बहुत प्रिय साथी पंकज सिंह का देहांत और अंत्येष्टि जिन दिनों में हुई नीलिमा ओर मैं शहर में नहीं थे। हमें जीवन भर इस ग़ैर-मौजूदगी का अफ़सोस रहता। लेकिन साथी राजेश जोशी दुवारा उनकी अंत्येष्टी का हाल सुनकर हमें लगता है हम पंकज सिंह की क्रन्तिकारी विरासत से बलात्कार होते हुवे देखने से बच गए। कोई तो इस के लिए ज़िम्मेदार होगा ही, 'स्वर्गीय' पंकज सिंह, उनका परिवार या धर्म को ओढ़े समाज। इसी तरह की दो अन्य घटनाओं का मैं भी साक्षी रहा हूँ। जब बाबा नियाज़ हैदर के जनाज़े को तदफ़ीन के लिए जामिया (ओखला) के क़ब्रिस्तान में लेजाया गया तो उन्हें जो कफ़न पहनाया गया उस पर क़ुरान की आयतें लिखीं थीं। मैं ने चिल्लाकर बाबा के साथ की जा रही इस नाइंसाफ़ी का विरोध भी किया था और मुझे ख़ामोश कराने में कई जाने-माने कम्युनिस्ट भी थे। मुझे वहां से आना पड़ा था। क्रन्तिकारी कवि गोरख पाण्डे के मृत शरीर के साथ भी ऐसा ही बर्ताओ किया गया।
पंकज के शरीर की दुर्गति के बाद तो कामरेड खेतान की वसीयत का महत्व और बढ़ जाता है। जो लोग धर्म और ख़ुदा (किसी भी रूप में) के पाखंड को नहीं मानते उन्हों ने अपने जीवित रहते हुवे कामरेड खेतान की तरह वसीयत या कोई भी क़ानूनी दस्तावेज़ ज़रूर लिख छोड़नी चाहिए ताकि किसी को भी हमारे शरीर के साथ खिलवाड़ करने का अवसर न मिले।
एक बात तय है, बाबा नियाज़ हैदर, गोरख और पंकज जिन्हें स्वर्ग/जन्नत में भेजने की धर्म के ठेकेदारों ने तमाम इंतेज़ाम किये हैं उनके वहां बुरे हाल होंगे। पता नहीं बिचारे किस तरह तमाम धर्म गुरुओं, पूंजीपतिओं और नेताओं के बीच जीवन बिता रहे होंगे?
शम्सुल इस्लाम
On Jan 1, 2016 2:15 PM, "Rajesh Joshi" <rajesh1joshi@gmail.com> wrote:
मैंने यह वाक्य पहले सिर्फ़ वर्मा जी को भेजा था, पर अब आप सबको भेज रहा हूँ."लेकिन देखिए विडंबना - जो पंकज सिंह अपनी युवावस्था से ही नक्सलबाड़ी आंदोलन से प्रभावित हो गए थे, उनके शव को भगवा रंग के ऐसे कपड़े में लपेटा गया जिस पर आरएसएस का नारा 'जय श्री राम' लिखा था."2016-01-01 17:30 GMT+05:30 peeush pant <panditpant@gmail.com>:निःसंदेह ऐसे ही होते हैं असली कॉमरेड।हममें से बहुतों को अपनी केंचुल उतार फेंकने की ज़रूरत है। ख़ासकर धार्मिक आस्थाओं, रूढ़िवाद और कर्मकाण्डो को अपनी जीवन शैली से न केवल दूर रखना होगा बल्कि अपने व्यहार से इसे दर्शाना भी होगा। कम से कम मृत्यु उपरान्त हमारा शरीर क्या गत पाये यह निर्णय तो हमारा अपना होना चाहिए, न कि हमारे परिवार का या फिर समाज का।लेकिन ये बात भी सच है कि नवउदारवादी पूंजीवाद के तहत निर्मित की जा रहीँ विकट आर्थिक परिस्थितयों के इस दौर में कॉमरेड खेतान सरीखी साम्यवादी वैचारिक आस्थाओं पर टिकी ज़िंदगी जीना भी एक चुनौती बन चुका है।2015-12-31 16:40 GMT+05:30 Bhasha Singh <bhasha.k@gmail.com>:बेहद जरूरी सवाल। दिल को झकझोरने वाले। इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है, देखें कितने लोग इस वसीयत की भावना से अपने जीवन और अंत को जोड़ पाते हैं----2015-12-31 14:39 GMT+05:30 Vineet Tiwari <comvineet@gmail.com>:Vineetmaine bhi ise share kiya hai anel mitron ke saaath.dhanywad.2015-12-31 14:37 GMT+05:30 yashwant singh<yashwant@bhadas4media.com>:इस शानदार पत्र/वसीयत को भड़ास पर प्रकाशित कर दिया है ताकि यह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे.
मेरी अंतिम इच्छा : एक जनपक्षीय व्यवसायी कामरेड महादेव खेतान ने मरने के दो दिन पहले जो वसीयत तैयार की, उसे पढ़ें
http://www.bhadas4media.com/article-comment/8165-meri- aakhiri-echchha 2015-12-31 7:21 GMT+05:30 Ish Mishra <mishraish@gmail.com>:अनुकरणीय. लाल सलाम.2015-12-30 23:45 GMT+05:30 Nityanand Gayen<nityanand.gayen@gmail.com>:नि:शब्द हूँ ..मैं2015-12-30 15:27 GMT+05:30 Mangalesh Dabral<mangalesh.dabral@gmail.com>:बहुत मार्मिक और प्रेरणाप्रद.मंगलेश डबराल2015-12-30 10:40 GMT+05:30 Anand verma<vermada@hotmail.com>:मेरी अंतिम इच्छामहादेव खेतान(करेंट बुक डिपो कानपुर के संस्थापक महादेव खेतान का अब से तकरीबन 16 वर्ष पूर्व 6 अक्टूबर 1999 को निधन हुआ। महादेव खेतान ने अपनी पुस्तकों की इस दुकान के जरिए वामपंथी विचारधारा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान किया और उनके इस योगदान को हिन्दी भाषी क्षेत्रों में काफी सराहा गया। विचारों से साम्यवादी होने के साथ वह एक सफल व्यवसायी भी थे लेकिन उन्होंने अपने व्यवसायी हित को कभी-भी व्यापक उत्पीड़ित जनसमुदाय के हित से ऊपर नहीं समझा। यही वजह है कि अपनी पीढ़ी के लोगों के बीच वह कॉमरेड महादेव खेतान के रूप में जाने जाते थे... अपने निधन से दो दिन पूर्व उन्होंने अपनी वसीयत तैयार की। हम उस वसीयत को यहां अक्षरशः प्रकाशित कर रहे हैं ताकि एक जनपक्षीय व्यवसायी के जीवन के दूसरे पहलू की भी जानकारी पाठकों को मिल सके-सं.)मैं महादेव खेतान उम्र लगभग 76 वर्ष पुत्र स्व. श्री मदन लाल खेतान, अपने पूरे सामान्य होशो-हवास में अपनी अंतिम इच्छा निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त कर रहा हूं।मैं अपनी किशोरावस्था (सन 1938-39) में ही मार्क्सवादी दर्शन (द्वंद्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद) के मार्गदर्शन में उस समय देश, नगर तथा शिक्षण संस्थाओं में चल रहे ब्रिटिश गुलामी के विरोध में, जुल्म और शोषण के विरोध में स्वाधीनता संग्राम, क्रांतिकारी संघर्ष, मजदूर और किसी न किसी संघर्ष से जुड़ गया था। उसी पृष्ठभूमि में मुझे अध्ययन और आंदोलन को एक साथ समायोजित करते हुए सृष्टि और मानव तथा समाज की विकास प्रक्रिया को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन करने,उसको देखने और समझने का अवसर मिला।मेरी यह पुष्ट धारणा बनी कि आज भी प्रकृति के वैज्ञानिक सिद्धांतों और मानव विकास की प्रक्रिया में उसको समझने का प्रयास तथा उससे या उनसे संघर्ष करते हुए उनको अपने लिए अधिक से अधिक उपयोगी बनाने में हजारों बरस के मानव प्रयास ही सृष्टि, मानव और समाज का असली और सही इतिहास है। यहां मैं मानव के ऊपर किसी दिव्य शक्ति या ईश्वर को नहीं मानता हूं। यह प्रक्रिया अनवरत चल रही है। जिसके फलस्वरूप आज के मानव का विकास हमारे सामने है। यह प्रक्रिया आगे भी तेजी से चलती जाएगी, चलती जाएगी।अस्तु, मेरी मृत्यु पर ईश्वर और उसके दर्शन पर आधारित कोई भी, किसी भी प्रकार का, किसी भी रूप में, धार्मिक अनुष्ठान,कर्मकांड, पाठ, यज्ञ, ब्राह्मण भोजन अथवा दान आदि, पिंड दान तथा पुत्र का केश दान (सरमुड़ाना या बाल देना) आदि-आदि कुछ नहीं होगा तथा दुनिया के सबसे बड़े झूठ (रामनाम) को मेरा शव दिखाकर ‘सत्य’ घोषित और प्रचारित करने का भी कोई प्रयास नहीं होगा। मेरे शव को सर्वहारा के लाल झंडे में लपेट कर दुनिया के मजदूरों एक हो, कम्युनिस्ट आंदोलन तथा पार्टी विजयी हो, आदि-आदि नारों के साथ मेरे जीवन भर के परिश्रम से विकसित करेंट बुक डिपो से उठाकर बड़े चौराहे स्थित मेरे भाई तथा साथ ही कामरेड राम आसरे की मूर्ति के नीचे ले जाकर मेरे शव को अपने साथी को अंतिम लाल सलाम करने का अवसर प्रदान करें तथा वहीं पर लखनऊ स्थित संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के अधिकारियों को बुलाकर मेरा शव उनको दे दें ताकि न सिर्फ जरूरतमंद लोगों को मेरे शरीर के अंगों से पुनर्जीवन मिल सके बल्कि आने वाली डाक्टरों की पीढ़ी के अध्ययन को और अधिक उपयोगी बनाने में मेरे शरीर का योगदान हो सके।इसके बाद समय हो और मित्रों की राय हो तो वहीं राम आसरे पार्क में सभा करके अगर मेरे जीवन के प्रेरणादायक हिस्सों के संस्मरण से आगे आने वाली संघर्षशील पीढ़ी को कोई प्रेरणा मिल सके तो उसका जिक्र कर लें वरना मित्रों की राय से सबके लिए जो सुविधाजनक समय हो उस समय यहीं राम आसरे पार्क में लोगों को बुलाकर संघर्षशील नयी पीढ़ी को प्रेरणादायक संस्मरण देकर खत्म कर दें। यही और बस यही मेरी मृत्यु का आखिरी अनुष्ठान होगा। इसके बाद या भविष्य में कभी कोई दसवां, तेरहवीं, कोई श्राद्ध, कोई पिंड दान आदि कुछ नहीं होगा और मैं यह खास तौर पर कहना चाहता हूं कि किसी भी हालत में, किसी भी जगह, और किसी भी बहाने से कोई मेरा मृत्यु भोज (तेरहवीं) नहीं होने देगा। अपने परिवार के बुजुर्गों से अनुरोध है कि मेरी मृत्यु पर अपना जीवन दर्शन या आस्थाओं,अंधविश्वासों और अपने जीवन मूल्यों को थोपने की कोशिश न करें, मुझपर बड़ी कृपा होगी। घर पर लौटकर सामान्य जीवन की तरह सामान्य भोजन बने। ‘चूल्हा न जलने’ की परंपरा के नाम पर न मेरी ससुराल, न मेरे पुत्र की ससुराल से और न ही किसी अन्य नातेदार, रिश्तेदार की ससुराल से खाना आएगा।उसके दूसरे दिन से बिल्कुल सामान्य जीवन और सामान्य दिनचर्या जैसे कभी कुछ हुआही न हो घर व दुकान की दिनचर्या बिना किसी अनुष्ठान के शुरू हो जाए तथा मेरी मृत्यु पर मेरी यह अंतिम इच्छा बड़े पैमाने पर छपवाकर न सिर्फ नगर में वृहत तरीके से अखबारों सहित सभी तरह के राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं को बंटवा दें तथा करेंट बुक डिपो एवं मार्क्सवादी आंदोलन और साहित्य से संबंधित सभी लोगों को डाक से भेजें ताकि इससे प्रेरणा लेकर अगर एक प्रतिशत लोगों ने भी इसका अनुसरण करने की कोशिश की तो मैं अपने जीवन को सफल मानूंगा।मेरे जीवन में होल टाइमरी के बाद सन 1951 से अभी तक जो कुछ भी मैंने बनाया है वह करेंट बुक डिपो है जो किसी भी तरह से कोई भी व्यापारिक संस्था नहीं है बल्कि किसी उद्देश्य विशेष से मिशन के तहत एक संस्था के रूप में विकसित करने का प्रयास किया था। मेरे पास न एक इंच जमीन है और न कोई बैंक बैलेंस है। मेरे जीवन का एक ही मिशन रहा है कि देश और विदेशों में तमाम शोषित उत्पीड़ित जनसमुदाय जो न सिर्फ अपने जीवन स्तर को सम्मानजनक बनाने के लिए बल्कि उत्पीड़न और शोषण की शक्तियों के विरोध में उनको नष्ट करने के लिए जीवन-मरण के संघर्ष करते रहे हैं और कर रहे हैं तथा करते रहेंगे उनको हर तरह से तन, मन और धन से जो कुछ भी मेरे पास है उससे मदद करूं, इनको प्रेरणा दूं और अपनी यथाशक्ति दिशा दूं। इसी उद्देश्य से मैंने करेंट बुक डिपो खोला,इसी उद्देश्य के लिए इसे विकसित किया। कहां तक मैं सफल हुआ इसका आकलन तो इन संघर्षों की परिणति ही बताएगी। जितना जो कुछ मुझे इस समय आभास है उससे मुझे कोई असंतोष नहीं है।मेरी मृत्यु के बाद मेरा यह जो कुछ भी है उसके सारे एसेट्स (परिसंपत्ति) और लाइबलिटी (उत्तरदायित्व) के साथ इस सबका एकमात्र उत्तराधिकारी मेरा पुत्र अनिल खेतान होगा। मैंने कोशिश की है कि मेरी मृत्यु तक इस दुकान पर कोई ऐसी लाइबलिटी नहीं रहे जिसके लिए मेरे पुत्र अनिल को कोई दिक्कत उठानी पड़े। मेरी इच्छा है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरा पुत्र अनिल खेतान भी मेरे जीवन के इस मिशन को, जिसके लिए करेंट बुक डिपो खोला व विकसित किया है, उसको अपना सब कुछ न्यौछावर करके भी आगे बढ़ाता रहेगा, उसी तरह से विकसित करता रहेगा और प्रयत्न करेगा कि उसके भी आगे की पीढ़ियां यदि इस संस्थान से जुड़ती हैं तो वे भी इस मिशन को यथाशक्ति आगे बढ़ाते हुए विकसित करेंगी।मैं यह आशा करता हूं कि मेरी ही तरह मेरा पुत्र भी किन्हीं भी विपरीत राजनैतिक परिस्थितियों में डिगेगा नहीं और बड़े साहस एवं आत्मविश्वास के साथ झेल जाएगा और ऐसी नौबत नहीं आने देगा कि पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और दिशास्रोत करेंट बुक डिपो बंद हो जाएगा।मैं यह चाहूंगा कि जैसे मैंने अपने और अपने पुत्र के जीवन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विकसित करने का प्रयत्न किया और किसी भी धर्म या अंधविश्वास, कर्मकांड से दूर रखा उसी प्रकार मेरा पुत्र अपने जीवन को बल्कि आने वाले पीढ़ियों को ईश्वर व धर्म पर आधारित दर्शन, अंधविश्वास और कर्मकांडों से दूर रखते हुए उन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विकसित करेगा तथा जीवन को न्यूनतम जरूरतों में बांधेगा ताकि अपनी फिजूल की बढ़ी हुई जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने मूल्यों से समझौता न करना पड़े क्योंकि वही फिसलन की शुरुआत है जिसका कोई अंत नहीं है। दुनिया में रोटी सभी खाते हैं, सोना कोई नहीं खाता लेकिन सम्मानजनक रोटी की कमी नहीं है और सोने की कोई सीमा नहीं है और दुनिया के बड़े से बड़े धर्माचार्य विद्वान और बड़े से बड़े धनवान कोई विद्वान नहीं है, उसके लिए कोई बुद्धि की आवश्यकता नहीं है और मानव की जरूरतों को पूरा करने में हजारों वर्षों से असमर्थ रहे हैं तथा आगे भी मानवता को देने के लिए इनके पास कुछ नहीं है।दुनिया में सारे तनावों की जड़ केवल दो हैं-एक धन और दूसरा धर्म। अगर अपने को इससे मुक्त कर लें तो न सिर्फ अपना जीवन बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों का पूरा जीवन तनावरहित और सुखी हो जाएगा। इन बातों का अगर थोड़ा भी खयाल रखा तथा जीवन को इन पर ढालने की थोड़ी भी कोशिश की तो हमेशा सुखी रहोगे।एक बुनियादी गुर की बात और ध्यान में रखें कि आप जिस जीवन मूल्य, जीवन पद्धति और दर्शन को प्रतिपादित करें और यह आशा करें कि आपकी आने वाली पीढ़ी भी उस पर चले तो यह सबसे ज्यादा आवश्यक है कि आपका खुद का आचरण और जीवन आपके द्वारा प्रतिपादित मूल्यों पर आधारित हो, आपका खुद का जीवन एक उदाहरण हो।अंत में कुछ शब्द करेंट बुक डिपो के बारे में कहना चाहूंगा। जैसा कि मैं पहले बता चुका हूं कि यह एक मिशन विशेष के लिए संस्थापित व संचालित संस्था है जिसमें दिवंगत रामआसरे, मेरे सहयोद्धा आनंद माधव त्रिवेदी, मेरी पत्नी रूप कुमारी खेतान, मेरे पुत्र अनिल खेतान, अरविंद कुमार और सैकड़ों क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं एवं प्रिय पाठकों का योगदान रहा है। मैं इन सबका ऋणी हूं और आशा करता हूं कि ये सभी भविष्य में भी वैसा ही करते रहेंगे। उद्देश्य यह है कि इसके द्वारा प्रकाशित व वितरित साहित्य देश के हजारों पाठकों को मार्क्सवादी दर्शन पर आधारित तथा प्रेरित श्रेष्ठ सामग्री उपलब्ध होती रहे। इसके संचालन से संबंधित विस्तृत बातें या तकनीकी मुद्दों का निर्णय उपरोक्त व्यक्ति आपस में विचार-विमर्श के जरिए तय करते रहें।- महादेव खेतान, 4 अक्टूबर 1999(समकालीन तीसरी दुनिया के जनवरी 2016 अंक से)
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