Saturday, January 23, 2016

मनुस्मति तांडव के चपेट में देश! नालेज इकोनामी में रंगभेदी भेदभाव और फासिज्म के कारोबार को दलितों का मामला कौन बना रहा है? तो इस दलील का मतलब यह है कि चूंकि रोहित ओबीसी था तो उसके साथ जो हुआ,वह अन्याय नहीं है और अन्याय हुआ भी है तो दलितों को देशभर में तूफां खड़ा करने की हिमाकत करनी नहीं चाहिए। इसी सिलसिले में सनी सहिष्णुता के प्रवक्ता और सेंसर बोर्ड का कायाकल्प करने के लिए असहिष्णुता बकने के धतकरम से परहेज करने वाले एक बहुत बड़े फिल्मकार का ताजा इंटरव्यू है कि दलित की पीड़ा तो दलित ही जाणे रे।गौर करें कि दलित ने अगर खुदकशी की है तो सवर्ण का विरोध अप्रासंगिक है और ओबीसी ने अगर खुदकशी की है तो महाभारत अशुध हो गया,शुद्धता का यह रंगभेदी पाठ है। कौन जिंदा रहेगा ,कौन मर जायेगा,इसकी परवाह जनता को भी नहीं है क्योंकि वह धर्म कर्म में,जात पांत में मगन है।यही शुद्धता का मनुस्मृति राष्ट्रवाद है।सनी सहिष्णुता वसंत बहार है,सनी लीला है। बाकी सारे जनसरोकार,मेहनतकश आवाम की चीखें,सामाजिक यथार्थ के मुताबिक कुछ भी राष्ट्रद्रोह है,आतंक है,उग्रवाद है और उसका दमन अनिवार्य सैन्यराष्ट्र में। पलाश विश्वास

मनुस्मति तांडव के चपेट में देश!
नालेज इकोनामी में रंगभेदी भेदभाव और फासिज्म के कारोबार को दलितों का मामला कौन बना रहा है?
तो इस दलील का मतलब यह है कि चूंकि रोहित ओबीसी था तो उसके साथ जो हुआ,वह अन्याय नहीं है और अन्याय हुआ भी है तो दलितों को देशभर में तूफां खड़ा करने की हिमाकत करनी नहीं चाहिए।

इसी सिलसिले में सनी सहिष्णुता के प्रवक्ता और सेंसर बोर्ड का कायाकल्प करने के लिए असहिष्णुता बकने के धतकरम से परहेज करने वाले एक बहुत बड़े फिल्मकार का ताजा इंटरव्यू है कि दलित की पीड़ा तो दलित ही जाणे रे।गौर करें कि दलित ने अगर खुदकशी की है तो सवर्ण का विरोध अप्रासंगिक है और ओबीसी ने अगर खुदकशी की है तो महाभारत अशुध हो गया,शुद्धता का यह रंगभेदी पाठ है।
कौन जिंदा रहेगा ,कौन मर जायेगा,इसकी परवाह जनता को भी नहीं है क्योंकि वह धर्म कर्म में,जात पांत में मगन है।यही शुद्धता का मनुस्मृति राष्ट्रवाद है।सनी सहिष्णुता वसंत बहार है,सनी लीला है।

बाकी सारे जनसरोकार,मेहनतकश आवाम की चीखें,सामाजिक यथार्थ के मुताबिक कुछ भी राष्ट्रद्रोह है,आतंक है,उग्रवाद है और उसका दमन अनिवार्य सैन्यराष्ट्र में।



पलाश विश्वास
मीडिया का दावा है कि हैदराबाद युनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है।यह दावा सबसे पहले इस खुदकशी की सच्चाई के मुकाबले खड़ी मनुस्मृति ने किया कि यह मामला कोई दलितों और सवर्णोंके बीच नहीं है।हस्तक्षेप के संपादक अमलेंदु उपाध्याय ने भी कहा है कि फिर भी स्मृति ईरानी ने एक बात सही कही। रोहित वेमुला की आत्महत्यानुमा हत्या का मामला, कोई दलित बनाम अन्य के झगड़े का मामला नहीं है। बेशक, यह दलित बनाम अन्य का झगड़ा नहीं है। अगर होता तो रोहित वेमुला की आत्महत्या पर पूरे देश में विक्षोभ का ऐसा ज्वार नहीं उठा होता, जिसने ईरानी और उनकी सरकार को, बचाव के रास्ते खोजने पर मजबूर कर दिया है।

गौरतलब है कि राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद अस्मिताओं के आर पार है और यह विरोध कोई जाति धर्म का मामला भी नहीं है।दो दो केंद्रीय मंत्रियों के आक्रामक केसरियाकरण अभियान के तहत एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में हस्तक्षेप की वजह से एक होनहार नौजवान को खुदकशी का रास्ता क्यों अख्तियार करना पड़ा,कुल मिलाकर मुद्दा इतना सा है और इसके खिलाफ देश भर के सवर्ण छात्र युवा औरआम नागरिक भी गोलबंद हो रहे हैं और फासिस्ट सुनामी के खिलाफ जबर्दस्त अभियान है।

संघ परिवार का रवैया कतई बदला नहीं है।राजनीतिक मजबूरी आनेवाले चुनावों की है,जिसमें दलित वोटों की निर्णायक भूमिका है।बंगाल से लेकर यूपी तक।इसीलिए बाकी बचे चार छात्रों का निलंबन तुरत फुरत वापस हुआ।आंदोलन के दबाव में ऐसा हुआ है,लोकतंत्र के दुश्मनों से ,संविधान के हत्यारों से ऐसी उम्मीद ख्वाबों में भी न करें तो बेहतर।

वरना पुणे एफटीआईआई में भी लगातार आंदोलन हो रहा है और सरकार टस से मस नहीं हुई।क्योंकि वहां से यूपी का या बंगाल का चुनावी समीकरण बन बिगड़ नहीं रहा है।जाहिर है कि रोहित को खूब जोर लगाकर दलित न होने का सबूत पेश करना संघियों की मजबूरी है।

आखेर मौनी महाशय जो विश्वनेता भी हैं और उनका छप्पण इंच का सीना भी है,इस पर तुर्रा वे देश की तरक्की का पैमाना भी हैं जो छलक छलक कर धुँआधार समरस विकास का जाम ऐसे छलका रहा है कि तेल दस डालर होने को है और अच्छे दिन इतने अरब पतियों की बहार है।

मुक्त बाजार के सैंदर्यशास्त्र के मुताबिक डार्विन का सिद्धांत ही सबसे जियादा प्रासंगिक है कि जो जीने लायक हैं,वे ही जिये,बाकी लोगों का सफाया तय है।यह वैदिकी विज्ञान भी उतना ही है जितना कि वैदिकी शास्त्र।

आम जनता को इतनी परवाह भी नहीं है कि देश का संसाधन कौन बेच रहा है और देश की अर्थव्यवस्था किस किसकी जेब में है।

कौन जिंदा रहेगा ,कौन मर जायेगा,इसकी परवाह जनता को भी नहीं है क्योंकि वह धर्म कर्म में,जात पांत में मगन है।यही शुद्धता का मनुस्मृति राष्ट्रवाद है।सनी सहिष्णुता वसंत बहार है,सनी लीला है।

बाकी सारे जनसरोकार,मेहनतकश आवाम की चीखें,सामाजिक यथार्थ के मुताबिक कुछ भी राष्ट्रद्रोह है,आतंक है,उग्रवाद है और उसका दमन अनिवार्य सैन्यराष्ट्र में।

मौनी बाबा जैसे आतंक के खिलाफ अमेरिका के महाजुध के सेनापति हैं इंद्र के साक्षात अवतार कल्कि महाराज,तो पांव उनके हिंदुस्तान की सरजमीं पर पड़ते ही नहीं है और वे अनंत उड़ान पर एनआरआई है राजकाज पेशवा महाराज के हवाले हैं जिनका अश्वमेध जारी है।
संकट यह कि अश्वमेध के बेलगाम घोड़ों की खुरों से नत्थी जनसंहारी रंगभेदी तलवारें जरुरत से कुछ जियादा ही लहूलुहान है और दूध घी की नदियां उतनी भी नहीं हैं कि खून की नदियां नजरअंदाज हो जाये।फिर भव्य राममंदिर बी अभी बना नही है।

रामराज्य में अछूतों के मताधिकार होते या कोई बाबासाहेब हुए रहते और मौलिक अधिकारों के साथ साथ समान मताधिकार के संवैधानिक प्रावधान होते तो शंबूक की हत्या के बावजूद,सीता वनवास के बावजूद,मूलनिवासियों को जलजंगल से बेदखल करने के बावजूद,एक के बाद एक नरसंहार को अंजाम देने के बावजूद कोई मिथक   अब भी कोई कैसे देश का भाग्यविधाता बना रहता,कहना मुश्किल है।

जाहिर है कि बिजनेस बंधु राजकाज वैश्विक इशारों पर चलता है और बाजार के व्याकरण के मुताबिक हिंसा,घृणा और धर्मोन्माद तीनों मुक्त बाजार के पिरवेश के अनुकूल नहीं है और संसाधनों पर कब्जे के खातिर,खुल्ली लूट,बेरहम बेदखली के लिए कोलंबस का अमेरिकी इतिहास दोहराने के लिए कु कलैक्स क्लान का वजूद भी जनादेस पर निर्भर है।

उसी जनादेश पर जो कांग्रेस के बिखरने से विशुध हिंदुत्व के राष्ट्रवाद बजरिये उन्हें मिला है जो बेहद तेजी से ताश का महल बनता जा रहा है।

सच यह है कि अंबेडकरी आंदोलन की वजह से सत्ता बिना दलितों के वोट के हासिल करना मुश्किल है और दलितों को पालतू बनाने के खातिर जो अंबेडकर को गौतम बुद्ध की तरह भगवान विष्णु का अवतार बनाकर धर्मस्थल में कैद करने का चाकचौबंद इंतजाम हो रहा था,वह इंतजाम रोहित की आत्महत्या से तहस नहस है और मनुस्मृति का दहन हुआ नहीं है क्योंकि मनुस्मृति साक्षात सत्ता है।

बाबासाहेब के नाम पर भी रंगभेदी सत्ता का समरस चेहरा जनादेश के तमाम चुनावी समीकरण बिगड़ रहे हैं तो कल्कि अवतार के कुछ कीमती आंसू भी जाया हो गये और अंबेडकरी चेतना के महविस्फोट के मुहाने खड़े रंगभेदी नरसंहारी संस्कृति को धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के बदले जात पांत को जियादा तरजीह देनी पड़ रही है।
वरना जो रोहित और उनके साथी राष्ट्रद्रोही अब भी बताये जा रहे हैं और तमाम रंगबिरंगे घृणा अभियान के तहत उनके निलंबन को अनिवार्य राजधर्म बताया जा रहा है,उसके विपरीत उनका निलंबन वापस न हुआ रहता।

जिस हमले के जख्म के मद्देनजर केंद्र के दो दो जिम्मेदार मंत्रियों ने शंबूक हत्या का यह मनुस्मृति अनुशासन लागू किया,वे जख्म भी अदालत में खारिज हो गये हैं।

निराधार निलंबन के पक्ष में दलीलें गढ़ने का सिलसिला जारी है और उसमें बेमिसाल धर्मोन्मादी तड़का भी है।

तो क्यों रोहित के परिजनों को समझाने के लिए तोहफा लेकर गये दिल्ली के संदेश वाहक और क्यों उन्हें सत्ता का जूठन ठुकराने का मुद्दा दिया गया,इस पर भी गौर करें।

तो फिर कहना पड़ रहा है कि जांच कमिटी में दलित सदस्य भी है।अगर ओबीसी है रोहित तो ओबीसी के लोग कमिटी में होने चाहिए।

बहरहाल गौर करें,एक बड़े मराठी दैनिक के मुताबिकः रोहितसह अन्य पाच विद्यार्थ्यांना निलंबित करण्याचा निर्णय ज्या चौकशी समितीच्या अहवालानंतर झाला त्या समितीत दलित सदस्याचाही सहभाग होता, असे स्मृती इराणी यांनी पत्रकार परिषदेत सांगितले होते. मात्र, त्यांच्या म्हणण्याला फोरमने जोरदार आक्षेप घेतला आहे. फोरमने इराणी यांचे सर्व दावे फेटाळले आहेत. स्मृती इराणी स्वत:च्या आणि केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय यांच्या बचावासाठी लोकांची दिशाभूल करत आहेत, असे पत्रकात नमूद करण्यात आले आहे. फोरमचे सदस्य सदस्य प्रकाश बाबू यांनी सांगितले की, इराणी ज्या उपसमितीबाबत बोलत आहेत त्यात एकही दलित सदस्य नाही. प्रा. विपिन श्रीवास्तव हे उच्चवर्णीय प्राध्यापक या समितीचे प्रमुख आहेत. फोरमचे आणखी एक सदस्य नागेश्वर राव यांनीही विद्यापीठात वर्षानुवर्षांपासून सामाजिक भेदभाव चालत आला आहे, असा आरोप केला. राव म्हणाले, 'आम्ही एससी/एसटी वर्गातील ५० ते ६० सदस्य आहोत. इराणी यांचा निषेध करण्यासाठी आम्ही सर्व जण राजीनामा देणार आहोत'. विद्यापीठाचे कुलगुरू अप्पा राव यांच्यावरही त्यांनी निशाणा साधला. राव हे मुख्य निबंधक असताना मी विद्यार्थी होतो. त्यावेळी राव वरिष्ठांकडून सफाईची कामेही करून घ्यायचे. माझ्यावरही निलंबनाची कारवाई करण्यात आली होती, असा आरोप नागेश्वर राव यांनी केला. दरम्यान, विद्यार्थ्यांनी इराणी यांची प्रतिमा जाळून आपला निषेध नोंदवला असून ठोस कारवाई झाल्याशिवाय आंदोलन मागे घेणार नाही, असा इशारा दिला आहे।

अब खबर यह है कि  मामले की जांच कर रही हैदराबाद पुलिस ने जांच में पाया है कि रोहित वेमुला दलित नहीं था।

गौर करें कि इस मामले को लेकर पुलिस की जांच रोहित वेमुला के गांव गुंटूर पहुंच चुकी है।

गौर करें कि पुलिस को जांच में पता चला है कि रोहित पत्थर काटने वाले वढेरा समुदाय से है। वढेरा जाति के लोगों की गिनती ओबीसी में होती है ना कि दलितों में।

तो इस दलील का मतलब यह है कि चूंकि रोहित ओबीसी था तो उसके साथ जो हुआ,वह अन्याय नहीं है और अन्याय हुआ भी है तो दलितों को देशभर में तूफां खड़ा करने की हिमाकत करनी नहीं चाहिए,दलील यह है।

इसी सिलसिले में सनी सहिष्णुता के प्रवक्ता और सेंसर बोर्ड का कायाकल्प करने के लिए असहिष्णुता बकने के धतकरम से परहेज करने वाले एक बहुत बड़े फिल्मकार का ताजा इंटरव्यू है कि दलित की पीड़ा तो दलित ही जाणे रे।गौर करें कि दलित ने अगर खुदकशी की है तो सवर्ण का विरोध अप्रासंगिक है और ओबीसी ने अगर खुदकशी की है तो महाभारत अशुध हो गया,शुद्धता का यह रंगभेदी पाठ है।

बहरहाल इकॉनॉमिक टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू के मुताबिक पुलिस सूत्रों ने कहा है कि “रोहित के परिजन एससी या एसटी समुदाय के नहीं है। हालांकि परिजनों ने खुद को एससी साबित करने के लिए सर्टिफिकेट बनवाया है, जिसकी जांच की जा रही है।

इसके विपरीत,रोहित के भाई राजा चैतन्य का दावा है कि उनके पास खुद को दलित साबित करने के लिए सर्टिफिकेट भी मौजूद है।

गौरतलब है कि बंडारू दत्तात्रेय पर आरोप है कि उन्होंने ही मानव संसाधन मंत्रालय को पत्र लिखकर रोहित समेत पांच छात्रों को निष्कासित करने की मांग की थी। जिसके बाद हैदराबाद विश्वविद्यालय ने इन छात्रों को निष्कासित कर दिया।

गौरतलब है कि उन्हें हॉस्टल से भी निकाल दिया गया, इस कार्रवाई के बाद से ये छात्र आंदोलन पर थे।केंद्रीय मंत्री बंडारु दत्तात्रेय के खिलाफ छात्रों को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में केस दर्ज किया गया है। केंद्रीय मंत्री मंत्री के साथ-साथ विश्वविद्यालय के कुलपति के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है

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