छत्तीसगढ़ सरकार सोनी सोरी से डरती क्यों है ? #SoniSori #Vaw
20 फरवरी 2016 को रात लगभग 10 बजे 3 मोटरसाइकिल पर सवार 3 लोगों ने सोनी सोरी व उनकी साथी रिंकु ठाकुर को तब रास्ते में रोका जब वे जगदलपुर से अपने गाँव गीदम जा रही थीं। इन लोगों ने सोनी का हाछ खींचकर उन्हें गिरा दिया और उनके तेहरे पर गहरे नीले रंग का कोई रसायन पोतकर भाग निकले।
सोनी का चेहरा सूज गया है और वे बहुत अधिक दर्द में हैं। आँखें भी खोल नहीं पा रही हैं।
सोनी को स्थानीय अस्पताल में दिखाने के बाद देर रात जगदलपुर में महारानी ज़िला अस्पताल ले जाया गया। स्थानीय हिन्दी अखबार पत्रिका के मुताबिक महारानी ज़िला अस्पताल छावनी बन गई है। वहाँ कल रात से लगभग 150 सुरक्षाकर्मी तैनात हैं और किसी को भी सोनी से मिलने नहीं दिया जा रहा – उनके करीबी साथी और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्त्ताओं को भी नहीं। विजम्बना यह है कि जब तमाम महिला संगठन और बस्तर के उनके साथी उनकी सुरक्षा के बारे में चिन्ता जता रहे थे तो सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। परन्तु अब सोनी पर हमला हो जाने के बाद सुरक्षा के नाम पर उन्हें उनके साथियों और समर्थकों से भी मिलने नहीं दिया जा रहा है।
सोनी का बयान लेने के लिए कोई तहसीलदार उनसे मिले थे परन्तु चूँकि वे आँखें नहीं खोल पा रहीं, उन्हें भरोसा नहीं है कि उनका जो बयान लिया गया वह सही-सही दर्ज किया गया है या नहीं।
सोनी ने बताया कि उसपर हमला करने वाले हमले के समय बोल रहे थे कि वह “पुलिस इंस्पेक्टर जनरल (आई.जी.) के खिलाफ शिकायत करना छोड़ दे, मरदुम का मामला उठाना बन्द करे, और अगर तुम नहीं सुधरीं तो तुम्हारी बेटी के साथ भी हम यही करेंगे।” गौरतलब है कि सोनी बस्तर रेंज के पुलिस आई.जी. एस.आर.पी. कल्लूरी के खिलाफ अनुसूजित जाति/जनजाति उत्पीड़न (रोकथाम) अधिनियम के तहत एक एफ.आई.आर. दर्ज करने की कोशिश में लगी थीं, जिसमें अब तक कामयाबी नहीं मिली है।
साथ ही सोनी सोरी बस्तर ज़िले के मरदुम थाना क्षेत्र में हुए एक फर्जी मुठभेड़ का मुद्दा उठाती रही हैं जिसमें हिदमा नाम के एक आदिवासी की मौत हो गई थी। पुलिस का कथन है कि हिदमा एक ऊँचे दर्ज़े का नक्सली है (1 लाख का इनामी नक्सली) जिसे उन्होंने जंगलों में एक घमासान मुठभेड़ के बाद मार गिराया था। परन्तु पूरा गाँव यह कह रहा है कि हिदमा एक साधारण आदिवासी थे जिन्हें उनके घर से रात में उठा लिया गया था। उनके पास वोटर कार्ड था, उनके नाम से बैंक खाता था और उन्हें इन्दिरा आवास का आवंटन भी हुआ था। साफ है कि वे जंगलों में रहने वाले कोई खूँखार नक्सली नहीं थे, जैसा कि सरकार बताना चाहती है। हिदमा की पत्नी और बेटी इस बात के चश्मदीद गवाह हैं कि उन्हें उनके घर से रात में पुलिस द्वारा उठाया गया था। उनकी पत्नी को तो उस पुलिस अफसर का नाम भी याद है जो उस रात उनके घर आया था। सोनी सोरी इन गाँववालों को पत्रकार वार्ता के लिए रायपुर लेकर गई थीं। वे इस मामले में भी एफ.आई.आर. दर्ज कराने की कोशिश में लगी रही हैं, जिसके चलते उन्हें धमकियाँ दी जा रही थीं।
इस परिप्रेक्ष्य में यह साफ है कि सोनी पर 20 फरवरी को हुआ हमला कोई “हादसा” या “शरारती कार्यवाई” नहीं है बल्कि बस्तर के आदिवासियों के ऊपर हो रहे अत्याचारों को उजागर करने के कारण उनपर की जाने वाली सोटी-समझी बदले की कार्यवाई है।
चिन्ता की बात यह है कि बस्तर का वही पुलिस महकमा जिसने मरदुम के फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया था और जिसके आई.जी. के खिलाफ सोनी एफ.आई.आर. दायर करने की कोशिश में नाकाम रही है – उसी ने इस वक्त महारानी ज़िला अस्पताल में सुराक्षा के नाम पर सोनी को अकेला बन्द कर रखा है।
यौन उत्पीड़न और राजकीय दमन के खिलाफ औरतें
Women Against Sexual Violence and State Repression (WSS)
22 फरवरी 2016
No comments:
Post a Comment