आमंत्रण : किसानों, मजदूरों, मछुवारों, आदिवासियों की महारैली - भूमि अधिकार आन्दोलन | 24 फ़रवरी, 2016, संसद मार्ग, नई दिल्ली
Bhumi Adhikar Andolan
You all would be aware that the Modi-led central government has taken back the Land Ordinance but the Bill is still with the parliament standing committee. With the intentions of land grab, the central government has again proved that it is not bothered about the country or its people. It is willing to go to any length to sell the land, resources and lives of people to national or multinational companies.
The protests against taking away of land, the loot of identities of farmers and workers and for implementing constitutional provisions have intensified across the country.
This is an appeal to all people working for a free and just society, with progressive and secular individuals and groups, to assemble in large numbers on 24th Feb, 2016 at 10 am on Parliament Street, New Delhi and participate in the massive rally.
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भूमि अधिकार आन्दोलन
साथियों
जिंदाबाद!!
यह समय पूरी दुनिया में और हमारे देश में ‘लोगों की बेदखली से पूंजी संचय’ की कोशिशों के विरोध में एकजुटता से साथ आने का है। आजीविका के संसाधनों से बेदखली करने के लिए इस मौजूदा सरकार ने भूमि-अधिग्रहण कानून को एकतरफा पूंजीपतियों/कार्पोरेट्स के पक्ष में बनाने के लिए अध्यादेश के ज़रिये एक कोशिश की थी। जिसका सशक्त और प्रभावशाली विरोध करने के लिए देशभर के किसान व मजदूर संगठन व जन आन्दोलन एकजुट हुए। इसी क्रम में ‘भूमि अधिकार आन्दोलन’ का गठन हुआ और बीते 20 महीनों में निरंतरता और आपसी समन्वय से आन्दोलन की धार को बनाए रखा और अनेक सफलतायें हासिल की । किसानों के तीव्र विरोध के कारण सरकार को तीन- तीन बार जारी किये गए अध्यादेशों को वापिस लेना पड़ा। विपक्ष पर भी आन्दोलनों का प्रभाव हुआ और राज्य सभा में इस बिल को पास नहीं होने दिया गया। बीच का रास्ता देखते हुए सरकार ने लोकसभा में पारित संशोधित बिल को संसद की समिति के पास अनुशंसा के लिए भेजा जिसमें भूमि अधिकार आन्दोलन की ओर से आपत्तियाँ व सुझाव प्रस्तुत किये गए। संसदीय समिति के सदस्यों से संवाद हुए। अन्तत: यह बिल अभी ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया, लेकिन सरकार की मंशा फिर से इस बिल को लाने की है।
इस कानून विशेष के खिलाफ निरंतर विरोध के समानांतर भूमि अधिकार आन्दोलन ने विभिन्न राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे जबरन भूमि अधिग्रहण का विरोध किया और राज्यों के स्तर पर भी एक समन्वित साझा प्रयासों को मजबूत किया।
भूमि अध्यादेश का पहली बार पुरजोर विरोध 24 फरवरी, 2015 को संसद मार्ग पर हुआ और यह सिलसिला 2 अप्रैल, 2015 को विपक्ष में बैठे राजनैतिक दलों से संवाद के साथ 5 मई, 2015 को फिर से जंतर-मंतर की रैली से होते हुए 23 जुलाई को संसदीय समिति के सदस्यों के समक्ष जन सुनवाई तक चला। इसके साथ-साथ विभिन्न राज्यों में चल रहे संघर्षों के साथ एकता और समन्वय स्थापित करने के प्रयास हुए जिसकी परिणति 19-20 नवम्बर 2015 को दो दिवसीय सम्मलेन में हुई जिसमें 20 से ज़्यादा राज्यों के संघर्षरत जनसंगठनों व जन आन्दोलनों ने शिरकत की। इसी सम्मलेन में यह तय हुआ कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफत के एक साल पूरे होने पर पुन: उसी दिन संसद मार्ग पर एक विशाल प्रदर्शन किया जाए, क्योंकि यह सरकार फिर से उस बिल को लाने की कोशिश करेगी। इस लिहाज़ से यह एक चेतावनी रैली होगी।
साथियों, इस एक साल में देश में ऐसा बहुत कुछ घटित हुआ है जो हमारे सामाजिक जनतंत्र और जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए बहुत घातक है। यह सरकार खुले तौर पर प्राकृतिक संसाधनों की लूट के साथ साथ हिन्दू बहुसंख्यकवाद और उसमें भी सवर्ण वर्चस्व को बढ़ावा देते हुए समाज के अन्य तबकों के साथ अत्याचार कर रही है। देश में एक ऐसा महौल बनाया जा रहा है जिसमें लोगों की तार्किक ढंग से बोलने, लिखने, पढ़ने और सोचने तक पर पाबंदियां लगायीं जा रही हैं। हर मोर्चे पर विफल रही यह सरकार आने वाले समय में और भी क्रूर रुख अपनायेगी इसमें संदेह नहीं होना चाहिए। इसीलिए भी जहां से इस सरकार की पहली बड़ी हार हुई थी यानी भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की वापसी से, हमें फिर से पूरी ताक़त से उसी पर ध्यान केन्द्रित करते हुए इस सरकार की कार्पोरेट्स व सवर्ण परस्ती की नीतियों व मंशाओं को धवस्त करना होगा। अत: आप सभी से अनुरोध है कि 24 फरवरी को अपने अपने संगठनों के ज़्यादा से ज़्यादा साथियों को लेकर संसद मार्ग पर पहुंचें।
भूमि अधिकार आन्दोलन आप सभी से इस विशाल प्रदर्शन में शामिल होने और प्रतिरोध के इस स्वर को बुलंद करने का आव्हान करता है।
इस पत्र के साथ एक पर्चा संलग्न है, इस पर्चे की विषय-वस्तु को आप अपने अपने क्षेत्र और मुद्दों के अनुसार संशोधित करके या अपना नया पर्चा तैयार करके लोगों के बीच पहुँचायें ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में समुदाय के लोग, किसान, मछुआरे, आदिवासी और मजदूर साथी दिल्ली पहुंचें।
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,
मेधा पाटकर, हन्नन मुल्ला, अशोक चौधरी, सत्यवान, रोमा, अनिल चौधरी, अतुल अंजान, डॉ. सुनीलम, प्रफुल्ल सामंतरा, प्रेम सिंह, दीप सिंह शेखावत, दयामनि बारला, उल्का महाजन,दर्शन पाल सिंह, मंजीत सिंह, चौधरी हरपाल सिंह बेल्लारी, विनोद सिंह, आराधना भार्गव, प्रतिभा शिंदे, रजनीश गंभीर, वीरेंद्र विद्रोही, अशोक श्रीमाली, कैलाश मीणा, महावीर गुलिया,कृष्णकांत, अशोक प्रियदर्शी, अमूल्य नायक, आलोक शुक्ला, त्रिलोचन पुंजी, राजिम, उमेश तिवारी, ईश्वर चन्द्र त्रिपाठी, एम एस सेल्वाराज, एम इलांगो, रामकृष्ण राजू, हंसराज घेवरा,भूपिंदर सिंह रावत, सागर राबरी, जसबीर सिंह, वीजू कृष्णन, मधुरेश कुमार, श्वेता त्रिपाठी,स्नेहलता, संजीव कुमार, जीतेन्द्र
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दिल्ली चलो दिल्ली चलो दिल्ली चलो
भूमि लूट के खिलाफ प्रतिरोध आन्दोलन तेज करो, साम्प्रदायिक-कॉर्पोरेट गठजोड़ को ध्वस्त करो!!
जबरन भूमि अधिग्रहण बंद करो कंपनियों की दलाली बंद करो
भूमि अधिकार की गारंटी करो कृषि सुधार का प्रबंध करो
राज्य सरकारों द्वारा गैर कानूनी ढंग से किये जा रहे भूमि अधिग्रहण पर लगाम लगाओ
किसानों, मजदूरों, मछुवारों, आदिवासियों कीमहारैली
(24 फ़रवरी 2016, संसद मार्ग, नई दिल्ली)
साथियों,
किसान संगठनों और जन आंदोलनों द्वारा पूरे देश भर में 20 माह तक चलाये गए एक समन्वित धाराप्रवाह आन्दोलन के प्रभाव से मौजूदा केंद्र सरकार को भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को बलात और सरल बनाने के इरादों को तीन तीन बार पटखनी दी है । इस सरकार ने तीन बार अध्यादेश जारी किये और हर बार उसे पीछे हटना पड़ा । इस दौरान भूमि अधिकार आन्दोलन के रूप में एक संयुक्त प्रयास पैदा हुआ और इसमें पूरे देश में सक्रिय विभिन्न जन आंदोलनों और जन संगठनों के बीच एकता और समन्वय स्थापित हुआ । इसके माध्यम से जहां सरकार को यह स्पष्ट सन्देश दिया गया कि देश के प्राकृतिक संसाधनों और मानवीय गरिमा के बदले चंद पूंजीपतियों की तिजोरियां भरना हमें मंजूर नहीं है वहीं मेहनतकश समाज को यह भरोसा भी मिला कि इनकी संगठित ताकत ऐसी चुनौतियां का सामना कर सकती है । हम सभी ने मिलकर संसद में सत्तासीन सरकार के बरक्स वंचित होते समुदायों की ओर से एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाई है । हमारे इस प्रयास से इस सरकार का जन विरोधी, किसान विरोधी और कार्पोरेट परस्त चरित्र भी समाज के सामने आया ।
पर साथियो, ख़तरा अभी टला नहीं है और भूमि अधिग्रहण का नया कानून अभी भी संसद की संपत्ति है जिस पर देश की संसद को निर्णय लेना है । हम यह समझ रहे हैं कि उस समय बिहार चुनाव और संसदीय समिति के समक्ष देश भर से विभिन्न जन संगठनों द्वारा प्रस्तावित बिल पर जो टिप्पणियाँ दी गयीं वह सरकार की मंशा के अनुरूप नहीं थीं और इन वज़हों से सरकार ने फिलहाल के लिए इस बिल को स्थगित किया हुआ है । इसके अलावा बिहार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपनी किसान विरोधी और कार्पोरेट परस्त सरकार की छबि से मुक्त होने की भी कोशिश की गयी थी । पर हमें सतर्क रहने की ज़रूरत है क्योंकि यह बिल कभी भी लाया जा सकता है । इसके अलावा, भूमि संविधान की अनुवर्ती सूची में होने के नाते राज्यों के अधीन भी है और हम देख रहे हैं कि तमाम राज्य सरकारें अपने अपने लिहाज़ से भूमि अधिग्रहण के लिए कानून बना रही हैं । राजस्थान सरकार ने तो यह मन भी बना लिया है कि वो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में नहीं जायेगी बल्कि राज्य में मौजूद सरकारी ज़मीन (वास्तव में सामुदायिक ज़मीन क्योंकि ज़मीन केवल दो तरह की होती है – एक निजी स्वामित्व की और दूसरी सामुदायिक या कॉमन) को चिन्हित करके सीधा पूंजीपतियों को दे देगी । इसके अलावा मध्य प्रदेश में कृषि भूमि के उद्देश्य परिवर्तन की प्रक्रिया को एक दिन में पूरा करने का संशोधन, ओडिशा में नया लैंड ग्रैबिंग अध्यादेश लाकर, छत्तीसगढ़ में तमाम आदिवासी हितैषी कानूनों का उल्लंघन करते हुए ज़मीनें कार्पोरेट्स को दी जा रहीं हैं । झारखंड में छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट, और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में परिवर्तन करने की पुरजोर कोशिश हो रही है ताकि आदिवासियों और जंगल की सामुदायिक ज़मीनों को कार्पोरेट्स को दी जा सकें । उत्तराखंड में वन पंचायत के अधीन सामुदायिक जंगलों को संयुक्त वन प्रबंधन के माध्यम से वन विभाग को सौंपकर इसे हड़पने की कोशिश हो रही है तो समुद्र तटों की ज़मीनों से परंपरागत ढंग से बसे मछुआरा समुदायों को बेदखल करने की प्रक्रियाएं भी बहुत तेज़ी से जारी हैं । दैत्याकार परियोजनाएं जिनमें औद्योगिक गलियारे, स्मार्ट सिटीज, विशेष आर्थिक जोंस, नेशनल इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग जोंस, नेशनल कोस्टल मैनेजमेंट एक्ट, प्राकृतिक संसाधनों की लूट के नए – नए विधान रचे जा रहे हैं ।
दरअसल कॉर्पोरेट पैसे के दम पर चुनाव जीत कर देश की सत्ता पर काबिज हुई मोदी सरकार हर कीमत पर कॉर्पोरेट एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगी हुई है। इसके लिए बैंकिग व बीमा क्षेत्र में हुए आमूलचूल परिवर्तन, श्रम कानूनों में हुए नकारात्मक बदलाव, शिक्षा और कल्याणकारी योजनाओं और रियायतों में हुई कटौतियां, पर्यावरण से संबंधित कानूनों में जारी बेतहाशा बदलाव, खनन और बिजली कानूनों में हुए परिवर्तन, कम्पनी कानून, औद्योगिक नीतियों में बदलाव, आधारभूत संरचनाओं और रियल एस्टेट के क्षेत्र में हुए बदलाव, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विनिवेश और कर प्रणालियों में बदलाव किये जा रहे हैं । इन सभी उपायों से यह सरकार देश के जमीन, जंगल, पानी व खनिज सबकुछ पर कॉर्पोरेट का स्वामित्व कायम करवा देने को तत्पर है । केंद्र की भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार देश को चंद मुट्ठी भर इजारेदार घरानों का ऐशगाह बना देने के लिए भारतीय जनता द्वारा 1857 से लेकर 1947 तक और अब तक असंख्य कुर्बानियों के बाद जो भी थोड़ा-बहुत जनतंत्र हांसिल किया गया है उसे छीन लेने के लिए उतावली है । हाँ, देश को ईस्ट इंडिया कंपनी के चारागाह के रूप में तब्दील कर देने की पूर्व शर्त के बतौर अंग्रेज अफसर लार्ड कार्नवालिस द्वारा भी यही किया था । उसने भी कंपनी का मुनाफा सुनिश्चित करने के लिए 1864 में भूमि बंदोबस्त के माध्यम से जमीनों को जोतदारों से छीनकर चंद मुट्ठी भर कंपनी के वफादारों के हांथों में केन्द्रित किया था और इस प्रकार उसने ज़मींदारी प्रथा की शुरुआत कर, देश को गुलामी के अँधेरे काल में चले जाने को विवश कर दिया था ।
खेती में उपज का सही दाम न मिलने के कारण, बीमा जैसी योजनाओं में मची लूट और बीटी कॉटन जैसे पद्धति से ज़मीनों की नष्ट हो रही उपजाऊ क्षमता के कारण किसान बेबश और लाचार हो चले हैं । देश में लागू विनाशकारी आर्थिक नीतियों के चपेट में आकर अबतक 3 लाख से ज्यादा किसान आत्मह्त्या कर चुके हैं, लेकिन देश की सरकारें किसान पक्षधर नीतियाँ बनाने की जगह देशी-विदेशी कॉर्पोरेट घरानों के हित में वनाधिकार कानून, आदिवासी स्वशासन कानून, तथा पर्यावरणीय कानूनों को बदलने में लगी हुई हैं । इसी के साथ आज संघर्ष निजी भूमियों को बचाने के साथ-साथ सामुदायिक ज़मीनों को कार्पोरेट और सरकार की गिद्ध दृष्टि से बचाने का है । अगर हम सामुदायिक ज़मीन बचाने के संघर्ष में नहीं जायेंगे तो भूमिहीनों को ज़मीन दिलाने के संघर्ष में भी नहीं जा सकते । हमें इस धारणा को भी ध्वस्त करने ज़रूरत है कि जो ज़मीन निजी स्वामित्व में नहीं है वह सभी की है, समुदाय की है न कि सरकार की और इन ज़मीनों पर भी निर्णय लोगों और समुदायों का होगा न कि सरकार का ।
मूलतः सट्टेबाजी आधारित विश्व अर्थव्यवस्था से पैदा हुई नकली पूंजी के बल पर पूंजीपति तरह-तरह से जमीनें हड़पने में लगे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि जमीनें ही असली पूंजी है । और हमारे देश की सरकार 19 दिसम्बर 2015 को नैरोबी में हुई WTO की बैठक में जमीनें हड़पने की इस अंतर्राष्ट्रीय साजिश के सामने घुटने टेकते दिखाई पड़ी । उसबैठक में WTO की दोहा राउंड के जरिये विकासशील देशों के हित में लिए गए सभी निर्णयों को उलट दिया गया तथा विकासशील देशों के कृषि, कपास व अर्थव्यस्था को प्रभावित करने वाले ढेरों निर्णय नैरोबी पैकेज में समाहित किये गए । नैरोबी की बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत में निवेश और अनाजों के खरीद बिक्री तथा भण्डारण सम्बंधित समझौते हुए हैं, जिनके अनुसार भारत सरकार को वर्ष 2023 तक निर्यात सब्सिडी को पूरी तरह से समाप्त करना होगा । इन समझौतों से देश में निवेश तथा अनाजों के खरीद बिक्री व उनके भण्डारण के क्षेत्र में WTO के हस्तक्षेप का रास्ता साफ़ हो चला है । दोहा राउंड के निर्णयों का उलटा जाना बैठक में भाग ले रहे भारतीय प्रतिनिधिमंडल की शर्मनाक विफलता को दर्शाता है ।नैरोबी में हुआ समझौता देश के चीनी उद्योग को और अधिक संकट में डालेगा तथा देशव्यापी कृषि संकट को और अधिक गहरा करते हुए बड़े पैमाने पर किसानो की आत्महत्या की परिस्थितियां तैयार करेगा ।
हिन्दुस्तान में ईस्ट इंडिया कंपनी के लूट और दमन के खिलाफ सन 1857 का पहला स्वाधीनता संग्राम अबतक की सबसे बड़ी हिन्दू-मुस्लिम एकता का गवाह बना था । अंग्रेजों के लिए उस एकता को तोड़े बिना हिन्दुस्तान के श्रम और संसाधनों की लूट संभव न थी । तब अंग्रेजों ने फूट डालो शासन करो नीति अपनाते हुए हिन्दूओं को मुसलमानों से लड़ाकर उस एकता को तोड़ा था । देश की इज्जत, प्रतिष्ठा, श्रम और संसाधनों के साथ मची लूट के खिलाफ आज के दौर में खड़ी हो रही जनता की एकता को तोड़ने के लिए समाज में नफरत की राजनीति करने वाली सांप्रदायिक शक्तियों और संसाधनों पर कब्ज़ा करने की चाह रखने वाले कॉर्पोरेट के बीच एक गठजोड़ बना हुआ है । कॉर्पोरेट ताकतें साम्प्रदायिक शक्तियों को चुनाव जिताने के लिए बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं तो कॉर्पोरेट लूट की राह आसान बनाने के लिए सांप्रदायिक शक्तियां गौमांस, मंदिर, मस्जिद, जेहाद और लव जेहाद के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाकर कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ जनता के एकताबद्ध विरोध को चकनाचूर कर देने की जुगत में लगी रहती है । हाल ही में गौमांस की अफवाह उड़ाकर दादरी में अखलाख की हत्या, प्रो. कलबुर्गी, पंसारे और डा० दाभोलकर जैसे तार्किक वैज्ञानिक सोच के लेखकों की हत्याएं तथा देश के कोने-कोने में होने वाले दंगे इस गठजोड़ की कारगुजारियों की ही परिणीतियाँ हैं ।
देश में सत्तासीन सांप्रदायिक-फासीवादी सरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारधारा को अकादमिक संस्थाओं पर थोप कर उनके भगवाकरण का आक्रामक अभियान चला रही है । इसके लिए वे इन संस्थाओं के उच्च पदों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोगों को बैठा रहे हैं तो कैम्पसों में लोकतान्त्रिक आवाज बुलंद करने वाले छात्रों पर हमले करवा रही है, कैंपस प्रशासन पर मंत्रालयों से दबाव डलवाकर आवाज उठाने वाले छात्रों को कैंपस से बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं । हाल के दिनों में हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े 5 छात्रों का कैंपस से निष्कासन और फिर शोध छात्र रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए विवश करना इसका ताजा तरीन उदाहरण है ।
अपने आपको धर्मनिरपेक्ष कहने वाली पार्टियों की राज्य सरकारें भी कॉर्पोरेट के प्रति वफादारी दिखाने में पीछे दिखाई नहीं दे रही हैं । दिखें भी क्यों, आखिरकार ये पार्टियां भी तो कॉर्पोरेट पूंजी और इलाके के दबंगों के दम पर ही चुनावों में धनबल और बाहुबल का प्रदर्शन करते हुए जीत हासिल करती हैं । देश की संसद में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का विरोध करने वाली पार्टियां मोदी के सुझाव को सहर्ष स्वीकार करते हुए स्वयं शासित राज्यों में कॉर्पोरेट के प्रति वफादारी निभाने में जुटी हुई हैं । गैर भाजपा राज्यों की वे सरकारें भी देश के संसद द्वारा बनाए गए भू-अधिग्रहण कानून-2013 में निहित प्रभावितों के सहमति, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव आंकलनों जैसे जनपक्षधर प्रावधानों को ताक पर रख कर लाठी-गोली और जेल के बल पर किसानों और आदिवासियों से ज़मीनें छीनकर कॉर्पोरेट के हवाले करने में देर नहीं कर रही हैं । राजस्थान का नवलगढ़ और उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद का करछना इसके ज्वलंत उदाहरण हैं ।
दोस्तों, आपने एक लम्बी लड़ाई लड़कर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को फिलहाल स्थगित करवाया है, यकीनी तौर पर यह आपके संघर्षों की एक जीत है । फिर भी भूमि हड़पने के लिए लाये गए बिल के संसदीय समिति के पास विचाराधीन होने की स्थिति में उसके कानून की शक्ल लेने का खतरा बरकरार है । ऐसे में देश की इज्जत, प्रतिष्ठा, श्रम और संसाधनों की लूट रोकने का एक ही रास्ता बचता है, देश के अन्दर जनता की फौलादी एकता का निर्माण कर मेहनतकश समुदायों की एकताबद्ध कतारों से सांप्रदायिक-कॉर्पोरेट गठजोड़ को ध्वस्त करना ।
भूमि अधिकार आन्दोलन ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में देश के अन्दर एक सशक्त आन्दोलन खड़ा करने में सफलता पाई है । भूमि अधिग्रहण पर पूरी तरह से रोक लगाने और सबके लिए भू-अधिकार की गारंटी की मांग के साथ भूमि अधिकार आन्दोलन के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में अनवरत आन्दोलन चला है और दिल्ली का संसद मार्ग इन मांगों के समर्थन में बीते वर्ष आन्दोलन के दो बड़ी रैलियों का गवाह बना है ।
भूमि अधिग्रहण विरोधी संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए संसदीय समिति के पास विचाराधीन बिल को रद्द करने तथा राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे हर प्रकार के जबरन भूमि अधिग्रहण पर पूरी तरह से रोक लगाने व हर भूमिहीन मजदूर के लिए भू-अधिकार सुनिश्चित करने की मांग बुलंद करने के लिए भूमि अधिकार आन्दोलन एक बार फिर आगामी 24 फ़रवरी 2016 को दिल्ली के संसद मार्ग पर एक विशाल रैली का आह्वान कर रहा है । इस रैली के माध्यम से केंद्र की मोदी सरकार को चेतावनी देना है कि यदि उसके द्वारा विचाराधीन बिल को संसद में पुन: लाने की कोशिश की गई और राज्य सरकारों को मनमाना भूमि अधिग्रहण करने की छूट जारी रखी गयी तो प्रतिरोध आन्दोलन को तेज किया जाएगा इसलिए, आप तमाम मेहनतकश, प्रगतिशील अमनपसंद व न्यायपसंद साथियों से अपील है की आप रैली में पहुँच कर जमीनों की कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ अपनी फौलादी एकता का प्रदर्शन करें तथा श्रम और संसाधनों की लूट के खिलाफ जंग में भागीदार बनें ।
इंकलाब जिंदाबाद!!
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), अखिल भारतीय किसान सभा (36 केनिंग लेन), अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन, अखिल भारतीय किसान सभा (अजॉय भवन), भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक असली), अखिल भारतीय कृषक खेत मजदूर संगठन, जन संघर्ष समन्वय समिति, इन्साफ, अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, किसान संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन, माइन मिनरल एंड पीपुल्स (एमएमपी), मध्य प्रदेश आदिवासी एकता महासभा, समाजवादी समागम, किसान मंच, विन्ध्य जन आन्दोलन समर्थक समूह, लोक संघर्ष मोर्चा, संयुक्त किसान संघर्ष समिति.......
संपर्क : शबनम शेख़ +91-9971058735, संजीव कुमार +91-9958797409
भूमि अधिकार आन्दोलन

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