सुप्रभात् मित्रो!
रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद संघियों को मुँह छिपाने की जगह नहीं मिल रही है।
फिर भी वे हिटलर-मुसोलिनी से प्राप्त अपनी शिक्षा के अनुरूप दो काम कर रहे हैं।
एक, भरमाने वाले अन्य प्रकार के झूठ का प्रचार। जैसे, बाबरी मस्जिद पर वामपंथी इतिहासकारों ने गुमराह किया!! यह ख़बर 'दैनिक जागरण' में आयी है, जिसके संस्थापक नरेंद्र मोहन भाजपा के सांसद थे। संघ के पुराने कार्यकर्ता।
सुशिल श्रीवास्तव सुबाल्टर्न इतिहासकार हैं, वामपंथी नहीं।
दो, वेमुला मामले में लगातार झूठ बोलकर और दूसरों पर कीचड़ उछालकर अपनी गन्दगी कम कर रहे हैं। बन्दरू दत्तात्रेय ने उसे "राष्ट्रद्रोही" कहा। फिर इस आरोप को सही सिद्ध करने के लिए पूरा संघ परिवार मधुमक्खियों की तरह टूट पड़ा।
वेमुला दलित था, इसे भी विवादित बनाना शुरू किया। जबकि उसने आरक्षित पद पर दाखिला नहीं लिया था, इस सच को ये संघी झूठे लगातार छिपा रहे हैं। फिर, उस पितृहीन बालक को तेलंगाना सरकार ने माँ के आधार पर दलित होने का प्रमाणपत्र दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रमाण पत्र को सही माना।
दो दिन पूर्व इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पत्रकार वरदराजन को ABVP ने "राष्ट्रद्रोही" कहकर रोकने के लिए घनघोर उत्पात किया।
अब संघी और उसका गुंडा गिरोह ABVP तय करेंगे कि कौन देशभक्त है, कौन देशद्रोही!!!
इसी गुंडा गिरोह ने मध्य प्रदेश में छात्र संघ चुनाव में फ़र्ज़ी तऱीके से ABVP को विजयी न घोषित करने पर एक प्रोफेसर की कॉलेज में ही हत्या कर दी थी।
यही गिरोह वेमुला के बारे में झूठ की आधारशिला रखने में अगुवा बना।
(अ)मानव संसाधन मंत्री ने बन्दरू के कहने पर पाँच महीने में छह पत्र लिखे, फिर भी विश्वविद्यालय पर कोई दबाव नहीं था!!
जाँच अभी शुरू नहीं हुई, संघ गिरोह के मंत्री और नेता हिटलर वादियों की तरह क्लीनचिट बाँटने लगे!!!
पहले के इनके सभी आरोप झूठे सिद्ध होते जा रहे हैं। लेकिन उसपर चुप्पी साढ़े हुए ये अपने को बेशर्म नहीं कहेंगे!!!
ऐसा एक झूठ नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में था। हालाँकि उसकी जाँच उन्हीं के सहयोगी ने भारत सरकार के आदेश पर 1956 मई की थी। अब संघी नेतृत्व में जाँच से और पुष्ट हो गया कि उनकी म्रत्यु उसी जहाज़ दुर्घटना में हुई थी, वहीँ उनकी अंत्येष्टि भी हुई थी।
जहाँ तक देखा जायगा, इनके झूठ और बेशर्मी का दायरा फैलता हुआ मिलेगा।
रोहित वेमुला की (आत्म)हत्या शम्बूक की हत्या है। एक प्रतिभाशाली शुद्र की राज्यसत्ता से टकराहट का उदाहरण।
यह बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा।
देशी-विदेशी कॉर्पोरेट के दलाल गरीबों, वंचितों के साथ ऐसा ही पाशविक बर्ताव करते हैं।
देशी-विदेशी कॉर्पोरेट के दलाल गरीबों, वंचितों के साथ ऐसा ही पाशविक बर्ताव करते हैं।
लेकिन तुलसीदास के मित्र रहीम का कहना गलत नहीं हो सकता----
मुई खाल की आह सों सार भसम होइ जाय!!
मुई खाल की आह सों सार भसम होइ जाय!!
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