Pramod Ranjan
स्मृित इरानी जी, आज संसद में खूब अच्छा बोलीं। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है आदमी भावना में बहकर तथ्यों का ध्यान नहीं रख पाता। आपको महिषासुर दिवस से खासी चिढ है और आपको लगता है कि जेएनयू में कुछ विद्यार्थियों ने इसे आयोजित कर भारतीय संस्कृति के विरूद्ध काम कर दिया है।
लेकिन आप भारतीय संस्कृति को कितना जानती हैं? कुछ तथ्य रख रहा हूं।
1. महिषासुर दिवस सिर्फ जेएनयू में नहीं मनाया जाता। यह देश केे लगभग 350 स्थानों पर मनाया जा रहा है।
2. महिषासुर दिवस मनाने वालों में सबसे अधिक संख्या आदिवासी मूल के लोगों की है। बडी संख्या में पिछडे और दलित भी महिषासुर दिवस मनाते हैं।
3. असुर नाम की एक जनजाति है, जिसे भारत सरकार ने आदिवासियों में भी 'आदिम' की श्रेणी में रखा है। उनकी संख्या सिर्फ 9000 बची है। वे स्वयं को महिषासुर का वंशज मानते हैं। इस देश में महिषासुर के सैकडों स्मारक और स्थल हैं, जिनमें से कुछ को भारत सरकार के पुरात्त्व विभाग ने प्राचीन सभ्यता को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना है तथा उन्हें संरक्षित कर रखा है।
4. आपने अपने भाषण मेें बंगाल की बात की और तृणमूल कांग्रेस को आडे हाथों लिया। अकेले बंगाल में कलकता से लेकर मालदा, पुरूलिया तक लगभग 150 जगहों पर महिषासुर दिवस मनाया जा रहा है।
5. दुर्गापूजा का त्योहार इस देश की संस्कृति के लिए काफी नया है, जबकि महिषासुर का बहुत प्राचीन। भाषण देने पहले अपने अधिकारियों से कम से कम गुगल करवा लिया करें लें। वैसे अब भी देर नहीं हुई है, गुगल करके देखें। आपको मालूम चल जाएगा कि महिषासुर दिवस के विरोध में बोलकर आपने प्राचीन भारतीय संस्कृति का कैसा अपमान किया है।
2. महिषासुर दिवस मनाने वालों में सबसे अधिक संख्या आदिवासी मूल के लोगों की है। बडी संख्या में पिछडे और दलित भी महिषासुर दिवस मनाते हैं।
3. असुर नाम की एक जनजाति है, जिसे भारत सरकार ने आदिवासियों में भी 'आदिम' की श्रेणी में रखा है। उनकी संख्या सिर्फ 9000 बची है। वे स्वयं को महिषासुर का वंशज मानते हैं। इस देश में महिषासुर के सैकडों स्मारक और स्थल हैं, जिनमें से कुछ को भारत सरकार के पुरात्त्व विभाग ने प्राचीन सभ्यता को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना है तथा उन्हें संरक्षित कर रखा है।
4. आपने अपने भाषण मेें बंगाल की बात की और तृणमूल कांग्रेस को आडे हाथों लिया। अकेले बंगाल में कलकता से लेकर मालदा, पुरूलिया तक लगभग 150 जगहों पर महिषासुर दिवस मनाया जा रहा है।
5. दुर्गापूजा का त्योहार इस देश की संस्कृति के लिए काफी नया है, जबकि महिषासुर का बहुत प्राचीन। भाषण देने पहले अपने अधिकारियों से कम से कम गुगल करवा लिया करें लें। वैसे अब भी देर नहीं हुई है, गुगल करके देखें। आपको मालूम चल जाएगा कि महिषासुर दिवस के विरोध में बोलकर आपने प्राचीन भारतीय संस्कृति का कैसा अपमान किया है।
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