Wednesday, February 24, 2016

Jasbir Chawla February 25 at 10:05am अशोक का प्रायश्चित ----------------- क्या कसूर था कलिंग का कलिंग गणतंत्र था बसते थे हर धर्म जाति के लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था बस यही कसूर था उसका अशोक ने युद्ध भूमी देखी गलियों में नोचते चील गिद्ध देखे एक लाख की मौत देखी हर तरफ आगज़नी हाहाकार भागती महिलाएँ रोते चीख़ते बच्चे देखे युद्ध भूमी में बिलखती वह महिला झकझोर कर पूछती उससे क्या दोष था उन सबका क्यों पिता पति पुत्र भेंट चढ़े उसके क्यों अजन्मे शिशु मरे क्यों वह किसके लिये जिये अशोक तू मुझे भी मार दे स्मृतियों में खो गया अशोक उसने हथियाई थी सत्ता सैकड़ों रानियों मंत्रियों को मारा भाईयों को आग में झोंका कुरूप कहने वाले को मौत के घाट उतारा अब प्रायश्चित होगा साधू समुद्र ने भी जगा दी अंतरात्मा अब न युद्ध होगा अशोक ने बुद्ध का मार्ग पकड़ा चालीस साल चला अहिसा की राह विहार स्तूप बनवाये चट्टानों पर राजाज्ञाएँ लिखी तेहरवीं राजाज्ञा में स्वीकारा गलत थी सारी हत्याएँ गलत था विस्थापन अमिट माफ़ीनामा लिखा गिरनार की चट्टान पर नस्लों को चेताया युद्ध न हो मैदान पर रणभेरी घोष नहीं धर्म घोष हो दिग्विजय नहीं धर्मविजय हो सद्भावना से जीतें सबक़ों जीवन के मूल्य हैं सच्चाई दया स्वनियंत्रण दान और नैतिकता सदियों बाद भी प्रासंगिक हैं राजाज्ञाएँ लपलपाती हिंसक हवाओं के बीच माफी माँगते ये हलफ़नामे (* गिरनार जूनागढ़ गुजरात में है) [?] जसबीर चावला

   
Jasbir Chawla
February 25 at 10:05am
 
अशोक का प्रायश्चित
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क्या कसूर था कलिंग का
कलिंग गणतंत्र था
बसते थे हर धर्म जाति के लोग
लोकतांत्रिक व्यवस्था
बस यही कसूर था उसका

अशोक ने युद्ध भूमी देखी
गलियों में नोचते चील गिद्ध देखे
एक लाख की मौत देखी
हर तरफ आगज़नी हाहाकार
भागती महिलाएँ रोते चीख़ते बच्चे देखे

युद्ध भूमी में बिलखती वह महिला
झकझोर कर पूछती उससे
क्या दोष था उन सबका
क्यों पिता पति पुत्र भेंट चढ़े उसके
क्यों अजन्मे शिशु मरे
क्यों वह किसके लिये जिये
अशोक तू मुझे भी मार दे

स्मृतियों में खो गया अशोक
उसने हथियाई थी सत्ता
सैकड़ों रानियों मंत्रियों को मारा
भाईयों को आग में झोंका
कुरूप कहने वाले को मौत के घाट उतारा

अब प्रायश्चित होगा
साधू समुद्र ने भी जगा दी अंतरात्मा
अब न युद्ध होगा

अशोक ने बुद्ध का मार्ग पकड़ा
चालीस साल चला अहिसा की राह
विहार स्तूप बनवाये
चट्टानों पर राजाज्ञाएँ लिखी
तेहरवीं राजाज्ञा में स्वीकारा गलत थी सारी हत्याएँ
गलत था विस्थापन
अमिट माफ़ीनामा लिखा गिरनार की चट्टान पर
नस्लों को चेताया युद्ध न हो मैदान पर
रणभेरी घोष नहीं धर्म घोष हो
दिग्विजय नहीं धर्मविजय हो
सद्भावना से जीतें सबक़ों
जीवन के मूल्य हैं सच्चाई दया
स्वनियंत्रण दान और नैतिकता

सदियों बाद भी प्रासंगिक हैं राजाज्ञाएँ
लपलपाती हिंसक हवाओं के बीच
माफी माँगते ये हलफ़नामे

(* गिरनार जूनागढ़ गुजरात में है)

[?] जसबीर चावला

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