विनोद अग्निहोत्री
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गऊ माता की पूंछ पकड़ कर बिहार की चुनावी वैतरणी पार करने में असफल रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब भारत माता का सहारा लेकर इसी साल अप्रैल मई में होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में उतरने की तैयारी में है। आक्रामक राष्ट्रवाद पार्टी का मुख्य चुनावी मुद्दा होगा।
दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चंद कथित छात्रों द्वारा पाकिस्तान समर्थक और भारत विरोधी नारे लगाने के विवाद को देशभक्ति बनाम देशद्रोह की लड़ाई बनाने के लिए भाजपा और संघ परिवार ने पूरी तरह कमर कस ली है। जबकि यह मामला पूरी तरह पुलिस और कानून व्यवस्था का था जिसे आसानी से उन कथित छात्रों को चिन्हित करके उन्हें गिरफ्तार करके न्यायिक प्रक्रिया के दायरे में लाकर निबटाया जा सकता था।
दरअसल पहले दिल्ली और फिर बिहार में करारी हार के बाद भाजपा और उसके रणनीतिकारों समेत पूरे संघ परिवार को समझ आ गया है कि वह अब सिर्फ लोकसभा में बनी मोदी लहर के करिश्मे, सुशासन और हिंदुत्व के बल पर चुनाव नहीं जीत सकते। दिल्ली में भाजपा के विकास और सुशासन के नारे को आम आदमी पार्टी ने चित कर दिया तो बिहार में गाय राजनीति से लेकर पाकिस्तान के बहाने चले गए हिंदुत्व ध्रुवीकरण और पिछड़े प्रधानमंत्री के जरिए अति पिछड़ों को लुभाने का भाजपा के दांव पर नीतीश कुमार के विकास और लालू यादव के आक्रामक पिछड़ावाद भारी पड़ा।
अब 2016 के अप्रैल मई में प.बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुद्दूचेरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। जहां तमिलनाडु और केरल मेंं भाजपा अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है, वहीं प.बंगाल में वह ममता बनर्जी के मुकाबले वाम मोर्चा और कांग्रेस को पछाड़ना चाहती है। जबकि असम में पार्टी सरकार बनाने के लिए हर दांव चल रही है। लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों को अहसास है कि दिल्ली और बिहार की पराजय केबाद न सिर्फ लोकसभा और उसके कुछ महीनों बाद हुए हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनावों में मिली अपार सफलता का करिश्मा अब खत्म हो चुका है बल्कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के नेतृत्व मेंं भाजपा की अजेयता भी खत्म हो चुकी है।
साथ ही करीब दो साल की केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों और असफलताओं का लेखा जोखा भी भाजपा के लिए परेशानी पैदा कर रहा है और उसके हिंदुत्व कार्ड की धार भी कुंद हो गई है। ऐसे में पार्टी और संघ परिवार को एक ऐसे धारदार मुद्दे की तलाश थी जो न सिर्फ भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थक वर्ग में नया जोश भर सके बल्कि विपक्ष को भी जनता के बीच कटघरे में खड़ा कर सके। साथ ही हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या को लेकर देश भर में भाजपा के खिलाफ दलितों में रोष पैदा करने में जुटे विपक्ष को रक्षात्मक मुद्रा में लाकर इस मुद्दे को ठंडा कर सके।
पठानकोट पर आतंकवादी हमले और सियाचिन मेंं बर्फीले तूफान में फंसकर सेना के दस जवानों की मौत के बाद पूरे देश में देशभक्ति और आतंकवाद के खिलाफ एक लहर बनी। जिसे भाजपा के रणनीतिकार बखूबी भांप चुके थे। इसी बीच जेएनयू में छात्रों के एक कार्यक्रम में कुछ लोगों द्वारा कश्मीर की आज़ादी, पाकिस्तान के समर्थन और भारत के विरोध में नारे लगाने की खबर ने भाजपा को एक बड़ा मुद्दा दे दिया।
आनन फानन में भाजपा के छात्र संगठन ने जेएनयू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और देश के इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय को भारत विरोधी गतिविधियों का अड्डा बताने और इसे बंद करने की मुहिम छेड़ दी। प्रदर्शनों से लेकर सोशल मीडिया पर शट जेएनयू की मुहिम की बाढ़ आ गई।
दिल्ली पुलिस ने तत्काल जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में एक तरफ जेएनयू केछात्र और शिक्षक आंदोलित हो गए वहीं कांग्रेस और वामदलों ने इसे लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताते हुए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
इससे भी आगे बढ़कर लश्कर प्रमुख हाफिज़ सईद के एक कथित ट्वीट को आधार बनाकर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बयान दे दिया कि जेएनयू की भारत विरोधी गतिविधियों के पीछे हाफिज सईद का हाथ है। हालाकि बाद में खुफिया एजेंसियों और दिल्ली पुलिस ने इसके सबूत होने से इनकार किया और उस ट्वीट की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ गए।
तब तक टीवी चैनलों और अखबारों में भाजपा नेताओं और प्रवक्ताओं ने पूरे मामले को देशभक्ति बनाम देशद्रोह में बदल दिया। भारत माता के अपमान को किसी भी कीमत पर सहन न किए जाने के बयानों की झड़ी लग गई और कन्हैया कुमार की पेशी के दौरान पटियाला हाउस कोर्ट में मीडिया और अन्य लोगों पर लगातार दो दिनों तक हुए हिंसक हमलों ने देशभक्ति की एक नई परिभाषा गढ़ दी।
मामला इतना गंभीर हो गया कि सुप्रीम कोर्ट को सीधे दखल देना पड़ा। अब भाजपा इस मुद्दे को अपने जन संगठनों के जरिए देश भर में ले जाने की तैयारी में है। सड़कों पर होर्डिंगों, बैनरों, पोस्टरों के जरिए देशभक्त बनाम देशद्रोही के मुद्दे को गरम किया जाने लगा है। देश की विभिन्न अदालतों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत वामदलों के नेताओं के खिलाफ देशद्रोह के मुकदमें दर्ज कराए जा रहे हैं।
भाजपा और मोदी केधुर समर्थक बाबा रामदेव बिना किसी का नाम लिए देशद्रोहियों के साथ यारी को देश के साथ गद्दारी जैसे बयान दे रहे हैं। राजस्थान के एक भाजपा विधायक ने राहुल गांधी को फांसी देने और गोली मारने जैसे बयान दे दिए हैं। इसके पहले असम की सभा में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सीधे सीधे राहुल गांधी से यह जवाब मांग चुके हैं कि वह भारत विरोधी नारे लगाने वाले राष्ट्रद्रोहियों का समर्थन करने जेएनयू क्योंं गए।
संदेश साफ है कि जेएनयू के आंदोलनकारी छात्रों के साथ जो भी खड़ा है वह देशद्रोही है,यह माहौल बनाकर पूरे विपक्ष की देशभक्ति को चुनौती देकर जनता में यह संदेश दिया जा रहा है कि देश की एकता अखंडता सिर्फ भाजपा ही बचा सकती है। कुल मिलाकर भाजपा आने वाले विधानसभा चुनावों में आक्रामक राष्ट्रवाद को अपना प्रमुख मुद्दा बनाएगी।
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