Tuesday, February 9, 2016

प्रतिरोध की सांस्कृतिक धाराओं का मिलन.... सोशल मीडिया से पता चला कि दिल्ली के आयोजन में शीतल साठे ने रोहित वेमुला पर लिखा गया एक गीत गाया, जिसमें ब्राह्मणवाद का विरोध किया गया और मौजूदा लोकशाही पर सवाल उठाए गए। हमने भी रोहित वेमुला की याद में हिरावल के साथी संतोष झा द्वारा गाए गए गीत को लोगों को सुनाया। मुझे सूचना है कि हिरावल के साथी हैदराबाद में आंदोलनरत छात्रों के बीच अपने गीतों के साथ पहुंचने वाले हैं। वे उसी तरह प्रतिरोध की धाराओं के साथ अपनी एकजुटता जाहिर कर रहे हैं, जैसे कबीर कला मंच के कलाकारों की गिरफ्तारी और पुलिसिया दमन के खिलाफ विरोध के अभियान में उतरे थे और उनकी जुबान पर शीतल साठे का मशहूर गीत- ‘ऐ भगतसिंह तुम जिंदा हो’ था। विद्रोही, रोहित वेमुला, रमता जी, गोरख पांडेय,- सारे नाम एक-दूसरे में घुल-मिल रहे हैं।...गांव से लेकर पूरे देश को नए किस्म से रचने की समझ और उसमें यकीन ही तो हम सबको जोड़ता है- ‘हमनी देशवा के नया रचवइया हईं जा...हमनी देशवा के नइया के खेवइया हईं जा’। शाम हो रही थी, पर हम सुबह की उम्मीद से भरे हुए थे। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए मैंने गोरख पांडेय के ‘वतन का गीत’ को गाया- ‘हमारे वतन की नई जिंदगी हो।’ बाद में सोशल मीडिया के जरिए पता चला कि ठीक उसी वक्त दिल्ली की शाम में सुबह की वह आवाज- शीतल साठे की आवाज गूंज रही थी- भगत सिंह तुम जिंदा हो, इंकलाब के नारों में...। एक ही तारीख को हुए तीन आयोजनों के बीच एकता की सूत्रों पर एक निगाह

प्रतिरोध की सांस्कृतिक धाराओं का मिलन....
सोशल मीडिया से पता चला कि दिल्ली के आयोजन में शीतल साठे ने रोहित वेमुला पर लिखा गया एक गीत गाया, जिसमें ब्राह्मणवाद का विरोध किया गया और मौजूदा लोकशाही पर सवाल उठाए गए। हमने भी रोहित वेमुला की याद में हिरावल के साथी संतोष झा द्वारा गाए गए गीत को लोगों को सुनाया। मुझे सूचना है कि हिरावल के साथी हैदराबाद में आंदोलनरत छात्रों के बीच अपने गीतों के साथ पहुंचने वाले हैं। वे उसी तरह प्रतिरोध की धाराओं के साथ अपनी एकजुटता जाहिर कर रहे हैं, जैसे कबीर कला मंच के कलाकारों की गिरफ्तारी और पुलिसिया दमन के खिलाफ विरोध के अभियान में उतरे थे और उनकी जुबान पर शीतल साठे का मशहूर गीत- ‘ऐ भगतसिंह तुम जिंदा हो’ था।
विद्रोही, रोहित वेमुला, रमता जी, गोरख पांडेय,- सारे नाम एक-दूसरे में घुल-मिल रहे हैं।...गांव से लेकर पूरे देश को नए किस्म से रचने की समझ और उसमें यकीन ही तो हम सबको जोड़ता है- ‘हमनी देशवा के नया रचवइया हईं जा...हमनी देशवा के नइया के खेवइया हईं जा’। शाम हो रही थी, पर हम सुबह की उम्मीद से भरे हुए थे। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए मैंने गोरख पांडेय के ‘वतन का गीत’ को गाया- ‘हमारे वतन की नई जिंदगी हो।’ बाद में सोशल मीडिया के जरिए पता चला कि ठीक उसी वक्त दिल्ली की शाम में सुबह की वह आवाज- शीतल साठे की आवाज गूंज रही थी- भगत सिंह तुम जिंदा हो, इंकलाब के नारों में...।
एक ही तारीख को हुए तीन आयोजनों के बीच एकता की सूत्रों पर एक निगाह 
JANSAHITY.BLOGSPOT.COM|BY सुधीर सुमन

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