Friday, October 23, 2015

ओ.बी सी., एस. सी., एस.टी. के लोगों को अपने पूर्वजों के हत्यारे कौन थे? पता ही नही हैं, सभी लोग क्षेत्र रक्षक थे, जिन्हें ब्राह्मणों के प्रचार द्वारा राक्षस बना दिया । रावण, महिषासुर, मेघनाथ आदि सभी 85% के पुरखे थे और 3% आर्य विदेशी ब्राह्मणों के दुश्मन । जिसे सत्य और असत्य इतिहास का पता नही वही आज शूद्र, दास, गुलाम और नीच है।

ओ.बी सी., एस. सी., एस.टी. के लोगों को अपने पूर्वजों के हत्यारे कौन थे? पता ही नही हैं, सभी लोग क्षेत्र रक्षक थे, जिन्हें ब्राह्मणों के प्रचार द्वारा राक्षस बना दिया । रावण, महिषासुर, मेघनाथ आदि सभी 85% के पुरखे थे और 3% आर्य विदेशी ब्राह्मणों के दुश्मन ।
जिसे सत्य और असत्य इतिहास का पता नही वही आज शूद्र, दास, गुलाम और नीच है
DevAnand Ranga India to भारतीय बहुजन समाज
10 hrs
जय भीम जी दोस्तो


मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!
देश को जोड़ लें,दुनिया जोड़ लें,कोई अकेला भी नहीं है!
दाभोलकार,पनसारे और कलबुर्गी के हत्यारे,बाबरी विध्वंस,भोपाल गैस त्रासदी.देश विदेश दंगों और आतंकी हमलों,सिखों के नरसंहार,गुजरात के दंगों,सलवा जुड़ुम और आफस्पा,टोटल प्राइवेटेजाइशेन,टोटल विनिवेश,टोटल एफडीआी के सौदागर तमाम हारने लगे हैं,हमारा यकीन भी कीजिये।

जिनने इस महादेश को कुरुक्षेत्र के मैदान में तब्दील कर दिया जो धर्म कर्म के नाम असत्य और अधर्म,अहिंसा और भ्रातृत्व के बदले हिंसा और नरसंहार,विश्वबंधुत्व के बदले  हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा और भारत तीर्थ की विविधता,वैचित्र्य के बदले गैरहिंदुओं के सफाये से देश को हिंदू बनाने के उपक्रम से कृषि,व्यवसाय और उद्योगधंधों की हत्या करके विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के दल्ला बनकर महान  भारत देश की हत्या का राजसूय यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। बाबुलंद ऐलानिया जिहाद जो  छेड़े हुए थे राष्ट्र के विवेक,सत्य, अहिंसा,न्याय,शांति समानता के बदले समरस मृत्यु उत्सव के नंगे कार्निवाल में हर मनुष्य को बंधुआ कंबंध बनाने के लिए हिंदू राष्ट्र के नाम पर। अंध राष्ट्रवाद के उन्मादी मुक्तबाजारी आवाहन के साथ।गौर से देख लो भइये,उनके रथ के पहिये धंसने लगे हैं।

अरविंद केजरीवाल,आप हमारी सुन रहे हैं तो दिल्ली में तीनों महापालिकाओं के सफाई कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए तुरंत पहल करें!आपके लिए ऐतिहासिक मौका है।देश की राजधानी में अछूतों और बहुजनों की सुनवाई नहीं है एकसौएक दिन के धरने और अब हड़ताल के बावजूद क्योंकि लोकतंत्र भी मूक वधिर है।
पलाश विश्वास

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