Ajay Prakash: :कल बीडी शर्मा की मौत हो गई और आज विद्रोही चले गए। दोनों फकीर थे। इन्हें याद करते हुए महसूस होता है कि इस जमाने में भी फकीर होते हैं।
नहीं रहे जेएनयू के कवि रामाशंकर यादव 'विद्रोही'।
नहीं रहे जेएनयू के कवि रामाशंकर यादव 'विद्रोही'।
विद्रोही जी की अंतिम यात्रा
दुखद खबर है कि हम सब के प्रिय कवि रमाशंकर यादव 'विद्रोही' जी का आज दुपहर 4 बजे दिल्ली में निधन हो गया है. अपने अंतिम समय में भी कामरेड विद्रोही यू जी सी के खिलाफ़ छात्रों के संघर्ष में शामिल थे. कल सुबह 12 बजे उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए जवाहर लाल नेहरु छात्रसंघ भवन में रखा जायेगा फिर दुपहर 2 बजे उनकी अंतिम यात्रा लोधी रोड शमशान स्थल के लिए शुरू होगी. लोधी रोड शमशान स्थल जवाहर लाल नेहरु मेट्रो स्टेशन और लाजपत नगर मेट्रो स्टेशन के नजदीक है.
संजय जोशी
जन संस्कृति मंच के लिए
9811577426
अलविदा विद्रोही -
"हम गुलामी की अंतिम हदों तक लडेंगे"
लेकिन इंसान की कुछ और बात् है
जो तुमको पता है, वो हमको पता है
यहाँ पर कहाँ बेपता बात् है
ये पुल हिल रहा है तो क्यों हिल रहा है
तुमको पता है हमको पता है सबको पता है कि क्यों हिल रहा है
मगर दोस्तों वो भी इंसान थे जिनकी छाती पर ये पुल जमाया गया
अब वही लापता है
न तुमको पता है न हमको पता है न किसीको पता है कि क्यों लापता हैं
तो इस ज़माने में जिनका जमाना है भाई
उन्हीके जमाने में रहते हैं हम
उन्ही की हैं साँसें उन्ही की हैं कहते ,
उन्ही के खातिर दिन रात बहते हैं हम
ये उन्ही का हुकुम है जो मैं कह रहा हूं
उनके सम्मान में मैं कलम तोड़ दूं
ये उन्हीं का हुकुम है मेरे लिये और सबके लिये
कि मैं हक छोड़ दूं
तो लोग हक छोड़ दें पर मैं क्यों छोड़ दूं
मैं तो हक की लड़ाई का हमवार हूं
मैं बताऊँ कि मेरी कमर तोड़ दो, मेरा सर फोड दो
पर ये न कहो कि हक छोड़ दो
तो आप से कह रहा हूं अपनी तरह
अपनी दिक्कत को सबसे जिरह कर रहा
मुझको लगता है कि मैं गुनहगार हूं
क्योंकि रहता हूं मैं कैदियों कि तरह
मुझको लगता है मेरा वतन जेल है
ये वतन छोड़ कर अब कहाँ जाऊँगा
अब कहाँ जाऊँगा जब वतन जेल है
जब सभी कैद हैं तब कहाँ जाऊँगा
मैं तो सब कैदियों से यही कह रहा
आओ उनके हुकुम की उदूली करें
पर सब पूछते हैं कि वो कौन हैं और कहाँ रहता है
मैं बताऊँ कि वो एक जल्लाद है
वो वही है जो कहता है हक छोड़ दो
तुम यहाँ से वहाँ तक कहीं देख लो
गाँव को देख लो शहर को देख लो
अपना घर देख लो अपने को देख लो
इस हक़ की लड़ाई में तुम किस तरफ हो
आपसे कह रहा हूं अपनी तरह
कि मैं तो सताए हुओं की तरफ हूं
और जो भी सताए हुओं की तरफ है
उसको समझता हूं कि अपनी तरफ है
पर उनकी तरफ इसकी उलटी तरफ है
उधर उनकी तरफ आप मत जाइए
जाइए पर अकेले में मत जाइए
ऐसे जायेंगे तो आप फंस जायेंगे
आइये अब हमारी तरफ आइये
आइये इस तरफ की सही राह है
और सही क्या है
हम कौन हैं क्या ये भी नहीं ज्ञात है
हम कमेरों कि भी क्या कोई जाति है
हम कमाने का खाने का परचार ले
अपना परचम लिये अपना मेला लिये
आखरी फैसले के लिये जायेंगे
अपनी महफिल लिये अपना डेरा लिये
उधर उस तरफ जालिमों की तरफ
उनसे कहने कि गर्दन झुकाओ, चलो
और गुनाहों को अपने कबूलो चलो
दोस्तों उस घड़ी के लिये अब चलो
और अभी से चलो उस खुशी के लिये
जिसकी खातिर लड़ाई ये छेडी गयी
जो शुरू से अभी तक चली आ रही
और चली जायेगी अन्त से अन्त तक
हम गुलामी की अंतिम हदों तक लडेंगे
- विद्रोही
जन संस्कृति मंच के लिए
9811577426
अलविदा विद्रोही -
"हम गुलामी की अंतिम हदों तक लडेंगे"
लेकिन इंसान की कुछ और बात् है
जो तुमको पता है, वो हमको पता है
यहाँ पर कहाँ बेपता बात् है
ये पुल हिल रहा है तो क्यों हिल रहा है
तुमको पता है हमको पता है सबको पता है कि क्यों हिल रहा है
मगर दोस्तों वो भी इंसान थे जिनकी छाती पर ये पुल जमाया गया
अब वही लापता है
न तुमको पता है न हमको पता है न किसीको पता है कि क्यों लापता हैं
तो इस ज़माने में जिनका जमाना है भाई
उन्हीके जमाने में रहते हैं हम
उन्ही की हैं साँसें उन्ही की हैं कहते ,
उन्ही के खातिर दिन रात बहते हैं हम
ये उन्ही का हुकुम है जो मैं कह रहा हूं
उनके सम्मान में मैं कलम तोड़ दूं
ये उन्हीं का हुकुम है मेरे लिये और सबके लिये
कि मैं हक छोड़ दूं
तो लोग हक छोड़ दें पर मैं क्यों छोड़ दूं
मैं तो हक की लड़ाई का हमवार हूं
मैं बताऊँ कि मेरी कमर तोड़ दो, मेरा सर फोड दो
पर ये न कहो कि हक छोड़ दो
तो आप से कह रहा हूं अपनी तरह
अपनी दिक्कत को सबसे जिरह कर रहा
मुझको लगता है कि मैं गुनहगार हूं
क्योंकि रहता हूं मैं कैदियों कि तरह
मुझको लगता है मेरा वतन जेल है
ये वतन छोड़ कर अब कहाँ जाऊँगा
अब कहाँ जाऊँगा जब वतन जेल है
जब सभी कैद हैं तब कहाँ जाऊँगा
मैं तो सब कैदियों से यही कह रहा
आओ उनके हुकुम की उदूली करें
पर सब पूछते हैं कि वो कौन हैं और कहाँ रहता है
मैं बताऊँ कि वो एक जल्लाद है
वो वही है जो कहता है हक छोड़ दो
तुम यहाँ से वहाँ तक कहीं देख लो
गाँव को देख लो शहर को देख लो
अपना घर देख लो अपने को देख लो
इस हक़ की लड़ाई में तुम किस तरफ हो
आपसे कह रहा हूं अपनी तरह
कि मैं तो सताए हुओं की तरफ हूं
और जो भी सताए हुओं की तरफ है
उसको समझता हूं कि अपनी तरफ है
पर उनकी तरफ इसकी उलटी तरफ है
उधर उनकी तरफ आप मत जाइए
जाइए पर अकेले में मत जाइए
ऐसे जायेंगे तो आप फंस जायेंगे
आइये अब हमारी तरफ आइये
आइये इस तरफ की सही राह है
और सही क्या है
हम कौन हैं क्या ये भी नहीं ज्ञात है
हम कमेरों कि भी क्या कोई जाति है
हम कमाने का खाने का परचार ले
अपना परचम लिये अपना मेला लिये
आखरी फैसले के लिये जायेंगे
अपनी महफिल लिये अपना डेरा लिये
उधर उस तरफ जालिमों की तरफ
उनसे कहने कि गर्दन झुकाओ, चलो
और गुनाहों को अपने कबूलो चलो
दोस्तों उस घड़ी के लिये अब चलो
और अभी से चलो उस खुशी के लिये
जिसकी खातिर लड़ाई ये छेडी गयी
जो शुरू से अभी तक चली आ रही
और चली जायेगी अन्त से अन्त तक
हम गुलामी की अंतिम हदों तक लडेंगे
लेकिन इंसान की कुछ और बात् है
जो तुमको पता है, वो हमको पता है
यहाँ पर कहाँ बेपता बात् है
ये पुल हिल रहा है तो क्यों हिल रहा है
तुमको पता है हमको पता है सबको पता है कि क्यों हिल रहा है
मगर दोस्तों वो भी इंसान थे जिनकी छाती पर ये पुल जमाया गया
अब वही लापता है
न तुमको पता है न हमको पता है न किसीको पता है कि क्यों लापता हैं
तो इस ज़माने में जिनका जमाना है भाई
उन्हीके जमाने में रहते हैं हम
उन्ही की हैं साँसें उन्ही की हैं कहते ,
उन्ही के खातिर दिन रात बहते हैं हम
ये उन्ही का हुकुम है जो मैं कह रहा हूं
उनके सम्मान में मैं कलम तोड़ दूं
ये उन्हीं का हुकुम है मेरे लिये और सबके लिये
कि मैं हक छोड़ दूं
तो लोग हक छोड़ दें पर मैं क्यों छोड़ दूं
मैं तो हक की लड़ाई का हमवार हूं
मैं बताऊँ कि मेरी कमर तोड़ दो, मेरा सर फोड दो
पर ये न कहो कि हक छोड़ दो
तो आप से कह रहा हूं अपनी तरह
अपनी दिक्कत को सबसे जिरह कर रहा
मुझको लगता है कि मैं गुनहगार हूं
क्योंकि रहता हूं मैं कैदियों कि तरह
मुझको लगता है मेरा वतन जेल है
ये वतन छोड़ कर अब कहाँ जाऊँगा
अब कहाँ जाऊँगा जब वतन जेल है
जब सभी कैद हैं तब कहाँ जाऊँगा
मैं तो सब कैदियों से यही कह रहा
आओ उनके हुकुम की उदूली करें
पर सब पूछते हैं कि वो कौन हैं और कहाँ रहता है
मैं बताऊँ कि वो एक जल्लाद है
वो वही है जो कहता है हक छोड़ दो
तुम यहाँ से वहाँ तक कहीं देख लो
गाँव को देख लो शहर को देख लो
अपना घर देख लो अपने को देख लो
इस हक़ की लड़ाई में तुम किस तरफ हो
आपसे कह रहा हूं अपनी तरह
कि मैं तो सताए हुओं की तरफ हूं
और जो भी सताए हुओं की तरफ है
उसको समझता हूं कि अपनी तरफ है
पर उनकी तरफ इसकी उलटी तरफ है
उधर उनकी तरफ आप मत जाइए
जाइए पर अकेले में मत जाइए
ऐसे जायेंगे तो आप फंस जायेंगे
आइये अब हमारी तरफ आइये
आइये इस तरफ की सही राह है
और सही क्या है
हम कौन हैं क्या ये भी नहीं ज्ञात है
हम कमेरों कि भी क्या कोई जाति है
हम कमाने का खाने का परचार ले
अपना परचम लिये अपना मेला लिये
आखरी फैसले के लिये जायेंगे
अपनी महफिल लिये अपना डेरा लिये
उधर उस तरफ जालिमों की तरफ
उनसे कहने कि गर्दन झुकाओ, चलो
और गुनाहों को अपने कबूलो चलो
दोस्तों उस घड़ी के लिये अब चलो
और अभी से चलो उस खुशी के लिये
जिसकी खातिर लड़ाई ये छेडी गयी
जो शुरू से अभी तक चली आ रही
और चली जायेगी अन्त से अन्त तक
हम गुलामी की अंतिम हदों तक लडेंगे
- विद्रोही
Dilip C Mandal
आज के दौर में, जन आंदोलनों के सबसे बड़े कवि रमाशंकर यादव विद्रोही नहीं रहे। कविता के वाम तथा जन पक्ष की वे सबसे खनकती आवाज़ थे।
अलविदा कॉमरेड। जब भी जनता सड़कों पर होगी और न्याय और अधिकार के नारे गूँज रहे होंगे, आप याद आएँगे। निजी तौर पर मेरे लिए यह खबर अपने शरीर के एक हिस्से के मर जाने का एहसास दिला रही है। अभी मेरे लिए शोक का समय है। बाकी फिर कभी। फोटो कोलाज के लिए Sandhya Navodita का आभार।
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