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Shame on Delhi police. Is this a way to deal with silent protesters ? This country is walking in the footsteps of NAZI regime
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पहली तस्वीर में जो व्यक्ति पिट रहा है उसने रोहित की सांस्थानिक हत्या के मसले पर आवाज़ उठाने का अपराध किया है, लेकिन जो बंदा उसे पीट रहा है वह कौन है? यह सवाल इस तस्वीर को हम तक पहुँचाने वाले फ़ोटोजर्नलिस्ट मित्र Vikas Kumar ने भी किया है। अगर यह व्यक्ति संघ का कार्यकर्ता है तो उसे किस लोकतंत्र में सज़ा दी जाएगी? वर्तमान लोकतंत्र में तो ऐसा होने की कोई उम्मीद नहीं है।
दूसरी तस्वीर में संघियों के इशारे पर लाठी बरसाने वाली पुलिस की वीरता दिख रही है।
तीसरी तस्वीर में साथी Chandrika Bgl की चोट दिख रही है। पास की दलित बस्ती के एक डॉक्टर ने मरहम-पट्टी तो कर दी लेकिन दर्जनों घायलों का इलाज करने की हड़बड़ी में ऊपर वाली चोट डॉक्टर को दिखी ही नहीं।
कल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय के सामने जो कुछ हुआ उसकी अनदेखी न करें। यह आने वाले समय के बदतर होने का बहुत बड़ा संकेत है। सरकार ने विरोध के लोकतांत्रिक तरीकों पर भी अघोषित पाबंदी लगा दी है। इस अघोषित आपातकाल के भयानक नतीजे सामने आने वाले हैं।
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