Tuesday, February 2, 2016

हल्द्वानी में एक जगह जिक्र छेड़ा. एक सज्जन बोले, "छोड़िये साहब, आप क्यों जान हलाकान किये जा रहे हैं. यह हल्द्वानी है. सारे पहाड़ से लोग भाग-भाग कर यहाँ आ रहे हैं. मॉल और मल्टीप्लेक्स खुल रहे हैं. लोग पैसा गिन रहे हैं. नये-नये मोबाइल और कारें खरीद रहे हैं. इस बारे में सोचने की किसे फुर्सत है? पानी नहीं मिलेगा तो जल संस्थान का घेराव कर देंगे." निसर्ग से कितनी दूर चली गयी है हमारे शहरों की जिन्दगी ?

पूरा जनवरी का महीना बीत गया. एक बूँद वर्षा नहीं हुई. वसन्त पंचमी सिर्फ दस दिन दूर है. ऐसा इससे पहले न जाने कब हुआ था, याद नहीं. कहीं कोई चर्चा नहीं, चिंता नहीं. शायद मैं अकेला इस चिंता को ढो रहा हूँ. रोज़ सुबह आसमान को ताकता हूँ, फिर निराश हो जाता हूँ. अखबार पढ़ता हूँ तो उसमें 'फील गुड' वाली ही ख़बरें होती हैं.
हल्द्वानी में एक जगह जिक्र छेड़ा. एक सज्जन बोले, "छोड़िये साहब, आप क्यों जान हलाकान किये जा रहे हैं. यह हल्द्वानी है. सारे पहाड़ से लोग भाग-भाग कर यहाँ आ रहे हैं. मॉल और मल्टीप्लेक्स खुल रहे हैं. लोग पैसा गिन रहे हैं. नये-नये मोबाइल और कारें खरीद रहे हैं. इस बारे में सोचने की किसे फुर्सत है? पानी नहीं मिलेगा तो जल संस्थान का घेराव कर देंगे."
निसर्ग से कितनी दूर चली गयी है हमारे शहरों की जिन्दगी ?

Comments
Rajendra Pant Raju सर्वजन हिताय और सर्वजान सुखाय अब सीमित हो गया है सर, सबको अपने से मतलब है
DK Joshi Adv हर बार सर्दियो में एक उत्सुकता रहती रही है की बर्फ कब पड़ेगी
लेकिन मुझे भी 42 वर्ष के जीवन में पहली बार इन सर्दियो में ये उत्सुकता हो रही है की बारिश कब होगी(बर्फ तो छोडो)
Yogesh Joshi Magalyan pahuchne wala he aur patrkar soa soa bata de rahe sab bik Gaye he
Gajendra Kumar Pathak पर्यावरणविद् स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दे चुके हैं कि जलवायु परिवर्तन और वैश्विक ताप वृद्धि से अतिवृष्टि और सूखे की स्थिति उत्पन्न होगी और समय के साथ इनकी आवृत्ति और तीव्रता बढती जायेगी। पिछले कई सालों का इतिहास पर्यावरणविदों की चेतावनी को सही सिद्ध कर...See More
Govind Pant बहुत सही लिखा राजीव ।
प्रकृति भी अपनी शिकायत दर्ज करा रही ।
Gajendra Kumar Pathak पर्यावरण संरक्षण के लिए किये जा रहे पौधारोपण की हकीकत.
Harish Pant कर्मन की गति न्यारी रे बाबा / कर्मन की गति न्यारि -----।
TaraChandra Tripathi हल्द्वानी में पानी है ही कहाँ, जो कुछ है वह मुर्दा आसव है. उसे जमरानी का पानी नहीं, अन्तरराष्ट्रीय स्तर का स्टेडियम चाहिए.
Prafulla Chandra Pant नवम्बर में अल्मोड़ा में बरसात नहीं होती है ये सभी जाजतनते हैं लेकिन दिसम्बर और जनवरी में एक बूॅद पानी नहीं बरसा यसे तो अनहोनी है । हैंण्ड पम्प लग गए , इनके लगने से गाड़ गधेरों का पानी पहले ही कम हो गया है अब बरसातम बन्द हो गई । हालात यही रही तो कोसी रेत की नदी में बदल जायेगी क्या होगा अल्मोड़ा शहर का यही चिन्ता सता रही है ।
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Kamlesh Bora विधालयो के पाठ्क्रम में पर्यावरण हे ही नही । होता भी तो माँ बाप कहते । कि मेथ अंगेंजी पढो । ये क्या बेकार पढ रहे हो । और फिर ये पीढ़ी पैदा हुई जो समझती है । पानी जल निगम पैदा करता हे ।
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Palash Biswas
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