पता नहीं ये फुले-आंबेडकरवादी भी क्या चीज हैं?
फोटो को बड़ा करके देखिए. 17 जनवरी की घटना से तीन दिन पहले की तस्वीर. हॉस्टल से बाहर खुले में रात बिताने वाले ये छात्र वहां भी किताबों से घिरे हैं. रोहित वेमुला के हाथ में कलम है. दाएं-बाएं किताबें. सिरहाने पर भी किताबें... आंदोलन जरूरी है, पर पढ़ना उतना ही जरूरी है. इनमें एक टॉपर है. दूसरा यूनिवर्सिटी का गोल्ड मेडलिस्ट...माता सावित्रीबाई और बाबा साहेब की परंपरा में पढ़ाई और लड़ाई साथ चलती है. पढ़ाई छूटनी नहीं चाहिए.
पता हैं ये फुले-आंबेडकरवादी भी क्या लोग हैं.
बिना किताब के आप ज्योतिबा फुले या बाबा साहेब की पूरी मूर्ति नहीं बना सकते.
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