Indresh Maikhuri
घटनाएँ,तारीखें कभी-कभी इतना गड्डमड्ड हो जाती हैं कि समझ नहीं आता कि इन्हें कैसे देखें.कल और आज के बीच भी कुछ ऐसा ही हुआ.आज अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस है और आज की तारीख पर सलमान खान को एक व्यक्ति को कुचलने के आरोप से बरी कर दिया गया है.अलबत्ता न्याय की मूर्ती ने यह नहीं बताया कि जो गाडी के नीचे कुचला गया,यदि उसे सलमान ने नहीं कुचला तो फिर किस ने कुचला.दूसरी तरफ कल दिल्ली में छात्र-छात्रों ने दौड़ा-दौड़ा कर,भिगा-भिगा कर पीटा.इनको घसीटे जाने,पीटे जाने और लहुलुहान होने के फोटो देख कर लगा कि ये एक आदमी को अपनी गाडी के नीचे कुचल कर मार डालने वाले सलमान खान के मुकाबले कहीं ज्यादा दुर्दांत अपराधी रहे होंगे.कानून व्यवस्था को एक गरीब फुटपाथ पर सोने वाले के मारे जाने से उतना ख़तरा नहीं हुआ होगा,जितना इन छात्र-छात्राओं से रहा होगा तभी तो कानून की रक्षक पुलिस ने इन्हें जमकर पीटा.कमबख्त शिक्षा को बेचने में रोड़ा पैदा कर रहे हैं.जिस समय देश और उसके संसाधनों को बेचना देशभक्ति है,ऐसे समय में उन्हें बेचने में अडंगा पैदा करने से बड़ा देशद्रोही कृत्य और हो भी क्या सकता है?
कानून की निगाह में सब समान हैं.इसलिए गरीब,दलित चाहे मुम्बई की सड़कों पर कार के नीचे कुचला जाए या फिर लक्ष्मनपुर बाथे,बथानी टोला में सामंती सेनाओं के हाथों क़त्ल हो, मारने वालों को निर्दोष पाने में ही न्याय की समानता है .
Uday Prakash
यह एक 'ड्रोन' कार थी। इसे कोई भी नहीं चला रहा था। जो भी मरा, वह 'कोलेटरल डैमेज' था।
जैसे हम सब वही ' डैमेज' हैं।
सलाम नूरुल सईद !
(मान जाइये दोस्तो, इस देश को अब गूगल, फ़ेसबुक, बॉलीवुड, रेडियो और विज्ञापन चला रहा है। )
जैसे हम सब वही ' डैमेज' हैं।
सलाम नूरुल सईद !
(मान जाइये दोस्तो, इस देश को अब गूगल, फ़ेसबुक, बॉलीवुड, रेडियो और विज्ञापन चला रहा है। )
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