Ratan Lal
गुजरात दलित आन्दोलन: महाड आन्दोलन का सच होता सपनामहाड में मनुस्मृति दहन के बाद अस्पृश्यों की एक सभा हुई, जिसमे उन्होंने संकल्प लिया, "न तो कोई अस्पृश्य हिन्दुओं में मृत पशुओं की खाल उतारेगा, न ही उसे उठाएगा और न उसके सड़े-गले मांस को खाएगा". इस संकल्प के उद्देश्यों के महत्त्व की चर्चा करते हुए डॉ. आंबेडकर लिखते हैं, "इन संकल्पों का दोहरा उद्देश्य था. एक तो यह था कि अस्पृश्यों में आत्म-सम्मान और आत्म-प्रतिष्ठा का भाव जगाया जाए. यह गौण उद्देश्य था. प्रमुख उद्देश्य था, हिन्दू समाज-व्यवस्था पर करारा प्रहार. हिन्दू समाज-व्यवस्था श्रम के विभाजन पर टिकी है. वह हिन्दुओं के लिए स्वच्छ और सम्मानजनक धंधे आरक्षित करती है और घिनौने तथा घटिया धंधे अस्पृश्यों के मत्थे मढ़ती है. इस प्रकार वह हिन्दुओं को यश का भागी बनाती है और अस्पृश्यों को अपयश के गर्त में धकेलती है. संकल्प, हिन्दू समाज-व्यवस्था की इस कुचेष्टा के विरुद्ध विद्रोह था. इनका उद्देश्य था कि हिन्दू अपने घिनौने धंधे खुद अपने हाथों से करे" (देखें, खंड १०, पेज 166). अभी गुजरात में जो दलित आन्दोलन चल रहा है, वाकई महाड में लिए गए शपथ को ज़मीन पर उतारने का वास्तविक प्रयास है. लेकिन यह प्रयास तभी सफल होगा जब पूरे भारत के दलित उनका अनुसरण करें. शुक्रिया, जय भीम!!!!
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