Saturday, August 13, 2016

भूपालसागर (चित्तोड़गढ़) आदिवासी प्रधान झेल रहा है भेद-भाव का दंश !

ग्राउंड दलित रिपोर्ट :17
भूपालसागर (चित्तोड़गढ़)
आदिवासी प्रधान झेल रहा है भेद-भाव का दंश !
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 डी में पंचायतों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जातियों को आरक्षण की व्यवस्था की गई है. जिसमें दलितों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलता है. इसी व्यवस्था के तहत राजस्थान के चित्तोडगढ जिले की पंचायत समिति भूपालसागर प्रधान ( ब्लॉक प्रमुख) के लिए अनुसूचित जनजाति के लिए अरक्षित हुई और यहाँ पर सोहन लाल भील ब्लॉक प्रमुख निर्वाचित हुए. यहाँ पहली बार कोई आदिवासी ब्लॉक प्रमुख निर्वाचित होने के कारण यहाँ के दलितों ने खुशियाँ मनाई तो दूसरी ओर सामान्य जाति के लोगों को यह स्वीकार्य नहीं था लेकिन संवैधानिक प्रावधान होने के कारण कुछ हो भी नहीं सकता.
इसी पंचायत समिति में उप-ब्लाक प्रमुख पद पर भीम सिंह झाला (राजपूत) चुने गए. जिसने अपने राजपूत होने का पूरा-पूरा फायदा उठाया और ब्लाक प्रमुख के अधिकारों पर कब्जा करना शुरू कर दिया. पंचायत समिति के पदाधिकारी तथा सरपंच भी उसी से मिलते और उसी को सम्मान देते.
दिनांक 29 जुलाई 16 को दोपहर के लगभग ब्लॉक प्रमुख के पास उसरोल ग्राम पंचयत के सरपंच का पति (कितनी ही महिला सशक्ति कारण की बात करें लेकिन पित्र सत्ता हर जगह हावी रहती है) ओंकार सिंह राजपूत जो कि बीजेपी का पदाधिकारी भी है, आया और नाली निर्माण के भुगतान के चैक पर हस्ताक्षर करने की जबरदस्ती करने लगा, इस पर ब्लॉक प्रमुख ने कहा कि एक बार नाली निर्माण देखने के बाद वह हस्ताक्षर कर देगा. सरपंच पति को नियमानुसार काम करना यह बहुत बुरा लगा और उसने इसे अपना अपमान समझा. उस समय सरपंच पति चला गया और उसी दिन शाम को वापिस आया और ब्लॉक प्रमुख सोहन लाल भील के पास बैठ गया. समय सरपंच पति ओंकार सिंह ने बिना कुछ कहे ब्लॉक प्रमुख के थप्पड़ मार दिया जिससे वे कुर्सी से नीचे गिर गए और कुर्सी भी टूट गई. इस समय उप- ब्लॉक प्रमुख भीम सिंह झाला भी वहीँ मौजूद था.
बीच-बचाव करने पर सरपंच पति ब्लॉक प्रमुख को गन्दी-गन्दी गलियां देता हुआ चला गया. बाद में पुलिस को सुचना दी गई और मुकदमा दर्ज हो गया. इस पर पार्टी ने ओंकार सिंह राजपूत को पार्टी से निकल दिया. प्राय: पुलिस प्रशासन भी दलित आदिवासियों के मामले में जो करती है, वही इसमें भी हुआ. पुलिस ने मुकदमा तो दर्ज़ कर लिया लेकिन आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जबकि मामला एस.सी./एस.टी एक्ट के अंतर्गत दर्ज़ है.
कमोबेश यही हालत विधान सभा और लोक सभा में बैठने वाले दलित जनप्रतिनिधियों की है. वहां दलितों की आवाज़ नहीं उठा सकते और न ही दलित अत्याचारों पर निंदा कर सकते केवल पिछलग्गू बन कर रह जाते हैं. कुछ दलित राजनेता तो केवल सत्ता सुख भोगने के लिए कितनी भी दलित विरोधी पार्टी क्यों न हो उसका भी दामन् थामने भी अपनी शान समझते हैं.
बहरहाल इस मुद्दे पर दलित संगठनो को भी आवाज़ उठानी चाहिए और नागरिक समुदायों को भी आगे आना चाहिए. आज विश्व आदिवासी दिवस पर पुलिस प्रशासन आरोपी को गिरफ्तार कर आदिवासियों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिएएक भला काम तो कर ही सकती है.
गोपाल राम वर्मा
(लेखक सामाजिक न्याय एवं विकास समिति के सचिव तथा स्टेट रेस्पोंस ग्रुप के कोर्डिनेटर हैं}

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