TaraChandra Tripathi
https://www.youtube.com/watch?v=QaAmgnmCKAc
डीडीहाट। वास्तविक नाम डिणिहाट।
डीडीहाट। वास्तविक नाम डिणिहाट।
डीडीहाट। वास्तविक नाम डिणिहाट। डिन या पहाड़ की धार या हल्के से ढलान पर स्थित हाट। हाट या आसपास के गाँवों का केन्द्र। पुराने जमाने में किसी सामन्त की राजधानी भी। प्रशासनिक केन्द्र होगा तो बाजार तो होगी ही। ‘डिन‘ शब्द से किसी कुमाऊनी लोक कवि की प्रेयसी याद आ गयी।
नाक में की फुली।
पारा डिना देखा भै छे, दिशा जसी खुली।
तू पार की धार पर क्या दिखाई दी, लगा जैसे दिशाएँ खुल गयी हों ।
जब भी यह पंक्ति याद आती है, लोक कवि की उर्वर कल्पना के सामने नतमस्तक हो जाता हँू। लगता है कि कालिदास भी पहले लोक कवि ही रहे होंगे। बाद में संस्कृत का अध्ययन कर महाकवि बन गये। नहीं तो इतनी मीठी उपमाएँ कहाँ से लाते। किसी विद्वान के बस की बात तो यह है नहीं। तो क्या कालिदास भी पहले अनपढ़ ’शेरदा’ थे ?
अल्मोड़ा के पास दीनापानी को ही ले लीजिये। यह दीना क्या हुआ? असली तो डिन था डिन में पानी था। चाहे नैणकालिक से जाओ या पाटिया से। गाँव से आगे बढ़ोगे तो पानी डिन में ही मिलेगा। पनार की एक सहायक नदी है सिंद्या। उसके किनारे एक खेत था, उसमें एक गाँव बस गया। नाम हो गया सिंद्याखेत। हिन्दी ने उसे क्या चखाया, कहने लगा मैं सिंधिया जी का खेत हूँ- सिंधियाखेत। अरे भइया! सिंधिया जी यहाँ कहा से आ गये। यदि उन्हें खेत खरीदना ही होता तो रामगढ़ से लेकर लोहाघाट के मनमोहक क्षेत्र में खरीदते। इस गधेरे में क्यों खरीदते?
चंपावत जनपद में ओखलढुंग की हिन्दी ने टाँग क्या खींची वह यह भूल गया कि उसमें प्रागैतिहासिक काल में मानव ने पूजा के लिए घट्टियाँ (कप मार्क) बनायी थीं। मोरनौला में लगभग समतल पहाड़ी ढाल पर घने जंगल के कारण, उसके समीप ही बसे गाँव का असली नाम था शौड़फटक(घने जंगलों से आच्छादित चौरस स्थान), बना दिया शहरफाटक। कहाँ रह गया शहर अल्मोड़ा और कहाँ फाटक। इसी तरह पहाड़ के छोटे-छोटे खेतों के बीच एक लंबा खेत था, नाम पड़ गया लमगा्ड़ (गा्ड़ या खेत, लंबा खेत) हिन्दी ने अर्थ का चीर हरण कर बना दिया लमगड़ा। नीबू के पेड़ों की भरमार से जो चूक (नींबू) था, बन गया चूका (?) सबसे गजब तो यह हुआ कि पश्चिमी रामगंगा के किनारे बसे बिनोली सटेड़ की ताजपोशी कर हिन्दी ने उसे बिनौली स्टेट कर दिया। वहाँ के हाईस्कूल में नियुक्त इलाहाबाद के एक अध्यापक कई दिन तक ‘स्टेट‘ को खोजते रह गये। हिन्दी है कि जहरखुरानी गिरोह ? जिस स्थान के नाम को कुछ सुँघा दिया, वही बेहोश। और तो और पूरे कुमाऊँ को क्या खिला दिया कि विश्वविद्यालय में आकर कहने लगा मैं कुमायूँ हूँ, हुमायूँ और बदायूँ का सौतेला भाई। बड़ाऊँ, पुंगराऊँ को मैं नहीं पहचानता। छोडि़ये कभी शिकायत विस्तार से करूंगा। अभी तो डीडी (?) हाट में ही हूँ।
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