Gopal Rathi wrote:
खुदीराम बोस की शहादत को नमन
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मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने खुदीराम बोस को फाँसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फाँसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 18 वर्ष थी। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक ख़ास किस्म की धोती बुनने लगे। इनकी शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। इनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। इनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जिन्हें बंगाल के लोक गायक आज भी गाते हैं। हँसते -हँसते फांसी का फंदा चूमने वाले इस महान क्रांतिकारी को इंकलाबी सलाम l
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मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने खुदीराम बोस को फाँसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फाँसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 18 वर्ष थी। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक ख़ास किस्म की धोती बुनने लगे। इनकी शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। इनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। इनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जिन्हें बंगाल के लोक गायक आज भी गाते हैं। हँसते -हँसते फांसी का फंदा चूमने वाले इस महान क्रांतिकारी को इंकलाबी सलाम l
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