14.12.2015
बढ़ती असहिष्णुता
-नेहा दाभाड़े एवं इरफान इंजीनियर
हाल ही में, एक समारोह के दौरान दिए गए साक्षात्कार में आमिर खान ने बताया कि उनकी पत्नि किरण ने उनसे पूछा था कि क्या उन्हें देश छोड़ देना चाहिए। आमिर खान ने कहा कि उनकी पत्नि की इस टिप्पणी से उन्हें बहुत धक्का लगा और यह भी कि यह, देश में बढ़ती हुई असहिष्णुता की द्योतक है। हम इस तरह के सामान्यीकरण की भर्त्सना करते हैं, विशेषकर जब ऐसा वक्तव्य देने वाला व्यक्ति एक जानीमानी फिल्मी हस्ती हो, जिसके लाखों-करोड़ों प्रशंसक उसे अपना आदर्श मानते हों। परंतु इस वक्तव्य का राजनीतिकरण किए बगैर, हम उस पृष्ठभूमि पर विचार करना चाहेंगे जिसमें यह वक्तव्य दिया गया। भारत के प्रधानमंत्री ने लंदन में कहा, ‘‘भारत में बहुत विविधता है। इस विविधता पर हमें गर्व है और यह हमारी ताकत है। विविधता, भारत की विशेषता है’’।
दादरी में मात्र इस संदेह पर कि उसके घर में गौमांस रखा है, एक मुसलमान की पीट-पीटकर हत्या ने सारे देश को स्तब्ध कर दिया था। इसके अतिरिक्त, अनेक जानेमाने लेखकों और तर्कवादियों की हत्याएं और इन मामलों की तत्परता व गंभीरता से जांच न किया जाना भी चिंता का विषय है। ये सभी घटनाएं देश में बढ़ती असहिष्णुता की प्रतीक हैं और उन्हें असंबद्ध मानकर खारिज नहीं किया जा सकता। ये सामान्य घटनाएं नहीं हैं और ना ही इनकी तुलना ऐसी ही अन्य घटनाओं से की जा सकती है।
इसके निम्नांकित कारण हैं-पहला, देश में घृणा फैलाने वाले भाषणों और वक्तव्यों (जो भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत अपराध हैं) में नाटकीय बढ़ोत्तरी हुई है। दूसरा, घृणा फैलाने वाले अब अत्यंत अपमानजनक और निकृष्ट भाषा का उपयोग करने लगे हैं और ऐसा लगता है कि उनका उद्देश्य, उन लोगों को उकसाना और भड़काना है जिनके खिलाफ वे घृणा फैला रहे हैं। तीसरा, घृणा फैलाने के लिए नए मुद्दों जैसे घरवापसी का इस्तेमाल किया जा रहा है। चैथा, इस तरह के वक्तव्यों के साथ-साथ, सड़कों पर खून के प्यासे हथियारबंद समूहों ने हिंसा का तांडव शुरू कर दिया है और पांचवा, केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक व राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों पर विराजमान महानुभाव, जिन्होंने संविधान की रक्षा करने और बिना भय या प्रीति के कानून को लागू करने की शपथ ली है, भी खुलकर घृणा फैलाने वाली बातें कर रहे हैं। इससे भी अधिक दुःख की बात यह है कि भाजपा का नेतृत्व उनका बचाव कर रहा है। प्रधानमंत्री ने ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करना तो दूर रहा, एक बार भी सार्वजनिक रूप से उनको फटकारना भी उचित नहीं समझा। हिन्दू राष्ट्रवादियों के वक्तव्यों के निम्नांकित लक्ष्य हैं:-
1. अप्रत्यक्ष रूप से यह कहना कि पाकिस्तान का निर्माण, मुसलमानों के लिए किया गया था और उन्हें वहीं चले जाना चाहिए व यह कि पाकिस्तान की सरकार, भारतीय मुसलमानों के प्रति बहुत फिक्रमंद है और यह भी कि हिन्दुओं को यह अधिकार है कि वे मुसलमानों को लात मारकर भारत से बाहर कर दें। अपरोक्ष रूप से यह भी कहा जा रहा है कि भारत, दुनिया के सभी हिन्दुओं का देश है, चाहे उनका जन्म कहीं भी हुआ हो और वे किसी भी देश के नागरिक हों।
उदाहरणार्थ, आमचुनाव के प्रचार के दौरान गिरिराज सिंह ने कहा, ‘‘जो लोग नरेन्द्र मोदी को रोकना चाहते हैं, वो पाकिस्तान देख रहे हैं। आने वाले दिनों में ऐसे लोगों के लिए जगह हिन्दुस्तान में नहीं, झारखण्ड में नहीं, परंतु पाकिस्तान में होगी, पाकिस्तान में होगी‘‘। गिरिराज सिंह अब केन्द्रीय मंत्री हैं और आमचुनाव में मत देने वालों में से 69 प्रतिशत और बिहार चुनाव में 75 प्रतिशत ‘पाकिस्तान देख रहे थे‘। असम के राज्यपाल पीबी आचार्य ने कहा, ‘‘हिन्दुस्तान, हिन्दुओं के लिए है‘‘।...वे (भारतीय मुसलमान) कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र हैं। वे यहां (भारत) में रह सकते हैं। अगर वे बांग्लादेश या पाकिस्तान जाना चाहते हैं, तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं।‘‘ उन्होंने यह भी कहा कि असम को वहां बसने वाले ‘हिन्दू‘ शरणार्थियों से कोई भय नहीं है और यह भी कि अन्य देशों में रह रहे हिन्दुओं द्वारा भारत में शरण लिए जाने में कुछ भी गलत नहीं है।
2. अप्रत्यक्ष रूप से यह कहना कि हिन्दू, स्वाभाविक तौर पर और अनिवार्यतः राष्ट्रवादी और देशभक्त हैं परंतु गैर-हिन्दुओं को अपनी देशभक्ति और राष्ट्रीयता साबित करनी होगी।
3. मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करने की बातें भी कही जा रही हैं। शिवसेना सांसद संजय राउत ने लिखा ‘‘बालासाहेब ठाकरे ने यह मांग की थी कि मुसलमानों से मत देने का अधिकार छीन लिया जाना चाहिए। यह एक उपयुक्त मांग थी‘‘।
4. सभी भारतीयों के अवचेतन में यह बिठाना कि ऊंची जातियों का जीवन जीने का तरीका कानून से ऊपर है और कानून को जीवन जीने के इस तरीके को उचित और वैध ठहराना होगा और अगर ऐसा नहीं होता तो इस जीवनशैली को दूसरों पर थोपने के लिए कानून का उल्लंघन उचित और स्वीकार्य है। वे ऊंची जातियों के जीने के तरीके को सब पर थोपना चाहते हैं-न हिन्दुओं पर जो उनसे असहमत हैं और अन्य धर्मावलंबियों पर भी। यह जीवनशैली वह है जिसका निर्धारण खाप पंचायत जैसी संस्थाएं करती हैं। दादरी हत्याकांड के बाद, साक्षी महाराज ने कहा ‘अगर कोई हमारी मां को मारने का प्रयास करेगा तो हम चुप नहीं रहेंगे। हम मरने-मारने के लिए तैयार हैं‘‘। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने फरमाया कि ‘‘मुसलमान यहां रह सकते हैं परंतु उन्हें गौमांस खाना बंद करना होगा क्योंकि गाय हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है‘‘। आश्चर्य नहीं कि दादरी, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और अन्य प्रदेशों में ‘गौरक्षक दल‘ नाम के हिंसक समूह सड़कों पर खून-खराबा कर रहे हैं।
5. अप्रत्यक्ष रूप से यह कहना कि गैर-हिन्दू, हिन्दुओं से कमतर हैं और उन्हें, विशेषकर मुसलमानों और ईसाईयों को, हर तरह से कलंकित करना। दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान, केन्द्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा था ‘‘आपको तय करना है कि दिल्ली में सरकार रामजादों की बनेगी या हरामजादों की। यह आपका फैसला है‘‘। जाहिर है कि साध्वी ज्योति, भारतीयों को दो भागों में बांटना चाहती हैं। भारतीय या तो राम के पुत्र हैं (राम में विश्वास रखने वाले हिन्दू) या वे अवैध संतानें हैं।
इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री का ‘‘हमें भारत-की-विविधता-पर-गर्व-है‘‘ वक्तव्य अत्यंत खोखला प्रतीत होता है और ऐसा लगता है कि इसका उद्देश्य केवल विदेशी नेताओं को प्रसन्न करना था। विविधता का अर्थ ही यह होता है कि विभिन्न संस्कृतियों को एक साथ फलने-फूलने का अवसर मिले। विविधतापूर्ण समाज में कभी एक समूह अपनी संस्कृति को दूसरों पर लादने का प्रयास नहीं करता। असहमति की हर आवाज को राजनैतिक षड़यंत्र कहकर दबाया नहीं जाता और ना ही असहमति को अभिव्यक्त करने वालों को राजनीति से प्रेरित बताया जाता है। यहां तो उन लोगों को भी राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है जो अत्यंत सम्मानित, पुरस्कृत और प्रतिभाषाली रचनाधर्मी और वैज्ञानिक हैं। जिन वैज्ञानिकों, लेखकों और कलाकारों ने अपने पुरस्कार लौटाए उन्हें इसी तरह के आरोपों का सामना करना पड़ा। अगर आप सरकार से सहमत नहीं हैं तो आप न तो राष्ट्रवादी हैं और ना ही देशभक्त। भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ का दुस्साहस तो देखिए-उन्होंने शाहरूख खान जैसे निपुण व अत्यंत लोकप्रिय फिल्म कलाकार को यह कहा कि उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए क्योंकि उनकी आत्मा वहीं बसती है। उन्होंने शाहरूख खान की तुलना 26/11 के मुंबई हमलों के कथित मास्टरमांइड हाफिज सईद से भी की। हिन्दू राष्ट्रवादियों को ऐसा लगता है कि उन्हें यह तय करने का अधिकार है कि कौनसे भारतीय, भारत में रह सकते हैं और कौनसे नहीं। हिन्दू राष्ट्रवादी उन मुसलमानों, जिन्होंने देश के विभाजन के बाद भारत को अपना घर बनाने का निर्णय लिया, को पाकिस्तान जाने के लिए कह रहे हैं। उनके अनुसार, पाकिस्तान ही भारतीय मुसलमानों का घर है। भारतीय मुसलमानों को बार-बार पाकिस्तान से जोड़कर, हिन्दू राष्ट्रवादी इस मिथक को मजबूती देना चाहते हैं कि भारतीय मुसलमानों की वफादारी पाकिस्तान के प्रति है।
पांच बार भाजपा सांसद रह चुके साक्षी महाराज की गायों की रक्षा के लिए मनुष्यों को मारने की धमकी, दादरी हत्याकांड की अपवादात्मक प्रतिक्रिया नहीं थी। आमचुनाव के प्रचार के दौरान, नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला करने के लिए उस पर ‘पिंक रेविल्यूशन‘ को बढावा देने का आरोप लगाया था। उनका अर्थ यह था कि सरकार, भारत से बीफ के निर्यात को प्रोत्साहन दे रही है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण के अनुसार, दलितों और आदिवासियों सहित 12 करोड़ हिन्दू बीफ का सेवन करते हैं। हिन्दुत्ववादियों के लिए ईश्वर का दर्जा रखने वाले सावरकर ने भी बीफ खाने पर जोर दिया था। इसके बाद भी यह आश्चर्यजनक है कि केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी सहित कई भाजपा नेता, बीफ खाने वालों या बीफ पर प्रतिबंध का विरोध करने वालों का मखौल उड़ा रहे हैं और उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह दे रहे हैं। दादरी घटना के बाद प्रधानमंत्री लंबे समय तक चुप्पी साधे रहे। इस अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण चुप्पी के बाद, उन्होंने कहा, ‘‘कुछ राजनेता राजनैतिक हितों की खातिर गैर-जिम्मेदार वक्तव्य दे रहे हैं...इस तरह के वक्तव्य नहीं दिए जाने चाहिए...इस तरह के वक्तव्यों पर कोई ध्यान न दीजिए भले ही मोदी स्वयं इस तरह का वक्तव्य दे रहा हो। भारत बुद्ध का देश है और हमारे समाज में हम असंवैधानिक चीजों को बर्दाश्त नहीं करते। कानून इस तरह के वक्तव्यों से कड़ाई से निपटेगा‘‘। परंतु प्रधानमंत्री ने यह बताने का कष्ट नहीं किया कि वे किसके और कौनसे वक्तव्यों की चर्चा कर रहे थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का संविधान उनकी बाईबिल है। परंतु उन्होंने ऐसे मामलों में भी, जिनमें भड़काऊ और आपत्तिजनक वक्तव्य दिल्ली में दिए गए थे, संबंधितों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने के निर्देश नहीं दिए। ज्ञातव्य है कि दिल्ली पुलिस केन्द्र सरकार के अधीन है। इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना और भड़काऊ वक्तव्य देने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही न करने, जो लोग धर्म के आधार पर घृणा या शत्रुता फैला रहे हैं, उनके विरूद्ध मामले दर्ज न करने और जो लोग नागरिकों के एक समूह की धार्मिक भावनाओें को चोट पहुंचा रहे हैं, उन्हें नियंत्रित न करने से देश में अराजकता बढ़ेगी और हिन्दू राष्ट्रवादी हत्यारों की हिम्मत भी। ऐसे नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही न करने के लिए भाजपा का बहाना यह है कि ये मात्र ‘गैर जिम्मेदाराना‘ वक्तव्य हैं।
भाजपा सांसद साध्वी प्राची ने तो गैर-एनडीए सांसदों को आतंकवादी तक बता दिया! यह संसदीय प्रजातंत्र के पतन की पराकाष्ठा है कि एक जनप्रतिनिधि, अन्य जनप्रतिनिधियों के विचारों का सम्मान तक नहीं करना चाहता।
राष्ट्रवाद की अवधारणा का विखंडन आवश्यक
हिंदू राष्ट्रवादी अपनी बेजा हरकतों को उचित ठहराने के लिए राष्ट्रवाद और देशभक्ति की अवधारणाओं का सहारा ले रहे हैं। जो भी ऊँची जातियों की जीवनशैली, संस्कृति व विचारों के विरूद्ध या शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के सिद्धांत के अनुरूप है, वे उसे राष्ट्रविरोधी व देशद्रोह बता रहे हैं। हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए राष्ट्रवाद का अर्थ है एक संस्कृति और एक विचार का वर्चस्व। इसी आधार पर हिंदू राष्ट्रवादी, तार्किकता व मानवतावाद को खारिज करते हैं। हिंदू धर्म इन दोनों अवधारणाओं को खारिज नहीं करता। वह तो वसुधैव कुटुम्बकम (सारा विश्व हमारा परिवार है) की अवधारणा में विश्वास करता है। आज आवश्यकता है राष्ट्रवाद की परिकल्पना के विखण्डन की।
हिंदू राष्ट्रवादी हमेशा बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक के संदर्भ में बात करते हैं मानो ये दोनों ऐसे एकसार समूह हों, जिनमें परस्पर बैर हो। सच्चाई यह है कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों समुदायों में भाषायी, सांस्कृतिक, जातिगत व क्षेत्रीय विविधताएं हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले दोनों समुदायों के लोगों के विचारों और परंपराओं में अंतर हैं। दोनों समुदायों में कई पंथ हैं और आराधना के अलग-अलग तरीके हैं। हमारा संविधान इस विविधता की रक्षा करता है। हिंदू राष्ट्रवादी, भारत को बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक संघर्ष का मैदान बना देना चाहते है। वे चाहते हैं कि हिंदू श्रेष्ठि वर्ग की संस्कृति सभी हिंदुओं पर लाद दी जाए।
दूसरी ओर, मुस्लिम राष्ट्रवादी उर्दू-भाषी व वहाबी-देववंदी इस्लाम में विश्वास रखने वाले सामंती वर्ग की संस्कृति को पूरे मुस्लिम समुदाय पर लादना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मुस्लिम महिलाओं और इस समुदाय में प्रचलित अलग-अलग सांस्कृतिक परंपराओं को कुचल दिया जाए। मज़े की बात यह है कि कई बार धर्मनिरपेक्षतावादी भी इस जाल में फंस जाते हैं और ‘अल्पसंख्यक समुदाय’ की रक्षा करने की बात कहने लगते हैं। असली धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है समाज के हाशिए पर पड़े और दमित वर्गों को न्याय उपलब्ध करवाना-महिलाओं, दलितों और आदिवासियों का सशक्तिकरण और एक ऐसे समाज के निर्माण की ओर आगे बढ़ना जिसमें सभी नागरिक समान हों और जहां सांस्कृतिक स्वतंत्रता और स्वतंत्रता की संस्कृति व्याप्त हो। सभी संस्कृतियों में परस्पर संवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और हर व्यक्ति को यह स्वतंत्रता दी जानी चाहिए कि वह यह स्वयं निर्धारित करे कि उसके लिए क्या सबसे बेहतर है।(मूल अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)
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