Ujjwal Bhattacharya
बनारस में एक वयोवृद्ध कामरेड थे त्रैलोक्यनाथ सरकार, बच्चे-बूढ़े सबके लिये सरकार दा. अपनी जवानी में वह अनुशीलन दल के क्रांतिकारी थे, फिर कम्युनिस्ट बने. पार्टी टूटने के बाद वह सीपीआईएम में गये, कुछ साल बाद सीपीआई में लौट आये.
काफ़ी उम्र हो जाने के बाद वह थोड़ा विक्षिप्त हो गये थे. भेलुपुरा से पैदल गोदौलिया तक आते थे, सीपीआई दफ़्तर के नीचे सामने के फ़ुटपाथ पर खड़े-खड़े देर तक लाल झंडे को देखते थे. फिर वहां से दशाश्वमेध की ओर बढ़ जाते थे. वहां सीपीआईएम के दफ़्तर के नीचे खड़े होकर देर तक लाल झंडे को देखते रहते थे.
कोई परिचित कामरेड मिल जाने पर कहते थे : दोनों को एक होना पड़ेगा.
यह उनका रोज़ का काम था.
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जब मैं एआईएसएफ़ का सदस्य बना था, तो कम्युनिस्टों के बीच आपसी दुश्मनी चरमसीमा पर थी. पहले दो, फिर तीन पार्टियां बनी. सीपीआईएमएल बनारस में नहीं बन पाई थी, लेकिन कुछ 'नक्सलवादी' थे. एसएफ़आई नहीं बनी थी, सीपीएम के छात्र भी एआईएसएफ़ में थे. हम उन्हें हमेशा कामरेड कहते थे, वे कभी नहीं कहते थे. मेरी उम्र कोई 15-16 साल की थी. एक वरिष्ठ(18) सीपीएम कामरेड से मैंने पूछा कि कमनिजम तो हम दोनों चाहते हैं, फिर झगड़ा कैसा ? उसने मुझे बताया : हमलोग खूनी क्रांति चाहते हैं, तुम शांतिपूर्ण क्रांति की बात करते हो, जो हो ही नहीं सकती.
पार्टी सेक्रेट्री पिताजी के दोस्त थे, मैंने उनसे पूछा. उन्होंने दराज से निकालकर एक किताब दी. कहा : इसे पढ़ो. ऐसे ही लोगों के बारे में लेनिन ने लिखा है - Left wing Communism, an infantile disorder.
मैंने पढ़ी, लेकिन सीपीआईएम के बारे में कुछ नहीं मिला. खैर, उस किताब को जेब में रखकर घूमने लगा. अगली बार जब वरिष्ठ(18) कामरेड मिले, तो उनसे मैंने कहा : यह देखो, लेनिन ने तुम्हारे बारे में क्या लिखा है.
उसने किताब देखी, फिर कहा : यह हमारे बारे में नहीं, नक्सलियों के बारे में है.
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