है। थोक के भाव में लेखकों ने सरकार से लिए पुरस्‍कार वापस कर दिए। उदय प्रकाश से शुरू हुआ यह काम मंगलेश डबराल, राजेश जोशी, कृष्‍णा सोबती, अशोक वाजपेयी, सच्चिदानंदन, पंजाब, कश्‍मीर व कन्‍नड़ के लेखकों तक जा पहुंचा है। इससे भी सुखद यह है कि कल मंडी हाउस से निकली रैली में नीलाभजी, पंकज सिंह, सविता सिंह, रंजीत वर्मा, इरफान,अनिल चमडि़या, अनिल दुबे, राजेश वर्मा समेत तमाम लेखक-पत्रकार शामिल रहे। पत्रकार अमन सेठी ने भी साहित्‍य अकादमी का युवा पुरस्‍कार वापस कर दिया है। हिंदी के नौजवान कहां छुपे हैं? उमाशंकर चौधरी, कुमार अनुपम, कुणाल सिंह, खोह से बाहर निकलो। सेटिंग-गेटिंग से उबरो। अकादमी का युवा पुरस्‍कार तत्‍काल लौटाओ।
माहौल तगड़ा बन रिया है। इतने बड़े-बड़े लोगों के विरोध में आने से साहेब का इकबाल दक्खिन लग


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