Tuesday, February 23, 2016

सोने की धरती पर देखो दंगा भड़का आज इस सत्ता को बदलो, बदलो इस सत्ता को आज

दंगा
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(एक लम्बी कविता के अंश)
पुलिस और गुण्डों का अबकी ज़बरदस्त गँठजोड़
कैसे मिले लूट की दौलत लगी हुई है होड़
पहले लूटा था गुण्डों ने अब पी.ए.सी. आयी
ख़ून-सने हाथों से उसने भारी लूट मचायी
जिसके घर में माल-मता था वह तो हुआ शिकार
जिसके पास नहीं था कुछ भी उसने खायी मार
बेगुनाह पकड़े जाते हैं दोषी मौज मनायें
लोग घिरे हैं संगीनों से मन मारे रह जायें
अपराधी तत्वों ने पहने अपने सिर पर ताज
सोने की धरती पर देखो दंगा भड़का आज
5.
बम पिस्तौल चला कर गुण्डे मूंछ ऐंठ कर घूमें
तेल कान में डाल प्रशासन सत्ता-मद में झूमे
पुलिस और अधिकारी आ कर पकड़ें सबके कान
भारत में क्या काम तुम्हारा भाग¨ पाकिस्तान
ठाकुर-बाँभन, कुर्मी-यादव भेद इन्हीं ने डाला
शिया और सुन्नी को बाँटा ठोंक अक़ल पर ताला
हरिजन और दलित वर्गों को इसी तरह धमकायें
बाँट-बाँट कर लोगों को वे अपनी धाक जमायें
लोग लड़ रहे हैं आपस में दौलत करती राज
सोने की धरती पर देखो दंगा भड़का आज
8.
कभी बैठ कर सोचो भैया ये दंगे क्यों होते
बीज ज़हर के बीच हमारे कौन लोग हैं बोते
रोटी, शिक्षा, रोज़गार की जब-जब होती माँग
दंगे की सूली पर सत्ता सब को देती टाँग
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई इस धरती के जाये
सत्ता के ही भेद-भाव से बनते आज पराये
चाहे किसी दिशा से देखो यही समझ में आता
तानाशाही और अमीरी में है सीधा नाता
कैसी यह सरकार हमारी घोल पी गयी लाज
सोने की धरती पर देखो दंगा भड़का आज
9.
काम नहीं चलने वाला है इस सत्ता से भैया
बदलो बदलो जल्दी बदलो इस सत्ता को भैया
किसे लाभ है मँहगाई से इसको अब तुम जान¨
कौन बढ़ाता है बेकारी दुश्मन तुम पहचान¨
बदलो ईंट-पलस्तर-चौखट बदलो कुल बुनियाद
दहशत की दीवार गिराओ छोड़ो अब फ़रियाद
बदलो अफ़सर बदलो नेता बदलो दुनिया सारी
दौलत और दमन को बदलो भूख और बेकारी
रेशा-रेशा जुड़ कर तुम रस्सी जैसे बन जाओ
पूंजी औ’ सत्ता की साज़िश को तत्काल मिटाओ
अपने बच्चों की ख़ातिर तुम करो आज क़ुरबानी
पहले से बेहतर दुनिया है उन्हें सौंप कर जानी
सोने की धरती पर देखो दंगा भड़का आज
इस सत्ता को बदलो, बदलो इस सत्ता को आज

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