Monday, January 4, 2016

सिर्फ़ इस देश के अंधेरे में छुपे पाठक / दिलों में लिये चलते हैं उसे /उन्हीं का दबा हुआ मगर सतत स्वर / आता है मुझ तक उन्हीं के लिए है मेरी कविताई


नीलाभ इलाहाबादी

दोस्तो,
आज से पांच बरस पहले मेरी कविता पुस्तक आयी थी. शायद दसवीं या ग्यारहवीं. पांच बरस बाद नयी कविता पुस्तक "फ़ेसबुक और अन्य कविताएं" आ रही है. "नयी किताब" से, जहां से पिछली आयी थी. इन वर्षों में चूंकि मैं तजरुबे करता रहा, इसलिए इसका मिज़ाज कुछ अलग है. कविताएं भी हैं, गज़लें और नज़्में भी, पंजाबी की रचनाएं भी और एक खण्ड अंग्रेज़ी में लिखी कविताओं का भी.
11 जनवरी को पुस्तक मेले में हाल नम्बर 12-A में स्टाल नम्बर 185 पर किताब आ जायेगी. सभी दोस्तों के लिए यह विनम्र सूचना और न्योता है. आइये और मेरी ख़ुशी में शामिल होइए.
मेरी कविताई
साथी कवि चुप हैं / ख़ामोश हैं आलोचक /भद्रजनों को तो कविता से
वैसे भी कोई दिलचस्पी नहीं / नेता कविता को फ़ालतू की चीज़ मानते हैं /फ़ौजी स्त्रैण / और नौकरशाहों की नज़र में तो वह आलू भी मुहैया नहीं करा सकती
सिर्फ़ इस देश के अंधेरे में छुपे पाठक / दिलों में लिये चलते हैं उसे /उन्हीं का दबा हुआ मगर सतत स्वर / आता है मुझ तक
उन्हीं के लिए है मेरी कविताई

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