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एक स्वस्थ प्रजातंत्र में, समाज में पक्ष-विपक्ष हों, विचार-विमर्श हों, अनेकानेक पहलुओं से सभी जीवन के हर आयाम को देखें, परखें, अपना-अपना विमर्श रखें...क्या बुरा है इसमें...देश की किसी भी समस्या पर जितना विमर्श हो, जितने अधिक से अधिक लोगों की जीवंत भागीदारी हों उतना ही शुभ...देश में रहने वाले हर वर्ग, हर संप्रदाय, हर समूह को लगे कि उसकी बात भी सुनी जायेगी, उस पर विमर्श होगा...किसी को कोई बात कहने में किसी तरह के खौफ की कोई जरूरत न हो.... यदि कोई भी अपनी बात को कह नहीं पाता, या उसे सुना नहीं जाता, या उसका विरोध किया जाता है...तो ये बातें मनों में गांठें बन जाती हैं...समय के साथ जटिल हो जाती हैं, खतरनाक हो जाती हैं...इकट्ठा हुई भाप....जिस दिन फूटती है तो बहुत कुछ तहस-नहस होता है...! जो हालात अब देश के बन रहे हैं, आने वाला समय बहुत भयावह हो सकता है...सोसल मिडिया के जमाने में, हर नकली-असली चीज पल भर में देश में फैलती हैं, हजारों, लाखों, करोड़ों लोगों तक पहुंच जाती है और सोच का शीघ्र पतन यूं ही होता रहा तो फिजा को नपुसंक होने में देर न लगेगी... नहीं, सावधानी का समय है...लेकिन हर तरफ बचकानेपन की होड लगी है...बेबस सोच किसी भी देश का हाजमा ऐसा खराब करता है कि सदियों से की हुई ताकत नीचे के द्वार से पानी की तरह बह जाती है...नहीं, शुभ नहीं हो रहा है...शुभ नहीं हो रहा है...चुनौतियां बलशाली हैं और निदान के उपाय ता-ता, थैया कर रहे हैं...माय गॉड! |
Let me speak human!All about humanity,Green and rights to sustain the Nature.It is live.
Saturday, February 20, 2016
एक स्वस्थ प्रजातंत्र में, समाज में पक्ष-विपक्ष हों, विचार-विमर्श हों, अनेकानेक पहलुओं से सभी जीवन के हर आयाम को देखें, परखें, अपना-अपना विमर्श रखें...क्या बुरा है इसमें...देश की किसी भी समस्या पर जितना विमर्श हो, जितने अधिक से अधिक लोगों की जीवंत भागीदारी हों उतना ही शुभ...देश में रहने वाले हर वर्ग, हर संप्रदाय, हर समूह को लगे कि उसकी बात भी सुनी जायेगी, उस पर विमर्श होगा...किसी को कोई बात कहने में किसी तरह के खौफ की कोई जरूरत न हो.... यदि कोई भी अपनी बात को कह नहीं पाता, या उसे सुना नहीं जाता, या उसका विरोध किया जाता है...तो ये बातें मनों में गांठें बन जाती हैं...समय के साथ जटिल हो जाती हैं, खतरनाक हो जाती हैं...इकट्ठा हुई भाप....जिस दिन फूटती है तो बहुत कुछ तहस-नहस होता है...! जो हालात अब देश के बन रहे हैं, आने वाला समय बहुत भयावह हो सकता है...सोसल मिडिया के जमाने में, हर नकली-असली चीज पल भर में देश में फैलती हैं, हजारों, लाखों, करोड़ों लोगों तक पहुंच जाती है और सोच का शीघ्र पतन यूं ही होता रहा तो फिजा को नपुसंक होने में देर न लगेगी... नहीं, सावधानी का समय है...लेकिन हर तरफ बचकानेपन की होड लगी है...बेबस सोच किसी भी देश का हाजमा ऐसा खराब करता है कि सदियों से की हुई ताकत नीचे के द्वार से पानी की तरह बह जाती है...नहीं, शुभ नहीं हो रहा है...शुभ नहीं हो रहा है...चुनौतियां बलशाली हैं और निदान के उपाय ता-ता, थैया कर रहे हैं...माय गॉड!
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