सच-झूठ एक ओर, सवाल ये नहीं है कि स्मृति ईरानी का संसद में भाषण Theatrics था, अभिनय था। सवाल ये है कि एनएसडी से लेकर एफटीआइआइ तक, मंडी हाउस से लेकर भारत भवन तक सारे संस्थान और तमाम संस्कृतिकर्मी कथित तौर पर भाजपा विरोधी हैं, बावजूद इसके समूचे विपक्ष को एक ढंग का अभिनेता नहीं मिला जो संसद में पूरी कलाकारी से जनता तक सही बातें पहुंचा सके? मैडम का काउंटर रच सके?
मने, जन नाट्य मंच से लेकर सहमत, अनहद और तमाम गदगद क्या केवल जश्न-ए-रेख्ता, जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल, भारंगम और ताज महोत्सव में ही खेत हो जाएंगे?
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