Wednesday, August 31, 2016

सुप्रीम कोर्ट में ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत,सिंगुर में जमीन अधिग्रहण रद्द क्या बेदखल किसानों को जमीन वापस मिलेगी? क्या भारत में गैरकानूनी जमीन अधिग्रहण के शिकार बाकी लोगों को न्याय मिलेगा? जल जंगल जमीन से बेदखली का सिलसिला रुकेगा? एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप संवाददाता

सुप्रीम कोर्ट में ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत,सिंगुर में जमीन अधिग्रहण रद्द
क्या बेदखल किसानों को जमीन वापस मिलेगी?
क्या भारत में गैरकानूनी जमीन अधिग्रहण के शिकार बाकी लोगों को न्याय मिलेगा? जल जंगल जमीन से बेदखली का सिलसिला रुकेगा?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप संवाददाता
क्या किसानों को जमीन वापस मिलेगी?

क्या भारत में गैरकानून जमीन अधिग्रहण के शिकार बाकी लोगों को न्याय मिलेगा?

सिंगुर जमीन अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद बंगाल के राजनीतिक समीकरण में वामपंथियों के और ज्यादा हाशिये पर चले जाने से ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल ये हैं।

बंगाल की अग्निकन्या मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक जीवन की शायद यह सबसे बड़ी जीत है जो दो दो बार विधानसभा चुनाव भारी बहुमत से जीतने से भी बड़ी जीत है।यह जीत जल जगंल जमीन की लड़ाई में शामिल जनपक्षधर ताकतों की भी ऐतिहासिक जीत है।

सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर में जमीन अधिग्रहण को गलत ठहराया है और जमीन अधिग्रहण पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि सिंगूर में जमीन अधिग्रहण गलत है। कानूनी रूप से यह जमीन अधिग्रहण सही नहीं था। लिहाजा राज्य सरकार (पश्चिम बंगाल सरकार) ऐसे जमीन का अधिग्रहण नहीं कर सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को 12 हफ्तों में किसानों की जमीन को वापस लौटाने का आदेश दिया है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने लेफ्ट सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा था कि लगता है सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह जमीन का अधिग्रहण किया वह तमाशा और नियम कानून को ताक पर रखकर जल्दबाजी में लिया गया फैसला था, वहीं टाटा ने मामले को 5 जजों की संवैधानिक पीठ को भेजे जाने की मांग की थी।

सिंगुर जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन में सड़क पर उतरकर जो लड़ाई ममता ने शुरु की थी और सत्ता में आने के बाद सिंगुर के किसानों को छिनी हुई जमीन वापस करनेे की जो कानूनी कवायद उन्होंने जारी रखी लगातार,उसमें उन्हें आज भारी जीत हासिल हुई है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कोलकाता हाई कोर्ट के आदेश को ख़ारिज करते हुए सिंगुर में नैनो प्रोजेक्ट के लिए टाटा मोटर्स के जमीन अधिग्रहण को रद्द कर दिया है।

जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया में गड़बड़ी पाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिगृहित ज़मीनें किसानों को अगले 12 हफ्तों के भीतर लौटा दी जाए।

अदालत के मुताबिक ज़मीन अधिग्रहण कलेक्टर ने भूखंडों के अधिग्रहण के संबंध में किसानों की शिकायत की ठीक से जांच नहीं की।

आजादी के बाद से अब तक जमीन अधिग्रहण का कुल मिलाकर किस्सा यही है।न कहीं जन सुनवाई होती है और ने बेदखल किसानों की किसी भी स्तर पर न्याय मिलता है।एकतरफा जमीन अधिग्रहण अबाध पूंजी निवेश का मुक्तबाजारी खेल बन गया है जिससे आम नागरिकों के जल जंगल जमीन के हकहकूक खत्म हो गये हैं।

जमीन अधिग्हण के बाद पूरे दस साल बीत गये हैं और सिंगुर की उपजाऊ जमीन अब कंक्रीट का खंडहर है,जहां से नैनो प्रोजेक्ट की वापसी हो चुकी है और टाटा मोटर्स के लिए विवादास्पद तरीके से जबरन जमीन हासिल करने की वजह से 35 साल के वाम शासन का अवसान हो गया है।

इसी बीच ममता बनर्जी लगातार दूसरी दफा विधानसभा चुनाव जीतकर बंगाल की सर्वेसर्वा बन चुकी है और इस अदालती फैसलेे के बाद बंगाल में वाम पक्ष की वापसी की संभावना और मुश्किल हो चुकी है।

गौरतलब है कि उद्योग और कारोबारी जगत के जबर्दस्त दबाव के बावजूद ममता बनर्जी सिंगुर नंदीग्राम आंदोलन की विरासत जी रही हैं और उनकी सरकार अब भी जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ है।जबकि सिंगुर को बंगाल में उद्योगों के लिए कब्रगाह कहा जा रहा है।ममता की जमीन अधिग्रहण विरोधी नीति की वजह से बंगाल में पूंजी निवेश नहीं हो रहा है,इसके बावजूद ममता ने अपनी नीति नहीं बदली है।

इससे बड़ा सवाल यह है कि क्या किसानों को उनकी छिनी हुई जमीन वापस मिल सकेगी और यह जमीन वापस मिल भी गयी तो कंक्रीट के खंडहर में तब्दील उस जमीन पर वे कब तक दोबारा पहले की तरह साल में तीन बार सोने की फसल फैदा कर सकेंगे।
अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगीकरण की अंधी दौड़ और विकास के बहाने आम जनता को जल जंगल जमीन से बेदखल करने के अभियान पर क्या इस फैसले के लागू हो जाने का कोई असर पड़ेगा और सिंगुर की तरह देशभर में जबरन अपनी जमीन से बेदखल लोगों को क्या उनके हक हकूक की बहाली के साथ जमीन वापस मिलेगी।

अभी लंबी कानूनी लड़ाई बाकी है।
फिरभी यह कहना ही होगा कि सत्ता में आने के बाद जिसतरह ममता बनर्जी ने किसानों को सिंगुर में जमीन वापस दिलाने की कानूनी लड़ाई जीत ली है,इससे जल जंगल जमीन की लड़ाई में जीत का नया सिलसिला बन ही सकता है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सिंगुर मसले पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि तत्‍कालीन वाममोर्चा सरकार ने जमीन अधिग्रहण मामले में टाटा कंपनी को फायदा पहुंचाया था। कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहण का फैसला कानून के मुताबिक सही नहीं था।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन वाममोर्चा सरकार के सिंगुर मसले के फैसले को ग़लत बताया और कहाकि 997 एकड़ की जिस जगह का अधिग्रहण सरकार ने टाटा के नैनो प्लांट के लिए किया था वो सही नहीं था। सरकार ने अपनी शक्तियों का ग़लत इस्तेमाल कर प्राइवेट पक्ष को फायदा पहुंचाया।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिंगुर में भूमि अधिग्रहण के बारे में उच्चतम न्यायालय के फैसले को एतिहासिक जीत बताया। ममता ने यहां राज्य सचिवालय में संवाददाताओं के साथ बातचीत में कहा, सिंगुर पर उच्चतम न्यायालय का फैसला एतिहासिक जीत है।

ममता बनर्जी नेआंदोलन के दौरान  सिंगुर के जमीन से बेदखल आंदोलनकारी किसान की बेटी तापसी मलिक को श्रद्धांजलि दी जो कि भूमि अधिग्रहण के विरोध में गठित कृषि जमी रक्षा समिति के अभियान में सबसे आगे थी। इस 18 वर्षीय लड़की का अधजला शव 18 दिसंबर 2006 को परियोजना स्थल के निकट मिला था।

जाहिर है कि इस फैसले से टाटा मोटर्स को करारा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने जमीन अधिग्रहण को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को आदेश दिया कि किसानों की जमीन 12 हफ्ते मे वापस की जाए। साथ ही दिया हुआ मुआवजा भी किसान सरकार को वापस नही करेंगे। वहीं इस फैसले के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि फैसले के बाद मेरी आंखों में खुशी के आंसू हैं। मुझे पूरा यकीन है कि आज सिंगुर में जश्न मनाया जाएगा। 2 सितंबर को सिंगुर के हर ब्लॉक में जश्न मनाएंगे।

The Story of Bhagana’s Dalits: Land Lost, Gangrape, Social Boycott

 Last year, there was a mass conversion of 100 Dalit families to Islam. “Through our struggle and our education, we have realised that the root cause of all the discrimination towards us is the Hindu religion” ... ... Kajila sleeps under two huge portraits of Dr BR Ambedkar and starts his mornings by making tea for himself in his small makeshift kitchen in one corner of his tent. He’s aware of the power they are up against but he’s resolute that the Dalits will stand together and they will not surrender. “This fight will go on for long,” he said simply and took a sip of his tea. ...


The Story of Bhagana’s Dalits: Land Lost, Gangrape, Social Boycott - by Manira Chaudhary, Aug 30, 2016 http://www.newslaundry.com/2016/08/30/the-story-of-bhaganas-dalits-land-lost-gangrape-social-boycott/

On one side of the village of Bhagana, near the area that houses some of the Dalit families, there is a small patch of land. Traditionally, this is where small, local gatherings would be held. Nearby residents would come to feed their cattle. Wedding tents would be set up here. Despite the fact that the Dalits rechristened it Ambedkar Chowk two years ago, among Bhagana’s dominant castes, it’s still known as “Chamar Chowk”.

This word that is both abuse as well as a caste category carries with itself centuries of toxic prejudice. It’s used casually and unapologetically in Bhagana, especially by the dominant Jat community, which is accusing Dalits of encroaching upon the land of the chowk. Meanwhile, the Dalits allege the Jats have been attacking them in different ways, ranging from frustrating to brutal.

Take Ambedkar Chowk as a starter. In 2012, the Jats of Bhagana claimed the area as its land and erected walls along the edges of the chowk, effectively blocking the entry to two Dalit houses.

Rakesh Panghal, a Jat who was elected sarpanch from 2010 to 2015, denied Dalits have any claim over the chowk. “Since this village was established, the chowk has belonged to one of the two main Jat families,” he said. “It had been cut out from our fields for future use. C*****s are the ones who were encroaching upon that chowk. As they started populating the village, they started making their houses around this area. We did not say anything earlier. But the land still belongs to the Jat community. That is why we built up those walls.”

Bhagana is a small village, roughly 250 kms west of Chandigarh. According to the 2011 census, the Jat community forms the majority of population. Approximately 30 per cent of its population is made up of scheduled castes (SC). This 30 per cent has for generations been divided between themselves. For example, the Dhanaks – lower in the social pyramid than the caste after whom the chowk was named – had maintained a distance from the other Dalit community. In 2011, when the other Dalits (those known as the C****r) protested against what they argued was unfair land distribution by the dominant Jats (see box), the Dhanak cautiously stayed out of the controversy. Some allege that Jats threatened them and this was why they showed no support to the Dalits protesting against unfair land redistribution.

Cutting Dalits out of Shamilat Land

In 2011, a committee was formed by the Khap panchayat to redistribute Shamilat land – or common land that is to be used for the benefit of the entire village – of 280 acres in Bhagana. Dalits allege that the land was divided between Jat landholders only. Apparently, Jat landholders got 60 square yards each for every acre of land that they owned, whereas Dalits were asked to pay Rs 1,000 for the same area of land. A 2012 research conducted by Peoples Union for Democratic Rights (PUD) and Association for Democratic Rights (AFDR) concluded that no formal or administrative authority had been consulted for the formation of this committee.

When the Dalits didn’t get any land, a few families filed a written complaint to the district administration. What followed was the social boycott of those who had dared to file the complaint and this quickly extended to the entire C****r community.

In Bhagana, Dalits say they have been prohibited from buying groceries, selling goods and accessing basic services. Children are not allowed in playgrounds. Women feel unsafe. Dalits are denied work and this has continued for four years now.

It took one horrific incident of gangrape to bring all the Dalits of Bhagana together.

In March 2014, four Dhanak girls of Bhagana were gangraped. They had stepped out on the night of March 23, 2014 to relieve themselves when according to them, five Jat men allegedly took the girls by force and smothered them. The girls remember a strong chemical smell on the handkerchiefs that were used to silence them. The next morning, the girls found themselves at Bhatinda railway station, in Punjab. “I do not remember anything from that night,” the youngest of the five told Newslaundry. “The next morning we realised that our clothes were torn at places.”

Their panicking families went to the police and the girls were found the next morning, along with one of those accused of the gangrape. “One of the five men was with us and the moment the police and our village sarpanch was informed, he fled,” said the survivor. This lone man had been stationed to keep an eye on the girls while the other men went to get some breakfast.

Shakti Singh, the current sarpanch of the village who belongs to the Jat community, denies the allegation of the gangrape. “The girls went with the boys on their own will and later blamed it on them,” Singh told Newslaundry.

Faced with this prejudice, 95 Dhanak families came to Delhi to demand justice. They stayed for almost a month, met political leaders and members of the government and returned to their village after the First Information Report (FIR) was lodged. It was here in Delhi that the Dhanaks and C****r community came together. In both the gangrape as well as the case of the land distribution, the offender was the same: the Jat landholders. As a result, the social boycott in Bhagana has extended to the Dhanaks. Satbeer Singh, a Dhanak labourer in Bhagana, told Newslaundry, “Since the boycott, we are not even being given MGNREGA work. How long will this go on for?”

“Things became extremely difficult for us,” said Satish Kajla, a Dalit protestor from Bhagana who has been in New Delhi’s Jantar Mantar since 2012. He and his family left Bhagana and walked to the Hisar Mini Secretariat with all their belongings, along with 136 other Dalit families. This was done to both leave behind the constrictions of the social boycott in Bhagana and also to draw attention to their complaint against the Jat landholders. Kajla came to Delhi afterwards and a tent in Jantar Mantar has been his home since then.

Dalits allege that their complaints are not being taken seriously by the administration or the State. “When we complained to Bhupinder Singh Hooda, the former Chief Minister of Haryana, he blatantly refused to help us saying that he is a Jat first and the CM later,” Virender Singh Bagodhiya, one of the Dalit leaders, told Newslaundry. This isn’t surprising for those familiar with Haryana’s socio-political landscape. As another protestor put it, “In Haryana, there are two kinds of law – one for the Dalits and one for the Jats.”

Today in Bhagana, rows of houses in the Dalit colony are locked. Many families have shifted to neighbouring villages because of the continuing boycott while some sit in protest, outside the Mini Secretariat of Hisar and in New Delhi’s Jantar Mantar. The case against the encroachment of the common land by some of the Jat community is being heard in Haryana High court with 233 Dalit families as plaintiffs.

Like the land encroachment case, the Bhagana gangrape case is also stuck in a seemingly never-ending legal spiral. Ram Niwas Sharma, who is representing the families of the victims of the gangrape, says they had lodged a complaint in the Haryana high court last year after the accused were let off from the sessions court. At present, the accused are out on bail. “I don’t know what will happen to the case,” he said. “The hearing will not come up at least for 10 years considering the number of cases which are already pending.”

Last year, there was a mass conversion of 100 Dalit families from Bhagana to Islam. “Through our struggle and our education, we have realised that the root cause of all the discrimination towards us is the Hindu religion,” said Kajla, who insists that to see the gangrape and land redistribution as separate would be to miss the most crucial factor in their story that connects the two cases: the attitude of the dominant Jats towards the Dalits.

Former sarpanch Panghal denied any wrongdoing when asked about the Shamilat land. He says the committee was made involving the members of the scheduled caste who were consulted regularly. Angry about the benefits reserved for the scheduled castes, Panghal said, “Since Independence, the general category has not received any benefits and the Dalits are allotted plots and other benefits by every government which comes to power. They are now taking advantage of this.”

Kajila sleeps under two huge portraits of Dr BR Ambedkar and starts his mornings by making tea for himself in his small makeshift kitchen in one corner of his tent. He’s aware of the power they are up against but he’s resolute that the Dalits will stand together and they will not surrender. “This fight will go on for long,” he said simply and took a sip of his tea.

फासिज्म का राजकाज राष्ट्रद्रोह फासिज्म की राजनय राष्ट्रद्रोह फासिजम का राजधर्म राष्ट्रद्रोह राष्ट्रवाद के नाम राष्ट्रद्रोह इसीलिए भारत हुआ अमेरिका

फासिज्म का राजकाज राष्ट्रद्रोह
फासिज्म की राजनय राष्ट्रद्रोह
फासिजम का राजधर्म राष्ट्रद्रोह
राष्ट्रवाद के नाम राष्ट्रद्रोह
इसीलिए भारत हुआ अमेरिका

The Hitler Speech They Don't Want You To Hear - YouTube

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Oct 24, 2012 - Uploaded by EuropeanWatchman3
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पलाश विश्वास
हिटलर को जानने के लिए इतिहास का सबक अभीतक कमसकम भारतवासियों के लिए पर्याप्त नहीं है।वैसे भी हम भारतवासी इतिहास और विरासत,सामाजिक यथार्थ और राजनीतिक वास्तव,अर्थव्यवस्था और मातृभाषा,लोकसंस्कृति और पुरखौती की जड़ों से कटकर मुक्तबाजार के अंतरिक्ष में त्रिशंकु हैं।

जगत मिथ्या और माया की मृगतृष्णा के बारे में भारतीय दर्शन परंपरा और आध्यात्म की धर्मनिरपेक्षता,चार्बाक दर्शन और लोकगणराज्यों की जमीन से हमारा अब कोई नाता नहीं है।क्रयशक्ति हासिल करके अपनी मजहबी, जाति, नस्ल, भाषा के आधार पर हम निराधार नागरिक हैं.जिन्हें हर हाल में सत्ता से जुड़े रहना है और राष्ट्र हमारे लिए कल्पतरु है जिसके दोहन से मनोकामना दूर हो सकती है।

आस्था भी हमारे लिए ईश्वर से सौदेबाजी का फंडा है।

बहरहाल,हिटलर को समझने का आसान तरीका है कि यू ट्यूब पर उपलब्ध चार्ली चैपलिन की कालजयी फिलम द डिक्टेटर देख लें।फिर हमारे राष्ट्रनेता कल्कि महाराज की मंकी बातें सुनते रहे तो बोध,विवेक और प्रज्ञा की मनुष्यता से साक्षात्कार हो सकता है जो दरअसल ईश्वर का दर्शन है।

सत्य से बड़ा ईश्वर कुछ होता नहीं है और मनुष्य से बड़ा सत्य कुछ होता नहीं है।फासिज्म दरअसल ईश्वर और मनुष्य की सत्ता का निरंतर निषेध पर आधारित नरसंहार की संस्कृति है जो अश्वमेधी हमलावर है और उसके सारे कर्म कांड आस्था और धर्म के विरुद्ध मनुष्यता और ईश्वर के प्रति अनास्था है।

भारतीय दर्शन परंपरा से लेकर वैदिकी साहित्यभंडार में इसके अनंत प्रसंग और संदर्भ है।यह राष्ट्रीयता के नाम पर राष्ट्र और विखंडन है जो सत्तावर्ग का शेयर बाजार है और यही शेयर बाजार मुक्त बाजार और हिंदुत्व का सैन्य राष्ट्र है,जो ईश्वर, प्रकृति, सभ्यता, संस्कृति,लोकतंत्र और मनुष्यता के विरुद्ध निरंतर युद्ध,गृहयुद्ध हैं।

हमारे तमाम राष्ट्रनेता इन आत्मघाती युद्धों के रंगबिरंगे सिपाहसालार हैं,जो पल दर पल राष्ट्र और समाज,मनुष्यता और प्रकृति का सर्वनाश के कार्यक्रम को इतिहास और विरासत, धर्म और आस्था,सत्य और संस्कृतिके विरुद्ध अधर्म का कटकटेला अंधियारा कारोबार है।

हिटलर शाही के नतीजे सिर्फ जर्मनी,जापान और इटली को भुगतने पड़े हों,ऐसा भी नहीं है।समूची दुनिया को इसका नतीजा भुगतना पड़ा है।विश्वयुद्ध से लेकर बंगाल की भुखमरी तक और भारत विभाजन तक।
हम आत्मध्वंस के चरमोत्कर्ष पर हैं।

फासिज्म का राजकाज राष्ट्रद्रोह
फासिज्म की राजनय राष्ट्रद्रोह
फासिजम का राजधर्म राष्ट्रद्रोह
राष्ट्रवाद के नाम राष्ट्रद्रोह
इसीलिए भारत हुआ अमेरिका

हुआ दरअसल यह है कि भारत और अमेरिका ने आपसी सामरिक संबंधों को बढ़ावा देते हुए एक बड़े साजो-सामान आदान-प्रदान करार पर हस्ताक्षर किए हैं। इससे दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे की सुविधाओं एवं ठिकानों का उपकरणों की मरम्मत एवं आपूर्ति को सुचारू बनाए रखने के लिए उपयोग कर सकेंगे। इस अहम रक्षा समझौते से जुड़ीं खास बातें. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर एवं अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने साजो-सामान आदान-प्रदान सहमति करार (एलईएमओए) पर हस्ताक्षर किए।दावा है कि इससे दोनों देशों के संयुक्त सैन्य अभियानों की दक्षता में इजाफा होगा।

हम यह नजरअंदाज कर रहे हैं कि हम भारतीयों की तरह अमेरिकियों के ख्वाब भी खतरे में हैं।अमेरिका में भी लोकतंत्र खतरे में हैं।

हम तेल युद्ध और अरब वसंत के बाद भारतीय उपमहादेश में वैश्विक युद्धस्थल के स्थानांतरण का भयानक सच नजरअंदाज कर रहे हैं।

दरअसल यही ब्रह्मणधर्म का पुनरूत्थान है।
दरअसल यही मनुस्मृति फासिज्म का राजकाज है।
दऱअसल यही हिंसा,घृणा,वैमनस्य और आतंक की केसरिया सुनामी है।

हम देख नहीं पा रहे हैं कि विश्वशांति और मनुष्यता और प्रकृति के खिलाफ युद्ध अपराधी जार्ज बुश ने मध्यपूर्व को तबाह करने के बाद भारतीयउपमहाद्वीप को अमेरिकी उपनिवेश बनाने की रणनीति के तहत भारत को अमेरिका का उपनिवेश बनाया है।

हम यह भी जाहिर है कि देख नहीं पा रहे हैं कि भारत में विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य और अभूतपूर्व हिंसा का यह प्रकृतिविरोधी पर्यावरण दरअसल परमाणु विध्वंस का रचनाकर्म अरब वसंत है जो सीधे वाशिंगटन के व्हाइट हाउस और पेंटागन से आयातित है और भारतीय इतिहास में,संस्कृति में,धर्म में,आस्था और आध्यात्म में,लोकसंस्कृति में,भारतीय दर्शन में इसके लिए कोई जगह नहीं है और इसीलिए अमेरिका परस्त ब्राह्मणधर्म और मनुस्मृति राज के फासिस्ट झंडावरदारों को अमेरिकी हितों के मुताबिक भारत का इतिहास बदलने और शिक्षा और संस्कृति के केसरियाकरण की इतनी जल्दबाजी है।

हम देख नहीं पा रहे हैं अमेरिकी राष्ट्रपतियों के भारतविरोधी नीतिगत सिद्धांतों और उनकी भारतविरोधी राजनय का इतिहास।

हम यह भी  देख नहीं पा रहे हैं कि तेल अबीब  के समर्थन से व्हाइट हाउस की लड़ाई में जीतने वाले मैडम हिलेरी या डोनाल्ड ट्रंप के भारतविरोधी चरित्र और जायनी युद्ध में भारत के  पार्टनर बने रहने के नतीजे भारत के लिए कितने खतरनाक होंगे।

इस करार के बाद भारत के दस दिगंत सत्यानाश में चाहे ट्रंप जीते या मैडम हिलेरी,कोई फर्क उसीतरह नहीं पड़ेगा जैसे जार्ज बुश के बाद लगातार दो कार्यकाल में अश्वेत राष्ट्रपति बाराक ओबामा के व्हाइट हाउस निवास से अमेरिकी हितों के मुताबिक भारतीय हितों की बलि चढ़ाने के सिलसिले में कोई अंतर नहीं आया।

इस पर तुर्रा यह कि ओबामा ने हर कदम पर भारत में फासिज्म के राजकाज का समर्थन किया है।जाहिर है कि इस करार के बाद अमेरिकी हितों के मुताबिक ही भारत में ब्राह्मणवादी फासिज्म का शिकंजा और मजबूत होने वाला है।

अमेरिकी मदद से भारतीय जनता पर सैन्य दमन का कहर टूटने वाला है।
दरअसल अमेरिका बना भारत ही अब कयामत का असल मंजर है।

अभी कल परसो हमारे पुरातन पाठकों के फोन आये कि अमेरिका से सावधान छपा कि नहीं।पिछले दो दशक के दौरान भारतभर में लोग हमसे यह सवाल करते रहे हैं।

इसका सीधा मतलब है कि करीब दस साल तक देशभर में लघु पत्रिकाओं और अखबारों में,पंफलेट तक में छपे मेरे इस औपन्यासिक साम्राज्यवाद विरोधी अभियान और संवाद से बड़े पैमाने पर लोगों का जुड़ाव रहा होगा।इसके बावजूद आज भारत अमेरिका है।इस आत्मध्वंसी करार के बाद भारत राष्ट्र के अलग संविधान बेमायने हैं क्योंकि सत्तावर्ग के हित अमेरिकी हित हैं।यह ऐसा ही है जैसे कि भारत में सहस्राब्दियों से विदेशी हमलावरों के साथ नत्थी हो जाने की रघुकुल रीति अटूट है।

इस सिलसिले में मशहूर फिलमकार आनंद पटवर्दन की टिप्पणी गौरतलब हैः
The news is horrifying. India - USA agree to share military bases ! Modi and gang are surrendering our sovereignty piece by piece. USA destroyed Pakistan by creating Islamic jihad. Now it has acquired a new bali ka bakra.

गौरतलब है कि चीन के सरकारी मीडिया ने आज कहा है कि भारत की ओर से अमेरिका के गठबंधन से जुड़ने के जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे चीन, पाकिस्तान और यहां तक कि रूस को भी 'नाराज' कर सकते हैं। ये प्रयास भारत को एशिया में भूराजनीतिक शत्रुताओं के केंद्र में लाकर नई दिल्ली के लिए 'रणनीतिक परेशानियां' पैदा कर सकते हैं। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर द्वारा साजो सामान संबंधी विशद समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने से पूर्व लिखे गए एक संपादकीय में सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि यदि भारत अमेरिका की ओर झुकाव रखता है तो वह अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता खो रहा है।

दुनियाभर में अपने अपने हितों के मुताबिक अमेरिकी हितों में भारत की संप्रभुता और स्वतंत्रता के विलय की प्रतिक्रया हो रही है।

सत्य यह है कि अमेरिका भारत को स्वतंत्रता के तुरंत बाद से लगातार अस्थिर करता रहा है।साठ के दशक से अमेरिकी खुफिया एजंसी सीआईए का नेटवर्क भारत में बना हुआ है और विघटनकारी तमाम गतिविधियों में खासतौर पर सत्तर और अस्सी के दशक में देश के विभिन्न हिस्सों में हुए नरसंहारी उत्पातों के पीछे भारत के अमेरिकीकरण में अपना विकास और वैभव की तलाश में राष्ट्रद्रोही सत्तावर्ग की पंचमवाहिनी के सहयोग से अमेरिका की निर्णायक भूमिका रही है।

सत्य यह है कि अमेरिका भारत का मित्र कभी नहीं रहा है और न अमेरिका भारत का मित्र हो सकता है।अपनी डूबती हुई युद्धक अर्थव्यवस्था को संकटमुक्त करने के लिए खाड़ी युद्धसमय से अमेरिका ने भारतीय लोकतंत्र,अर्थव्यवस्था और राष्ट्र व्यवस्था पर अपना शिकंजा कस लिया है और तबसे नवउदारवाद और मुक्तबाजार की आड़ में राजकाज दरअसल वाशिंगटन से चल रहा है और भारत सरकार सूबेदारी की भूमिका में है।समूचा सत्तावर्ग और राजकरण पंचमवाहिनी में तब्दील है।

सत्य यह है कि राष्ट्रद्रोह सत्ता संस्कृति है,जिसे अंध राष्ट्रवाद के जरिये जनगण की आस्था सो जोड़कर ब्राह्मणधर्म का यह मनुस्मृति जायनी द्वैत पुनरूत्थान पर्यावरण ग्लोबल वार्मिंग है।यही फिर धर्मोन्मादी मुक्तबाजार है।

सत्य यह है कि नीतिगत फैसलों से लेकर वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री तक की नियुक्तियों के पीछे,सत्ता परिवरितन के पीछे,राजकरण के पीछे,अर्थव्यवस्था के वित्तीय प्रबंधन के पीछे,योजनाओं और बजट बनाने के पीछे,आम नागरिकों की गोपनीयता खत्म करके उनकी निरंतर निगरानी के पीछे, देश भर में दमन उत्पीड़न और जल जमीन जंगल से बेदखली अभियान के पीछे, सैन्य टकरावों के पीछे,रक्षा तैयारियों के पीछे,भारतीय राजनय के पीछे अमेरिकी हाथ है।

भारत में फिर गुलामवंश का राजकाज फासिज्म है।इतिहास गवाह है कि गुलाम सत्तावर्ग के इस राष्ट्रद्रोह की वजह से भारत बार बार गुलाम होता रहा है।विदेशी हुकूमत में सत्ता वर्ग को कभी कोई तकलीफ हुई नहीं है और न होगी।

इसीलिए भारत में सत्ता नाभिनाल से जुड़े कारपोरेट मीडिया,प्रबुद्ध पढ़ा लिखा तबका,राजनीति,माध्यमों और विधाओं की ओर से  पिछले 25 साल से भारत अमेरिका मैत्री का महिमामंडन होता रहा है और समाज का उपभोक्ताकरण इस हद तक हो गया है कि भारतीय मूल्यों ,भारतीय परंपराओं और भारतीय संस्कृति के विरुद्ध इस जघन्यतम राष्ट्रद्रोह अब हिदुत्व का संगठित संस्थागत जनसंहारी स्वरुप है।

समूचा राष्ट्र इस वक्त परमाणु भट्टी में तब्दील है।भारत अमेरिका परमाणु समझौते के बाद बाकी परमाणु शक्तियों से समझौते के तहत देश के चप्पे चप्पे में मनुष्य और प्रकृति के विध्वंस के लिए परमाणऩु चूल्हे लग रहे हैं और इस हिंदुत्व एजंडा को अंजाम देने के लिए करीब पांच हजार साल की भारतीय सभ्यता और संस्कृति.,धर्म कर्म दर्शन आध्यात्म,आस्था और लोकसंस्कृति,सहिष्णुता,विविधता,बहुलता,धम्म चक्र,काल चक्र,हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो की सभ्यता,रेशम पथ का विश्वबंधुत्व,सत्य अहिंसा और प्रेम की लोकसंस्कृति,करुणा,बंधुत्व और शांति की बलि दी जा रही है।

हजारों साल के विलय और एकीकरण से मनुष्यता की विविध धाराओं के भारततीर्थ में फिर कुरुक्षेत्र है और हर नागरिक चक्रव्यूह में निहत्था मारा जा रहा है।हमारे सारे समुद्रतट अब रेडियोएक्टिव हैं तो भोपाल गैस त्रासदियों का सिलसिला मुक्तबाजार है।परमाणु चूल्हों के लिए संस्कृतियों के साझा चूल्हा खत्म करके हम भारत में अमेरिकी वसंत का महोत्सव मना रहे हैं और सम्यक दृष्टि और प्रज्ञा,अविनश्वर आत्मा परमात्मा,द्वैतवाद और अद्वैतवाद,सर्वेश्वरवाद की परंपरा में नरनारायण की हत्या लीला अबाध पूंजी के अमेरिकी हितों की रासलीला है।

विडंबना है कि देशभक्तों,राष्ट्रवादियों,स्वयंसेवियों,सामाजिक कार्यकर्ताओं,भारत के धर्मनिरपेक्ष ताकतों,जनपक्षधर मोर्चा,जनांदोलनों,मीडिया,पढ़ा लिखा तबका, संगठित ट्रेड यूनियनों,बहुजनों के अंबेडकरी संस्थानों,स्वदेश और स्वायत्तता के झंडेवरदारों,आस्था के कारोबारियों और हिंदुत्व की वानर सेनाओं,भारतीय साम्यवादियों,गांधीवादियों और समाजवादियों ने इस दुश्चक्र के खिलाफ अभीतक आवाज नहीं उठायी और किसानों को सामूहिक आत्महत्या करनी पड़ रही है तो युवाजनों के हाथ पांव काट दिये गये हैं।तो श्रमजीवी जनगण और स्त्रियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।अभूतपूर्व सामंती पितृसत्ता का बवंडर है तो मनुस्मृति अनुशासन के तहत ब्राह्मणधर्म का पुनरूत्थान के साथ विशुध अमेरिकीकरण है।

हम भारत को देख नहीं रहे हैं।हम लहूलुहान आम जनता की रोजमर्रे की नरकयंत्रणा से बेपरवाह वातानुकूलित सत्तावर्ग के प्रजाजन अमेरिकी हितों को पाकिस्तान और चीन के खिलाफ अमेरिकी छायायुद्ध के तहत सिरे से नजरअंदाज करते हुए खुशी खुशी अमेरिका बन जाने का महोत्सव मना रहे हैं और देश के हर हिस्से में युद्ध और गृहयुद्ध,अत्याचार,दमन,उत्पीड़न,सैन्य शासन,धर्मोन्माद,अभूतपूर्व हिंसा,रंगभेदी जाति युद्ध के कयामती मंजर से बेखबर हैं क्योंकि हम अब अमेरिका और इजराइल के रणनीतिक युद्धक पार्टनर है,जिसकी तार्किक परिणति यह ताजा करार है जिसे हम भारत के महाशक्ति बन जाने के दिवास्वप्न में महिमामंडित कर रहे हैं और राष्ट्र और समाज.प्रकृति और मनुष्यता पर कसते हुए सामंती साम्राज्यावादी शिकंजे से बेपरवाह हैं।इसके बावजूद हम लोक गणराज्य हैं।

भारत की आजादी के बाद से त्ताकील अमेरिका और सोवियत संघ से समान दूरी बनाये रखने की भारत की राजनयिक परंपरा रही है और 1971 के बंग्लादेश संकट के समय भारत के खिलाफ हिंद महासागर में अमेरिकी सातवें नौसैनिक बेड़े की आक्रामक बढ़त के हालात में सोवियत संघ से मैत्री समझौते पर दस्तखत के बावजूद श्रीमती इंदिरा गाधी ने भारतीय विदेश नीति और राजनय की निर्गुट परंपरा बनायी रखी।

सोवियत संघ के साथ गहराते मैत्री संबंधों के बावजूद भारतीय राजनय निर्गुट बनी रही।यहां तक कि जनता पार्टी की भारी जीत की वजह से इंदिरा गांधी की सत्ता से बेदखली के बाद जनता सरकार में विदेश मंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी ने भी विदेश नीति और राजनय के मामले में भारत की संप्रभुता और स्वतंत्रता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।

इसके अवाला 1962 के सीमा संघर्ष के बाद बेहद बिगड़े हुए भारत चीन द्विपाक्षिक संबंधों को सुधारने में भी अटल जी की ऐतिहासिक भूमिका रही है।

बल्कि खाड़ी युद्ध के वक्त जब राजनीतिक अस्थिरता के मध्य अभूतपूर्व भुगतान संकट में भारत को सोना तक गिरवी रखना पड़ा,तब समाजवादी प्रधानमंत्री चंद्रशकर ने भारत की निर्गुट राजनय और विदेश नीति को पहलीबार तिलांजलि दी और उसके बाद से लगातार अमेरिकी हितों के मुताबिक राष्ट्रद्रोह के राजकाज का सिलसिला जारी है।

खाड़ी युद्ध के दौरान इराक के महाविनाश के लिए अमेरिकी युद्धक विमानों को भारत में भरने की इजाजत देकर समाजवादी आंदोलन के ताबूत में आखिरी कीलें ठोंक दी थी समाजवादी चंद्रशेखर ने और उनके राजकाज के दौरान उत्पन्न भुगतान संतुलन के खुल्ला दरवादजे से  अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्वबैंक के ऋण की शर्त के मुताबिक अमेरिका ने नवउदारवाद और मुक्तबाजार के ईश्वर डा. मनमोहन सिंह को भारत का वित्तमंत्री बनाकर भारत में अमेरिकी उपनिवेश की स्थापना कर दी।

इसीके साथ अमेरिकीपरस्ती का अनंत राष्ट्रद्रोह भारत का राजकाज है और ब्राह्मणधर्म के पुनरूत्थान के बाद यह अमेरिकापरस्ती सीधे तौर पर मनुस्मृति राज है जो जायनी विश्वव्यवस्था के सिक्के का दूसरा पहलू है।

हांलाकि विपक्ष के नेता राजीव गांधी के कड़े विरोध के कारण अमेरिकी युद्धक विमानों को भरत में ईंधन भरने की इजाजत चंद्रशकर ने हफ्तेभर में वापस ले ली थी।

अमेरिकी उपनिवेश की स्थापना में चंद्रशेखर के युद्ध अपराध का खास तात्पर्य इंदिरा गांधी के हिंद महासागर को शांति क्षेत्र बनाये रखने की राजनय के मद्देनजर समझें तो इसका ऐतिहासिक मतलब समझ में आ सकता है।

गौरतलब है कि जिस तरह आपरेशन ब्लू स्टार की परिणति बतौर राष्ट्र को इंदिरागांधी की हत्या और उसी सिलसिले में सिख नरसंहर के भयावह दौर से गुजरना पड़ा, खाड़ी युद्ध में इराक के बचाव के लिए मास्को उड़ जाने वाले और चंद्रशेखर के अमेरिकापरस्त फैसलों को पलट देने वाले राजीव गांधी को भी श्रीलंका में शांति सेना भेजने के बहाने उसीतरह अचानक  आत्मघाती बम धमाके में प्राण गवांने पड़े।

अमेरिकी हितों के खिलाफ हिंद महासागर को शांति क्षेत्र बनाये रखने के पक्षधर भारत के दो दो प्रधानमंत्रियों की हत्या का रहस्य अभी तक अनसुलझा है।इन दोनों की हत्या के बाद बिना प्रतिरोध भारत अमेरिकी उपनिवेश है तो इस भरत अमेरिकी सैन्य सहयग संधि का आशय हमें इंदिरा गांधी की दियागो गार्सिया नीति की रोशनी में समझने की जरुरत है।

विडंबना यह है कि इंदिरा गांधी ने हंद महासागर क्षेत्र के दियागो गार्सिया में अमेरिकी सैनिक अड्डा न बनने देने की नीति पर अडिग रहकर अपना बलिदान कर दिया लेकिन बाद में भारते के राष्ट्रद्रोही राष्ट्रनेताओं ने भारत की सरजमीं को ही अमेरिका में तब्दील कर दिया।

फासिज्म का राजकाज राष्ट्रद्रोह
फासिज्म की राजनय राष्ट्रद्रोह
फासिजम का राजधर्म राष्ट्रद्रोह
राष्ट्रवाद के नाम राष्ट्रद्रोह
इसीलिए भारत हुआ अमेरिका


मीडिया के मुताबिक इस अहम रक्षा समझौते से जुड़ीं खास बातें
  • रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर एवं अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने साजो-सामान आदान-प्रदान सहमति करार (एलईएमओए) पर हस्ताक्षर किए।
  • इससे दोनों देशों के संयुक्त सैन्य अभियानों की दक्षता में इजाफा होगा।
  • अमेरिका अपने स्तर पर भारत के साथ रक्षा व्यापार एवं टेक्नोलॉजी को बढ़ाने पर सहमत हुआ है।
  • यह भारत को उस स्तर के बराबर ले जाएगा, जो अमेरिका के नजदीकी सहयोगी एवं भागीदारों को प्राप्त है।
  • बड़े रक्षा सहयोगी के दर्जे से वे पुरानी बाधाएं खत्म हो गई हैं, जो रक्षा, रणनीतिक सहयोग के आड़े आते थे.
  • इस रणनीतिक सहयोग में सह-उत्पादन, सह-विकास परियोजनाएं एवं अभ्यास शामिल हैं।
  • इससे व्यावहारिक संबंध एवं आदान-प्रदान के लिए अवसर का सृजन होगा।
  • रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि अमेरिका रक्षा उपकरणों के भारत के प्राथमिक स्रोतों में से एक है और उसने अपने कई अहम मंचों को साझा किया है।
  • कार्टर ने कहा कि यह दर्जा अमेरिका और भारत के पिछले साल के रक्षा संबंध के मसौदे की सफलता पर आधारित है।
  • जून में पीएम मोदी की यात्रा के दौरान अमेरिका ने भारत को एक 'बड़े रक्षा साझेदार' का दर्जा दिया था।

Tuesday, August 30, 2016

Hastakshep:महत्वपूर्ण खबरें और आलेख यह आतंकवादी केसरिया सुनामी ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान और हिन्दू धर्म का अवसान है

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