Let me speak human!All about humanity,Green and rights to sustain the Nature.It is live.
Monday, December 14, 2015
आज के दिन नाचने लगे नज़रों के सामने वो मंज़र जब सालगिरह की ख़ुशी में खुलती थी ह्विस्की की बोतल और इर्द-गिर्द होते थे उनके दोस्त-अहबाब अज़ीज़ और दौर चलता था लम्बी लम्बी कहानियों का और सारा घर ठहाकों और शादमानी से गूंज उठता था. वो सब याद में आते ही लगता है जैसे कल ही की बात हो और मुझे महसूस होता है जैसे एक जन्म ही में मेरे कितने जन्म हो चुके, क्योंकि पापा जी कहा करते थे कि बेटा, जनम-मरण- करम- भरण सब इसी दुनिया में हैं और आज भी मेरा दिल बच्चा बन जाता है और मुझे लगता है कि मैं बचपन में पहुंच गया. और आज उनकी 105 वीं जयन्ती पर भी मुझे लगता है कि वो मेरी उंगली पकड़ें और मैं उनके साथ-साथ चलूं.और बेसाख़्ता होंटों से निकलने लगते हैं ये बोल -- कोई लौटा दे वो मेरे दिन
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