ए लड़की -- शताब्दी राय की बंगाली कविता (अनुवाद -अशोक भौमिक )
O Meye Recitation by Shatabdi Roy in Mirakkel AC 6
https://www.youtube.com/watch?v=z8ow--KCqoY
क्या कविता है ,अशोकदा! वैसी कविताओं में से एक जो लम्बे समय तक कलेजे को मथती रहती हैं -- जीवन के तलछट का का अनुभव जो तमाम भव्य मूल्यों और दिव्य रिश्तों का मुखौटा उतारकर उनकी असली सूरत दिखला देता है. कवितायें , जो हमें याद दिलाती हैं कि मनुष्य की खून पसीने से लिथड़ी जिंदगी किताबों की ताज़ा छपे पन्ने की खुशबू से कितनी अलग होती है . जो प्रेम ,धर्म और और मनुष्यता के बारे में की गयी हर बौद्धिक बहस को बेमानी बना देती हैं .(आ.कु. )
ए लड़की
शताब्दी राय
ए लड़की तेरी उम्र क्या है रे ?
क्या पता, माँ होती तो बता पाती
वह जब दंगा हुआ था न
- सैकडों मारे गये थे
- हिन्दुओं के घर जले थे
- मुसलमानों के खून बहे थे
सुना है उन्ही दिनों माँ उम्मीद से थीं
इसीलिये दंगा ही मेरा जन्मदिन है
ए लड़की तेरा बाप कहाँ है रे ?
माँ कहती है गरीबों के बाप खो जाया करते है
वैसे कुछ लोग यह भी कहते है कि बाप मेरा हरामी था
माँ की जिंदगी बर्बाद कर दूसरे गाँव जाकर घर बसाया था
माँ कहती थी शिव जी की कृपा थी कि जो तू मिली मुझे
सो शिव जी को ही बाप कह कर पुकार लिया . .
ए लड़की तेरा कोई प्रेमी भी है ?
तेरे आस पास चक्कर लगाते है लडके ?
- प्रेमी किसी कहते है. जी ?
वो जो मीठी मीठी बातें करते है
सपने दिखाते है दिन दहाडे
मेलों मे ले जाकर चूड़ी काजल दिलवाते है
और आड़ में ले जाकर कपड़े खुलवाते है
ऐसा तो नंदू काका ने किया है मेरे साथ दो बार
तब उन्हे ही मैं प्रेमी कहूँगी अब से
ए लड़की तेरी पदवी क्या है रे ?
- सुना है बाप ही देता है इसे
पदवी हो तो दो वक़्त की रोटी मिल जाती है क्या
क्या बाप का लाड़ हँसा और रुला सकता है
वह बाज़ार में बिकती है, क्या
तो दो दस खर्च कर खरीद लाऊँगी उसे ,
पर अगर महँगी मिलती हो तो नहीं चाहिये मुझे
वो बाप दादाओं को ही मुबारक हो.
ए लड़की क्या तू खूबसूरत है ?
- लोग कहते है 'भरी जवानी होती है सत्यानाशी
खूबसूरती तो बस एक धोका है
जवानी में लजीली राधा है.'
वैसे , मर्द नज़रों के इशारे मिलते रहते है मुझे
मौका पाकर, उनके हाथ मेरे छाती और चूतड़ छूते
खूबसूरती क्या बस शरीर पर चढ़ा मांस है ,
तब तो मैं काफी खूबसूरत हूँ !
ए लड़की तेरा धरम क्या है रे ?
- औरतों का भी कोई धर्म होता है, जी
सब कुछ तो शरीर का मामला है
सलमा कहती धरम ही उस समाज को बनाता है
जब शाम को वह खड़ी होती है
कोई नहीं पूछता उससे ' क्या तू हिन्दू है '
बस यहीं पूछते है, ' कितने मे चलेगी "
बिस्तर ही धर्म को मिलाता है
शरीर जब शरीर से खेलता है
इसलिये सोचती हूँ
अबसे शरीर और बिस्तर को ही धर्म कहूँगी .
ए लड़की
शताब्दी राय
ए लड़की तेरी उम्र क्या है रे ?
क्या पता, माँ होती तो बता पाती
वह जब दंगा हुआ था न
- सैकडों मारे गये थे
- हिन्दुओं के घर जले थे
- मुसलमानों के खून बहे थे
सुना है उन्ही दिनों माँ उम्मीद से थीं
इसीलिये दंगा ही मेरा जन्मदिन है
ए लड़की तेरा बाप कहाँ है रे ?
माँ कहती है गरीबों के बाप खो जाया करते है
वैसे कुछ लोग यह भी कहते है कि बाप मेरा हरामी था
माँ की जिंदगी बर्बाद कर दूसरे गाँव जाकर घर बसाया था
माँ कहती थी शिव जी की कृपा थी कि जो तू मिली मुझे
सो शिव जी को ही बाप कह कर पुकार लिया . .
ए लड़की तेरा कोई प्रेमी भी है ?
तेरे आस पास चक्कर लगाते है लडके ?
- प्रेमी किसी कहते है. जी ?
वो जो मीठी मीठी बातें करते है
सपने दिखाते है दिन दहाडे
मेलों मे ले जाकर चूड़ी काजल दिलवाते है
और आड़ में ले जाकर कपड़े खुलवाते है
ऐसा तो नंदू काका ने किया है मेरे साथ दो बार
तब उन्हे ही मैं प्रेमी कहूँगी अब से
ए लड़की तेरी पदवी क्या है रे ?
- सुना है बाप ही देता है इसे
पदवी हो तो दो वक़्त की रोटी मिल जाती है क्या
क्या बाप का लाड़ हँसा और रुला सकता है
वह बाज़ार में बिकती है, क्या
तो दो दस खर्च कर खरीद लाऊँगी उसे ,
पर अगर महँगी मिलती हो तो नहीं चाहिये मुझे
वो बाप दादाओं को ही मुबारक हो.
ए लड़की क्या तू खूबसूरत है ?
- लोग कहते है 'भरी जवानी होती है सत्यानाशी
खूबसूरती तो बस एक धोका है
जवानी में लजीली राधा है.'
वैसे , मर्द नज़रों के इशारे मिलते रहते है मुझे
मौका पाकर, उनके हाथ मेरे छाती और चूतड़ छूते
खूबसूरती क्या बस शरीर पर चढ़ा मांस है ,
तब तो मैं काफी खूबसूरत हूँ !
ए लड़की तेरा धरम क्या है रे ?
- औरतों का भी कोई धर्म होता है, जी
सब कुछ तो शरीर का मामला है
सलमा कहती धरम ही उस समाज को बनाता है
जब शाम को वह खड़ी होती है
कोई नहीं पूछता उससे ' क्या तू हिन्दू है '
बस यहीं पूछते है, ' कितने मे चलेगी "
बिस्तर ही धर्म को मिलाता है
शरीर जब शरीर से खेलता है
इसलिये सोचती हूँ
अबसे शरीर और बिस्तर को ही धर्म कहूँगी .
Bharat Tiwari ............................. frown emoticon
कहाँ है हमारा ज़मीर ?
lया फ़िर था ही नहीं कभी...See More
कहाँ है हमारा ज़मीर ?
lया फ़िर था ही नहीं कभी...See More
Neel Kamal Kya ye wahi shatabdi roy hain jo bangla cinema ki mashahoor abhinetri aur tmc ki mp bhi hain ?
Sudhansu Firdaus हकीकत है क्या कहा जाये ये कविता से ज्यादा वो जीवन कारुनीक है अभिव्यक्ती बहुत हीं तीव्र है.. अनुवाद अच्छा है ...
Aradhana Chaturvedi Mukti सच, तमाम रूमानी कल्पनाओं से परे दुनिया कितनी भयावह लगती है कभी-कभी. और क्यूँ न लगे, वो है भी ज्यादातर लोगों के लिए, खासकर लड़कियों के लिए और उससे भी ज्यादा गरीब लड़कियों के लिए, हर युग में...
Veena Bundela शब्दों के कोड़े बरसाती कविता..सवाल करती ,जवाब मांगती हुई..स्त्री के प्रति समाज का नजरिया बदलने में ना जाने कितने युग लगेंगे और... आभार.....
Suman Singh ओह ! ये एक नग्न सत्य है..! इसे शब्द -सौष्ठव ,शैली, और कथनानुकथन के आधार पर जांचा-परखा जाना ,कविता के मानकों पर रख कर पढ़ना,...ये सब भी ज़रूर होगा...पर ये सिर्फ एक वीभत्स सत्य मात्र है......! एक विचलन पैदा हो रहा है...इसे महसूसने मे... !
Vedna Upadhyay हर एक युग की कथा - व्यथा का उद्घोष करती ----समाज के ठेकेदारों पर अनेकानेक प्रश्न उठाती बड़े ही रहस्यमय ढंग से समाज में अपने स्थान का सवाल पूछती एक जीवंत कविता |
Imtiyaz Azad MAN KO UDVELIT AUR MASHTISHK KO VICHLIT KAR DENE WALI KAVITA...! Thanks for sharing...!!
Dakhal Prakashan Delhi सत्येन्द्र भाई ने जिस अर्थ में इसे खतरनाक कहा है उससे सहमत हूँ. सौन्दर्य और कला की आड़ लिए बिना जो एक धारदार तरीके से कहने की ताकत होती है, वह इस कविता में साफ़ दिखाई देती है. आमतौर पर महिला प्रश्न को मध्यवर्गीय प्रश्न की तरह देखने वाले साहित्य समाज में सर्वहारा महिला का यह प्रवेश विमर्शकारों के लिए बेहद खतरनाक है...
Tulika Sharma बहुत जानदार कविता ....सच को उधेड़ कर रख दिया...आशुतोष जी ..ऐसी पोस्ट्स में मुझे भी टैग कर दिया कीजिये ....इसी बहाने कुछ अच्छा पढ़ लूंगी
Mahaveer Verma दादा,यह तो जीवन का कटु सत्य छंदों में अभिव्यक्त हो कर हमारी सामाजिकता पर प्रश्नचिंह लगा रहा है यह कविता तय करती है की हम मनुष्य तो कितने मनुष्य और कितने पशु है , यदि अपने आप को इसके बाद हम मनुष्य कहने का साहस करे तो यह हमारी पाशविकता की पराकाष्ठा है I
Prem Chand Gandhi उफ्फ... कितनी बेधक और तल्ख सच्चाई वाली कविता है यह.... प्रशंसा या कि विश्लेषण के सारे शब्द जैसे छीन लिये गये हैं... सलाम...
Rashmi Bhardwaj - औरतों का भी कोई धर्म होता है, जी
सब कुछ तो शरीर का मामला है ... बेचैन करती है यह कविता .... एक छील कर रख देने वाला सच जिससे भागती रहती है हर औरत , फिर अपनी पूरी ताकत से सामने खड़ा हो जाता है ... औरत का न धर्म होता है , ना दिमाग , ना संवेदना ..... शायद कोई रिश्ता भी नहीं ... सिर्फ शरीर होता है .... आभारी हूँ यह कविता पढ़वाने के लिए ....
सब कुछ तो शरीर का मामला है ... बेचैन करती है यह कविता .... एक छील कर रख देने वाला सच जिससे भागती रहती है हर औरत , फिर अपनी पूरी ताकत से सामने खड़ा हो जाता है ... औरत का न धर्म होता है , ना दिमाग , ना संवेदना ..... शायद कोई रिश्ता भी नहीं ... सिर्फ शरीर होता है .... आभारी हूँ यह कविता पढ़वाने के लिए ....
Suman Lal Karn Nagee sachhai...aur nukile chheni-se yathharth ko chheel-tarash kar banaee gayee rukhhree kvita...jiska khhurdurapan aur beparda yathharth hi saundrya hai.....salute
Dinesh Kumar Prasad न केवल ये दिल को छू लेने वाली कविता है बल्कि समाज के ठेकेदारों के मुंह पर करार तमाचा भी है.
Dinanath Singh यह हमारे जीवन और समाज के तल्ख सत्य को चित्रित करने वाली एक बेजोड़ कविता है। कवयित्री को धन्यवाद।
Leena Malhotra सुबह ही पढ़ी । यह कविता पुरुष मानसिकता को अनावृत करती है और स्त्री के अनगिनत दुखों और शोषण को चन्द शब्दों में कह देती है।
Arun Chavai सुंदरता शरीर पर चढ़ा हुआ मांस है...और आदमी मांसभक्षी।
औरत के सच पर लिखी अंतिम कविता है यह।
औरत के सच पर लिखी अंतिम कविता है यह।
Nityanand Gayen कविता बहुत मार्मिक है, सच्चाई को उगेलती है यह कविता | शताब्दी राय जी भी तृणमूलकांग्रेस में हैं तो क्या उन्होंने कुछ इसी पार्टी के तापस पाल के उस वक्तव्य पर भी कही थी जिसमें उन्होंने लेफ्ट पार्टी वालों के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया था? या इसी पार्टी के सदस्य और फिल्म अभिनेता चिरंजीत चैटर्जी जिन्होंने कहा कि छोटे कपड़े पहनकर लड़कियां अपने लिए मुसीबत मोल लेती हैं ! शताब्दीराय, तापस पाल और चिरंजीत तीनों बांग्ला फिल्म जगत के सह-कलाकार हैं और एक ही पार्टीमें भी
No comments:
Post a Comment