Tuesday, February 23, 2016

Hastakshep for Panchsheel,tolerance and pluralism!Truth!इतिहास और सच की भूमिका


इतिहास और सच की भूमिका

ईशावास्योपनिषद के ’हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्. तत्त्वं पुषन्नपावृणु सत्य धर्माय दृष्टये’
( सत्य का मुख सोने के पात्र ( निहित स्वार्थ) के ढक्कन से ढका हुआ है. हे सूर्य देवता तुम उसे हटा दो तकि हम यह जान सकें कि सत्य और और धर्म क्या हैं. दूसर शब्दों में निहित स्वार्थ यथार्थ बोध के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा हैं.
इस छन्द से विदित होता है कि वैदिक युग में भी धार्मिक परंपराओं में घुस आये अंधविश्वासों को दूर कर सच को सामने लाने वाले मनीषियों को निहित स्वार्थों का घोर विरोध का सामना करना पड़़ता होगा.
अतीत में अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं है. तुलसीदास के जीवनकाल में ही काशी के पंडितों द्वारा रामचरितमानस को केवल इसलिए नष्ट करने का प्रयास किया गया कि वह धर्म के लिए निर्धारित भाषा संस्कृत में न होकर जनभाषा में थी. यदि उदारमना आचार्य मधुसूदन मिश्र हस्तक्षेप न करते तो संभवतः तुलसीदास के जीवनकाल में ही काशी के पंडितों के द्वारा रामचरितमानस नष्ट कर दी गयी होती.

यह स्थिति केवल भारतीय धर्म साधनाओं में ही नहीं अपितु विश्व की लगभग सभी धर्म साधनाओं रही है. अनहलक या मैं वही हूँ कहने पर सूफी सन्त मंसूर की हत्या कर दी गयी. ईसाई परंपराओं मे निहित भ्रान्तियों का निवारण कर प्रयोगों के माध्यम से सच को सामने लाने पर गैलीलियो को चर्च का कोप-भाजन बनना पड़ा. औषधियों की खोज करने वाले शैतान घोषित किये गये और उनको चर्च द्वारा जिन्दा जला देने का फतवा जारी हुआ.

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