राष्ट्रद्रोह , महिषासुर , रोहित वेमुला का आख़िरी जय भीम और कन्हैया कुमार का भूमिहार होना.
( तुम्हारे राष्ट्रवाद में हमारी जगह कहाँ है ? हाँ जाति काम करती है ,लेकिन हम फुले -आम्बेडकरवादी इसे कैसे देखते हैं. )
( तुम्हारे राष्ट्रवाद में हमारी जगह कहाँ है ? हाँ जाति काम करती है ,लेकिन हम फुले -आम्बेडकरवादी इसे कैसे देखते हैं. )
आई -आई टी मद्रास के आम्बेडकर -पेरियार छात्र संगठन के खिलाफ मानवसंसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी की चिट्ठी, हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित विद्यार्थियों के खिलाफ दो -दो केन्द्रीय मंत्रियों की चिट्ठी और फिर रोहित वेमुला की सांस्थानिक ह्त्या, महिषासुर दिवस मनाने या ' बीफ -पोर्क' जैसे खान -पान के सवाल से जुड़े आयोजन को लेकर संघ के लोगों के लगातार हमले तथा जे एन यू एस यू के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा और उसकी गिरफ्तारी के प्रसंग में एक विषय बहुत ही केन्द्रीय है , वह है 'जाति !'
इस केन्द्रीयता के मूल में है वंचित जातियों के द्वारा अपने सांस्कृतिक क्लेम से शासक और उच्च जातियों में एवं उनके वैचारिक सरपरस्त राजनीतिक संगठनों में बेचैनी. इस बेचैनी के प्रमाण हैं बे जे पी के नेताओं के बयान और ऑर्गनाइज़र या पांचजन्य के पिछले कुछ सम्पादकीय . देखें मेरा लेख ( http://www.bbc.com/…/20…/02/160211_hindutva_rohith_vemula_aj). इस बेचैनी के ही प्रमाण स्वरुप आप दिल्ली पुलिस की खुफिया रिपोर्ट को देख सकते हैं , जो दो दिन से मीडिया में पसरा पडा है . वह रिपोर्ट कितनी खूबसूरती और बदनियत के साथ जे एन यू के नारेबाजी को' महिषासुर शहादत' दिवस से जोड़ देती है और इसके आयोजन का श्रेय डी एस यू जैसे संगठन को देती है , जिसका कोई जुड़ाव इस आयोजन से नहीं है . बल्कि जे एन यू में इसका आयोजन आल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम करता रहा है. इस कड़ी के अंतिम आयोजन में मुझे भी बोलने के लिए बुलाया गया था , जिसमें एबीवीपी के हंगामे और पुलिस की पहरेदारी के कारण हम जैसे दूसरे वक्ता भी नहीं पहुँच पाये थे.
रोहित वेमुला की सांस्थानिक ह्त्या के बाद देश भर में वर्तमान सरकार और ब्राह्मणवादी ताकतों के खिलाफ मुहीम तेज थी तो यह नारेबाजी वाली घटना हुई. तीन सालों से मनाये जा रहे इस आयोजन के लिए संघ परिवार , मीडिया के कुछ घरानों की सुनियोजित तैयारी दिखती है कि कैसे इस आयोजन को घटनाप्रधान बना दिया जाये और राष्ट्रवाद के उन्माद के भीतर रोहित वेमुला के बहाने उठ रहे जाति के सवाल के तेज को ख़त्म किया जाये, प्रश्नांकित होते ब्राह्मणवाद की रक्षा की जाये. इस घटना में सुनियोजितता का तात्पर्य इससे ही है , जो झंडेवालान से लेकर के एन यू के एबीवीपी के नेताओं के बीच तक फैली है .
लेकिन दिक्कत हम फुले -आम्बेडकरवादियों के बीच भी कम नहीं है . जिस दिन नारेबाजी के लिए देशद्रोह के आरोप में कन्हैया कुमार गिरफ्तार हुआ और वामपंथी विद्यार्थियों का नाम उछला उस दिन कुछ लोगों ने इन्हें ही रोहित वेमुला के प्रकरण से ध्यान हटाने वाला षड्यंत्रकारी जैसा कुछ घोषित कर दिया. कारण कि वामपंथी पार्टियों के भीतर ब्राह्मणवाद से वे पहले ही जले बैठे हैं. लेकिन क्या इस प्रकरण में ' जाति' का सवाल या ब्राह्मणवाद उसी स्वरुप में था, जैसा हममें से कुछ लोग देख रहे थे और इस आन्दोलन से असहयोग की वकालत तक कर रहे थे , या अगर -मगर की व्याख्या के साथ सामने आये थे . सवाल है कि क्या रोहित वेमुला की सांस्थानिक ह्त्या और जे एन यू में संघ -पुलिस गठजोड़ से हमला एक ही कड़ी में नहीं हुआ है . ऐसा नहीं होता तो पुलिस की रिपोर्ट में ' महिषासुर शहादत' का प्रसंग नहीं आता .
इस सवाल को थोड़ा और स्पष्ट समझने के लिए यह देखना होगा कि ' महिसासुर शाहदत' या बीफ पोर्क के आयोजनों का सक्रिय विरोध करने वाले कौन लोग थे - यही एबीवीपी के लोग न या संघ के लोग . जबकि वामपंथी संगठन या तो सक्रिय सहयोग कर रहे थे या चुप्प थे- कुछ एक किन्तु -परन्तु के साथ . क्या यही विद्यार्थी रोहित वेमुला के मुद्दे पर लाठी खाकर नहीं आ रहे थे ! संघ के दफ्तर के सामने किन लोगों ने चोट खाई थी, दलित -बहुजन विद्यार्थियों के साथ !! क्या रोहित वेमुला और उसका संगठन ' आम्बेडकर स्टूडेंट्स असोशिएशन' इन्हीं विद्यार्थियों की तरह ' याकूब मेनन' की फांसी का विरोध करते हुए देशद्रोही नहीं कहा जा रहा था !!! कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी की ही तरह क्या रोहित की ' ह्त्या' के लिए तर्क जुटाते हुए इसी देशभक्ति के हथियार के साथ संघ के लोग और ब्राह्मणवादी जमात हमलावर नहीं थे?
हां , इस मामले में जाति काम करती है , कन्हैया के मामले में जाति ने काम किया , यद्यपि कन्हैया खुद को न किसी जाति का घोषित करता दिखा और न ही जातिवाद का पक्षधर दिखा - वह अपने राष्ट्रवाद को बाबा साहेब डा. आम्बेडकर के राष्ट्रवाद से जोड़ता रहा है . लेकिन भारत में जैसे जाति की संश्लिष्ट संरचना काम करती है वैसे ही इसने कन्हैया के मामले में भी किया , नहीं तो नीतीश कुमार ने कन्हैया के बचाव में भूमिहार नेता ललन सिंह के साथ प्रेस कांफ्रेंस नहीं किया होता . या देशभक्ति के हर मामले में आक्रामक बोलने वाले अति उत्साही भूमिहार भाजपाई नेता गिरिराज सिंह ने कन्हैया के मामले में इसी संश्लिष्ट जाति प्रभाव में न बोलने का चुनाव न किया होता या सी पी ठाकुर चुप नहीं रहते. या फिर बिहार के हालिया चुनाव में जिस जाति ने 90% का थोक वोट बी जे पी को दिया उसके एक गरीब परिवार में पैदा हुए कन्हैया कुमार के लिए प्रधानमंत्री के द्वारा दिल्ली पुलिस कमिश्नर को बुलाया जाना घटित नहीं होता .
जाति काम करती है, इस क्रूरतम रूप में कि संघ और हिंदुत्व का ब्राह्मणवादी तबका मुसलमानों से इसलिए नफरत करता है कि उनकी अधिसंख्य जनसंख्या हिन्दू दलित -बहुजन जातियों से कन्वर्ट हो कर आई है . इस रूप में भी कि मुसलमानों की ऊंची जातियां पसमांदा मुसलमानों की राजनीतिक चेतना और उनके सांस्कृतिक क्लेम से उतना ही घबराती है , जितना की दलित -बहुजन की राजनीतिक चेतना से हिन्दू ब्राह्मणवाद .
लेकिन हम फुले -आम्बेडकरवादी भी जाति के ब्राह्मणवादी लेंस के साथ ही या स्वनिर्मित जातिवाद के लेंस से संघ के सांस्कृतिक राजनीतिक हमलों को देखेंगे तो धीरे -धीरे हम सब नष्ट होने के लिए अभिशप्त होंगे. हम अपने ' रोहित' और उनके 'कन्हैया' की बायनरी में देखेंगे तो हम खुद भी जीते जी एक रोहित की ह्त्या कर रहे होंगे. रोहित की आख़िरी चिट्ठी इसी प्रवृत्ति की खिलाफत करती है . यह प्रवृत्ति कन्हैया को अंततः गिरिराजों , ललन सिंहों और सी पी ठाकुरों के करीब ही छोड़ देगी . हम सहस्रबुद्धे , चित्रे का इतिहास ही मिटा देंगे , जिनपर बाबा साहेब भी विश्वास करते थे.
हमें रोहित वेमुला और कन्हैया की लड़ाई को एक साथ जोड़ते हुए लड़ना होगा .
जय भीम साथियों !
जय भीम साथियों !
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