Sunday, February 7, 2016

अइसन गांव बना दे अइसन गांव बना दे जहां अत्याचार ना रहे जहां सपनों में जालिम जमींदार ना रहे सबके मिले भरपेट दाना सबके रहे के ठेकाना कोई बस्तर (वस्त्र) बिना लंगटे उघार ना रहे सभे करे मिलजुल काम पावे पूरा श्रम के दाम कोई केहू के कमाई लूटनिहार ना रहे सभे करे सबके मान गावे एकता के गान कोई केहू के कुबोली बोलनिहार ना रहे -रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’

जनकवि रमाकांत द्विवेदी 'रमता', गोरख पांडेय और रमाशंकर यादव 'विद्रोही' की याद में
कविता पाठ और नुक्कड़ नाट्य प्रस्तुति
7 फरवरी 2016, रविवार, दिन- 2 बजे, पवना बाज़ार, भोजपुर, बिहार
आयोजक- जन संस्कृति मंच
संपर्क- अरविंद अनुराग, राज्य पार्षद, जन संस्कृति मंच 9576085074
अइसन गांव बना दे
अइसन गांव बना दे जहां अत्याचार ना रहे
जहां सपनों में जालिम जमींदार ना रहे
सबके मिले भरपेट दाना सबके रहे के ठेकाना
कोई बस्तर (वस्त्र) बिना लंगटे उघार ना रहे
सभे करे मिलजुल काम पावे पूरा श्रम के दाम
कोई केहू के कमाई लूटनिहार ना रहे
सभे करे सबके मान गावे एकता के गान
कोई केहू के कुबोली बोलनिहार ना रहे
-रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’
(30 अक्टूबर 1917- 24 जनवरी 2008)
वतन का गीत
हमारे वतन की नई जिंदगी हो
नई जिंदगी इक मुकम्मिल खुशी हो
नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों
मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो
न हो कोई राजा न हो रंक कोई
सभी हों बराबर सभी आदमी हों
न ही हथकड़ी कोई फसलों को डाले
हमारे दिलों की न सौदागरी हो
जुबानों पे पाबंदियाँ हों न कोई
निगाहों में अपनी नई रोशनी हो
न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन
न ही कोई भी कायदा हिटलरी हो
सभी होंठ आजाद हों मयकदे में
कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो
नए फैसले हों नई कोशिशें हों
नई मंजिलों की कशिश भी नई हो
-गोरख पांडेय
(1945-29 जनवरी 1989)
गजल
राजा रानी किसी का पानी नहीं भरते हैं हम
सींच कर बागों को अपने अब हरा करते हैं हम।
शर्म से सिकुड़ी हुई इस देह को हैं तानते
दोस्तों अपने झुके कंधे खड़ा करते हैं हम।
ऐसा करने में है जलता खून, तुम मत खेल जानो
मोम जैसे दिल को पत्थर सा कड़ा करते हैं हम।
मान जाएं हार अपने ऐसी तो आदत नहीं
बाद मरने के भी काफिर मौत से लड़ते हैं हम।
आग भड़काने के पीछे अपना ही घर फूंक डालें
सोचिएगा मत कि खाली शायरी करते हैं हम
-रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’
(3दिसंबर 1957- 8 दिसंबर 2015)

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