Thursday, January 28, 2016

इन शहरों की गगनचुम्बी इमारतों और शॉपिंग मॉलों की लकदक से लहालोट और मेहनतकश अवाम से कटकर अलगावग्रस्त जीवन बिता रही मध्यवर्गीय जमात आमतौर पर इस देश के बारे में जानने के लिए टीवी, अख़बारों और इण्टरनेट का सहारा लेती है। अगर वे भारत में विकसित हो रहे शहरों की असलियत जानने के लिए किसी मज़दूर बस्ती में जाने की हिम्मत करें तो पायेंगे कि जिस आबादी की वजह से शहरों की चकाचौंध क़ायम रहती है, वह ख़ुद कितनी अँधेरी दुनिया में रहती है। मज़दूर बस्तियों में पानी के लिए सुबह जल्दी उठने के बावजूद लम्बी क़तारें लगती हैं, पीने के लिए स्वच्छ पानी तो फिर भी नहीं मिलता। बोतलों में भरकर पीने वाले पानी बेचने का धन्धा मज़दूर बस्तियों में भी ख़ूब फल-फूल रहा है। ज़ाहिर है बमुश्किल पेट भरने लायक कमाने वाली मज़दूर आबादी का बड़ा हिस्सा तो साफ़ पीने के पानी से पूरी तरह महरूम होता जा रहा है। गन्दा पानी पीकर या कम पानी पीने से वे और उनके बच्चे आये दिन बीमार पड़ते रहते हैं। इन बस्तियों में नालियाँ गन्दगी से बजबजाती रहती हैं, उनमें सीवर का पानी यूँ ही बहता रहता है। कूड़ा-कचरा खुले में ही पड़ा रहता है जो बीमारियों और महामारियों का कारण बनता है। इन बस्तियों में बिजली का कोई भरोसा नहीं रहता। दिन में कई घण्टे बिजली रहती ही नहीं है और कभी-कभी तो पूरा दिन बिजली गुल रहती है। इन बस्तियों की सड़कों की खस्ता हालत देखकर कोई कह ही नहीं सकता कि ये शहर का ही हिस्सा हैं।

इन शहरों की गगनचुम्बी इमारतों और शॉपिंग मॉलों की लकदक से लहालोट और मेहनतकश अवाम से कटकर अलगावग्रस्त जीवन बिता रही मध्यवर्गीय जमात आमतौर पर इस देश के बारे में जानने के लिए टीवी, अख़बारों और इण्टरनेट का सहारा लेती है। अगर वे भारत में विकसित हो रहे शहरों की असलियत जानने के लिए किसी मज़दूर बस्ती में जाने की हिम्मत करें तो पायेंगे कि जिस आबादी की वजह से शहरों की चकाचौंध क़ायम रहती है, वह ख़ुद कितनी अँधेरी दुनिया में रहती है। मज़दूर बस्तियों में पानी के लिए सुबह जल्दी उठने के बावजूद लम्बी क़तारें लगती हैं, पीने के लिए स्वच्छ पानी तो फिर भी नहीं मिलता। बोतलों में भरकर पीने वाले पानी बेचने का धन्धा मज़दूर बस्तियों में भी ख़ूब फल-फूल रहा है। ज़ाहिर है बमुश्किल पेट भरने लायक कमाने वाली मज़दूर आबादी का बड़ा हिस्सा तो साफ़ पीने के पानी से पूरी तरह महरूम होता जा रहा है। गन्दा पानी पीकर या कम पानी पीने से वे और उनके बच्चे आये दिन बीमार पड़ते रहते हैं। इन बस्तियों में नालियाँ गन्दगी से बजबजाती रहती हैं, उनमें सीवर का पानी यूँ ही बहता रहता है। कूड़ा-कचरा खुले में ही पड़ा रहता है जो बीमारियों और महामारियों का कारण बनता है। इन बस्तियों में बिजली का कोई भरोसा नहीं रहता। दिन में कई घण्टे बिजली रहती ही नहीं है और कभी-कभी तो पूरा दिन बिजली गुल रहती है। इन बस्तियों की सड़कों की खस्ता हालत देखकर कोई कह ही नहीं सकता कि ये शहर का ही हिस्सा हैं।
मोदी सरकार स्मार्ट शहर बनाने की योजना को पूँजीवादी विकास को द्रुत गति देने एवं विदेशी पूँजी निवेश को बढ़ावा देने की अपनी मंशा के तहत ही ज़ोर-शोर से प्रचारित कर रही है। ग़ौरतलब है कि…
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