बंगाल,असम और पूर्वोत्तर में उग्रवाद के भरोसे हिंदुत्व के एजंडे को अंजाम देने का खतरनाक खेल
मीडिया में जनसुनावाई पर रोक के लिए हस्तक्षेप पर अंकुश
ममता ने कहा : कल्पना कीजिए कि बीएसएफ ऐसे लोगों को प्रशिक्षण दे रहा है, जो देश और राज्य को तोड़ना चाहते हैं। एक सांसद (भाजपा के) केंद्र को उनके (नारायणी सेना के) पक्ष में पत्र लिख रहे हैं और कह रहे हैं कि उसे भारतीय सेना में शामिल किया जाये। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हर घर में जाकर गायों की गिनती कर रहे हैं। हम इस तरह की चीजें बर्दाश्त नहीं करेंगे।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप संवाददाता
बंगाल में चरम राजनीतिकरण का नतीजा समाज,परिवार और राष्ट्र के विघटन की दिशा में परमगति प्राप्त करने लगा है।बंगाल में मीडिया पर अंकुश रघुकुल रीति की तरह मनुस्मडति शासन है और आम जनता की सुनवाई मीडिया में भी नहीं है।हस्तक्षेप में हम जनसिनवाई को प्राथमिकता देते हैं तो बंगाल में हस्तक्षेप पर बी अंकुश लगने लगा है।
पुलिस प्रशासन और जीआरपी तक के माध्यम से हस्तक्षेप संवाददाता की गतिविधियों पर अंकुश लगाने की कोशिस हो रही है।दूसरी तरफ विपक्ष के हाशिये पर चले जाने की वजह से लोकतांत्रिक माहौल खत्म सा है।
समूचे पूर्वोत्तर और असम में उग्रवादी गतिविधिया राजनीति का अनिवार्य अंग रही है और इसीके तहत केंद्र और राज्य सरकारे वहां उग्रवादी संगठनों का इस्तेमाल करती रही है।मसलन असम जैसे संवेदनसील राज्य में अस्सी के दशक से सत्ता की राजनीति अल्फा के कब्जे में है और असम में अल्फा के हवाले राजकाज है जिससे बार बार असम नानाविध हिंसक घटनाओ का शिकार है।
सबसे खतरनाक बात यह है कि अब अल्फा की राजनीति हिंदुत्व के एजंडे में शामिल है जिसके निशाने पर तमाम आदिवासी,दलित,शरणार्थी और गैर असमी समुदाय हैं और हिंदुत्व के एजंडे तको अमल में लाने के लिए असम को पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों की तरह संवेदनशील बनाये रखने की राजनीति केंद्र और राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है जो केसरिया आंतकवाद की गुजरात अपसंस्कृति और अपधर्म का विस्तार है।
बंगाल में गोरखा लैंड आंदोलन को बढ़ावा देने की राजनीति पर उत्तर बंगाल का सत्ता विमर्श अस्सी के दशक से असमिया अल्फा राजनीति का विस्तार रहा है।
अब गोरखालैड पर केसरिया सुनामी का रंग चढ़ गया है और बंगाल का सत्ता वर्ग भी उसे नियंत्रित करने में नाकाम है।उत्तर बंगाल के आदिवासियों में अलगाव की राजनीति को भी हिंदुत्व की राजनीति से जोड़ दिया गया है और कामतापुरी आंदोलन को अब सीधे तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन हासिल है।
दूसरी ओर,त्रिपुरा में वाम मोर्चा का गठ ढहाने में दक्षिण पंथी राजनीति फेल हो जाने से वहां फिर नेल्ली नरसंहार की स्थितियां बनाने के लिए उग्रवादियों को केंद्र की शह पर राजनीति की मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जा रही है।
यह कवायद पूरे् असम समेत पूर्वोत्तर में अस्सी के दशक से जारी है और वहां नरसंहार की वारदातों के पीछ सबसे बड़ी वजह यह है।
अब बंगाल में केसरिया एजंडा के लिए वही खतरनाक खेल दोहराया जा रहा है।सीमा सुरक्षा बल कामतापुरी अलगाववादी आंदोलन की नारायणी सेना को अंध राष्ट्रवाद की आड़ में प्रशिक्षण देने लगी है।इसकी बंगाल में तीखी प्रतिक्रिया होने की वजह से फिलहाल प्रशिक्षण स्थगित है लेकिन इस घटना से बंगाल के केसरियाकरण के लिए असम और पूर्वोत्तर की तर्ज पर उग्रवादियों की मदद से केसरिया आतंकवाद के भूगोल में बंगला को शामिल करने के हिंदुत्व एजंडा का खुलासा हो गया है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीएसएफ के ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन की नारायणी सेना को प्रशिक्षण दिये जाने के संदर्भ में केंद्र पर बांटने की राजनीति करने का आरोप लगाया है।
ममता ने कहा : कल्पना कीजिए कि बीएसएफ ऐसे लोगों को प्रशिक्षण दे रहा है, जो देश और राज्य को तोड़ना चाहते हैं। एक सांसद (भाजपा के) केंद्र को उनके (नारायणी सेना के) पक्ष में पत्र लिख रहे हैं और कह रहे हैं कि उसे भारतीय सेना में शामिल किया जाये। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हर घर में जाकर गायों की गिनती कर रहे हैं। हम इस तरह की चीजें बर्दाश्त नहीं करेंगे।
हांलाकि बीएसएफ ने आरोपों को ‘बेबुनियाद’ बता कर खारिज कर दिया है.
गौरतलब है कि सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा नारायणी सेना को प्रशिक्षण दिये जाने पर तृणमूल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय ने कहा कि यह बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ षडयंत्र है।
तृणमूल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पूर्व रेल मंत्री मुकुल राय का आरोप है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कामतापुरी आंदोलन का इस्तेमाल करने के नजरिये से नारायणी सेना को सीमा सुरक्षा बल के मार्फत प्रशिक्षित कर रही है।
अब देखना है कि इस खतरनाक खेल का ममता बनर्जी कैसे मुकाबला करती है।क्योंकि यह राज्यसरकार और बंगाल के सत्ता दल के लिए सबसे बड़ी चुनौती है और कानून और व्यवस्था कीजिम्मेदारी भी उसीकी है।
इसी सिलसिले में मीडिया पर अंकुश के लिए पुलिस और जीआरपी का इस्तेमाल करके मीडिया की गतिविधियों में हस्तक्षेप का खेल भी संघी एजंडा का खतरनाक आयाम है।मुख्यमंत्री को तत्काल इसपर कार्रवाी करनी होगी वरना बंगाल में भी हालात असम और पूर्वोत्तर जैसा बना देने में हिंदुत्व राजनीति कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
इसी सिलसिले में वामदलों से और सत्ता दल से खारिज नेताओं को भाजपा में खास भूमिका देने से भी परहेज नहीं कर रहा है संग परिवार।
मसलन नंदीग्राम नरसंहार मामले में माकपा से बहिस्कृत पूर्व माकपा सांसद लक्ष्मण सेठ को बाजपा में शामिल करके मेजिनीपुर के संवेदनशील इलाकों के केसरियाकरण की रणनती संघ परिवार की है जहां पिछले विधान सभा चुनाव में कट्टर संघी नेता दिलीपर घोष खड़कपुर से चुनाव जीत चुके हैं और उन्ही दिलीप घोष की पहल पर भारत की आजादी के गांधीवादी आंदोलन के गढ़ शहीद मातंगिनी हाजरा के तमलुक से लोकसभा उपचुनाव में लक्ष्मण सेठ को भाजपा प्रत्याशी बनाया जा रहा है।
पूर्व रेल मंत्री मुकुल राय का कहना है कि भाजपा बंगाल में विभाजन की राजनीति उकसाने का काम कर रही है। सीमा सुरक्षा बल द्वारा कूचबिहार में ऐसे संगठन के लोगों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जो बंगाल का विभाजन कर अलग राज्य बनाने की मांग कर रहे हैं। यह साबित करता है कि भाजपा अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कोई भी कदम उठा सकती है। इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। इसके खिलाफ तृणमूल पूरे राज्य में प्रचार अभियान चला कर लाेगों को जागरूक करेगी।
दूसरी तरफ बंगाल में विपक्ष के सांसदों और विधायकों को तोड़ने और पालिकाओं और जिला परिषदों से विपक्ष को बेदखल करने की सत्तादल की राजनीति की वजह से ममता बनर्जी विपक्ष के निशाने पर हैं और संघ परिवार के इस खतरनाक खेल से निबटने के लिए बंगाल में किसी तरह की राजनीतिक मोर्चाबंदी नहीं है।ममता लोकतांत्रिक वाम विपक्ष को हाशिये पर लाने के लिए हरसंभव जतन कर रही है और बंगाल में विपक्ष के सफाये की वजह से उग्रवादियों की मदद से संघ परिवार का अल्फाई एजंडा बंगाल में तेजी से अमल में आ रहा है।जिस ओर न सत्ता पक्ष का ध्यान है और न वाम लोकतांत्रिक विपक्ष का।
राजनीतिक सत्ता संघर्ष के खेल में संघ परिवार गुपचुप बेहद खतरनाक तरीके से अल्फाई केसरिया आतंकवाद के एजंडे को बंगाल में लागू कर ही है कुलेआम।
इसी बीच मालदा में एक कार्यक्र में वाम नेतृत्व ने ममता बनर्जी की जमकर खिंचाई की है लेकिन वाम नेतृत्व ने उत्र बंगाल में उग्रवाद और संघी एजंडे पर अभी मौन है। बहरहाल, पूरे राज्य में माकपा के अंदर पार्टी छोड़ने की स्थिति है, उसके लिए माकपा के वरिष्ठ नेता विमान बोस ने तृणमूल को लताड़ा है।
रविवार को मालदा जिला पार्टी कार्यालय में एक पत्रकार सम्मेलन में उन्होंने कहा कि राज्य की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की जो नीति है, उससे यह स्थिति अभी समाप्त नहीं होगीष इसके लिये इंतजार करना होगा।
माकपा के वरिष्ठ नेता विमान बोस का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी पूरे राज्य में एक पार्टी और एक नेता की नीति पर चल रही है।
उनके अनुसार ही सबकुछ होगा। यह नीति पूरे राज्य में सत्ता के केंद्रीकरण को जन्म देगा। विमान बोस के मुताबिक वर्ष 1977 में जब माकपा राज्य की सत्ता में आयी थी तब माकपा सरकार के सत्ता के विकेंद्रीकरण की नीति अपनायी थी।
विमान बोस के मुताबिक माकपा सरकार के समय कइ पंचायत समिति, नगरपालिका, जिला परिषद विरोधी पार्टी के अधीन थे। माकपा सरकार अपने कार्यकाल में कभी भी विरोधी दलों के अधीन नगरपालिका और जिला परिषदों पर कब्जा नहीं किया। उस जिला परिषद या नगरपालिका की कभी भी आर्थिक सहायता नहीं रोकी। वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस माकपा सरकार के ठीक विपरीत रास्ते पर चल रही है। विरोधी दलों के अधीन नगरपालिका, जिला परिषद, ग्राम पंचायत, पंचायत समितियों पर तृणमूल कब्जा कर रही ह।. इसके अतिरिक्त आर्थिक भी रोक दी गयी है।
उन्होंने कहा कि तृणमूल जिस नीति पर चल रही वह पूरी तरह से अगणतांत्रिक और अनैतिक है।जबरन दखल की राजनीति कर तृणमूल कांग्रेस विरोधी राजनीतिक पार्टियों की नहीं बल्कि राज्य के आमलोगों का अपमान कर रही है।
पत्रकारों को संबोधित करते हुए विमान बसु ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस देश के संविधान को नहीं मान रही है। इन्हें रोकने के लिये राज्य की जनता तैयार हो रही है। गणतंत्र की समाधि बनाने पर नागरिक कभी भी चुप नहीं बैठेंगे। गणतंत्र की रक्षा के लिये नागरिकों को ही सामने आना होगा।
विडंबना यह है कि तृणमूल काग्रेस से निबटने के चक्कर में वामनेतृत्व संघ परिवार के खतरनाक एजंडे को सिरे से नजरअंदाज कर रहा है।
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