सावित्रीबाई फुले को शत शत नमन..
स्त्री हूँ इसलिए जानती हूँ कि एक स्त्री कोपढ़ाई करने के लिए कितने कष्ट उठाने पड़ते है ..सौभाग्य से.हमेशा लड़कियों को पढ़ाने का मौका मिला तो ये अनुभव और बढ़ते गए.... सुबह घर का काम करके स्कूल कॉलेज जाना ....अक्सर अध्यापिकाओं से कॉपी किताब न लाने पर डाँट खाना ...क्योंकि उनकी जरूरतें घर की सूचीमें जगह लेने लायक होती ही नहीं ....परिवार पर आए किसी बड़े आर्थिक संकट का पहला इलाज लड़कियों की पढ़ाई बंद करवाना माना जाता है ....दिल्ली विश्विद्यालय के बाहरी दिल्ली के गाँव से सटे एक कॉलेज में वाइवा लेते हुए पहली बार जाना कि शादी के बाद पढ़ना काले पानी की सजा से कम नहीं होता ...कॉलेज आने के लिए उन्हें मिन्नतें करनी पड़ती है ,......वाइवा में अच्छे नंबर पाने के लिए आपके सामने गिड़गिड़ाती हैं ...
.मान लीजिये गलती से ये लड़कियां कहीं पढ़ लिख भी गईं तो घर बैठकर अच्छे वर के लिए तपस्या करती हैं ...और आगे की पढ़ाई या नौकरी के लिए वर से वर (भीख) मांगने की शिक्षा प्राप्त करती हैं ...
....आज भी भारत मे लड़कियों के लिए शिक्षा दिव्य वस्तु है ...ऐसे में उस महान स्त्री को याद करना अनिवार्य है जिसने इस लड़ाई की नींव रखी ...खुद अपमान सहकर हमें सर उठाकर जीने की राह दिखाई
....आज भी भारत मे लड़कियों के लिए शिक्षा दिव्य वस्तु है ...ऐसे में उस महान स्त्री को याद करना अनिवार्य है जिसने इस लड़ाई की नींव रखी ...खुद अपमान सहकर हमें सर उठाकर जीने की राह दिखाई
मैं आज ये पोस्ट लिखने की स्थिति में भी इसीलिये हूँ क्योंकि सावित्रीबाई फुले ने भारत में लड़कियों को पढ़ाने के लिए पहला विद्यालय खोला ......
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