चाहे तो मुझे माओवादी बताकर गोली मार दें पुलिस...तिरंगा तो अब लहराकर रहेगा
माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा से ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ तिरंगा यात्रा पर निकली आदिवासी नेत्री सोनी सोरी का कहना है कि चाहे तो पुलिस उन्हें माओवादी बताकर गोली मार सकती है, मगर उस गोमपाड़ इलाके में तिरंगा लहराने से नहीं रोक सकती जहां आजादी के बाद से आज तक सरकार के नुमाइंदो ने दस्तक देने की जरूरत नहीं समझीं। गोमपाड़ पर पुलिस ने इस बात का ठप्पा लगा रखा है कि वहां केवल माओवादी बसते हैं, जबकि हकीकत यह है कि पुलिस इस गांव के लोगों को माओवादी बताकर अपनी गोली का शिकार बनाती रही है। इसी गांव की मडक़म हिड़मे नाम की युवती को सुरक्षा बलों ने माओवादी बताकर ने फर्जी मुठभेड़ में मारा था।
सोरी ने कहा कि सरकार ने बस्तर को एक अजायबघर में तब्दील कर रखा है। आदिवासियों की जिंदगी गुलामों जैसी बना दी गई है। सोरी ने बताया कि दंतेवाड़ा से गोमपाड़ तक कुल 180 किलोमीटर की यात्रा के दौरान एक दर्जन से ज्यादा गांवों में पड़ाव होगा। इस दौरान जहां भी काफिला रुकेगा वहां ग्रामीणों को संविधान, तिरंगे और खुली हवा में सांस लेने का मतलब समझाया जाएगा।
सोरी ने कहा कि सरकार ने बस्तर को एक अजायबघर में तब्दील कर रखा है। आदिवासियों की जिंदगी गुलामों जैसी बना दी गई है। सोरी ने बताया कि दंतेवाड़ा से गोमपाड़ तक कुल 180 किलोमीटर की यात्रा के दौरान एक दर्जन से ज्यादा गांवों में पड़ाव होगा। इस दौरान जहां भी काफिला रुकेगा वहां ग्रामीणों को संविधान, तिरंगे और खुली हवा में सांस लेने का मतलब समझाया जाएगा।
यात्रा को विफल करने का आरोप
यात्रा के संयोजक संकेत ठाकुर ने पुलिस और स्थानीय प्रशासन पर यात्रा को विफल करने के लिए हथकंडे अपनाने का आरोप लगाया। ठाकुर ने बताया कि यात्रा को बस्तर के कमिश्नर से अनुमति मिल जाने के बाद भी दंतेवाड़ा के कलक्टर यह कहते रहे कि उनके पास कोई सूचना नहीं है। विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर निकाली गई इस यात्रा के बारे में यह भी प्रचारित किया गया कि सोनी सोरी को आदिवासियों के हितों से कोई लेना-देना नहीं है इसलिए वे आदिवासियों के उत्सव के दिन अपनी निजी यात्रा को तरजीह दे रही है। जो यात्रा सुबह प्रारंभ होनी थी वह इसी वजह से शाम को निकाली गई। यात्रा में शिरकत करने के लिए दूर-दराज से आने वाले लोगों को होटलों में जगह नहीं दी गई। गांवों में नाच-गाने का प्रोग्राम आयोजित किया गया और ग्रामीणों को इस बात के लिए डराया-धमकाया गया कि यदि वे यात्रा में शामिल होते हैं तो पुलिस में उनका रिकार्ड खराब हो सकता है और वे मुसीबत में फंस सकते हैं।
हुर्रे का नवजात भी यात्रा में शामिल
अब से कुछ समय पहले पुलिस ने हुंगा नाम के एक आदिवासी को माओवादी होने के आरोप में गिरफ्तार किया था तब उसकी पत्नी हुर्रे जो गर्भवती थीं उसे बचाने के लिए दौड़ी थीं। पुलिस ने हुर्रे के पेट पर बंदूक की बट मारी। कुछ दिनों बाद बच्चे ने जन्म लिया लेकिन हुर्रे को इंफेक्शन हो गया। अपने नवजात को लेकर हुर्रे दंतेवाड़ा जेल के बाहर खड़ी रहती थी। एक रोज जब वह गंभीर हो गई तो सोनी सोरी और सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने उसे अस्पताल में दाखिल करवाया। हुर्रे ने दम तोड़ दिया, तब से बच्चे को सोरी ही पाल रही थी। यात्रा में सोरी उस बच्चे को लेकर भी शामिल हुई।
देश के कई दिग्गज शामिल
सोरी की तिरंगा यात्रा को देश के कई दिग्गजों ने अपना समर्थन दिया है। यात्रा में सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया, लीगल एड की शालिनी गेरा, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के जनकलाल ठाकुर, श्रेया, पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष लाखन सिंह, सुकुल नाग, संकेत ठाकुर, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला, किसान नेता आनन्द मिश्रा, नंद कश्यप, कलादास, रमाकांत, गौरा यादव, बिजेंद्र तिवारी, एम डी सिराजु²ीन, अली मोहम्मद, अफ्तोज आलम, संतेन्द्र बोडली, तेजिन्दर, एपी जोशी, अरविंद गुप्ता, पत्रकार कमल शुक्ला, प्रभात सिंह, पुष्पा रोकड़े, तामेश्वर सिन्हा, प्रिया शुक्ला सहित कई ग्रामीण शामिल हैं।
- राजकुमार सोनी@रायपुर की रिपोर्ट
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