लोकतांत्रिक-समावेशी समाज बनाने के महान लक्ष्य से प्रेरित संविधान बनाने और गणतंत्र की घोषणा के इतने बरसों बाद भी आज हमारे समाज में गैरबराबरी, विद्वेष और वर्गों-वर्णों के बीच दूरियां क्यों बढ़ रही हैं? दलित-उत्पीड़ित समुदाय में जन्मे रोहित वेमुला जैसे प्रतिभाशालियों को क्यों आत्महत्या तक करनी पड़ रही है? आखिर हम कैसा समाज बना रहे हैं? रास्ता क्या है और भविष्य क्या है? 'प्रभात खबर' के अपने कालम में इस बार इसी विषय पर मेरी छोटी सी टिप्पणी।
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