TaraChandra Tripathi
https://www.youtube.com/watch?v=QaAmgnmCKAc
किसी भी प्रकार का परिवर्तन सब के लिए सुखदायी हो ही नहीं सकता. यथास्थिति की भीतर भी उबाल आते रह्ते हैं. शायद इन सब तथ्यों पर चिन्तन करते हुए बुद्ध ने सर्वे के स्थान पर बहुजन को प्रतिस्थापित किया था. देश के आर्थिक संसाधनों की कुंडली मार कर बैठे वर्ग के संसाधनों की कटौती किये बिना, बहुजन या आम आदमी के जीवन स्तर को सुधारा ही नहीं जा सकता.
और सुविधा भोगी वर्ग के भीतर बैठा सूच्यग्रं न दास्यामि बिना युद्धेन केशव: वाला दुर्योधन बिना महाभारत के यह होने देगा ऐसा नहीं लगता.
दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के प्रयासों की मीडिया में छाई आलोचना को ही देख लीजिए. पर्यावरण में व्याप्त हलाहल स्वीकार है, रोगी होना स्वीकार है, अल्प मृत्यु स्वीकार है, पर आम आदमी से ऊपर के स्तर की सुविधाओं में कटौती स्वीकार नहीं है. जन हित की किसी भी योजना में सैंध कैसे लगायी जाय, कहीं महान परंपराओं के दम्भ से लबालब हम भारतीयों की सब से बड़ी विरासत तो नहीं है?
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