Thursday, December 24, 2015

‘जो जलता नहीं, वह धुएँ में अपने आपको नष्ट कर देता है’

निकोलाई ओस्त्रोवस्की: एक सच्चे क्रान्तिकारी योद्धा और जननायक की पुण्यतिथि (22 दिसम्बर) के अवसर पर

‘जो जलता नहीं, वह धुएँ में अपने आपको नष्ट कर 

देता है’

हज़ारों सालों से जिनके कन्धे जानलेवा मेहनत से चूर हैं, जिन्हें अरसे से हिक़ारत की निगाहों से देखा गया हो, उस मेहनतकश आबादी ने अपने बीच से समय-समय पर ऐसे मज़दूर नायकों को जन्म दिया है जिनका जीवन हमें आज के युग में तो बहुत कुछ सिखाता ही है पर भावी समाज में भी सिखाता रहेगा। निकोलाई ओस्त्रोवस्की मज़दूर नायकों की आकाशगंगा का एक ऐसा ही चमकता ध्रुवतारा है।
ओस्त्रोवस्की का जन्म 29 सितम्बर 1904 को उक्रेन के विलिया नामक गाँव में हुआ। उनके पिता मज़दूर थे पर आमदनी इतनी कम थी कि माँ और छोटी बहनों को भी खेत मज़दूरी का काम करना पड़ता था। बड़े भाई एक लुहार के अपरेन्टिस थे जो अपने मज़दूरों के साथ बेहद अमानवीय बर्ताव करता था। गरीबी ने ओस्त्रोवस्की को भी बचपन में ही मज़दूरी के भँवर में झोंक दिया। नौ साल की उम्र में गड़रिये का काम, फिर ग्यारह साल की उम्र में उक्रेन के शेपेतोवका नगर के स्टेशन के एक रेस्तरां के बावर्चीखाने में काम करते हुए और आसपास ग़रीबी और ग़ुरबत के हालातों से रूबरू होते हुए ओस्त्रोवस्की के दिल में अपने वर्ग शत्रुओं के लिए तीखी नफ़रत की ज़मीन पहले ही तैयार हो गई थी। रेस्तरां के गन्दगीभरे और दमघोंटू माहौल से बचने के लिए ओस्त्रोवस्की अपना ज़्यादातर समय भाई के साथ गुज़ारते जो कि रेलवे डिपो में एक मिस्त्री था। यहीं पर उन्होंने बोल्शेविकों से मज़दूर अधिकारों और मज़दूर क्रान्ति की बातें सीखी, रूसी क्रान्ति के नेता लेनिन और उनके विचारों के बारे में सुना।
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हज़ारों सालों से जिनके कन्धे जानलेवा मेहनत से चूर हैं, जिन्हें अरसे से हिक़ारत की निगाहों से देखा गया हो, उस मेहनतकश आबादी ने अपने बीच से समय-समय पर ऐसे मज़दूर नायकों को जन्म…
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