JNU की तरह अगर देश के तमाम उच्च शिक्षा संस्थानों और यूनिवर्सिटीज में तमाम कैटेगरी में लड़कियों को एडमिशन में 5% नंबर का एक्सट्रा वेटेज दिया जाए, तो आने वाले दिनों में देश में जेएनयू की तरह की 400 यूनिवर्सिटी होंगी, जहां क्लासरूम इनक्लूसिव होंगे और विविधता होगी. जेएनयू में लड़कों से ज्यादा लड़कियां हैं.
उच्चशिक्षा में लड़कियों की भागीदारी बढ़ने का समाज पर कई तरह का अच्छा असर होगा. तस्वीर में पुलिस को चुनौती देती जेएनयू की स्टूडेंट्स.
लड़कियों की भागेदारी बढ़ाकर ही सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख के सपनों का शिक्षा जगत बन सकता है. इन दो क्रांतिज्योति महिलाओं ने 1848 में भारतीय इतिहास का पहला गर्ल्स स्कूल खोला था.
क्या हम मनुष्य भी हैं?
क्या मनुस्मृति की निंदा काफी है,उनका क्या करें जो सेकुलर हैं और बेटियों को बख्श नहीं रहे हैं?
बंगाल में अब छात्राएं स्कूल कालेज छोड़कर घर जाकर मुंह छुपा रही हैं क्योंकि राजनीतिक गुंडे न सिर्फ उनसे मारपीट कर रहे हैं बल्कि उन्हें बलात्कार करने की धमकी दे रहे हैं,सरेआम।
हिंदू क्या हिंदू राष्ट्र क्या,बुनियादी सवाल यह है कि हम हिंदू हों न हों,क्या हम मनुष्य भी हैं और जिस राष्ट्र के नाम यह कुरुक्षेत्र है,वह राष्ट्र क्या है,कहां है!
सच है कि यादवपुर विश्वविद्यालय के साथ साथ जेएनयू के पक्ष में कुछ विषैले जीवजंतुओं के अलावा पूरा बंगाल एकजुट है,तो सात मार्च को संभावित चुनाव अधिसूचना से पहले केसरिया मुहिम के तहत यादवपुर विश्वविद्यालय में दीदी ने पुलिस नहीं भेजा,लेकिन वर्दमान विश्वविद्यालय में पहले कैंपस में पुलिस बुलाकर छात्र छात्राओं को धुन डाला गया।फिर इसके खिलाफ जब वे अनशन पर बैठे तो तृणमूल कर्मियों ने रात में बत्ती बुझाकर उनकी खबर ली फिर मोटर बाइक पर सवार होकर घूम घूमकर छात्रावासों और निजी आवासों में जाक छात्राओं को घुसकर बलात्कार कर देने की धमकी दे दी।
हालात ये हैं कि पूरे वर्दमान जिले में बलात्कार का शिकार होने के खतरे के मद्देनजर छात्राएं स्कूल कालेज छोड़कर घर में मुहं छुपाकर बैठने को मजबूर हैं।
कन्याश्री के राज में यह आलम है तो क्या सिर्फ मनुस्मति की निंदा करना काफी होगा?
पुरुष वर्चस्व के आक्रामक लिंग से कैसे बचेंगी हमारी माताें,बहने और बेटियां जबकि सत्ता वर्ग के घरों में वे शायद हैं ही नहीं?
http://letmespeakhuman.blogspot.in/2016/02/blog-post_962.html
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